लेख: आप मरना नहीं चाहते हैं? तो अवश्य करें चिंतन
`कोरोना है खतरनाक संक्रामक बीमारी, आज उसकी कल मेरी बारी।` यह सोंच-सोंचकर बहुत से लोगों की धड़कनें बढ़ी हुई है। मनोवैज्ञानिक और चिकित्सा विशेषज्ञ भी अब यह स्वीकार कर रहे हैं कि कोरोना फोबिया जैसी स्थिति निर्मित हो गई है। मनोचिकित्सक बारंबार यह सलाह दे रहे हैं कि कोरोना से कहीं ज्यादा खतरनाक इसका भय है। इसलिए भयभीत न हों। कोरोना से डरने की जरूरत नहीं है। कुछ सावधानियां बरतकर कोरोना को हम सब हरा सकते हैं।
महामारी से रोज हो रही मौतें और मरने का जन-जन के मन में समाया हुआ भय। आखिर क्यों ? मौत से इतना भय क्यों ? आप मरना नहीं चाहते हैं न ? कोई भी नहीं मरना चाहता है। यह जानते हुए भी कि *`मौत शास्वत और अंतिम सत्य है। सभी का एक न एक दिन मरना तय है। जो जन्म लिया है, उसकी मृत्यु भी निश्चित है। यही प्रकृति का नियम है। इसे कोई नहीं नकार सकता है।`* यह बातें निश्चय ही आप भी कहीं न कहीं पढ़े होंगे। किसी न किसी से सुने होंगे। विधि का विधान भी यही है कि मौत अटल सत्य है। यह सब जानते हुए भी आखिर हम मौत को क्यों स्वीकार नहीं कर पाते हैं ? अभी तो मौत का मातम भी नहीं मना पा रहे हैं। सच्चाई को स्वीकार नहीं कर पाने की वजह जीवन से हमारा अति लगाव है। आखिर जिंदगी किसे प्यारा नहीं है ? यही वजह है कि वर्तमान परिस्थितियों में नब्बे प्रतिशत से अधिक लोग रोज मर-मर कर जी रहे हैं। अब तो चिकित्सा विशेषज्ञ भी यह स्वीकार रहे हैं कि कोरोना से कहीं ज्यादा इसके भय से मौतें हो रही है। यही तो रोना है। सबकुछ जानते हुए, ज्ञान बांटते हुए भी हम खुद मौत को स्वीकार करने तैयार नहीं हैं। आप भी मरना नहीं चाहते हैं ? तो आइए कुछ ऐसा करें जिससे कि रोज मर-मर कर नहीं जीना पड़ेगा।
गौर कीजिए कि कोरोना से जंग हारने वालों की संख्या बहुत कम है। जबकि इसके संक्रमण को मात देकर स्वस्थ होने वालों की संख्या लाखों में है। इससे यह साफ है कि जब तक आपकी मौत नहीं आयी है, *आपको कोई मार नहीं सकता। कोरोना भी नहीं।* इसलिए भयभीत होकर रोज मर-मर कर जीना छोड़ दें। और गुनगुनाइये-
`मौत आनी है आएगी एक दिन....
जान जानी है जाएगी एक दिन...
ऐसी बातों से क्यों घबराना...
यहां कल क्या हो किसने जाना। जिंदगी एक सफर है सुहाना....। `
सकरात्मक सोच रखें। जीवन में कुछ कर गुजरने की तमन्ना रखें। बेखौफ होकर कर्तव्य पथ पर निरंतर बढ़ते चलें। *`यह वक्त भी गुजर जाएगा`* इस अटल वाक्य को हमेशा जेहन में रखें। ध्यान रहे- हमें वक्त गुजारना नहीं है, कुछ खास कर गुजरना है। मरने के बारे में रोज-रोज सोंचकर तनावग्रस्त रहने का कोई औचित्य नहीं है। मौत जब शास्वत सत्य है, एक न एक दिन तो मरना है ही। तब हम अपने जेहन में एक ही सवाल बार-बार क्यों लाते हैं कि मैं भी मर जाउंगा क्या ? ऐसा सोंचकर तनावग्रस्त हो जाना अनेक मानसिक विकार उत्पन्न करता है। जो दिन इस शरीर यात्रा की हमारे लिए अंतिम दिन होगी, हम देह त्याग देंगे। जीवन तो अनंत है, केवल शरीर यात्रा का अंत होता है। जीवात्मा तो अनंत काल तक सफर करती है। इस लोक पर मौत तो हमेशा कुछ न कुछ बहाना लेकर आती ही है।
इसलिए बिंदास होकर, अच्छे मन से अपने और अपनों के साथ-साथ, पास-पड़ोस के लोगों की मदद करते चलें। *`वसुधैव कुटुम्बकम`* का मूलमंत्र सार्थक करें। मानव जाति के कल्याण के लिए यथासंभव, यथाशक्ति कार्य करते रहें। जरूरतमंदों को धन से, श्रमदान से और यथा संभव समयदान करते रहें। इससे निश्चय ही सुख की अनुभूति करेंगे। सरकारें जीवन रक्षा के लिए अलग-अलग माध्यमों से प्रयास कर ही रही हैं। हम भी अपने आसपास के लोगों को संक्रमण से बचाने, संक्रमितों को इस महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए कुछ न कुछ तो कर ही सकते हैं। `आगे-आगे बढ़ना है तो हिम्मत हारे मत बैठो। जीवन में कुछ करना है तो पांव पसारे मत बैठो।` घर में रहकर भी बहुत कुछ किया जा सकता है। परिस्थितियों से तालमेल बैठाते हुए कुछ न कुछ नवाचार करने का प्रयास कीजिए। व्यस्त रहेंगे तो मस्त रहेंगे और स्वस्थ भी रहेंगे।
- आनंदराम साहू
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व प्रेस क्लब महासमुंद के अध्यक्ष हैं।)