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क्यों मजबूर हैं सरकारें कोरोना से भी अधिक विषैला जहर पिलवाने - विमल शंकर झा

क्यों मजबूर हैं सरकारें कोरोना से भी अधिक विषैला जहर पिलवाने - विमल शंकर झा
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छत्तीसगढ़ सहित पूरे देश में कोरोना के चालीस दिनों के लाकडाउन में ढील के बाद शराब दुकानों के सामने उमड़ रही पीने वालों की भीड़ ने आम लोगों को शर्मसार ही नहीं किया है बल्कि उनकी आंखों में पानी लाने के लिए मजबूर कर दिया है । परिजनों के साथ नशे को नाश की जड़ मानने वालों की आंखों का यह पानी कोई खुशी का नहीं वरन पीने-पिलाने वालों की आंखों का पानी मर जाने पर गम और गुस्से तथा अफसोस को लेकर है । सरकार के लाकडाउन - टू में ढील के बाद शराब दुकानों के लाक खोल देने से देश की राजधानी से लेकर प्रदेश की राजधानी तक शराब दुकानों में एक किलोमीटर से तीन किलोमीटर तक कतारों और उन्मादी होती सिरफुटौव्वल वाली भीड़ के चौंकाने वाले दर्दनाक दृश्य दिखाई दे रहे हैं । लोगों को यह यकीन करना मुश्किल हो रहा है कि पीने पिलाने के यह नजारे इसी सुसभ्य, सुशिक्षित औैर सभ्य समाज के हैं ? क्या दारु दुकानों के सामने उमड़ता, घुमड़ता, ललचाया और बौराया भारत सरकारों के रामराज, गांधीराज, विश्व गुरु और महाशक्ति वाला विकसित आधुनिक भारत है ? महात्मा गांधी ने कहा था कि छुआछूत की तरह मद्यपान भी हमारे समाज का अभिशाप है । नशे में व्यक्ति अपना संतुलन खोकर पशुवत आचरण करता है । स्वतंत्रता के साथ इस अभिशाप से मुक्ति के लिए भी नए भारत के निर्माताओं को प्रयास तेज करना होगा । दूरदर्शन पर धार्मिक सीरियल दिखाने और देखने वालों को इस ओर भी ध्यान देने की जरुरत है कि रामायण में कैसे मर्यादा पुरुषोत्त्म भगवान राम एक मनुष्य व राजा के रुप में एक राजा को धर्म, कर्तव्य, त्याग, सुशासन के राजधर्म का पाठ पढ़ाते हैं । और कृष्णा सीरियल में धर्मराज राजा परिक्षित के राज्य में घुसने वाले कलयुग के इजाजत मांगने पर वह कहते हैं कि तुम केवल मदिरालय, वैश्यालय, जुआघर और ईष्यालुओं के स्थान पर ही रह सकते हो । इसी तरह उच्च न्यायालय ने भी कहा है कि एक शराबी ड्रायवर एक आत्मघाती बम की तरह है, जो अपने साथ कई लोगों की जान ले सकता है..। क्या राम और गांधी के नाम पर वोट बैंक से सत्ता हथियाने और लोकप्रियता हासिल करने वाली सरकारें इनके यह तमाम आदर्श भूल गई हैं । क्या उन्हें हाई कोर्ट की इतनी संगीन नसीहत के साथ शराब नियंत्रण और राष्ट्रीय-राजमार्ग के निकट शराब दुकानें नहीं खोलने का सुप्रीम कोर्ट का फरमान भी याद नहीं है । अपने सियासी लाभ के लिए तो वे अदालत की खूब दुहाई देते हैं । शराब दुकानें खोलने को लेकर किसी नारी की तरह अपना पल्लू झाड़ते औैर बच्चों की तरह एक दूसरे को जिम्मेदार बताने वाली केंद्र व राज्य सरकारें क्या यह भी भूल बैठी हैं कि इन दिनों विश्वव्यापी जानलेवा कोरोना का कहर देश में भी चरम पर है । अचानक लगे लाकडाउन से अपने घर लौटने सड़कों पर निकले बेबस लाखों करोड़ों मजदूरों की तरह अब शराब दुकानों के जन-सैलाब से क्या कोरोना संक्रमण का खतरा नहीं बढ़ रहा है । शराब दुकानें खुलने के दूसरे दिन ही चार हजार कोरोना के मरीज बढ़े और सौ से अधिक मौतें हो चुकी हैं । इसके दूसरे दिन तीन हजार से अधिक मरीज बढ़ चुके हैं । शराब दुकानों में सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ रही हैं । पहले की तरह शराब से मारपीट, झगड़े और दुर्घटनाएं जैसीं अराजकता की खबरें आनी शुरु हो गई हैं । सरकारों की मासूमयित और बुद्धिमत्ता देखिए कि वह चालीस दिनों से अपने घरों में कैद, जिनमें अधिसंख्य एडिक्ट हो चुके हैं और अशिक्षित व अल्प शिक्षित भी हैं, से एक से छह फीट की दूरी बनाने की अपील कर रही है । दुकानें खुलने के पहले ऐसा करवाने का दावा भी किया गया था, लेकिन शराबबंदी के गंगाजली वादों की तरह यह दावा भी हवाहवाई हो रहा है । हमारे रहनुमाओं की यह भी क्या कम असंवेदनशीलता नहीं है कि लंबे लाकडाउन में रोजी मजदूरी करने वालों से लेकर कुछ सक्षम लोगों के भी रोजगार छिन गए हैं और खाने पीने के लिए भी पैसे नहीं है लेकिन आनन फानन में खुलवा दी गई सरकारी शराब दुकानें अब फिर उनके लहू की आखिरी बूंदें भी निचोडऩे पर आमादा हैं । कैसी विडंबना है कि एक ओर कोरोना से बचने दवाई के साथ धीमी मौत के लिए दवाई की होम डिलिवरी भी शुरु कर दी गई है । सरकार के लोगों के संरक्षण में लाकडाउन में भी करोड़ों की अवैध शराब पिलवाने वाले हुक्मरान अब शराब के दाम बढ़ाकर अपने किए पर परदा डालने की कोशिश कर रहे हैं । लाखों करोड़ों पियक्कड़, जिन्हें लत लग चुकी है, क्या वे अपने खेत,मकान और जेवरात बेचकर पहले नहीं पी रहे थे, जो अब आगे अपनी बची-खुची जमापूंजी इन रक्त-पसीना चूसक भट्ठियों में नहीं गलाएंगे -लुटाएंगे । राज्य सरकारें शराब से एक बड़ी आय प्राप्ति और नशेडिय़ों के अन्य नशे को अपनाने का हवाला दे रही हैें लेकिन उन्हें यह याद करना चाहिए कि 1930 में अंग्रेजी शासन में शराबबंदी के समय भारतीय नेताओं के ध्यानाकर्षण पर किस तरह करोड़ों के सेल्स टैक्स का नया स्रोत शुरु किया गया । क्या इसी तरह आजाद औैर आधुनिक भारत में नए वैकल्पिक आय के साधन नहीं तलाशे जा सकते हैं ? छह साल से भारतीय संस्कृति और नीति शास्त्र का सबक याद दिलाने वाले पीएम सहित राज्य सरकारों को गांधी के राज्य गुजरात व अराजक राज्य के रुप में प्रचारित मखौल बनाए जा रहे बिहार की शराबबंदी से भी प्रेरित होने की जरुरत है, जहां विकास व सुशासन पहले से सुधरा है । केंद्र व राज्य सरकारों के लिए यह एक दुर्लभ और बड़ा अवसर था, जब वह शराबंदी कर करोड़ों परिवारों को नारकीय जीवन से उबार सकती थी । कोरोना से डरे, सहमे और टूटे चालीस दिनों से घरों में शांति व प्रेम से रह रहे नशा करने वालों का आत्मविश्वास व जिजिविषा बढ़ाकर उन्हें शराब नहीं मिलने से निराशा व खुदकुशी जैसे नकारात्मक विचारों से उबार सकती थी । लाकडाउन के दौरान कई लोग तो नशा करना भी छोड़ चुके थे । हमारे भागय विधाताओं को यह सोचना शुरु कर देना चाहिए कि कोरोना शराब के नुकसान के सामने कुछ भी नहीं है । कोरोना में तो अब महीनेभर में महज हजार डेढ़ हजार मौतें ही हुई लेकिन शराब से तो अनगिनत मर गए और इस नशे से लाखों लोग व उनके परिवार तिल तिल कर मरते हैं । सरकार का मेडिकल बजट बढऩें में शराब एक बड़ा कारण है । यदि सरकारें इसके महाविनाश को दृष्टिगत रख शराबबंदी का ऐतिहासिक कदम उठातीं तो उनका नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाता औैर वाकई में देश में एक आदर्श राज की स्थापना में यह एक बड़ा कदम होता । इस नशे से सदियों से होने वाली आर्थिक, शारीरिक,सामाजिक और नैतिक मानसिक क्षति रुक जाती । लेकिन यह दुर्भाज्य है कि सरकारें एक दूसरे पर पल्ला झाडऩे के साथ रेवन्यू बंद हो जाने व नशा नहीं मिलने पर सुसायड करने जैसे राग अलापते हुए मदिरा दुकानें खुलवाने को लेकर शुरु से ही उतावली व लालायित दिखाई दीं । सच्चाई तो यह है कि वे शराब से मिलने वाली काली कमाई, ड्रिंकिंग टेबल पर अवैध डीलिंग, पियक्कड़ों के बड़े वोट बैंक और चुनावों में चेपटी व चपटी के ब्रह्महास्त्र के लोभ-संवरण को नहीं छोड़ पाईं । कांग्रेस नेता और मध्यप्रदेश के सीएम अर्जुन सिंह का वह चर्चित जुमला लोगों को याद होगा जिसमें उन्होंने छत्तीसगढ़ के एक बड़े शराब उत्पादक व कारोबारी से अपनी व्यासायिक यारी पर कहा था कि आपने कभी मेरी राजनीति चमकाने के लिए अपनी आसवनी बहा दी थी, आज में आपकी आसवनी के लिए अपनी राजनीति बहा दूंगा ..। इसी तरह जब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बंगारु लक्ष्मण संसद के अंदर रिश्वत के बंडल देते पकड़ाए थे, उसके पहले राजधानी के एक बड़े होटल में हुई वाईन पार्टी में नोटों व्यवस्था से लेकर सारी रणनीति बनी थी । शराब को लेकर कुछ साल पहले छत्तीसगढ़ में भी शराब को लेकर विधानसभा पटल पर सत्तापक्ष व विपक्ष के बीच हुई एक डीलिंग की बड़ी चर्चा थी । दरअसल यह है शराब और इसे स्वार्थवश पोषित करने वालों का असल चरित्र । शराबंदी के कर्तव्यपथ पर उनकी यह मजबूरी आड़े आ रही है । अभी भी बहुत समय नहीं हुआ है, केंद्र औैर राज्य सरकार चाहे तो देशव्यापी विरोध व शराब से फैलती अराजकता व चौतरफा नुकसान का हवाला देकर शराबबंदी का निर्णय लेकर अपने कर्तव्य का पालन कर एक बड़े वर्ग को अंधेरी गलियों में जाने से रोक सकती है । शराब के फायदे गिनाने वाले मुल्क के रहनुमाओं को यह भी याद रखने की जरुरत है कि देश की इस जहर को पीने वाली पचास फीसदी आबादी में सात से आठ हजार लोग रोजाना गाल के गाल में समा जाते हैं । इससे अधिक लोग लिवर सिरोसिस जैसी बीमारी के शिकार हो जाते हैं । शराबबंदी कर सरकार इससे होने वाले रेवेन्यू के नुकसान को टैक्सेस और जीएसटी बढ़ाकर भरपाई कर सकती है । आखिर क्या वजह है कि छह अरब लीटर लीटर शराब का उत्पादन करवाने कर्णधार कई मोह्ल्ले टोलों को कुछ लीटर पानी नहीं पिलवा पा रहे हैं ।

 


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