Analysis: जानें- अफगानिस्तान में तालिबान पर अमेरिकी रुख से भारत को कैसे मिलेगी राहत
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कब क्या कर देंगे या क्या बोल देंगे, इस बारे में कोई भी भविष्यवाणी जोखिम भरी होगी। बावजूद इसकेतालिबान से बातचीत को खत्म करने की उनकी घोषणा राहतकारी है। जब पिछले दो अगस्त को घोषणा हुई कि अमेरिका और तालिबान के बीच समझौते को अंतिम रूप दे दिया गया है तो पूरी दुनिया में भविष्य को लेकर कई प्रकार की आशंकाओं के स्वर उभरने लगे। उस घोषणा के अनुसार अमेरिका नाटो सहित अपनी फौजों को वापस कर लेगा।
अमेरिका के विदेश मंत्री इस समझौते से सहमत नहीं
डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के अंदर इस बात पर सहमति है कि हमें किसी तरह अफगानिस्तान से निकल भागना है। इसीलिए जल्मे खलीलजाद को विशेष प्रतिनिधि बनाकर भेजा गया और वह पिछले दिसंबर से कतर की राजधानी दोहा में तालिबान के साथ नौ दौर की बातचीत के बाद समझौते के एक मसौदे पर पहुंचे थे। इससे साफ लगने लगा था कि अमेरिका और तालिबान इस पर हस्ताक्षर करने ही वाले हैं। इसी बीच अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोंपियो ने घोषणा कर दी कि वे इस समझौते से सहमत नहीं हैं। हालांकि तब भी कुछ विशेषज्ञ यह मान रहे थे कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने विदेश मंत्री को दरकिनार कर स्वयं हस्ताक्षर कर देंगे। हालांकि तत्काल तो ट्रंप ने वही किया जो उनके विदेश मंत्री चाहते थे। लेकिन प्रश्न यह है कि आगे क्या?