मदर्स डे विशेष : बच्चों को दूसरों के भरोसे छोड़ संक्रमण रोकने में जुटी माताएँ
रायगढ़ । मई महीने के दूसरे रविवार को मदर्स डे यानी मातृत्व दिवस मनाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य मां की निःस्वार्थ सेवा और प्यार के बदले उन्हें सम्मान और धन्यवाद देने के लिए लोगों को जागरूक करना है। हालांकि, कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर के चलते इस साल भी मदर्स डे के जश्न पर व्यापक असर पड़ने वाला है क्योंकि महामारी की दूसरी लहर के चलते लॉकडाउन जो है।
मदर्स डे पर हम उन पांच कोरोना वॉरियर्स मां और उनके बच्चों के मन की बात लेकर आए हैं कि कैसे कोरोना जैसी आपदा में समाज की माताएं अपना सबकुछ दांव पर लगाकर मानव जीवन की सेवा में लगी हैं। ऐसे में वह केवल अपने बच्चों की मां न होकर एक व्यापक दायरा समेट लेती हैं।
डॉ. जया साहू : मां की जरूरत घर से ज्यादा समाज को :-
मेडिकल कॉलेज की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. जया साहू हाल में कोविड अस्पताल से तीसरी बार ड्यूटी से लौटी हैं। 14 दिन घर परिवार से बिल्कुल दूर फिर 7 दिन का हताश करने वाला क्वारंटाइन मन को बोझिल कर देता है क्योंकि घर में बेटा संस्कार और बेटी संस्कृति जो है। शुरुआत में तो बच्चे भी डर गए थे क्योंकि मां और पापा (स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. टीके साहू) अक्सर अस्पताल में ही रहते। इसी दौराना बेटे का संक्रमित होना, मां की कोविड ड्यूटी और पिता का शासकीय कार्य से बाहर रहना बच्चों में खौफ पैदा कर गया। ऐसी विषम परिस्थिति में डॉ. जया ने हिम्मत नहीं हारी, बच्चों को समझाती और यह डर निकालती। बेटी तो अब भी सोते समय मास्क पहनती है। बेटा बड़ा है इसलिए अब समझदार हो गया है वो कहता है कि मां-पिता की जरूरत घर से ज्यादा लोगों को है।
डॉ. जया कहती हैं कि दोनों बच्चे मुझसे बहुत करीब हैं, शुरुआत में बहुत दुख हुआ पर इस कोरोना ड्यूटी ने एक नया अनुभव दिया है। ड्यूटी के दौरान मन में अजीब सी दहशत होती है पर उसके बाद अजीब सा सुकून, इसे शब्दों में बयां करना कठिन है।
00 नर्स सुनैना : सकारात्मकता से जीतती हर पड़ाव :-
मेडिकल कॉलेज की स्टाफ नर्स सुनैना विशाल मसीह कोविड हॉस्टिपल में पेशेंट केयर रेड जोन से ड्यूटी करके लौटेने के बाद संक्रमित हो गई हैं। उनसे पति भी संक्रमित हुए हैं दोनों होम आइसोलेशन में हैं। उनकी 4 साल की बेटी आव्या उनसे दूर परिजनों के पास है, बेटी अपनी मां से हर बार कहती है कि लॉकडाउन में सबकी मम्मी तो घर में रहती हैं आप क्यों बाहर जाती हैं। बाहर कोरोना है मत जाइए । डॉक्टर्स संभाल लेंगे आप मत जाओ।
बकौल सुनैना: छोटे बच्चों को छोड़कर जाना मुश्किल होता है। शुरू में आव्या के मन में कोरोना फेयरी टेल वाला दानव था पर अब उसे हमने समझा दिया है पर मिस तो करते हैं। मैं पेंटिंग भी करती हूं जिससे उसको समझाने में मदद मिली। मैंने अस्पताल में देखा है संक्रमित मरीज पूछते हैं कि क्या वे बच जाएंगे, उनके मन में भय है कि कोरोना हुआ तो मर जाएंगे पर ऐसा नहीं है लोग भ्रम न पालें। हम उनको लगातार समझाते हैं कि आप स्वस्थ हो जाएगें। लोग सुरक्षित रहें, स्वस्थ रहें।