रायपुर,प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आदिवासियों के विकास और उत्थान के लिए किए जा रहे कार्यों के बारे में बताया कि छत्तीसगढ सरकार ने कहा कि आदिवासियों के प्रतिनिधित्व के रुप में सरकार में 4 आदिवासी कैबिनेट मंत्री बनाए हैं। श्री बघेल ने कहा कि हमारी सरकार आदिवासियों का भौतिक विकास के प्रोफेशनल तरीके से विकास के लिए सोचते हैं। ताकि वे वर्तमान समय के साथ जुड़कर सांसकृतिक मूल्यों पर आधारित विकास कर सकें। नहीं तो आदिवासी क्षेत्रों में गरीबी, बीमारी, भूखमरी व माओवाद की समस्या फैलता है। उनकी सरकार ने आदिवासियों को आर्थिक रुप से मजबूती देकर रोजगार के अवसर भी स्थानीय स्तर पर प्रदान कर रही है। राज्य में कनिष्ठ चयन बोर्ड का गठन कर तृतीय एवं चतुर्थ वर्ग के कर्मचारियों की भर्ती की जाएगी। छत्तीसगढ ने एक साल के कार्यकाल में ही आदिवासियों की जमीन वापस दिया है। कृषि कर्ज की माफी भी किया है। वहीं प्रदेश सरकार ने शिक्षामित्र के रुप में आदिवासी क्षेत्रों के स्कूल में स्थानीय बेरोजगारों को मौका दिया है। सड़क निर्माण में ठेकेदारी सिस्टम में बदलाव करते हुए मिट़टी, गिटटी, डामरीकरण कार्यों के लिए अलग-अलग टेंडर जारी कर आदिवासियों को मौका दिया जा रहा है। वहीं सुकमा के जगरगुंडा में 13 साल बाद स्कूल को फिर से खोल दिया गया है। बस्तर में लगभग 105 स्कूल खोले गए हैं। वहीं आदिवासियों के वनोपज आधारित आर्थिक स्वरोजगार के अवसर को मजबूत करते हुए 15 लघुवनोपज की खरीदी के लिए समर्थन मूल्य घोषित किए गए हैं। बस्तर में इस बार बाढ़ के बाद भी एक भी व्यक्ति मौत मौसमी बीमारी से नहीं हुई। यहां स्वास्थ्य विभाग द्वारा हाट बाजार क्लीनिक में आदिवासियों को इलाज मुहैया कराया जा रहा है।
मुख्यमंत्री श्री बघेल ने कहा कि आदिवासी अजायब घर की वस्तु नहीं है। छत्तीसगढ की सबसे बड़ी समस्या नक्सलवाद नहीं कुपोषण और गरीबी है। इसके लिए सरकार ने सुपोषण योजना शुरु कर आदिवासियों के जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए पौष्टिक भोजन दिया जा रहा है। लोहांडीगुड़ा में आदिवासियों की जमीन वापस किया गया। वहीं सालों से खेती करने वाले आदिवासियों को जमीन का पट़टा दिया गया। और चारामा के पास जर्बरा ग्राम में आदिवासियों को सैकड़ों एकड़ जमीन का पट़टा प्रदान किया गया जहां इको टूरिज्म से रोजगार मिल रहा है। जेलों में निर्दोष आदिवासियों की रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज की कमेटी बनाकर प्रकरणों का अध्ययन किया जा रहा है।
आदिवासी समुदाय हजारों वर्षों से अपना पारंपरिक जीवन सुखी पूर्वक जीता रहा है। उनके जीवन में नृत्य और त्यौहारों का बहुत महत्तव पूर्ण स्थान रहा है। आम का त्यौहार, महुआ का त्यौहार, माटी का त्यौहार आदि पारंपरिक त्यौहार हर माह मनाते हैं जो उनके जीवन शैली में शामिल है। मातृ भाषा को बढावा देने के लिए सरकार ने प्रायमरी स्कूल में गोंडी भाषा में पढाई शुरु कराया है। छत्तीसगढ में कुडकू को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है। यहां की आदिवासी बोली व भाषा में इतना विविधता है कि सरगुजा और बस्तर में बोली जाने वाली भाषा को दूसरे क्षेत्र के आदिवासी नहीं जान पाते हैं। छत्तीसगढ़ की गौरवशाली इतिहास बुद्व के काल में भी अस्तित्व रहा है। नागार्जुन जैसे बौद्व भिक्षु सिरपुर में तपस्या किए हैं। आजादी के आंदोलन में भी आदिवासियों की भूमिका रही है। शहीद वीरनारायण सिंह , राजा गेंद सिंह और गुंडाधुर मुख्यमंत्री श्री बघेल ने एनआरसी और सीएए का विरोध करते हुए कहा कि उनकी माताजी के स्कूल रिकार्ड में दो-दो जन्म तिथियां दर्ज और तो ऐसे में उनकी जन्म तिथि का निर्धारण मालूम नहीं है। तो फिर उनको नागरिकता कैसे मिलेगी। वहीं इस कानून के लागू होने से आदिवासी अपनी पहचान कैसे साबित कर सकेंगे। कायर्क्रम में स्कूल शिक्षा एवं आदिम जाति कल्याण मंत्री डॉ प्रेम साय टेकाम, आबकारी मंत्री कवासी लखमा, संस्कृति एवं खाद्य मंत्री अमरजीत भगत सहित अन्य विधायकगण भी मौजूद रहें।
राजधानी में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय शोध-संगोष्ठी गढबो नवा छत्तीसगढ़ के थीम पर आदिवासी अस्मिता : कल आज और कल - विषय को लेकर न्यू सर्किट हाऊस के सभागार में दूसरे दिन भी संगोष्ठी का कार्यक्रम चला। कार्यक्रम का आयोजन गोंडवाना स्वदेश मासिक पत्रिका के तत्तवाधान में संस्कृति विभाग और आदिम जाति विकास विभाग छत्तीसगढ़ शासन के विशेष् सहयोग से आयोजित किया जा रहा है। राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में देशभर के शोधार्थी और केंद्रीय विवि के प्रोफेसरों ने सहभागीता की। तृतीय सत्र में आदिवासियों के कला एवं संस्कृति से संबंधित विभिन्न आयामों पर 20 शोधार्थियों ने पत्र वाचन किया।
शनिवार को द्वितीय दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के प्रथम सत्र में आदिवासी प्रतिनिधित्व अस्मिता के स्वर - विषय को लेकर मुख्य वक्ता के रुप में महात्मा गांधी हिंदी विवि वर्धा के बौद्व अध्ययन केंद्र के प्रभारी निदेशक डॉ सुरजीत कुमार सिंह ने कहा कि आदिवासियों की जनसंख्या पूरे भारत में 8 से 10 प्रतिशत है लेकिन उनका प्रतिनिधित्व कहीं नजर नहीं आता है। छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की आबादी 32 प्रतिशत और यहां भी आदिवासी नहीं दिखते हैं। आदिवासी दिखते हैं दूर दराज के दुर्गम इलाकों में और छत्तीसगढ़ के रायपुर, बिलासपुर जैसे महानगरों में आदिवासी मुख्यधारा से दूर ही हैं। जबकि छत्तीसगढ़ का हर तीसरा आदमी जनसंख्या के अनुसार आदिवासी है। डॉ. सिंह ने आगे कहा कि ये कहा जाता है आदिवासियों के राजे महाराजे हुए हैं और गोंडवाना में तो आदिवासियों का शासन था, लेकिन कोई दूरदृष्टि न होने के कारण आदिवासियों को शोषण रुक नहीं पाया। बल्कि वे और अधिक अत्याचार बढ़ता चला गया। क्योंकि जो कौम शासन करती है उसका शोषण नहीं होता है। लेकिन आदिवासियों के मामले में उल्टा हुआ है। जबकि ब्रिटिश मुट्ठीभर थे लेकिन उन्होंने पूरी दुनिया पर शासन किया उनका कभी भी शोषण नहीं हुआ। आज आदिवासियों के अस्मिता के साथ सबसे बड़ा खिलवाड़ किया जा रहा है। उनकी कला , संस्कृति और भाषा को नष्ट किया जा रहा है। साथ ही उन्हें जबरन हिंदू बताया जा रहा है।
दिल्ली विवि के पूर्व प्रोफेसर वर्जिनियस खाखा ने कहा कि भूमंडलीयकरण से आदिवासियों का विकास नहीं हुआ। विकास के नाम पर आदिवासियों की सांस्कृतिक व आर्थिक उन्नति नहीं हो सकी। बल्कि प्राकृतिक संपदा का दोहन कर आदिवासियों को जल, जंगल और जमीन से बेदखल किया गया।
लोक अभियोजन संयुक्त संचालक एम.आर. ध्रुव ने कहा कि ऐतिहासिक महापुरुषों में रघुनाथ शाह , शंकर शाह , रानीदुर्गावती , बिरसा मुंडा और डॉ भीमराव अंबेडकर का महत्तवपूर्ण प्रतिनिधित्व रहा है। लेकिन वर्तमान समय में आदिवासियों के प्रतिनिधित्व में गिरावट आई है। जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर आदिवासियों के हित के लिए अनेक कानून बने हैं लेकिन अशिक्षा के कारण उनका उपयोग नहीं कर पाते हैं। आदिवासियों के हितों की रक्षा के लिए लिगल सेल बनाकर मदद करना चाहिए।
वहीं अध्यक्षता करते हुए स्वास्थ्य विभाग के डिप्टी डायरेक्टर डॉ आरके सुखदेवे ने कहा कि समाज में पढ़े लिखे लोग शहरों में घर परिवार तो बसा लेते हैं। लेकिन नौकरी पेशा करते हुए समाज के प्रति समर्पित नहीं रहते है। समाज को आगे बढ़ाने के लिए आज पे बैकटू सोसायटी की सोच शून्य है। डॉ सुखदेवे ने कहा कि आज समाज में सामाजिक लोकतंत्र और शैक्षणिक लोकतंत्र की स्थापना की जरुरत है। हमारे समाज से चुने हुए सांसद दलाल की तरह हैं जो प्रतिनिधित्व की बात नहीं कर सत्ता के चाटुकार बने हुए हैं।
मानव वैज्ञानिक डॉ पियूष रंजन साहू ने कहा कि अंडमान निकोबार द्वीप समूह में निवासरत् आदिवासियों के रहन-सहन और उनके जीवन के अनुकूल परिस्थितियों का अध्ययन करने की जरुरत है। इसके लिए आदिवासियों के सहभागी अवलोकन के बिना उनकी संस्कृति, समाज व्यवस्था व नजरिया को समझा नहीं जा सकता है।
रविवार को संगोष्ठी का अंतिम दिन समापन अवसर पर संगोष्ठी में तीन सत्र का आयोजन किया जाएगा। तीन दिवसीय शोध संगोष्ठी का समापन समारोह का मुख्य अतिथि के रुप में राज्यपाल अनुसुईया उइके होंगे। इस अवसर पर सभी शोधार्थीयों को प्रमाण पत्र का वितरण किया जाएगा।