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रात में 5 घंटे से कम सोते हैं तो हो जाएं सावधान, इस गंभीर बीमारी का खतरा हो सकता है दोगुना

रात में 5 घंटे से कम सोते हैं तो हो जाएं सावधान, इस गंभीर बीमारी का खतरा हो सकता है दोगुना
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एक नई रिसर्च चेतावनी देती है कि रात में पांच घंटे से कम सोना डिमेंशिया का खतरा दोगुना कर देता है. बोस्टन के ब्रिघम और महिला अस्पताल के शोधकर्ताओं ने 2 हजार 812 अमेरिकी व्यस्कों के अलावा 65 और 65 साल से ज्यादा की उम्र के लोगों का डेटा परीक्षण किया. 'बहुत छोटी' नींद का समय पांच घंटे या पांच घंटे से कम के तौर पर परिभाषित किया गया था और 7-8 घंटे के 'अनुशंसित समय' की तुलना में डिमेंशिया का दोगुना खतरा पाया गया.


क्या आप रात में 5 घंटे से कम सोते हैं?


नई रिसर्च पूर्व की रिसर्च का समर्थन करती है कि नींद का अभाव अनिवार्य रूप से डिमेंशिया की शक्ल जैसे अल्जाइमर की बीमारी का 'मंच तैयार करती है'. ये रिसर्च संबंध के पीछे वजह की जांच नहीं करती है, लेकिन उचित आराम की कमी दिमाग को टॉक्सिन्स हटाने से रोक सकती है जिससे दिमाग के कार्य में गिरावट होती रहती है.


डिमेंशिया का दोगुना खतरा होने का डर


शोधकर्ता 'तत्काल जरूरत' को दर्शाते हैं, जिससे बुजुर्गों में नींद सुधार की खास सिफारिश की पहचान की जा सके. शोधकर्ता डॉक्टर रेबेका रोबिन्स का कहना है कि नतीजे से नींद की कमी और डिमेंशिया के खतरे के बीच संबंध स्पष्ट होता है और हर रात पर्याप्त नींद हासिल करने में बुजुर्गों की मदद करने के महत्व को दर्शाता है.


विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, दुनिया भर में करीब 50 मिलियन लोग डिमेंशिया से पीड़ित हैं और करीब 10 मिलियन नए मामले हर साल उजागर होते हैं. अल्जाइमर की बीमारी डिमेंशिया की सबसे आम शक्ल है और डिमेंशिया के मामलों में इसका 60-70 फीसदी योगदान हो सकता है.


यूके अल्जाइमर सोसायटी के मुताबिक, ब्रिटेन में 9 लाख से ज्यादा लोग डिमेंशिया के साथ रह रहे हैं और 2024 तक एक मिलियन आंकड़ा होने का अनुमान है. स्लीप फाउंडेशन का कहना है कि किसी अन्य उम्र के लोगों के मुकाबले बुजुर्गों में नींद की ज्यादा गड़बड़ी के मामले सामने आए हैं. डिमेंशिया के कई प्रकार होते हैं जिसमें से अल्जाइमर की बीमारी सबसे आम है.


डिमेंशिया वैश्विक चिंता है, लेकिन सबसे ज्यादा अमीर देशों में देखी जाती है. वर्तमान में डिमेंशिया का इलाज नहीं है, लेकिन दवाइयां रफ्तार को धीमा कर सकती हैं. अगर शुरुआती स्तर पर पहचान हो जाए, तो ये ज्यादा प्रभावी इलाज हो सकता है. चीन की एक नई रिसर्च के मुताबिक, पर्याप्त नींद नहीं लेनेवाले बुजुर्गों को दिमागी खराबी और डिमेंशिया का खतरा 25 फीसद ज्यादा होता है. 


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