लेख: कोरोना छीन ले गया होंठों की लाली- शमीम शर्मा
कोरोना के कारण और जो कुछ हुआ सो हुआ पर महिलाओं के सोलह-शृंगार पर भी आंच आ गई है। हमारे पुरातन साहित्यिक ग्रंथों में महिलाओं के सोलह-शृंगारों का बार-बार उल्लेख मिलता है, जिसमें बिंदी, सुर्खी, सिंदूर, काजल आदि प्रमुख हैं। पर मास्क ने सुर्खी यानी लिपस्टिक पर कहर ढा दिया है। मुझे नहीं पता कि भविष्य में लिपस्टिक निर्माता क्या बनायेंगे पर यह सवाल ज्यादा विकराल है कि अब महिलाएं अपने अधरों पर लिपस्टिक क्यों और कैसे लगायेंगी? यह उल्लेख भी जरूरी है कि पुराने जमाने की सुर्खी ही आज की लिपस्टिक है। सुर्खी को लाली भी कहते हैं।
कुदरत ने भी होंठों की कमाल रचना की है जैसे कि लाल कमल की दो पंखुडिय़ां हों। हिन्दी साहित्य में भी नखशिख वर्णन करते हुए सबसे अधिक उपमायें आंख व होंठ के लिए सृजित हुई हैं। जिन अधरों पर जायसी, बिहारी-घनानंद जैसे कवियों ने अनेक रचनाएं रचीं, अब कोरोना काल में उन अधरों पर पटाक्षेप हो गया है। रंगबिरंगे मास्क होंठों पर जा विराजे हैं। मास्क ने होंठों को यूं ढक लिया है जैसे गाय-भैंस का दूध निकालने के बाद कोई स्त्री भरी बाल्टी दूध को अचानक पल्लू से ढक लिया करती कि कहीं नजऱ न लग जाये।
अखरोट के पेड़ की छाल 'दनदसा’ का उपयोग सदियों से दांतों को चमकाने के लिए किया जाता है पर इसका असर होंठों पर यह होता है कि वे सुर्ख हो जाते हैं। गज़़ल गायक जगजीत सिंह की ताउम्र एक ही रिक्वेस्ट थी—'होंठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो’ अब तो गीत के अमर होने की सारी संभावनाएं शून्य हो चली हैं।
लड़कियां लाल या संतरी रंग की लिपस्टिक में भी बीस शेड ढूंढ़ लेती हैं पर लड़के शैम्पू की जगह कंडीशनर से नहाकर कहेंगे कि इस शैम्पू में झाग ही नहीं हैं।
होंठ सिर्फ होंठ नहीं हैं बल्कि मुस्कुराहट का माध्यम भी है। हंसी की तो आवाज़ होती है पर होंठों पर फैली मुस्कान का तो देखे बगैर पता नहीं चलता। इसी मुस्कान के बारे में कहा गया है कि लड़की हंसी और फंसी। इस पर एक मनचले की फब्ती है कि एक लड़की स्माइल दे-देकर थक गई, पर मैंने उसे सीट नहीं दी।