बोलने वाली मैना के संवर्धन के सभी दावे खोखले साबित हुए
स्थानीय वन विद्यालय स्थित बोलने वाली मैना के बड़े पिंजरे में इस समय एक मोरनी को रखा गया है और मैना के दो बच्चों को एक छोटे से पिंजरे में ही रखा गया है। इस प्रकार बोलने वाली मैना के संवर्धन के प्रति जितने दावे वन विभाग द्वारा किए गए थे वे सभी खोखले सिद्ध हो चुके हैं। जानकारी के अनुसार इन मैना के बच्चों को करीब दो वर्ष पूर्व जंगल से पकड़कर यहां लाया गया था और अब बच्चे व्यस्क हो चुके हैं, लेकिन सोनू-मोनू नाम के इन बच्चों को अभी तक बड़ा आवास उपलब्ध नहीं कराया जा सका है।
उल्लेखनीय है कि इस संबंध में वन विभाग के अधिकारियों की उदासीनता स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ रही है। स्थानीय वन विद्यालय में जो गीदम मार्ग पर स्थित है वहां ये मैना के बच्चे छोटे से आवास में ही निवास कर रहे हैं, जबकि इनके लिए बड़े आवास की आवश्यकता होती है। बड़ा पिंजरा इस समय वन विद्यालय परिसर में करीब 20 लाख रूपए की लागत से निर्मित हुआ था। वर्तमान में अभी एक मैना और एक मोरनी इस पिंजरे में रह रहे हैं। कोटोमसर के जंगलों से मैना के इन बच्चों को पकड़कर यहां रखा गया था। जिस छोटे पिंजरे में इन्हें रखा गया है आज भी वे इसी पिंजरे में निवास कर रहे हैं। अब यह उस समय के बच्चे बड़े हो चुके हैं और उन्हें बड़े पिंजरे में रखे जाने की आवश्यकता है, लेकिन कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के संचालक ने इस संबंध में कोई सकारात्मक उत्तर नहीं दिया जिसके कारण स्पष्ट रूप से वन विभाग की लापरवाही और उदासीनता झलक रही है।