बस्तरवासियों के लिए कामधेनु से कम नहीं है महुआ वृक्ष
टोरा तेल के माध्यम से भी महुआ प्रदान करता है ग्रामीणों को रोजगार
बस्तर में महुआ का उत्पादन पिछले सैकड़ों वर्षों से हो रहा है और महुआ ऐसा वृक्ष है जो यहां के ग्रामीणों के लिए कामधेनु के समान है। महुआ से ग्रामीण खाद्य पदार्थ प्राप्त तो करते ही हैं। इसके अलावा बस्तर में इसका उपयोग मद्य बनाने के लिए करते हैं। वहीं सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इसके बीजों से भी तेल निकालने से यहां के ग्रामीणों को अतिरिक्त रोजगार व आय की प्राप्ति हो जाती है। इस तेल का उपयोग दिपावली में मिट्टी के दीपों को प्रकाशवान करने के लिए किया जाता है।
महुआ के बीजों को यहां टोरा कहा जाता है और यह टोरा या महुआ तेल को सबसे शुद्ध व प्राकृतिक रूप से उत्तम तेल के रूप में जाना जाता है। पिछले सैकड़ों वर्षों से बस्तर के ग्रामीण इस तेल से दिपावली के पर्व में भरे हुए तेल के दीप जला कर न केवल अपने घरों को प्रकाशवान करते हैं वरन लोगों के घरों को भी प्रकाशवान होने में सहायक हो रहे हैं। यह विडंबना है कि बस्तर में पूर्व में महुआ वृक्षों की संख्या अधिक थी और आसानी से यह टोरा तेल अल्प मूल्य में उपलब्ध हो जाता था, लेकिन बीते वर्षों में इस कामधेनु वर्ष पर ही ऐसी कुल्हाडिय़ां चली की आज इस टोरा तेल की भी कीमत बढ़ गई है। जिससे अब दूसरे तेलों का भी दिये जलाने में उपयोग होने लगा है।
इस संबंध में यह भी विशेष तथ्य है कि स्थानीय मंडी सहित अन्य मंडियों में प्रतिवर्ष लगभग 75 हजार च्ंिटल महुआ तथा 45 हजार च्ंिटल से अधिक टोरा का कारोबार होता है। टोरा तेल का उपयोग ऊंची कीमत पर बिकने वाले साबुन बनाने के उद्योग में होता है और इस तेल का स्थानीय ग्रामीण खाद्य तेल के रूप में भी उपयोग करते हैं और इसे औषधी के रूप में भी प्रयुक्त किया जाता है।