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लॉकडाउन के कारण चूजों का उत्पादन बंद होने से पोल्ट्री उद्योग को हो रहा है भारी नुकसान

लॉकडाउन के कारण चूजों का उत्पादन बंद होने से पोल्ट्री उद्योग को हो रहा है भारी नुकसान
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नईदिल्ली, देश में कोरोना वायरस (कोविड-19) के बढ़ते हुए प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए लागू किए गए लॉकडाउन के कारण चूजों के उत्पादन के लगभग बंद होने से पोल्ट्री उद्योग को भारी नुकसान हो रहा है। इस वैश्विक महामारी से निपटने के लिए यातायात के साधनों पर लगाई गई रोक के कारण अधिकांश स्थानों पर हैचिंग का काम रोक दिया गया है और अंडों के भंडारण पर जोर दिया जा रहा है। इतना ही नहीं सरकारी संस्थानों में किसानों के प्रशिक्षण कार्यक्रमों को भी रोक दिया गया है।
कोरोना के मद्देनजर यातायात के साधनों पर रोक लगाए जाने से न केवल लोगों का आना-जाना बाधित हुआ है बल्कि मुर्गी दाना, दवा ,विटामिन्स , खनिज और बिक्री के लिए तैयार मुर्गियों का परिवहन भी बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ रामेश्वर सिंह ने पोल्ट्री उद्योग के संकट के बारे में पूछे जाने पर बताया कि विकट परिस्थिति के कारण ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई है जिसका लंबे दौर में किसानों की आर्थिक स्थिति पर व्यापक असर होगा।
डॉक्टर सिंह ने बताया कि चूजा उत्पादन बंद होने से व्यावसायिक पैमाने पर पोल्ट्री उद्योग बुरी तरह से प्रभावित होगा और अंतत: इसका असर किसानों की अर्थव्यवस्था पर होगा। देश में करीब 10 लाख किसान पोल्ट्री व्यवसाय से जुड़े हुए हैं जिनमें से 60 प्रतिशत किसान 10 हजार से कम पक्षियों को पालते हैं। देश के सकल घरेलू उत्पाद में पोल्ट्री उद्योग का योगदान 1.2 लाख करोड़ रुपए सालाना है। देश भर में पूरे पोल्ट्री व्यवसाय चेन से करीब दस करोड़ लोग जुड़े हुए हैं।
पिछले दिनों कोरोना वायरस को लेकर फैलाई गयी अफ़वाह के कारण चिकन की थोक कीमत धराशाई हो गयी थीं और लोग 15 रुपए किलो भी लेने को तैयार नहीं हो रहे थे। देश में सरकारी क्षेत्र में बेगलुरु , हैदराबाद , चंडीगढ़ ,बरेली , इज्जतनगर और कृषि विश्वविद्यालयों में बड़े पैमाने पर चूजों को तैयार किया जाता है और यहां किसानों को प्रशिक्षण भी दिया जाता है। दक्षिण भारत में निजी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर चूजे तैयार किए जाते हैं और इसे किसानों को उपलब्ध कराया जाता है।
डॉक्टर सिंह ने बताया कि देश में पोल्ट्री प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन सुविधाओं का अभाव है। यह सुविधा होने पर बड़े पैमाने पर चिकन और अंडों का प्रसंस्करण किया जा सकता था। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय के अनुसार केवल छह प्रतिशत पोल्ट्री का ही प्रसंस्करण किया जा रहा है। इस बीच पोल्ट्री फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष रमेश चंदर खत्री ने बताया कि पोल्ट्री उद्योग की कमर टूट चुकी है और चूजों की आपूर्ति लाइन पूरी तरह से तबाह हो गई है। किसानों ने अंडों को जमीन के अंदर दबा दिया है और वे आर्थिक रूप से पूरी तरह से टूट चुके हैं। बिक्री के लिए तैयार पक्षी किसानों पर बोझ हैं क्योंकि दाना का भारी अभाव है।
 


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