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महात्मा गांधी के छत्तीसगढ़ आगमन के शताब्दी वर्ष व श्रमिक दिवस पर पूर्ण शराबबंदी करने मुख्यमंत्री भुपेश बघेल को बृजमोहन ने लिखा पत्र

महात्मा गांधी के छत्तीसगढ़ आगमन के शताब्दी वर्ष व श्रमिक दिवस पर पूर्ण शराबबंदी करने मुख्यमंत्री भुपेश बघेल को बृजमोहन ने लिखा पत्र
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रायपुर,पूर्व मंत्री एवं विधायक बृजमोहन अग्रवाल ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पत्र लिखकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के छत्तीसगढ़ में प्रथम आगमन के 100 वर्ष पूरे होने तथा श्रमिकों के हित में श्रमिक दिवस पर राज्य में पूर्ण शराब बंदी की घोषणा करने का आग्रह किया है।
बृजमोहन ने लिखे अपने पत्र में कहा कि ‘‘कोरोना वायरस‘‘ का भयावह संकट, दुनिया पर एक आफत बनकर मंडरा रहा है। जिंदगी की सीमाएं, घर की चार दिवारी तक सीमित हो गई हैं। इस ठहराव से व्यक्तिगत, पारिवारिक एवं सामाजिक परिवेश में कई बदलाव महसूस किये जा रहे हैं। इनमें एक बदलाव, सीधे श्रमिक परिवारों से सरोकार रखता हैं। जिस पर चिंतन, मनन और नीतिगत निर्णय लेने के लिए इस पत्र के माध्यम से आग्रह कर रहा हूँ। जैसा कि आपको विदित ही हैं, कोरोना महामारी के कारण प्रदेश में ‘‘लाक डाउन‘‘ से शराब दुकाने बंद हुई हैं, ज्यादातर श्रमिक परिवारों में होने वाली हर दिन की शराब जनित घरेलू हिंसा, शराब अवसाद से आत्म-हत्यायें, शराब से उत्पन्न अनेकानेक रोग व्याधियां मानों थम सी गई हैं। इस हेतु प्रदेश में पूर्ण शराब बंदी होनी चाहिए ऐसी विचार प्रदेश भर के लोगों के आ रहे है।

बृजमोहन ने मुख्यमंत्री भुपेश बघेल को लिखा है कि इतिहास भी आपको इतिहास गढ़ने का मौका दे रहा है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, छत्तीसगढ़ की पुण्य धरा पर, प्रथम बार 20 दिसम्बर 1920 को पधारे थे, पं. सुंदर लाल शर्मा उनके साथ थे। गांधी जी ने सदैव ही शराब को शरीर और आत्मा का दुश्मन माना। ये ऐतिहासिक अवसर हैं कि गांधी जी के छ.ग. पदार्पण के 100 साल पूरे होने पर, आप गांधी दर्शन को यथार्थ धरातल पर उतारे और प्रदेश में शराब बंदी की घोषणा करे।

उन्होंने कहा कि ‘लाक डाउन‘ के बीच इस वर्ष 01 मई 2020 का श्रमिक दिवस हम मनायेंगे। प्रदेश में 56 लाख से अधिक परिवार शारीरिक श्रम से जीविका चला रहे हैं। इनमें से बहुत से परिवार शराब से बुरी तरह प्रभावित हैं।‘‘लाक डाउन‘‘ से श्रमिक परिवारों में एक अवधारणा ने जन्म लिया है, कि ‘जनता तो शराब पीना नहीं चाहती, सरकार जबरिया गली-गली, गांव-गांव शराब की लत फैला रही हैं। ये राजनैतिक आलोचना नहीं है, जनता का फीड बैक हैं। स्वाभाविक हैं, शराब से आम गरीब आदमी का तन, मन, धन, और चरित्र प्रभावित ही नहीं हुआ है बल्कि पारिवारिक बिखराव भी हो रहा हैं। आज लाक डाउन के कारण यह बातें थमी हैं, तो इन परिवारों को उम्मीद भी जगी हैं, कि आप अपने पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र में शामिल ‘शराब बंदी‘ का वादा, अब पूरा करेगें।

बृजमोहन ने कहा कि मेरे लंबे जनप्रतिनिधित्व जीवन का अनुभव है कि सत्ता केवल विधानसभा के जरिये ही हाथों में नहीं आती है। सत्य तो यह हैं, कि जनता अपनी आकांक्षाओं एवं जीवन की खुशहाली के लिए हमें चुनती है। जनता के हितों से परे सत्ता का कोई महत्व नहीं हैं। देश के महान चिंतक चाणक्य ने तो शासक के लिए जनता के सुख और हित को ही परम् राजधर्म बताते हुए कहां भी हैं कि-

‘‘प्रजा सुखे सुखं राज्ञः प्रजानां तु हिंत हितम् ।
नात्मप्रियं हित राज्ञः प्रजानां तु प्रियं हितम ।। ‘‘

इस लोकतंत्र में भी जनता की इच्छा ही सर्वोपरी है। यहां तक कि हमारे देश के संविधान की प्रस्तावना भी शासन का स्रोत जन इच्छा ही इंगिद करती हैं। इस इच्छा में आज प्रदेश के श्रमिक और बेहद गरीब 56 लाख से अधिक परिवारों के हित की अभिव्यक्ति हैं कि प्रदेश में शराब बंदी हो। अर्थात् 86 प्रतिशत प्रदेश के परिवारों की सर्वोपारी इच्छा शराब बंदी की ही हैं।


उन्होंने कहा कि एक तर्क जो हमेंशा ‘‘शराबी बंदी‘‘ के आड़े आता है वो है, इससे होने वाली राज्य को आमदनी। पर तथ्यों पर गौर करें। वर्तमान में ‘लाक डाउन‘ से शराब बंदी से श्रमिकों तक शराब नहीं पहुँच पा रही हैं। परिणाम आपके सामने हैं। पुलिस थानों में घरेलू हिंसा, मोहल्ले के झगडे और आत्म हत्याओं में भारी गिरावट आयी है। सरकारी और निजी अस्पतालों में मरीजों के अभाव में खाली पड़ी हैं। इस पर एक अनुसधान भी हुआ है कि अगर शराब से 100 रूपये आमदनी होती है तो 124 रूपये उससे होने वाले दुष्प्रभाव पर सरकार को खर्च करने पड़ते है। फिर प्रदेश में लाखों माताओं, बहनों के साथ होने वाली हिंसा, उनके परिवार के बिलखते बच्चे, समाज में बढ़ता अपराध और क्लेश, क्या राज्य को शराब से होने वाली आमदनी से ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं होना चाहिए।


उन्होंने मुख्यमंत्री भुपेश बघेल से आग्रह करते हुए कहा कि लाखों गरीब परिवारों की झोली से खुशहाली न झीने, जन भावनाओं के अनुरूप तत्काल राज्य में शराब बंदी की घोषणा करने का कष्ट करे।
 


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