Loan लेने जा रहे तो जान लें ये बात, RBI ने जारी किया नया आदेश
नई दिल्ली. बहुत जल्द आम लोगों द्वारा लोन लेने का तरीका बदलने वाला है. बैंकों को अब रिटेल लोन (Retail Loan) देने के चैनल में बदलाव करना होगा. दरसअल, भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India) ने डायरेक्ट सेलिंग एजेंट (DSA) के माध्यम से रिटेल लोन सोर्स करने और लेनदार के डॉक्युमेंट्स को फिजिकल वेरिफाई (Physical Verification) करने पर प्रतिबंध लगा दिया है. इकोनॉमिक टाइम्स ने अपनी एक रिपोर्ट में केंद्रीय बैंक के हवाले से इस बारे में लिखा है.
RBI ने क्यों उठाया ये कदम?
केंद्रीय बैंक ने यह फैसला इसलिए उठाया है ताकि लेनदारों के डेटा का इस्तेमाल अवैध तरीके से नहीं किया जा सके. साथ ही, केंद्रीय बैंक चाहता है कि बैंकों का जोखिम कम किया जा सके. हालांकि, RBI के इस आदेश के बाद कई लेंडर्स को कंज्यूमर लोन (Consumer Loan) और क्रेडिट कार्ड (Credit Card) के ग्रोथ घटने का डर है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि बैंक अब इस मामले को नियामक और सरकार के सामने उठाने की तैयारी कर रहे हैं.
बैंकों के पास क्या होगा नया रास्ता?
मौजूदा प्रैक्टिस के अनुसार, रिटेल एसेट का अच्छा खासा हिस्सा डायरेक्ट सेलिंग एजेंट के जरिए ही सोर्स किया जाता है. इसमें पसर्नल लोन, क्रेडिट कार्ड और कंज्यूमर क्रेडिट शामिल है. यह व्यवस्था करीब एक दशक से चल रही है, जिसने बैंकों के रिटेल लोन ग्रोथ (Retail Loan Growth) बढाने में मदद किया है. RBI के इस आदेश के बाद संभव है कि बैंकों द्वारा नियुक्त किए गए एजेंट eKYC के जरिए डेटा वेरिफाई करें. यह भी संभव है कि उन्हें ग्राहकों के पास बायेमेट्रिक रीडर (Biometric Reader) ले जान का रास्ता निकाला जाए. हालांकि, इसमें भी बैंकों के लिए समस्या होगी कि वो लाखों एजेंटों को बयोमेट्रिक रीडर रातों रात कैसे मुहैया कराएं.
सीमित होनी चाहिए एजेंटों की भूमिका
इस रिपोर्ट में एक बैंकर के हवाले से लिखा गया है कि आरबीआई का मानना है कि इन एजेंटों की भूमिका सीमित होनी चाहिए. लोन देने के लिए डॉक्युमेंट्स का वेरिफिकेशन (Document Verification) बैंकों द्वारा ही होना चाहिए. इसे आउटसोर्स नहीं किया जाना चाहिए. कहा गया है कि एंटी मनी लॉन्ड्रिंग (Anti-Money Laundering) नियम आने के बाद से ही इस बात की आशंका जताई गई थी. सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि संभव है कि आरबीआई ने यह कदम फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) के 39 सदस्यों द्वारा नियमों के फॉलो करने को ध्यान में रखते हुए लिया है. बता दें कि FATF एक इंटर-गवर्नमेंटल पॉलिसी नीति निर्माता है, जिसे 1928 में पेरिस समिट के दौरान शुरू किया गया था.