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चौबीस कैरेट का खरा सोना निकले सोनू

चौबीस कैरेट का खरा सोना निकले सोनू
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भारतीय फिल्मों में सोनू सूद की पहचान एक आकर्षक डील-डौल वाले खलनायक के रूप में होती है। कोई गॉडफादर न मिलने की वजह से सोनू दक्षिण भारत की फिल्मों से अपने करिअर की शुरुआत करते हैं। तमिल, तेलुगू, कन्नड़, पंजाबी, अंग्रेजी फिल्में करते हुए वे हिंदी फिल्मों में दस्तक देते हैं। हिंदी फिल्मों में उन्होंने डेब्यू 2002 में आई शहीद-ए-आजम से किया और फिर युवा, आशिक बनाया आपने, जोधा अकबर तथा दबंग में नजर आये। सोनू दबंग और सिम्बा जैसी फिल्मों में दमदार खलनायक का किरदार निभाकर लोगों के दिलों में जगह पहले ही बना चुके हैं। लेकिन लॉकडाउन के दौरान जीवन-मरण के संकट से जूझ रहे श्रमिकों की मदद करने और उन्हें घर पहुंचाने की व्यवस्था करने में उन्होंने जो दमदार भूमिका निभायी, फिलहाल वे बॉलीवुड के सबसे बड़े सितारे बनकर उभरे हैं। कोई उन्हें मजदूरों का मसीहा कह रहा है, कोई उन्हें महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाने की मांग कर रहा तो कोई प्रधानमंत्री को ट्वीट टैग करके उन्हें पद्मभूषण देने की मांग कर रहा है। कहीं उनकी मूर्ति लगाने की घोषणा हो रही है तो अब उनके किरदार पर फिल्म बनाने की घोषणा हुई है।

बहरहाल, सोनू सूद ने संकट में फंसे श्रमिकों को लेकर जो कुछ किया, उसके सामने सरकारों की पहल भी फीकी नजर आई। घर लौटने की जद्दोजहद कर रहे और हजारों की संख्या में पैदल हजारों किलोमीटर के सफल पर निकले श्रमिकों की दुर्दशा ने हर किसी संवेदनशील व्यक्ति को द्रवित किया। आनन-फानन में सख्त लॉकडाउन की घोषणा और तालाबंदी से काम-धंधे ठप हो जाने के चलते श्रमिकों की जो बदहाली हुई, उसने हर संवेदनशील व्यक्ति को झकझोर दिया। श्रमिकों की हालात पर आंसू तो बहुत बहाये गये, राजनीति भी हुई, बौद्धिक जुगाली भी हुई, लेकिन एक ठोस रणनीति और कुछ कर गुजरने के जज्बे के साथ जो लोग सामने आये, उनमें सोनू सूद अग्रणी हैं।

सोनू अपनी टीम के साथ सुनियोजित ढंग से मदद के लिए सामने आये। रोज तालाबंदी के शिकार लोगों को खाना खिलाते रहे। एक बार उन्होंने कर्नाटक के श्रमिकों को सैकड़ों किलोमीटर के सफर पर पैदल निकलते देखा तो द्रवित हुए। फिर महाराष्ट्र व कर्नाटक सरकार से बातचीत करके साढ़े तीन सौ लोगों के लिए गांव जाने की व्यवस्था की। फिर मुहिम तेज हुई और श्रमिकों को घर भेजने के लिए उन्होंने सोशल मीडिया का सहारा लिया। एक फोन नंबर भी जारी किया ताकि फंसे लोग उनसे संपर्क कर सकें। यहां तक कि उन्होंने अपना होटल भी कोरोना योद्धाओं के लिए उपलब्ध कराया।

किस बात ने उन्हें यह सब करने के लिए प्रेरित किया, इसके जवाब में सोनू कहते हैं कि जब मैंने सड़कों पर पैदल घर जाते लोगों के कष्ट को देखा तो मुझे लगा कि जिन लोगों ने हमारे घर-सड़कें बनायी, उन्हें मुश्किल समय में उनके हालात पर नहीं छोड़ सकते। फिर हमने सोशल मीडिया और फोन के जरिये ऐसे लोगों से संपर्क किया। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार व झारखंड की सरकारों से संपर्क किया। फिर बसों की व्यवस्था की और उन्हें सम्मानपूर्वक घर भेजने का प्रयास किया। मेरी पूरी टीम व मित्रों का सहयोग मिला, क्योंकि यह टीम वर्क है, लोगों के सहयोग के बिना यह काम करना संभव नहीं था। करीब साठ-सत्तर हजार लोगों ने हमसे संपर्क किया। सब को घर पहुंचाना तो संभव न था, लेकिन प्राथमिकता के आधार पर लोगों को चुना गया। सोनू सूद का एक वीडियों सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिसमें वे बसों के काफिले को नरियल फोड़कर रवाना कर रहे थे।

सोनू दुख जताते हैं कि श्रमिकों के अपने नाम हैं, हमने अपनी सुविधा के लिए उन्हें प्रवासी मजदूर का नाम दे दिया। अपने ही देश में ही प्रवासी कैसे? सोनू उन्हें भारत की धड़कन बताते हैं। वे कहते हैं जब तक आखिरी श्रमिक घर नहीं पहुंच जाता, मैं चैन से नहीं बैठ सकता।
सोनू के इन प्रयासों को बॉलीवुड समेत देश के सभी वर्गों के लोगों ने सकारात्मक प्रतिसाद दिया। लोग कहते हैं कोराना वायरस की वैक्सीन का तो पता नहीं, लेकिन सोनू ने हजारों श्रमिकों के लिए वैक्सीन का काम किया। मशूहर शेफ विकास खन्ना ने सोनू के पैतृक शहर मोगा के नाम पर एक डिश बनाकर उन्हें समर्पित की।

बिहार के एक शख्स ने ट्विटर पर लिखा कि वह सोनू के सम्मान में सिवान में उनकी मूर्ति लगाना चाहते हैं, तो सोनू ने इसके बजाय गरीबों की मदद करने की बात कही। प्रवासियों ने सोनू को केंद्र व राज्य सरकारों से अच्छा बताया। बहुत सारे फिल्मों से जुड़े लोगों व केंद्रीय मंत्रियों तक ने भी सोनू के प्रयासों को सराहा।

सोशल मीडिया और खबरों में तमाम श्रमिकों की तरह-तरह की मांग के दबाव के बीच सोनू ने संयम नहीं खोया। वे बड़े चुटीले अंदाज में उन सवालों का जवाब देकर सब का दिल जीत लेते हैं। कभी इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले सोनू वंचित समाज के दिलों तक पुल बनाने में कामयाब रहे हैं।
-अरुण नैथानी


 


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