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आलेख: त्योहारों का मतलब सिर्फ खरीदारी- आलोक पुराणिक

आलेख: त्योहारों का मतलब सिर्फ खरीदारी- आलोक पुराणिक
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करवा चौथ निकल गया जी, दीवाली आने वाली है।
करवा चौथ पर क्या करना चाहिए था जी शॉपिंग, ओके।
दीवाली से पहले क्या करना चाहिए-वही शॉपिंग, ओके।
ऐन दीवाली के दिन क्या करना चाहिए, जी शॉपिंग।
पर दीवाली के दिन तो इतनी भीड़ होती है बाजारों में।
तो ऑनलाइन शॉपिंग करो जी फ्लिपकार्ट, एमेजन काहे के लिए हैं।
दीवाली के बाद क्या करना चाहिए।
बताया न, शॉपिंग शॉपिंग शॉपिंग।
तो क्या त्योहारों का मतलब शॉपिंग ही होता है।
जी बिल्कुल शॉपिंग मतलब त्योहार। त्योहार मतलब शॉपिंग, सिंपल इसमें ज्यादा दिमाग क्या लगाना। शॉपिंग में दिमाग का इस्तेमाल घातक होता है।
ओके दीवाली के बहुत दिनों बाद क्या करना चाहिए।
जी शॉपिंग, वही शॉपिंग, फिर शॉपिंग, फिर फिर शॉपिंग। इधर शॉपिंग उधर शॉपिंग।
उफ्फ! शॉपिंग के अलावा और कुछ न कर सकते क्या।
जी बिल्कुल कर सकते हैं, शॉपिंग के अलावा आप शॉपिंग की तैयारी कर सकते हैं।
उफ्फ! शॉपिंग के बाद हम कुछ न कर सकते हैं।
जी बिल्कुल कर सकते हैं, शॉपिंग के बाद हम यह प्लान कर सकते हैं कि अभी क्या क्या खरीदना बाकी है।
हे भगवान! शॉपिंग शॉपिंग शॉपिंग, लो साल खत्म हो लेगा। शॉपिंग ही करते रह जायेंगे क्या।
न न न अगले साल की शुरुआत भी शॉपिंग से कीजिये, हैप्पी न्यू ईयर शॉपिंग। ये शॉपिंग, वो शॉपिंग, शॉपिंग ही शॉपिंग दे दनादन।
इतने त्योहार पर्वों का जिक्र हुआ, और कोई बात ही न हुई, उनका क्या महत्व है। उनका इतिहास क्या है, यह बातें तो कोई करता ही नहीं।
अमिताभ बच्चन बताते हैं कि खरीदिये, खरीदिये, त्योहार पर ये खरीदिये, वो खरीदिये। खरीदते ही जाइए। खरीदना ही जीवन है।
आप करवा चौथ का, दीवाली का आध्यात्मिक महत्व बतायें।
आध्यात्मिक महत्व यह है कि इन त्योहारों पर खूब खरीदिये दे दनादन। फिर उन सारे आइटमों को कुछ दिन बाद त्याग दीजिये, जिन्होंने त्यागा उन्होंने ही भोगा फिर से नया आइटम। अभी आपने लेटेस्ट फोन खऱीदा किसी कंपनी का, एक हफ्ते में त्याग दीजिये उसे, बिल्कुल। फिर उसी कंपनी का नया मोबाइल ले आइये, आपका दिल लगा रहेगा।
ओफ्फो तो दिल को यह न समझायें कि छोड़ो क्या रखा नये-नये आइटमों में। संतोष करना चाहिए।
संतोष क्या होता है। संतोष तो सत्तर के दशक की किसी फिल्म का नाम लगता है। क्यों चाहिए संतोष। आपने संतोष कर लिया, तो आफत हो जायेगी। फिर मोबाइल फोन कंपनियां कैसे चलेंगी। सोचिये। न न न न, संतोष बिल्कुल नहीं चाहिए। फाइन कर देना चाहिए हर उस आदमी पर जो संतोष की बात करे, न न न।
कमाल है, पैसे कहां से आयेंगे खरीदने के लिए।
खर्च कर मारिये, खरीद मारिये-ये सलाह देने वाले काश! यह भी बतायें कि कमायें कैसे।
जी ऐसे छोटे-मोटे मुद्दों पर ध्यान न देते वो, बड़े मुद्दों पर ध्यान देते हैं-खरीदिये खरीदिये।
 


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