बिलासपुर की पहचान है राउत नाच महोत्सव-भूपेश बघेल
बिलासपुर | राउत नाच और काक्षन सोहाई तो पूरे प्रदेश में अलग अलग जगहों में होता है लेकिन बिलासपुर में इसका भव्य आयोजन करते हुए इसे महोत्सव की तरह मनाया जाता है। बिलासपुर का राउत नाच महोत्सव प्रदेश में ही नहीं प्रदेश के बाहर भी अपनी खासियत के लिए जाना जाता है। यह महोत्सव बिलासपुर की पहचान है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आज बिलासपुर में 43वें राउत नाच महोत्सव का शुभारंभ करते हुए यह बात कही। भूपेश बघेल ने कहा कि बिलासपुर में राउत नाचा उत्सव की शुरूआत छोटे से बाजार के रूप में हुई लेकिन पूर्व मंत्री स्व. बी.आर.यादव एवं कालीचरण यादव के प्रयासों से यह महोत्सव 43वें वर्ष में आ पहुंचा है।
उन्होंने कहा कि भगवान कृष्ण के समय से ही गौ-पालन प्रचलित है। गौ का महत्व धार्मिक पुराणों में भी मिलता है लेकिन वर्तमान समय में देश में गायों की दुर्दशा हो रही है साथ ही चरवाहों की स्थिति भी खराब हो रही है। इनकी दुर्दशा को रोकने के लिए छ.ग.सरकार ने गोठान की व्यवस्था और चरवाहों की व्यवस्था बनाई है। गोठान में चारा, पानी, चरवाहे की व्यवस्था के साथ साथ गोबर खरीदने की शुरूआत भी छत्तीसगढ़ में की गई। आज सरकार 2 रूपये किलो में गोबर खरीद रही है और एक रूपये किलों में चावल गरीबों को दिया जा रहा है। गोठानों में उपलब्ध गोबर को बेचकर आज चरवाहे हजारों रूपए कमा रहे हैं। यह उनके आय का स्त्रोत बन गया है।
गोबर से वर्मी कम्पोस्ट बनाकर महिलाओं को भी रोजगार मिल रहा है। रासायनिक खाद के दुष्प्रभाव को रोकने के लिए वर्मी कम्पोस्ट के उपयोग से जैविक खेती की ओर बढेंगे और बीमारी से दूर होंगे। इस सोच के साथ छत्तीसगढ़ सरकार कार्य कर रही है। मुख्यमंत्री ने कहा कि राउत नाच महोत्सव का यह 43वां वर्ष यह सतत् रूप से चलता रहे, इसके लिए हर संभव मदद की जाएगी। उन्होंने महोत्सव में भाग लेेने वाले प्रत्येक नर्तक दल को 5-5 हजार रूपए देने और पशु औषाधालय निर्माण की घोषणा की। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए लोक निर्माण मंत्री एवं जिले के प्रभारी ताम्रध्वज साहू ने अपने उद्बोधन में कहा कि छत्तीसगढ़ की संस्कृति, वेशभूषा, खाना, रीति-रीवाज को आगे बढ़ाने का कार्य छत्तीसगढ़ सरकार कर रही है। छत्तीसगढ़ के पारम्परिक पकवानों की खुशबू देश की राजधानी तक महक रही है।