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लेख: रोटी का जिक्र और मेवे का फिक्र- सहीराम

लेख: रोटी का जिक्र और मेवे का फिक्र- सहीराम
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अपने यहां अचानक यह चिंता सामने आने लगी है कि अफगानिस्तान में आयी अस्थिरता से मेवे महंगे हो जाएंगे। बेचारे अफगानी तो गोलियां खा रहे हैं और आपको मेवे खाने की चिंता हो रही है। उन्हें चिंता हो रही है कि तालिबान से कैसे बचें और आपको चिंता हो रही है कि मेवे कैसे मिलें। भैया अफगानिस्तान के मेवे तो न रूसी खा सके और न अमेरिकी। मेवों के इंतजार में बीस साल वहां रूसी पड़े रहे और बीस साल अमेरिकी। चालीस साल तो यूं ही गुजर गए। फिर कोई पांच-छह साल तो अफगानियों ने तालिबान की बंदूक के साये में भी गुजारे ही हैं। वे जान की चिंता करें कि मेवों की चिंता करें।
मेवे खाना इतना आसान नहीं होता। खुद वहां की जनता नहीं खा पा रही और आपको चिंता सता रही है कि मेवे महंगे हो जाएंगे। वैसे भी गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के काबुली वाले अब अपने यहां नहीं आते। अब तो अपने यहां अफगानी शरणार्थी आते हैं। अलबत्ता बेटियों के लिए उनके दिल भी उतने ही तड़पते हैं, जितना काबुली वाले का दिल तड़पता था। वैसे भी अब अफगानिस्तान से मेवे आने का इंतजार कौन करता है। अब कहां अफगानिस्तान के मेवे मशहूर रह गए, अब तो वहां की अफीम मशहूर है, हेरोइन मशहूर है। दुनिया वालों की चिंता अब यह है कि तालिबान के आ जाने के बाद वहां अफीम की खेती बढ़ जाएगी और दुनिया को हेरोइन से पाट दिया जाएगा।
फिर भी अपने यहां चिंता यह है कि अफगानिस्तान में आयी अस्थिरता से मेवे महंगे हो जाएंगे। अरे भैया यहां रोटी महंगी हो रही है, उसकी चिंता कर लो यार। सरसों के तेल की कीमतें बाबा रामदेव के बिजनेस की तरह छलांग लगा रही हैं। उस सरसों के तेल की महंगाई की चिंता कोई नहीं कर रहा। बाजार में सब्जी खरीदने जाओ तो घीया, टिंडा और तौरी जैसी मौसमी सब्जियां तक पचास रुपए किलो से कम नहीं मिलती। इसकी कोई चिंता नहीं कर रहा।
सब्जी पैदा करने वाले किसान की सब्जी मंडी में कौडिय़ों के भाव बिकती है और तंग आकर वह उन्हें सड़क पर फेंक देता है या खेतों में सडऩे के लिए छोड़ देता है। भाई किसान की चिंता तो मत करो क्योंकि किसान की चिंता करने का मतलब आज सरकार का विरोध करना हो गया है और सरकार का विरोध करने का मतलब सिर फुड़वाना हो गया है। लेकिन महंगाई की चिंता तो कर लो। सरकारी कंपनियां तो सस्ते में बिक रही हैं और रोटी महंगी हो रही है। रोटी के लिए अन्न उगाने वाले की जान सस्ती है और रोटी खाने वाले की जान भी सस्ती है, लेकिन रोटी महंगी है।
लेकिन चिंता यह सता रही है कि अफगानिस्तान में आयी अस्थिरता से मेवे महंगे हो जाएंगे। समस्या यही है कि मेवे खाने वालों की चिंता की तो चिंता कर ली जाती जाएगी, पर रोटी खाने वाले की चिंता को चिंता नहीं माना जाएगा।
नोट: उपरोक्त लेख लेखक के अपने व्यक्तिगत विचार है.
 


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