राफेल डील पर जल्द आ सकता है सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, जानिए क्या है यह पूरा मामला...
राफेल डील मामले में सुप्रीम कोर्ट जल्द बड़ा फैसला सुना सकता है। राफेल सौदे में मोदी सरकार को क्लीन चिट मिलने के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्रियों अरुण शौरी, यशवंत सिन्हा और वकील प्रशांत भूषण ने सामूहिक तौर पर शीर्ष कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की थी। इस याचिका पर चीफ जस्टिस रंजन गोगोई रिटायरमेंट के पहले फैसला सुना सकते हैं। इस पुनर्विचार याचिका में कहा गया था कि राफेल के हाल के फैसले में कई त्रुटियां हैं। यह फैसला सरकार के गलत दावों पर आधारित है। याचिकार्ताओं ने इसे स्वाभाविक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन बताते हुए पुनर्विचार याचिका पर दोबारा सुनवाई की मांग की थी। जिसे मंजूर करते हुए सुप्रीम कोर्ट द्वारा याचिका पर दोबारा सुनवाई की गई थी। इस याचिका पर अब सुनवाई पूरी हो चुकी है और फैसला सुरक्षित रखा गया है।
राफेल डील पर मार्च 2018 में दायर हुई थी PIL
मोदी सरकार द्वारा फ्रांस की कंपनी दसॉल्ट के साथ 36 राफेल लड़ाकू विमानों को लेकर डील की गई थी। सरकार ने संसद में हर राफेल विमान की कीमत 670 करोड़ रुपए बताई थी। लेकिन कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि राफेल खरीदी की वास्तविक कीमत इससे कहीं ज्यादा है। इसके बाद 13 मार्च 2018 को सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की गई थी जिसमें फ्रांस से 36 राफेल विमानों की खरीदी संबंधी सरकार के फैसले की स्वतंत्र जांच की मांग करने के साथ ही संसद के सामने सौदे की वास्तविक कीमत का खुलासा करने का अनुरोध भी किया गया था।
दिसंबर 2018 में मोदी सरकार को मिली थी क्लीन चिट
राफेल सौदे पर सवाल उठाने वाली इस जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई होने के बाद 14 दिसंबर 2018 को शीर्ष कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया था। कोर्ट ने इस मामले में मोदी सरकार को क्लीन चिट दे दी थी। इसके साथ ही कोर्ट ने इस सौदे में कथित तौर पर हुई अनियमितताओं को लेकर CBI को FIR दर्ज करने का अनुरोध करने वाली सभी याचिकाओं को भी खारिज कर दिया था।
पूर्व मंत्रियों ने जनवरी 2019 में दाखिल की पुनर्विचार याचिका
राफेल केस में एनडीए गवर्नमेंट को क्लीनचिट मिलने के बाद पूर्व मंत्रियों अरुण शौरी, यशवंत सिन्हा और वकील प्रशांत भूषण ने मिलकर पुनर्विचार याचिका दायर की थी। इस याचिका में हवाला दिया गया था कि केंद्र सरकार की ओर से कोर्ट के सामने सही तथ्य नहीं रख गए हैं। सरकार के गलत दावों पर फैसले को आधारित होने की पुनर्विचार याचिका में बात कही गई थी। तीनों याचिकाकर्ताओं की इस पुनर्विचार याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार करते हुए दोबारा इस मामले पर सुनवाई की थी। अब इस पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई पूरी हो चुकी है और शीर्ष कोर्ट कभी भी इसे लेकर अपना फैसला सुना सकती है।
अटल बिहारी की सरकार में रखा था विमान खरीदी का प्रस्ताव
भारतीय वायुसेना को मजबूत करने के लिए एयर फोर्स की मांग के बाद सबसे पहले अटल बिहारी बाजपेयी की एनडीए सरकार में लड़ाकू विमान खरीदने का प्रस्ताव रखा गया था। लेकिन साल 2007 में यूपीए सरकार ने इस विमान खरीद समझौते को आगे बढ़ाया जिस वक्त रक्षा मंत्री एके एंटोनी थे। देश के लिए 126 एयरक्रॉफ्ट खरीद को अगस्त 2007 में मंजूरी दी गई थी।
यूपीए सरकार में नहीं हो सकी डील, मोदी सरकार ने बढ़ाया आगे
यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान तकनीक ट्रांसफर से जुड़े मुद्दों को लेकर यह समझौता नहीं हो सका था। जिसे बाद में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद आगे बढ़ाया गया। पीएम मोदी की फ्रांस यात्रा के दौरान साल 2015 में मोदी ने राफेल विमान खरीद को समझौता किया था। इस समझौते के तहत भारत को शुरुआत में 36 राफेल विमान मुहैया कराने की डील की गई थी।
राफेल की कीमत पर कांग्रेस ने उठाए थे सवाल
केंद्र सरकार ने संसद में राफेल की कीमत 670 करोड़ बताई थी। लेकिन कांग्रेस ने सरकार द्वारा बताई गई इस कीमत पर सवाल खड़े किए थे। तत्कालीन कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस सौदे में घोटाला होने को लेकर मोदी सरकार को जमकर आड़े हाथों लिया था। राहुल गांधी ने सार्वजनिक मंचों से एक राफेल विमान की कीमत 1500 करोड़ से ज्यादा तक की बताई थी। इसके बाद राफेल डील पर देशभर में सियासत गरमाई थी।