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 विशेष लेख : महतारी वंदन योजना महिलाओं को बनाएगी आर्थिक रूप से मजबूत

विशेष लेख : महतारी वंदन योजना महिलाओं को बनाएगी आर्थिक रूप से मजबूत

महिलाओं की आत्मनिर्भरता वास्तव में देश और समाज दोनों की विकास से जुड़ी हुई है। जब एक महिला आर्थिक रूप से सशक्त होती है तो एक परिवार और समाज भी सशक्त होता है। इसका सकारात्मक परिणाम बच्चों की शिक्षा-दीक्षा के साथ परिवार की आर्थिक उन्नति के रूप में होता है। राज्य सरकार द्वारा महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सार्थक प्रयास किया जा रहा है।
मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय की सरकार राज्य में मोदी जी की गारंटी को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है। छत्तीसगढ़ की महिलाएं हर दिशा में आगे बढ़ रही है। इसी का परिणाम है कि महतारी वंदन योजना के तहत अंतिम दिनों तक फॉर्म भरने के लिए महिलाओं में जबरदस्त उत्साह देखने को मिला। केन्द्र में फॉर्म भरने वाली महिलाओं ने बताया कि हर महीने योजना के तहत एक हजार रूपए उनके खाते में दिए जाएंगे, एक वर्ष में उन्हें 12 हजार रूपए मिलेगा। इस योजना के माध्यम से महिलाएं आर्थिक रूप से सशक्त और मजबूत बनने वाली है। उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार द्वारा महतारी वंदन योजना के तहत् 72 लाख 74 हजार से अधिक महिलाओं ने आवेदन भरा है।

नारायणपुर जिले के ग्राम पुसवाल निवासी 28 वर्षीय श्रीमती रामदई कचलाम, 40 वर्षीय श्रीमती बतीबाई कचलाम, 35 वर्षीय श्रीमती सुलबती नाग और 55 वर्षीय श्रीमती मानकी बाई कचलाम ने बताया कि वे महतारी वंदन योजना का फार्म भरकर बहुत उत्साहित हैं। उन्हांेने बताया कि प्रदेश के हमारे जैसे लाखों गरीब महिलाओं के लिए यह योजना वरदान साबित होगा। उन्होंने खुशी का इजहार करते हुए कहा कि प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय की यह योजना महिलाओं के विकास में मददगार साबित होकर जीवन को खुशहाली देने में सहयोग मिलेगा। मानकी बाई कचलाम ने बताया कि प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय के निर्णय अनुसार प्रदेश के सभी पात्र विवाहित महिलाओं को प्रतिमाह एक हजार रूपये देने के निर्णय से हम लोग बेहद खुश हैं। उन्होंने देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय को महतारी वंदन योजना प्रारंभ करने के लिए धन्यवाद देते हुए आभार जताया है।

श्रीमती सुलबती नाग ने कहा कि महतारी वंदन योजना प्रारंभ होने से हम लोग बहुत खुश है उन्होंने प्राप्त राशि का उपयोग घरेलू जरूरतों एवं बच्चों की पढ़ाई में करने की बात कही। ग्राम बागोडार निवासी श्रीमती चित्ररेखा नेताम ने भी महतारी वंदन योजना का आवेदन भरते हुए बताया कि आर्थिक रूप से कमजोर परिवार की महिलाओं के लिए यह योजना बहुत ही राहत देने वाली है।

शास्त्री बाजार में रहने वाली श्रीमती अनुराधा समुंद्रे ने बताया कि हर महीने एक हजार रुपए देने वाली राज्य सरकार की यह योजना सराहनीय है। उनकी एक छोटी सी दुकान है और महतारी वंदन योजना से मिलने वाली राशि का उपयोग अपनी दुकान में ज्यादा से ज्यादा समान भरने के लिए कर सकेंगी, जिससे कि उनके व्यवसाय को बढ़त मिलेगी। इस राशि से महिलाएं अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत बना सकेंगी।

राजीव आवास में रहने वाली कु. त्रिशला बघेल ने बताया कि उन्होंने अपनी बड़ी मां श्रीमती रश्मि सेंद्रे के लिए महतारी वंदन योजना का फॉर्म भरी है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार की महतारी वंदन योजना उनके लिए मददगार साबित होगी क्योंकि वह इस राशि से सिलाई मशीन खरीदेंगी और अपनी आमदनी बढ़ाएंगी। 

विशेष लेख : ग्रामीणों के लिए वरदान साबित हो रही नरवा, गरवा, घुरवा ,बारी योजना

विशेष लेख : ग्रामीणों के लिए वरदान साबित हो रही नरवा, गरवा, घुरवा ,बारी योजना

रायपुर, छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ सरकार के 4 साल पूरे हो चुकें हैैं। इन चार सालों के दौरान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए अनेक कदम उठाए हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के सपनों को पूरा करने का संकल्प मुख्यमंत्री ने लिया और इसका क्रियान्वयन करने ऐसी अनेक जनहितकारी योजनाएं बनाई गई जिससे किसानों, महिलाओ और युवाओं को जोड़ा गया। राज्य में चल रही अनेक योजनाओं के क्रियान्वयन का बीड़ा तो महिलाओं द्वारा संचालित स्वसहायता समूहों ने उठाया है और वो बड़े ही संगठित रूप से कार्य कर अपनी ज़िम्मेदारी निभा रही है।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए गौठानों में वर्मी कम्पोस्ट के उत्पादन के साथ-साथ अन्य आर्थिक गतिविधियां प्रारंभ की गई। गौठानों में ग्रामीण औद्योगिक पार्क बनाए जा रहे इन सभी गतिविधियों में गांवों के महिला समूह और युवाओं को जोड़ा जा रहा है। इसी क्रम में मुख्यमंत्री ने रंक्षा बंधन के दिन महिला समूहों के ऋणों को माफ करने की घोषणा की। इन सब कार्यो से 4 सालों के कार्यकाल के दौरान कृषि स्वास्थ्य,उद्योग,महिला सशक्तिकरण,ऊर्जा वन अधिकार सहित विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य किये जा रहे है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत बनाने की पहल से महिलाओं और युवाओं को उनके ग्रामों के आसपास ही रोज़गार के अवसर उपलब्ध हो रहे हैं। इससे बाहरी राज्यो में जाकर रोजगार तलाशने की समस्या से भी निजात खेतिहर श्रमिकों को मिली है।
छत्तीसगढ़ सरकार की फ्लैगशिप योजनाओं से सभी वर्गों के जीवन स्तर में आर्थिक, सामाजिक बदलाव लाया जा रहा है। जल संरक्षण, पशु संवर्धन, मृदा स्वास्थ्य और पोषण प्रबंधन को आमजन की सहभागिता से सफल बनाने के लिए सुराजी गांव योजना 2 अक्टूबर 2019 से शुरू की गई है। इस योजना के तहत नरवा (बरसाती नाले), गरवा (पशुधन), घुरवा (कम्पोस्ट खाद निर्माण) और बाड़ी (सब्जी और फलोद्यान) के संरक्षण एवं संवर्धन का अभियान प्रारंभ किया गया है।
सरकार की ऐसे ही फ्लैगशिप योजनाओं में शामिल है, सुराजी गाव योजना। किसानों को चारागाह के लिए भूमि उपलब्ध कराई जा रही है, नालों का निर्माण कर सिंचाई और निस्तारी जल की सुविधा दी जा रही है। मवेशियों को रखने और चारे का बंदोबस्त किया जा रहा है साथ ही बाड़ी में सब्जी लगा कर जैविक कृषि की ओर उन्हें अग्रसर किया जा रहा है। इस योजना से खुले में पशुओं की चराई प्रथा पर रोक लगी है। सिंचित क्षेत्रों में किसान दोहरी फसल लेने लगे हैैं। खेती किसानी में वर्मी कम्पोस्ट के उपयोग से रासायनिक खादों के उपयोग से होने वाले हानिकारक तत्वों से मुक्ति मिल रही है। खेत भी वर्मी कम्पोस्ट के उपयोग से उपजाऊ बनते जा रहे है।
नरवा कार्यक्रम- राज्य के लगभग 29000 बरसाती नालों को चिन्हित कर इस कार्यक्रम के तहत उनका ट्रीटमेंट कराया जा रहा है। इससे वर्षाजल का संरक्षण होने के साथ-साथ संबंधित क्षेत्रों का भू-जलस्तर सुधर रहा है। प्रदेश में नरवा बनाने का कार्य भी द्रुतगति से चल रहा है। इन नालों के जरिए ग्रामीणों को कृषि के लिए सिंचाई का पानी मिल रहा, मवेशियों को पीने के पानी की समस्या से निजात मिल रही साथ ही गर्मी के दिनों में भी ग्रामीणों को निस्तारी के लिए पानी की उपलब्धता सुनिश्चित की जा रही है। साथ ही वन्य प्राणियों के लिए भी गर्मी के दिनों में पेयजल की किल्लत नहीं होती और उनके लिए हर वक्त पानी मिल रहा है।
गरवा कार्यक्रम - इस कार्यक्रम के तहत पशुधन के संरक्षण और संवर्धन के लिए गांवों में गौठान बनाकर वहा पशुओं को रखने की व्यवस्था की गई हैं। प्रदेश में करीब 11,288 गौठान स्वीकृत हुए है, अब तक 9631 गौठान बन गए है। जिनमे से 4372 गौठान पूरी तरह से स्वावलंबी है। गौठानों में पशुओं के लिए डे-केयर की व्यवस्था है। इसके तहत चारे और पानी का निःशुल्क प्रबंध किया गया है। इससे मवेशियों को चारे के लिये भी भटकना नही पड़ रहा है। मुख्यमंत्री ने किसानों को पैरा दान करने की अपील की इसका असर यह हुआ कि किसान स्वमेव आगे आये और इन गौठानों में 4 लाख 513 हज़ार क्विंटल से अधिक का पैरा दान किया गया है।
घुरवा कार्यक्रम - इसके माध्यम से जैविक खाद का उत्पादन कर इसके उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है। फिलहाल इन गौठान में 20 लाख क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट, साढ़े 5 लाख क्विंटल सुपर कम्पोस्ट तथा 19 लाख क्विंटल सुपर कम्पोस्ट प्लस का निर्माण किया गया है। घुरवा के लिये 92 हजार पक्के टांके स्वीकृत किये गए हैं इनमें, 81 हज़ार टांके बनकर तैयार है। वहीं 16 लाख क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट बिक्री सहकारी समीतियों के माध्यम से की जा चुकी है।
बारी कार्यक्रम- छत्तीसगढ़ में बाड़ी को बारी कहा जाता है। ग्रामीणों के घरों से लगी भूमि में 3 लाख से अधिक व्यक्तिगत बाडियों को विकसित किया गया है। साथ ही गौठनो में बनाई गई करीब 4429 सामुदायिक बाड़ियों के जरिये फल साग-सब्जियों के उत्पादन से कृषकों को आमदनी के साथ-साथ पोषण सुरक्षा उपलब्ध कराई जा रही है। इस योजना के जरिये ग्रामों औऱ बसाहटों में बाड़ियों को विकसित कर लोगों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने प्रोत्साहित किया जा रहा है।
न्याय योजनाः खेती किसानी को मजबूत बनाने के लिए किसानों को इनपुट सब्सिडी देने के लिए चलाई जा रही राजीव गांधी किसान न्याय योजना से किसानों के मनोबल में वृद्धि हुई है इससे लगातार खेती किसानी का रकबा बढ़ता चला जा रहा है। किसानांे को साहूकारों के उचे ब्याज दर पर ऋण लेने से मुक्ति मिली है। इस योजना के तहत खरीफ और उद्यानिकी फसलों के उत्पादक किसानों को प्रति एकड़ की दर से इनपुट सब्सिडी दी जाती है। धान के बदले दूसरी फसल लगाने या वृक्षारोपण करने पर 10 हजार रुपए इनपुट सब्सिडी दी जाती है। अब तक राज्य में 22 लाख किसानों को 16 हजार 401 करोड़ 45 लाख रुपए इनपुट सब्सिडी दी गई है।
गोधन न्याय योजना में गोबर बेचकर किसानों को अतिरिक्त आमदनी मिल रही है। 20 जुलाई 2020 को हरेली पर्व के दिन गोधन न्याय शुरू की गई है। योजना के तहत दो रुपए किलो में गोबर खरीदी और 4 रूप लीटर की दर पर गोमूत्र की खरीदी की जा रही है। इस योजना के तहत ग्रामीणों और गोबर संग्राहकों को और गौठान समितियो के समूहों को 169.41 करोड़ का भुगतान किया जा चुका है।
शुरू होने के साथ ही गोधन न्याय योजना काफी लोकप्रिय हुई है। अब इसकी चर्चा देश-दुनिया में होने लगी है और देश के अन्य राज्य इसे अपने यहां लागू करने जा रहे है। गांवों में गौठानों का और निर्माण होने से पशुधन को निःशुल्क चारा-पानी का प्रबंध सुनिश्चित हुआ है। इससे स्वच्छता के साथ ही पर्यावरण संरक्षण, दोहरी फसलों के रकबे में वृद्धि, कम्पोस्ट उत्पादन से खेती की लागत में कमी और जैविक खेती को बढ़ावा मिला है।
गौठानों में महिला समूहों द्वारा गोधन न्याय योजना के तहत क्रय गोबर से बड़े पैमाने पर वर्मी कम्पोस्ट, सुपर कम्पोस्ट, सुपर कम्पोस्ट और अन्य उत्पाद तैयार किया जा रहा है। महिला समूह गोबर से खाद के अलावा गो-कास्ट, दीया, अगरबत्ती, मूर्तियां और अन्य सामग्री का निर्माण एवं विक्रय कर लाभ अर्जित कर रही हैं। गौठानों में क्रय गोबर से विद्युत उत्पादन, की शुरुआत की जा चुकी है। गोबर से बिजली और प्राकृतिक पेंट बनाए जा रहे है।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने हाल ही 300 ग्रामीण औद्योगिक पार्क की शुरुआत की है। जिसके तहत आजीविका गुड़ी गौठनो में बनाई जाएगी। ग्रामीण युवा उद्यमियों को सशक्त बनाने के लिए नई तकनीकों का इस्तेमाल किया जाएगा । इस तरह ये गौठान ग्रामीण अर्थवयवस्था को ज्यादा सशक्त बना कर रोजगार उपलब्ध कराने वाले केंद्र बनेंगे।
छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में चार सालों के दौरान किसानों, महिलाओ और निम्न आय वर्ग के हित में चलाई जा रही योजनाओं का ज़िक्र देश दुनिया में हो रहा है। लोगों को आर्थिक स्वावलंबी बनाने वाले विकास के छत्तीसगढ़ मॉडल को अपनाने में अन्य राज्य दिलचस्पी दिखा रहे है। यह इस बात का प्रतीक है कि चार सालों में छत्तीसगढ़ ने सफलता के कई सोपान तय किए है और आगे भी यह सिलसिला जारी रहेगा।

- शगुफ्ता शीरीन  

विशेष लेख : सूक्ष्म पोषक तत्वों विटामिन ठ 12, फोलिक एसिड और आयरन से भरपूर है फोर्टिफाइड चावल...

विशेष लेख : सूक्ष्म पोषक तत्वों विटामिन ठ 12, फोलिक एसिड और आयरन से भरपूर है फोर्टिफाइड चावल...

प्रत्येक माता-पिता की ख्वाइश होती है कि उनके बच्चे स्वस्थ्य रहें। लेकिन उनकी चिंता तब बढ़ जाती है जब बच्चे खाने-पीने में आनाकानी करते हैं। इससे बच्चों के शरीर में पोषक तत्वों की कमी होने लगती है और उनकी वृद्धि प्रभावित होती है। इसके साथ कुछ बच्चे जन्म से ही कुपोषित होते हैं। बच्चों का बेहतर स्वास्थ्य और सुपोषण स्तर बना रहे इसके लिये मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के निर्देश पर मध्याह्न भोजन में फोर्टिफाइड चावल का वितरण शुरू किया गया है। फोर्टिफाइड चावल वितरण की शुरूआत कोण्डागांव जिले से हुई थी। फोर्टिफाईड चावल क्या होता है..ये कैसे बनाया जाता है और बच्चों के लिये ये कैसे उपयोगी है..इस लेख में आपको बताते हैं।
फूड या खाद्य पदार्थों के फोर्टीफिकेशन का क्या मतलब होता है...?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक फूड फोर्टीफिकेशन का मतलब होता है टेक्नोलॉजी के माध्यम से खाने में विटामिन और मिनरल के स्तर को बढ़ाना। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि आहार में पोषक तत्वों की कमी को दूर किया जा सके और इससे लोगों के स्वास्थ्य को भी लाभ मिले।
चावल में पहले से ही पोषक तत्व होते है फिर उसके फोर्टीफिकेशन की क्या जरूरत है?
आम तौर पर चावल की मिलिंग और पॉलिशिंग के समय फैट और सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर चोकर की परतें हट जाती है। चावल की पॉलिश करने से 75-90 प्रतिशत विटामिन भी निकल जाते है जिसके वजह से चावल के अपने पोषक तत्व खत्म हो जाते है। इसलिए चावल को फोर्टिफाई करने से उनमें सूक्ष्म पोषक तत्व न सिर्फ फिर से जुड़ जाते है बल्कि और ज्यादा मात्रा में मिलाये जाते है जिससे चावल और ज्यादा पौष्टिक बन जाता है।
कुपोषण से लड़ने के लिए जरूरी है चावल का फोर्टीफिकेशन
छत्तीसगढ़ देश का प्रमुख चावल उत्पादक राज्य है। विश्व में 22 प्रतिशत चावल का उत्पादन भारत करता है और हमारे देश में 65 प्रतिशत आबादी रोज़ चावल का सेवन करती है। इतना ही नहीं, भारत में प्रति व्यक्ति चावल की खपत प्रति माह 6.8 किलोग्राम है। भारत में खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों में चावल का वितरण भी बहुत ज्यादा मात्रा में होता है। इसलिए देश की ज्यादातर आबादी के लिए चावल ऊर्जा और पोषण का एक बड़ा स्रोत है और कुपोषण से लड़ने के लिए चावल का फोर्टीफिकेशन एक कारगर रणनीति है। सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया भर के कई देश चावल के फोर्टीफिकेशन की रणनीति को लागू कर रहे है।
चावल को ऐसे करते हैं फोर्टीफाई ...
चावल को फोर्टीफाई करने के लिए सबसे पहले सामान्य चावल का पाउडर बनाया जाता है और उसमे सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे विटामिन B 12, फोलिक एसिड और आयरन, FSSAI के मानकों के अनुसार मिलाये जाते है। चावल के पाउडर और विटामिन/मिनरल के मिश्रण को मशीनों द्वारा गूंथा जाता है और एक्सट्रूजन नामक मशीन से चावल के दानों फोर्टिफाइड राइस कर्नेल FRK को निकाला जाता है। इस FRK के एक दाने (ग्राम) को सामान्य चावल के 100 दानों (ग्राम) के अनुपात में मिलाया जाता है जिसे फोर्टीफाइड चावल कहते है।
फोर्टीफाइड चावल खाने के फायदे...
फोर्टीफाइड चावल में कई पोषक गुण है क्यूंकि इसमें आयरन, फोलिक एसिड और विटामिन B 12 जैसे सूक्ष्म पोषक तत्व या माइक्रोन्युट्रिएंट्स मिलाये जाते है। ये पोषक तत्व अनीमिया और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से बचाता है।
आयरन अनीमिया से बचाव करता है, फोलिक एसिड खून बनाने में सहायक होता है और विटामिन B 12 नर्वस सिस्टम के सामान्य कामकाज में सहायक होता है। फोर्टीफाइड चावल के नियमित सेवन से बेहतर पोषण और स्वास्थ्य सुनिश्चित होता है।
ऐसे पकाया जाता है फोर्टीफाइड चावल
अधिकतम पौष्टिक लाभ के लिए फोर्टीफाइड चावल को पर्याप्त पानी में पकाना चाहिए और बचे हुए पानी को फेंकना नहीं चाहिए। अगर चावल को बनाने से पहले पानी में भिगोया गया हो तो चावल को उसी पानी में पकाना चाहिए। फोर्टीफाइड चावल को हर बार इस्तेमाल करने के बाद साफ और सूखे हवा-बंद डब्बे में रखना चाहिए।
फोर्टीफाइड चावल कहाँ मिलता है?
फोर्टीफाइड चावल सरकारी राशन की दुकानों पर मिलता है। यह चावल आंगनवाड़ी केंद्रों पर दिए जाने वाले पूरक पोषण आहार और स्कूलों में मध्यान्ह भोजन में भी दिया जाता है।
फोर्टीफाइड चावल से संबंधित कुछ भ्रांतियां और तथ्य
भ्रान्ति: फोर्टीफाइड चावल प्लास्टिक चावल है ।
तथ्यः चावल को थ्त्ज्ञ के साथ 100ः1 के अनुपात में मिलाकर फोर्टीफाइड चावल तैयार किया जाता है। थ्त्ज्ञ को चावल के आटे और प्रीमिक्स से तैयार किया जाता है जिसमें आयरन, फोलिक एसिड और विटामिन बी 12 होता है जिसे एक साथ मिश्रित किया जाता है। इसमें प्लास्टिक जैसा कुछ भी नहीं होता और यह उपभोग करने के लिए पूरी तरह से सुरक्षित और स्वास्थ्यवर्धक है।
भ्रान्तिः फोर्टीफाइड चावल के स्वाद, सुगंध और पकाने की विधि में परिवर्तन होता है।
तथ्यः स्वाद, सुगंध और दिखने में फोर्टीफाइड चावल सामान्य चावल के जैसा ही होता है। इसे सामान्य चावल की तरह ही पकाकर सेवन करना चाहिए।
भ्रान्तिः फोर्टीफाइड चावल में पोषक तत्व खाना पकाने के दौरान नष्ट हो जाते हैं।
तथ्यः फोर्टीफाइड चावल पकाने के दौरान अपने पोषक तत्वों को बरकरार रखता है। अत्यधिक पानी में धोने और पकाने के दौरान भी पोषक तत्व अवशेष बरकरार रहते हैं। 

 विशेष लेख : विश्व पर्यटन दिवस :देश के पर्यटन नक्शे में तेजी से उभर रहा है छत्तीसगढ़

विशेष लेख : विश्व पर्यटन दिवस :देश के पर्यटन नक्शे में तेजी से उभर रहा है छत्तीसगढ़

पर्यटन की दृष्टि से छत्तीसगढ़ अत्यंत समृद्ध राज्य है। छत्तीसगढ़ की धरती वन और खनिज संपदा से भरपूर तो है ही इसके साथ ही यहां की कला, संस्कृति और पर्यटन स्थल भी आकर्षण के केन्द्र है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व और छत्तीसगढ़ के पर्यटन मंत्री श्री ताम्रध्वज साहू के मार्गनिर्देशन में छत्तीसगढ़ पर्यटन मण्डल द्वारा प्रदेश में पर्यटन विकास एवं पर्यटकों की गतिविधियों के लिए राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं। राज्य सरकार के प्रयासों का ही नतीजा है कि कोविड महामारी के दौर से उबरने के बाद छत्तीसगढ़ में पर्यटकों की संख्या लगातार बढ़ रही है। वर्ष 2021 में भारतीय और विदेशी मिलाकर 1 करोड़ 15 लाख 32 हजार सैलानियों ने छत्तीसगढ़ का भ्रमण किया है।
छत्तीसगढ़ एक ऐसी पवित्र भूमि है, जहां वनवास काल में भगवान राम के चरण उत्तर में कोरिया जिले के सीतामढ़ी हरचौका से दक्षिण में सुकमा जिले के कोंटा तक पड़े। उत्तर से दक्षिण तक सात सौ किलोमीटर के विशाल क्षेत्र में फैला विविध प्रकार के प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक धरोहरों को समेटे हुए हैं। यहां की धरती वन, वन्यजीव, नदी, पर्वत-पहाड़ और झरनों जैसी प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण है। उत्तर के पाट क्षेत्र से दक्षिण की पहाडियों तक प्रकृति द्वारा उकेरे अनेक रमणीय प्राकृतिक स्थल और अनुपम सौंदर्य इस राज्य को प्रकृति का वरदान है।
भौगोलिक खूबसूरती और सांस्कृतिक विरासत को धारण किये इस छत्तीसगढ़ में पर्यटन विकास की असीम संभावनाएं हैं, यहां के प्राचीन विरासत ,धार्मिक स्थल और प्राकृतिक सुंदरता पर्यटकों को सुखद अनूभूति देते हैं। छत्तीसगढ़ में सिरपुर ,भोरमदेव जैसे कई ऐसे पुरातात्विक एवं धार्मिक महत्व के स्थल है जो वास्तुकौशल की कला का अनुपम उदाहरण है। यहां के वास्तु सौंदर्य अपनी अद्भुत रचनात्मकता के कारण घरेलू एवं विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करते रहे हैं।

छत्तीसगढ़ में अनगिनत ऐसे रमणीय प्राकृतिक स्थल विद्यमान हैं जो पर्यटकों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इसके अलावा बीते कुछ समय में राज्य के दुर्गम ईलाकों में कुछ नये प्राकृतिक स्थलों की पहचान भी की गई है जिनके विकास के प्रयास किये जा रहे हैं।इन पर्यटन स्थलों में पर्यटन की दृष्टि से नई सुविधाएं विकसित की जा रही हैं।

राज्य में पर्यटन की विकास की असीम संभावनाओं को देखते हुए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के दिशा निर्देश पर राज्य भर के प्राकृतिक और सांस्कृतिक महत्व के स्थलों का विकास किया जा रहा है। यहां के पर्यटन क्षेत्रों को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाने बहुआयामी विकास की दिशा में कार्य किये जा रहे हैं। जनजातीय अंचल की प्राकृतिक एवं कला-संस्कृति कों विश्वपटल पर लाने के लिए राज्य सरकार द्वारा विशेष प्रयास किये जा रहे हैं। रोजगार उपलब्ध कराने की दिशा से ग्रामीण पर्यटन का विकास किया जा रहा है। इन स्थलों में खान-पान एवं आवास की सुविधा युक्त होटल, मोटल ,रिसार्ट एवं रेस्टोरेंट की सुविधा विकसित की जा रही है।
भगवान राम का ननिहाल छत्तीसगढ़, राम नाम की महिमा यहां की संस्कृति में रची बसी हुई है। छत्तीसगढ़ की संस्कृति में जब किसी से मिला जाता है तो राम नाम से संबोधन किया जाता है। यहां के कण-कण में राम का नाम बसा है। यहीं भगवान राम की माता ‘‘ माता कौशल्या‘‘ का पूरे विश्व का एकमात्र मंदिर स्थित है। राजधानी रायपुर के निकट चंदखुरी स्थान पर यह मंदिर स्थित है। इस स्थान की महिमा और जनमानस में बसी भगवान राम की आस्था को देखकर राज्य सरकार द्वारा चंदखुरी का विकास पौराणिक कथाओं में दर्शाए गए वातावरण के अनुसार किया जा रहा है। वनवास के दौरान भगवान का राम के चरण जिस-जिस स्थान पर पड़े उन राममय क्षेत्र का विकास ‘‘ राम वनगमन पर्यटन परिपथ विकास परियोजना‘‘ के माध्यम से किया जा रहा है।

छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल द्वारा राम वनगमन पर्यटन परिपथ के 75 स्थलों को चिन्हित किया गया है। प्रथम चरण में 9 स्थलों सीतामढ़ी-हरचौका (कोरिया), रामगढ़ (सरगुजा), शिवरीनारायण (जांजगीर-चांपा), तुरतुरिया (बलौदाबाजार), चंदखुरी (रायपुर), राजिम (गरियाबंद), सिहावा-सप्तऋषि आश्रम (धमतरी), जगदलपुर (बस्तर) और रामाराम (सुकमा) में ‘राम वनगमन पर्यटन परिपथ‘ के रूप में नई सुविधाएं विकसित की जा रही हैं। पूरे परिसर का सैांदर्यीकरण भी किया जा रहा है। राम वन गमन पर्यटन परिपथ लम्बाई लगभग 2260 किलोमीटर है जिसका निर्माण, चौड़ीकरण एवं मरम्मत का कार्य किया जा रहा है। यहां पर्यटकों के ठहरने, भोजन, पानी, पार्किंग आदि की व्यवस्था के लिए छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल द्वारा कार्य किया जा रहा है।

राज्य के डोंगरगढ़ पहाड़ी पर माता बम्लेश्वरी देवी विराजमान है। यह पहाड़ी राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ नगर में स्थित है। माँ बम्लेश्वरी की इस नगरी डोंगरगढ़ को भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय ने प्रसाद योजना में शामिल किया है। इस योजना के तहत् डोंगरगढ़ का महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल के रूप में व्यवस्थित विकास का काम हाथ में लिया गया है। यहां श्राद्धालुओं के लिए ‘‘श्रीयंत्र‘‘ के बनावट के अनुरूप पिलग्रिम एक्टिविटी सेंटर (श्रद्धालुओं के लिए सुविधा केन्द्र) का निर्माण किया जा रहा है।

स्वदेश दर्शन योजना के तहत् छत्तीसगढ़ के 13 स्थानों पर ‘ट्राइबल टूरिज्म सर्किट' विकसित की जा रही है। इस परियोजना के तहत् जशपुर ,कुनकुरी ,मैनपाट, कमलेश्वरपुर, महेशपुर, कुरदर, सरोधादादर, गंगरेल, नथियानवागांव, कोण्डागांव, जगदलपुर, चित्रकोट और तीरथगढ़ को विकसित किया जा रहा है। इनमें से कुरदर हिल ईको रिसॉर्ट कुरदर (बिलासपुर), बैगा एथनिक रिसॉर्ट सरोधादादर (कबीरधाम), धनकुल एथनिक रिसॉर्ट (कोण्डागांव), सरना एथनिक रिसॉर्ट बालाछापर (जशपुर), कोईनार हाइवे ट्रीट कुनकुरी (जशपुर), हिल मैना हाईवे ट्रीट नथियानवागांव (कांकेर), सतरेंगा बोट क्लब एंड रिसॉर्ट सतरेंगा (कोरबा) और वे साइड अमेनिटी महेशपुर (सरगुजा) में पर्यटन सुविधाएं विकसित की गई हैं।
पर्यटकों की सुविधा के लिए उच्च स्तरीय पर्यटन सुविधाएं विकसित की जा रही हैं। राज्य के प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर स्थानों पर एथनिक रिसॉर्ट, कॉटेज,वॉटर स्पोर्ट्स जैसी सुविधाएं विकसित की जा रही हैं। यहां राष्ट्रीय उद्यान एवं वन्य प्राणी अभ्यारण्यों के साथ-साथ गौरवशाली लोक संस्कृति का अद्वितीय उदाहरण भी है। बस्तर क्षेत्र में कुटुमसर गुफा एवं कांगेर घाटी, राष्ट्रीय उद्यान, चित्रकोट जलप्रपात महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है जो अपनी अद्भुत छटा के कारण पर्यटकों का दिल जीत रहे हैं। छत्तीसगढ़ के पर्यटन स्थलों के बारे में पर्यटकों को सुलभ जानकारी उपलब्घ कराने तथा पर्यटन स्थलों के भ्रमण के लिए व्यक्तिगत एवं टूर पैकेज के अन्तर्गत आरक्षण की सुविधा प्रदान करने के लिए छत्तीसगढ़ पर्यटन मण्डल द्वारा नई दिल्ली, गुजरात मध्य प्रदेश के अतिरिक्त प्रदेश में 11 स्थानों पर पर्यटन सूचना केन्द्र स्थापित किया गया है। 

आलेख:- अग्निपथ क्यों बना कीचड़पथ?

आलेख:- अग्निपथ क्यों बना कीचड़पथ?

अग्निपथ को हमारे नेताओं ने कीचड़पथ बना दिया है। सरकार की अग्निपथ योजना पर पक्ष-विपक्ष के नेता कोई गंभीर बहस चलाते, उसमें सुधार के सुझाव देते और उसकी कमजोरियों को दूर करने के उपाय बताते तो माना जाता कि वे अपने नेता होने की जिम्मेदारी निभा रहे हैं लेकिन सत्तारुढ़ भाजपा के नेता आंख मींचकर अग्निपथ का समर्थन कर रहे हैं और सारे विपक्षी नेता उस पर कीचड़ उछाल रहे हैं।
सरकार और फौज अपनी मूल योजना पर रोज ही कुछ न कुछ रियायतों की घोषणा कर रही है ताकि हमारे भावी फौजियों की निराशा दूर हो और उनमें थोड़े उत्साह का संचार हो लेकिन लगभग सभी विपक्षी दलों को यह एक ऐसा मुद्दा मिल गया है, जिसे भुनाने में वे कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। यह तथ्य है कि अग्निपथ योजना के खिलाफ जो जबर्दस्त तोड़-फोड़ देश में हुई है, उसकी पहल स्वत: स्फूर्त थी। उसके पीछे किसी विपक्षी नेता या दल का हाथ नहीं था लेकिन अब आप टीवी चैनलों पर देख सकते हैं कि विभिन्न पार्टियों के कार्यकर्त्ता और नेता हाथ में अपने झंडे लिए हुए नारे लगाते घूम रहे हैं।
ये वे लोग हैं, जिन्हें न तो खुद फौज में भर्ती होना है और न ही इनके बच्चों को फौजी नौकरी पाना है। जिन नौजवानों को फौजी नौकरी पाना है, उनका गुस्सा स्वाभाविक था। हर आदमी अपने जीवन में स्थायी सुरक्षा और सुविधा की कामना करता है। कोई भी नौजवान चार साल फौज में बिताने के बाद क्या करेगा, यह प्रश्न उसे विचलित किए बिना नहीं रहेगा। फौज में जाने को ग्रामीण, गरीब और अल्पशिक्षित नौजवान इसलिए भी प्राथमिकता देते हैं कि उन्हें युद्ध तो यदा-कदा लडऩा पड़ता है लेकिन उनका शेष समय पूरी सुविधाओं और सुरक्षा में बीतता है और सेवा-निवृत्त होने पर 30-40 साल तक पेंशन और मुफ्त इलाज आदि की सुविधाएं भी मिलती रहती हैं और वे चाहें तो दूसरी नौकरी भी कर सकते हैं।
लेकिन यह परंपरागत व्यवस्था दुनिया के सभी प्रमुख देशों में बदल रही है, क्योंकि फौज में कम उम्र के नौजवानों की ज्यादा जरुरत है। सारी फौज के शस्त्रास्त्रों की खरीद पर जितना पैसा खर्च होता है, उससे ज्यादा पेंशन पर हो जाता है। फौज का आधुनिकीकरण बेहद जरुरी है। सरकार के ये तर्क तो समझ में आते हैं लेकिन कितना अच्छा होता कि अग्निपथ की ज्वाला अचानक भड़काने की बजाय वह इस मुद्दे पर संसद और खबरपालिका में पहले सर्वांगीण बहस करवा देती।
अब उसकी इस घोषणा का असर जरुर पड़ेगा कि इस आंदोलन में भाग लेनेवाले जवानों को अग्निपथ की नौकरी नहीं मिलेगी। यह आंदोलन ठप्प भी हो सकता है। लेकिर बेहतर तो यह होता कि फौजी अफसर इस योजना को तुरंत लागू करने की घोषणा करने की बजाय इस पर सांगोपांग बहस होने देते और जो भी उत्तम सुझाव आते, उन्हें स्वीकार कर लिया जाता। अग्निपथ को कीचड़पथ होने से बचाना बहुत जरुरी है।
- वेद प्रताप वैदिक

 

आलेख: सैन्य सुधार में कारगर अग्निपथ?

आलेख: सैन्य सुधार में कारगर अग्निपथ?

सेना में जवानों की बहाली के लिए बनाई गई अग्निपथ योजना पर दो अतिरेक वाले विचार हैं। जैसा इस सरकार की हर योजना के मामले में होता है- एक पक्ष इसका खुल कर समर्थन कर रहा है तो दूसरा पक्ष इसे पूरी तरह से खारिज कर रहा है। कोई मिडिल ग्राउंड नहीं दिख रहा है। लेकिन इसका समर्थन करने या इसे खारिज करने से पहले इस बात की प्रतीक्षा की जानी चाहिए कि यह योजना किस तरह से लागू होती है, देश का नौजवान इस पर कैसी प्रतिक्रिया देता है, सेना में पहले बैच की बहाली के बाद क्या माहौल होता है, इससे देश की सामरिक स्थिति कैसे प्रभावित होती है और सबसे ऊपर यह कि इससे सेना का बजट कैसे प्रभावित होता है।
हालांकि इस योजना की घोषणा करते हुए एक सवाल के जवाब में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि उनकी सरकार सेना के मामले में पैसे का ध्यान नहीं रखती है। उनके कहने का मतलब यह था कि इस योजना का मकसद सैनिकों के वेतन, भत्ते और पेंशन में होने वाले खर्च को कम करना नहीं है। हालांकि इस योजना का सैनिकों के वेतन, भत्ते और पेंशन पर बड़ा असर होगा। सरकार को इस मद में बड़ी बचत होगी, जिसका इस्तेमाल सेना के आधुनिकीकरण में किया जा सकेगा। ध्यान रहे सेना के लिए आवंटित कुल बजट में आधे से ज्यादा हिस्सा सैनिकों के वेतन, भत्ते और पेंशन पर खर्च होता है। पिछले वित्त वर्ष के चार लाख 78 हजार करोड़ रुपए के रक्षा बजट में 2.55 लाख करोड़ रुपए वेतन, भत्ते और पेंशन के मद में खर्च हो गए, जबकि सैन्य तैयारियों और आधुनिकीकरण के लिए 2.38 लाख करोड़ रुपए बचे।
एक आकलन के मुताबिक अगर अग्निपथ योजना सही तरीके से लागू होती है और सेना में नियुक्ति का स्थायी तरीका बनती है तो एक सैनिक के पूरे कार्यकाल और उसके जीवन पर होने वाले सरकारी खर्च में साढ़े 11 करोड़ रुपए की बचत होगी। यह आकलन 17 साल तक सेवा की मौजूदा व्यवस्था बनाम चार साल की अग्निपथ योजना के आधार पर किया गया है। जाहिर है एक सैनिक पर साढ़े 11 करोड़ रुपए की बचत बहुत बड़ी है। ध्यान रहे भारत की तीनों सेनाओं को मिला कर 13 लाख सैनिक हैं। सो, भले सरकार और रक्षा मंत्री कुछ भी कहें लेकिन अग्निपथ योजना लागू होने का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि स्थापना पर खर्च होने वाली रकम में बड़ी कमी आएगी। इसका इस्तेमाल सेना के लिए आधुनिक तकनीक, हथियार, युद्धपोत, लड़ाकू विमान आदि खरीदने में होगा।
अग्निपथ योजना के तहत बहाली के लिए न्यूनतम उम्र सीमा साढ़े 17 साल तय की गई है। इसके बाद सैनिक का कार्यकाल चार साल का होगा, जिसमें छह महीने की प्रशिक्षण अवधि भी शामिल है। इस चार साल की अवधि में सैनिकों को 12 लाख रुपए के करीब वेतन के मद में मिलेंगे। इसमें से 30 फीसदी हिस्सा सेवा निधि में डाला जाएगा और उतने ही रुपए सरकार भी उस निधि में डालेगी। इससे चार साल बाद रिटायर होने पर हर जवान को करीब 12 लाख रुपए मिलेंगे। सोचें, जिस उम्र में आजकल युवाओं की पढ़ाई पूरी होती है और वे नौकरी की तलाश में निकलते हैं, उस उम्र में अगर वे सेना में चार साल प्रशिक्षण और सैन्य ड्यूटी निभा कर रिटायर हो रहे हैं और उनके हाथ में अच्छी खासी रकम होती है तो वह उनके लिए कितनी उपयोगी हो सकती है! उनके सामने पूरा जीवन होगा, जिसे वे अपनी पसंद से दिशा दे सकते हैं। चार साल की नौकरी के दौरान सरकार उनका 48 लाख रुपए का जीवन बीमा भी कराएगी और सेवा के दौरान शहीद होने पर 44 लाख रुपए की अनुग्रह राशि अलग से मिलेगी। सौ फीसदी विकलांगता के लिए भी 44 लाख रुपए की अनुग्रह राशि तय की गई है।
दूसरी ओर इस योजना से सेना में सैनिकों की औसत आयु मौजूदा 32 साल से घट कर अगले छह-सात साल में 26 साल तक आ जाएगी। यानी भारतीय सेना का स्वरूप पूरी तरह से बदल जाएगा। वह युवाओं की फौज होगी, जिसको आधुनिक प्रशिक्षण मिला होगा। वे आधुनिक तकनीक और हथियारों से लैस होंगे। ध्यान रहे दुनिया भर के देशों में इन दिनों सैन्य सुधार चल रहे हैं। सैन्य सुधार में मुख्य रूप से इस बात पर जोर है कि सैनिकों की संख्या कम की जाए और उसे आधुनिक तकनीक व हथियारों से लैस किया जाए। सबको पता है कि भविष्य की लड़ाई आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से लड़ी जाएगी, साइबर स्पेस में लड़ी जाएगी, रोबोटिक सैनिकों और स्वचालित हथियारों से लड़ी जाएगी। निगरानी और पेट्रोलिंग का काम स्पेस बेस्ड इंटेलीजेंस सर्विलांस सिस्टम से किया जाएगा। इस हकीकत को समझते हुए चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी यानी चीनी सेना ने सैनिकों की संख्या 45 लाख से घटा कर 20 लाख कर दी है और दूसरी ओर आधुनिक उपकरणों पर खर्च बढ़ा दिया है। दुनिया भर की बड़ी सैन्य ताकतें अपने यहां इस तरह के बदलाव कर रही हैं।
इस योजना के तहत हर बैच के 25 फीसदी सैनिकों को सेना में स्थायी जगह मिलेगी। इसका मतलब है कि चार साल के प्रशिक्षण और सैन्य सेवा में जो सबसे अच्छे होंगे उन्हें सेना में ही रखा जाएगा। इससे अंतत: सेना की ताकत बढ़ेगी। इसलिए यह आलोचना बहुत दमदार नहीं है कि चार-चार साल की सेवा के लिए बहाली से सेना कमजोर होगी। अब रही बात इस योजना पर उठाए जा रहे सवालों की तो दो-तीन सवाल मुख्य हैं। जैसे पहला सवाल है कि चार साल की सेवा के बाद 22-23 साल के जो युवा बेरोजगार होंगे वे क्या करेंगे? वे कुछ भी कर सकते हैं। बेरोजगार होने से पहले उनके पास चार साल का अनुभव होगा, सेना का प्रशिक्षण होगा और एक निश्चित रकम भी हाथ में होगी। वे स्वरोजगार कर सकते हैं या आगे की पढ़ाई कर सकते हैं या दूसरी नौकरी के लिए आवेदन कर सकते हैं। ध्यान रहे इन दिनों सुरक्षा का काम धीरे धीरे निजी हाथों में जा रहा है। वहां उनके लिए बेहतर अवसर होंगे। बिना सोचे-विचारे यह आलोचना की जा रही है कि सैन्य प्रशिक्षण के बाद क्या रिटायर युवा निजी मिलिशिया में जाएंगे। यह बेसिर-पैर की बात है। सेना का प्रशिक्षण और अनुशासन उन्हें बेहतर नागरिक बना सकता है।
इस योजना में 'ऑल इंडिया ऑल क्लासÓ की नियुक्ति का प्रावधान किया गया है। कुछ सैन्य अधिकारियों ने इसकी आलोचना की है। लेकिन वह भी बहुत मजबूत आलोचना नहीं है। भारत में रेजिमेंट आदि का गठन अंग्रेजों ने अपनी सुविधा के लिहाज से किया था, जिसे जारी रखा गया। इसका यह मतलब नहीं है कि कोई नई व्यवस्था कारगर नहीं होगी। ध्यान रहे राष्ट्रीय राइफल्स में पहले से 'ऑल इंडिया ऑल क्लासÓ का नियम लागू है और वहां यह व्यवस्था बहुत सही तरीके से काम कर रही है। इस योजना का विरोध करने वाले कुछ लोग सेवा अवधि को चार से बढ़ा कर सात साल करने की जरूरत बता रहे हैं। इसका मतलब है कि उन्हें बुनियादी सिद्धांत से दिक्कत नहीं है, सिर्फ सेवा अवधि से दिक्कत है। इसके बारे में आगे चल कर फैसला हो सकता है। अगर सरकार को लगता है कि चार साल की अवधि कम है तो वह उसे बढ़ा सकती है। इसमें ज्यादा दिक्कत नहीं होगी। ध्यान रहे अमेरिका सहित दुनिया भर के देशों में इस तरह की योजना लागू है। सैनिक थोड़े समय के प्रशिक्षण के बाद सेना में काम करते हैं और रिटायर होकर दूसरी नौकरी करते हैं।
- अजीत द्विवेदी
 

कल मनाया जाएगा विश्व प्रेस आजादी दिवस, जानिए क्या है खास

कल मनाया जाएगा विश्व प्रेस आजादी दिवस, जानिए क्या है खास

भारत प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर अकसर हमने चर्चा को होते देखा है. फिलहाल दुनियाभर में हर साल तीन मई को विश्व प्रेस आजादी दिवस  मनाया जाता है. भारत के साथ ही दुनियाभर में मीडिया की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है. लोकतंत्र को और भी ज्यादा मजबूत करने के लिए ही हर साल वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे सेलिब्रेट किया जाता है. आइए जानते हैं यह पहली बार कब मनाया और क्यों मनाया गया.
पहली बार इस दिन मनाया गया
प्रेस की आजादी के लिए पहली बार साल 1991 में अफ्रीका के पत्रकारों ने मुहिम छेड़ी थी. इन पत्रकारों ने तीन मई को प्रेस की आजादी के सिद्धांतों को लेकर बयान जारी किया था जिसे डिक्लेरेशन ऑफ विंडहोक के नाम से भी जानते हैं. इसके ठीक दो साल बाद यानी साल 1993 में संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने पहली बार विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाने का फैसला किया था. उस दिन से लेकर आज तक हर साल तीन मई को विश्व प्रेस आजादी दिवस मनाया जाता है.
क्यों मनाया जाता है?
दुनियाभर से आए दिन पत्रकारों पर हुए उत्पीड़न की खबरें आती रहती हैं. पत्रकारिता एक जोखिमभरा काम भी है. पत्रकारिता के दौरान पत्रकारों पर कई बार हमले भी कर दिए जाते हैं. फिर चाहे सऊदी अरब के जमाल खगोशी हों या फिर भारत की गौरी लंकेश. समय-समय पर पत्रकारों पर हमले या फिर उनकी हत्या की खबर सामने आ ही जाती है. ऐसे में पत्रकारों पर हो रहे उत्पीड़न और उनकी आवाज को अलग-अलग ताकतों द्वारा दबाया नहीं जाए इसीलिए भी विश्व प्रेस आजादी दिवस मनाया जाता है.
ऐसे मनाया जाता है ये खास दिन
सन 1997 से हर साल तीन मई यानी विश्व प्रेस आजादी दिवस पर यूनेस्को गिलेरमो कानो वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम प्राइज देता है. ये उस संस्थान या फिर व्यक्ति को दिया जाता है, जिसने प्रेस की आजादी के लिए कुछ बड़ा काम किया होता है. साथ ही इस दिन स्कूल-कॉलेज में इस पर चर्चा और वाद-विवाद किया जाता है. इसके अलावा इस खास दिन के बारे में लोगों को जागरुक करने के लिए सेमीनार आयोजित किए जाते हैं.
 

"भाजपा मतलब भगवा नहीं है", अपने नेताओं के सेल्फ गोल से परेशान है भाजपा

"भाजपा मतलब भगवा नहीं है", अपने नेताओं के सेल्फ गोल से परेशान है भाजपा

इन दिनों देश में बुलडोजर की चर्चा खूब हो रही है। टीवी पर,सड़क पर,चौक चौराहे, पान की दुकान, चाय की गुमटियों में लोग बहस करते पाए जा रहे हैं कि गुनाहगारों के घरों पर बुलडोजर का चलना सही है या नहीं। हालांकि ऐसी बहस बेनतीजा ही खत्म हो रही है।
वही बुलडोजर के बहाने केंद्र व राज्य की भाजपा सरकारों को पूर्णता मुस्लिम विरोधी साबित करने का कोई भी मौका उनके विरोधी नहीं छोड़ रहे । जबकि घटनाक्रमों को बिना पूर्वाग्रह के नज़र डालें तो कार्रवाई बिना धर्म देखें सिर्फ अपराधियों पर हुई है। लेकिन अतिउत्साही भाजपाई सीना ठोक कर कहते दिख रहे है कि मुसलमानों पर हमारी सरकार का बुलडोजर चला है। पर उन्हें कौन कहे कि ऐसा कहकर वे अपनी ही पार्टी की राह में कांटे बिछा रहे है।

बुलडोजर के विशेष उपयोग की शुरुआत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने की। उन्हें समझ आया कि अपराधियों, माफियाओं और दंगाईयों को जेल में बिठाकर खाना खिलाने से वे सुधरने वाले नहीं हैं।इसलिए उन्होंने ऐसे लोगों की आर्थिक रीढ़ तोड़ने का तरीका आजमाया और बुलडोजर लेकर निकल पड़े। बाबा ने जाति और धर्म देखे बगैर देश व समाज के लिए खतरा बनने वाले लोगो की अवैध संपत्तियों को अपने बुलडोजर के नीचे रौंदा। बाबा के कहर से ना माफिया मुख्तार अंसारी बच पाए और ना ही खूंखार अपराधी विकास दुबे। आत्मसमर्पण के बाद विकास दुबे की मौत भी गाड़ी पलटने से हुई थी। लोग इसे साधारण घटना नही अपितु समाज देश के लिए खतरा बन चुके अपराधी को बाबा की सजा के रूप में ही देखते है।

योगी आदित्यनाथ ने सीएए- एनआरसी आंदोलन के दौरान भी राज्य संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले पत्थरबाजों दंगाइयों पर भी इसी तरह की कड़ी कार्रवाई की थी। बाबा योगी आदित्यनाथ की देखा देखी मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार भी इसी तरह की कार्रवाई करते हुए अपराधियों के ठिकानों पर बुलडोजर चला रही है।

अब बात करते हैं नए घटनाक्रमों की। रामनवमी के अवसर पर निकली विभिन्न शोभायात्रा में कर्नाटक, मध्य प्रदेश के खरगोन और दिल्ली के जांहगीररपुरी में मुसलमानों ने पथराव किया। इस वजह से वहां दंगों सा माहौल बना। जिसके बाद हरकत में आए प्रशासन ने योगी फार्मूले के तहत अपराधियों की धरपकड़ की और दोषियों के अवैध ठिकानों पर बुलडोजर चलाया।
परंतु जब दिल्ली एमसीडी ने जांहगीरपुरी बुलडोजर की कार्रवाई शुरू हुई तो कथित सेकुलर गिरोह के कांग्रेस नेता व सुप्रीम कोर्ट के वकील कपिल सिब्बल ने अदालत का दरवाजा खटखटाया। जस्टिस एल नागेश्वर राव और पीआर गंवई के समक्ष इस तरह कार्रवाई को मुस्लिम विरोधी बताते हुए देश भर में रोक लगाने की मांग की।

इस मुद्दे पर दिल्ली एमसीडी की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि सरकार मुस्लिमों के ऊपर ही कार्रवाई कर रही है यह कहना गलत है। उन्होंने खरगोन हिंसा का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां 26 मुस्लिमों और 88 हिंदुओं के अवैध मकानों पर सरकारी बुलडोजर चढ़े है। दिल्ली में भी कार्रवाई अतिक्रमण को लेकर है न किसी धर्म निशाने पर है। हालांकि अदालत ने देश भर में चल रही कार्रवाईयों पर सुनवाई न करते हुए सिंर्फ जहांगीरपुरी मैं हो रही कार्रवाई को 15 दिनों के लिए टालने के आदेश दिए।

बुलडोजर की कार्रवाई कानून के दायरे में ही है। परंतु इन मामलों में भाजपा सरकार की मंशा पर जो सवाल खड़े किए जा रहे हैं उसका सीधा जवाब भाजपा के नेता ही नहीं दे रहे हैं।उल्टे कुछ तो सीधे हा मुसलमानों पर करवाई हम कर रहे है ऐसा कहते दिखे।

शायद इसीलिए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को आकर कहना पड़ा कि भगवा यानी भाजपा नहीं है। भाजपा का मतलब सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास है। नड्डा जी के इस बयान का साफ मतलब है कि संगठन के नेता वही कहे जो संगठन की लाइन है। लाइन से बाहर जाकर नमक मिर्च लगाकर बातों को प्रस्तुत करना अनुचित है। इससे पार्टी को नुकसान होगा और जनता में गलतफहमियां बढ़ेंगी।
(देवेंद्र गुप्ता - 9039010330)

 

आलेख: विपक्ष से अलग केजरीवाल की राह

आलेख: विपक्ष से अलग केजरीवाल की राह

आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल विपक्ष के नेताओं से अलग रास्ते पर चलते हैं। भाजपा के खिलाफ उनको भी लडऩा है लेकिन वे भाजपा की रणनीति और भाजपा के सिद्धांतों से ही उससे लड़ते हैं। इस मामले में उनकी राह बाकी विपक्षी नेताओं से अलग है। उन्होंने भड़काऊ भाषण और विभाजनकारी राजनीति को लेकर एक भी बयान नहीं दिया है। अभी देश में रामनवमी के मौके पर कई जगह सांप्रदायिक दंगे हुए। मस्जिदों के ऊपर भगवा फहराए गए। मस्जिदों में अजान के समय उसके बाहर हनुमान चालीसा के पाठ की योजनाएं बन रही हैं और भाजपा के एक नेता लाउडस्पीकर मुफ्त बांट रहे हैं। हिजाब और हलाल मीट का विवाद अलग चल रहा है।
सांप्रदायिक और भड़काऊ भाषणों और विभाजनकारी राजनीति को लेकर विपक्ष की सभी पार्टियों ने बयान दिया है। शरद पवार ने सीधे भाजपा को इसके लिए जिम्मेदार ठहरा कर उस पर निशाना साधा। सोनिया गांधी ने अंग्रेजी अखबार 'इंडियन एक्सप्रेसÓ में लेख लिख कर इस राजनीति की निंदा की है। राहुल गांधी और ममता बनर्जी से लेकर एमके स्टालिन और के चंद्रशेखर राव तक सबने इस पर सवाल उठाया है और चिंता जताई है। लेकिन अरविंद केजरीवाल की ओर से इस पर कोई बयान नहीं दिया गया है। वे हर बार हिंदुत्व के मसले पर इसी तरह से चुप्पी साध लेते हैं और भाजपा के एजेंडे का समर्थन करते हैं। उनको लगता है कि इससे बहुसंख्यक हिंदू समाज उनको भी भाजपा की तरह अपनाएगा। वैसे भी अभी जिन दो राज्यों- हिमाचल प्रदेश और गुजरात में चुनाव होने हैं वहां उनको हिंदू वोटों की ही राजनीति करनी है। इसलिए भी वे चुप्पी साधे हुए हैं। 

आलेख: विधायको को सिर्फ एक पेंशन का ऐतिहासिक कदम!

आलेख: विधायको को सिर्फ एक पेंशन का ऐतिहासिक कदम!

देश की जनता लंबे समय से यह मांग करती रही है कि विधायको व सांसदों की पेंशन या तो पूरी तरह से बंद हो या फिर उन्हें सिर्फ एक ही पेंशन मिले ,लेकिन आमजन की इस मांग को अनसुना कर जितनी बार भी सांसद या विधायक रहे उतनी ही पेंशन लेकर देश पर आर्थिक बोझ जारी है।इस बोझ को पहली बार पंजाब में हाल ही में बनी आम आदमी पार्टी की सरकार ने समझा है।इस सरकार ने हर कार्यकाल के लिए पूर्व विधायकों की पेंशन की प्रथा खत्म करते हुए, अब सिर्फ एक कार्यकाल के लिए पेंशन जारी रखने का ऐलान किया है। पूर्व विधायकों को पंजाब में 75 हजार रुपये पेंशन मिलेगी।पंजाब सरकार ने विधायकों की पेंशन को लेकर यह बड़ा फैसला लिया है। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने घोषणा की है कि पूर्व विधायकों को केवल एक कार्यकाल के लिए पेंशन मिलेगी। पंजाब ही नही देशभर में अभी तक प्रत्येक कार्यकाल के लिए पेंशन मिलती रही है। पंजाब सरकार के अधिकारियों को 'एक विधायक-एक पेंशनÓ योजना को लागू करने का निर्देश दिया गया है।अभी तक कई बार चुने गए विधायकों को पेंशन के रूप में कई बार की ही पेंशन के रूप में लाखों रुपये मिल रहे थे। उनमें से कुछ जो सांसद भी रहे हैं, उन्हें केंद्र और राज्य दोनों तरह की पेंशन मिल रही है। इस फैसले से राज्य सरकार के करीब 80 करोड़ रुपये बचेंगे।भगवंत मान ने कहा कि, लोगों की सेवा के वादे के साथ वोट मांगने वाले विधायकों को 3.5 लाख रुपये, 4.5 लाख रुपये और यहां तक कि 5.25 लाख रुपये मासिक पेंशन मिल रही थी। नए फैसले के साथ सरकार की योजना पांच साल में 80 करोड़ रुपये बचाने की है।बचाए गए धन का उपयोग कल्याणकारी योजनाओं के लिए किया जाएगा।उदाहरण के तौर पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राजिंदर कौर भट्टल, लाल सिंह और पूर्व अकाली दल नेता सरवन सिंह फिल्लौर को 3.25 लाख रुपये जबकि रवि इंदर सिंह और बलविंदर सिंह भिंडर को हर महीने 2.75 लाख रुपये पेंशन के रूप में मिलते हैं।पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने सरकार को पत्र लिखा था कि वह सरकार से किसी भी तरह की पेंशन का दावा नहीं करेंगे और न ही उन्हें कोई पेंशन दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा था कि पैसे का इस्तेमाल लोक कल्याण की योजनाओं के लिए किया जाना चाहिए।हरियाणा सरकार ने कुछ साल पहले पूर्व विधायकों के लिए एक साथ कई पेंशन खत्म कर दी थी। पंजाब में अमरिंदर सिंह की सरकार ने उस वक्त पड़ोसी राज्य से संकेत लेते हुए पेंशन नीति को बदलने पर चर्चा की थी। लेकिन कभी कोई निर्णय उनके द्वारा नहीं लिया गया।
पंजाब सरकार के नियमों के अनुसार विधायक को पहले कार्यकाल के लिए 75 हजार रुपये और उसके बाद हर अन्य कार्यकाल के लिए 50 हजार रुपये पेंशन दिए जाने का प्रावधान है।पंजाब में इस समय र 275 पूर्व विधायक अपने अलग-अलग कार्यकाल के लिए पेंशन ले रहे हैं। इसमें राज्य के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों समेत एक दर्जन पूर्व विधायक शामिल हैं जिन्हें कार्यकाल के हिसाब से 5-6 पेंशन तक एक साथ मिल रहीं हैं।पंजाब में मुख्यमंत्री का मासिक वेतन (भत्तों समेत) डेढ़ लाख रुपये बनता है। पूर्व विधायकों में पांच बार मु्ख्यमंत्री रहे प्रकाश सिंह बादल इस समय 11 पेंशन के हकदार हैं और उन्हें पेंशन की कुल राशि 5,76,150 रुपये मिलती थी। हालांकि उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष को पत्र लिखकर पेंशन न लेने की घोषणा की है। पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री राजिंदर कौर भ_ल, पूर्व मंत्री मनप्रीत सिंह बादल, लाल सिंह और परमिंदर सिंह ढींढसा समेत पंजाब के कई पूर्व विधायक ऐसे हैं जिन्हें उनके कार्यकाल के हिसाब से 5-6 पेंशन मिलती हैं। इसकी कुल रकम 2,75,550 रुपये से 3,25,650 रुपये बनती है।पंजाब राज्य विधान मंडल सदस्य (पेंशन व मेडिकल सुविधा) एक्ट 1977 और पंजाब राज्य विधान मंडल सदस्य (पेंशन व मेडिकल सुविधा) एक्ट 1984 में संशोधन के साथ पंजाब एक्ट नंबर 30 ऑफ 2016 के तहत नोटिफिकेशन जारी करके ऐसा प्रावधान कर दिया गया कि पूर्व विधायक को उनके पहले कार्यकाल के लिए पेंशन के रूप में 15000 रुपये और अगली प्रत्येक टर्म के लिए 1०० रुपये से आगाज होगा। इस रकम में पहले 50 फीसदी डीए मर्ज होगा और उसके बाद बनने वाली कुल रकम में फिर से 234 फीसदी महंगाई भत्ता जुड़ जाएगा। इस तरह पूर्व विधायकों को जबरदस्त लाभ हुआ, क्योंकि 15000 + 7500 (50 फीसदी डीए)= 22500 रुपये रकम बनी। 22500+52650 (234 फीसदी डीए) रुपये यानी कुल 75150 रुपये पेंशन बनती हैं। सूबे के 275 पूर्व विधायकों को वर्ष 2017 से हर साल 37 करोड़ और पांच वर्ष में 186 करोड़ रुपये पेंशन के तौर पर दिए जा रहे थे लेकिन जिस एक्ट के आधार पर यह पेंशन तय की गई, ऐसा कोई प्रावधान किसी भी एक्ट में था ही नहीं। पंजाब की अकाली-भाजपा सरकार ने अक्तूबर 2016 में पूर्व विधायकों की पेंशन को पहले कार्यकाल में 15000 रुपये और बाद के कार्यकाल के लिए 10-10 हजार रुपये का प्रावधान करते हुए साफ कर दिया था कि इस राशि में महंगाई भत्ता अन्य सरकारी कर्मचारियों को मिलने वाले महंगाई भत्ते के अनुसार ही जुड़ेगा। अगर इस तरीके से पेंशन तैयार होती तो 15000 रुपये और 28 फीसदी डीए को मिलाकर 19200 रुपये ही पूर्व विधायको को मिल पाते। लेकिन शासन स्तर की गई इस त्रुटि का नतीजा यह हुआ कि पूर्व विधायकों को 19200 रुपये की जगह 75150 रुपये पेंशन मिलती रही। इस तरह पांच साल के दौरान सरकारी खजाने से लगभग 192 करोड़ रुपये अधिक निकाल लिए गए। जिससे पंजाब सरकार पर आर्थिक बोझ बढ़ता चला गया।
- डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट
नोट: उपरोक्त लेख में वर्णित बाते लेखक की व्यक्तिगत विचार है ।
 

गोरखनाथ मंदिर के संत से सत्ताधीश तक, कैसे यूपी की राजनीति के शिखर तक पहुंचे योगी आदित्यनाथ

गोरखनाथ मंदिर के संत से सत्ताधीश तक, कैसे यूपी की राजनीति के शिखर तक पहुंचे योगी आदित्यनाथ

साल 2017 के विधानसभा चुनाव के नतीजे जब आए तो बीजेपी ने 300 प्लस सीटों के साथ जीत हासिल की. हालांकि शुरुआत में मनोज सिन्हा का सामने सीएम की रेस में आया था लेकिन बीजेपी ने अप्रत्याशित फैसला लेते हुए योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री पद सौंप दिया. उस वक्त योगी आदित्यनाथ की छवि हिंदुत्व के 'पोस्टर बॉय', भगवा वस्त्र पहनने वाले और तेज-तर्रार नेता के तौर पर थी. उनका ये स्टाइल आज भी कायम है.
योगी आदित्यनाथ के आलोचक मानते हैं कि देश की सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य को संभालने के दौरान उनकी फायर ब्रांड छवि में थोड़ा संतुलन भले आया हो लेकिन उनमें बहुत ज्यादा बदलाव आया हो, ऐसा नहीं है.
पौड़ी में जन्म, सात भाई-बहन और फिर बने संन्यासी
तारीख थी 5 जून 1972 और जगह थी उत्तराखंड का पौड़ी गढ़वाल जिले के यमकेश्वर तहसील का पंचुर गांव. आनंद सिंह बिष्ट के घर एक लड़के का जन्म हुआ. नाम रखा गया अजय सिंह बिष्ट. माता-पिता के सात बच्चों में सबसे तेज-तर्रार. जानकारों का कहना है कि ग्रेजुएशन की पढ़ाई करते हुए योगी आदित्यनाथ अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद यानी एबीवीपी से जुड़ गए और 1992 में उन्होंथने हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल यूनिवर्सिटी से बीएससी की.
राम मंदिर आंदोलन के दौर में उनका रुझान आंदोलन की ओर हुआ और इसी बीच वह गुरु गोरखनाथ पर रिसर्च करने के लिए साल 1993 में गोरखपुर आए. गोरखपुर में वह महंत और राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण आंदोलन के अगुवा महंत अवैद्यनाथ के संपर्क में आए और 1994 में योगी पूर्ण रूप से संन्यासी हो गए.
महंत अवैद्यनाथ के बने उत्तराधिकारी
योगी को महंत अवैद्यनाथ ने अपना उत्तराधिकारी घोषित किया और दीक्षा लेने के बाद अजय सिंह बिष्ट योगी आदित्यनाथ हो गए. 12 सितंबर 2014 को महंत अवैद्यनाथ के ब्रह्मलीन होने के बाद योगी गोरक्षपीठ के महंत घोषित किए गए. उस वक्त वह बीजेपी से टकराव के भी गुरेज नहीं रखते थे और उन्होंने हिंदू युवा वाहिनी नामक स्वयंसेवकों के अपने एक संगठन की स्थापना भी की थी.
राजनीति में योगी गोरक्षपीठ की तीसरी पीढ़ी
योगी का राजनीतिक सफर उपलब्धियों से भरा है. राजनीति में योगी गोरक्षपीठ की तीसरी पीढ़ी हैं. ब्रह्मलीन महंत दिग्विजय नाथ भी गोरखपुर से विधायक और सांसद रहे. इसके बाद महंत अवैद्यनाथ ने भी विधानसभा और लोकसभा दोनों में प्रतिनिधित्व किया.
योगी आदित्यनाथ गोरक्षपीठ की विरासत को आगे बढ़ाते हुए 1998 में महज 26 वर्ष की उम्र में पहली बार गोरखपुर से बीजेपी के सांसद बने और लगातार पांच बार उनकी जीत का सिलसिला बना रहा. योगी आदित्यनाथ ने इस बार भी करीब ढाई दशक के अपने राजनीतिक जीवन में पहली बार गोरखपुर से ही विधानसभा का चुनाव लड़ा.
जब चुने गए थे विधायक दल के नेता
मार्च 2017 में लखनऊ में बीजेपी विधायक दल की बैठक में योगी को विधायक दल का नेता चुना गया था. इसके बाद योगी ने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और विधान परिषद के सदस्य बने और 19 मार्च 2017 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.
ये फैसले रहे चर्चित
- अपने कार्यकाल की शुरुआत में उन्होंने अवैध बूचड़खानों पर बैन लगा दिया.
- पुलिस ने गोहत्या पर नकेल कस दी.
- उनकी सरकार बाद में जबरन या धोखे से धर्मांतरण के खिलाफ पहले अध्यादेश और फिर विधेयक लेकर आई.
37 साल बाद बना कीर्तिमान
यूपी में करीब 37 वर्ष बाद बीजेपी लगातार दोबारा पूर्ण बहुमत की सरकार बनाकर कीर्तिमान बनाती नजर आ रही है. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इससे योगी आदित्यनाथ का कद और बढ़ा है. इसके पहले साल 1985 में लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत से कांग्रेस पार्टी ने सरकार बनाई थी.
माना जाता है कि योगी ने मौजूदा विधानसभा चुनाव में 80 बनाम 20 प्रतिशत का नारा देकर वोटों के ध्रुवीकरण की पहल की. विश्लेषकों ने 20 प्रतिशत को मुस्लिम आबादी और 80 प्रतिशत को हिंदू आबादी के रूप में देखा. इसके योगी ने माफिया और अपराधियों के खिलाफ की गई कार्रवाई को भी पूरे चुनाव में मुद्दा बनाया.
बीजेपी के शीर्ष नेताओं के चुनाव प्रचार में 'योगी का बुलडोजर' छाया रहा. सपा प्रमुख अखिलेश यादव भी अक्सर अपनी सभाओं में बुलडोजर और बुल (सांड) का नाम लेकर योगी पर तंज कसते थे. यादव ने चुनाव में छुट्टा पशुओं पर नियंत्रण न लगा पाने को मुद्दा बनाया था.

 

चुनाव खत्म होते ही आ जायेंगे एग्जिटपोल के नतीजे! आखिर क्या है एग्जिट पोल ...

चुनाव खत्म होते ही आ जायेंगे एग्जिटपोल के नतीजे! आखिर क्या है एग्जिट पोल ...

उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में किसकी सरकार बनेगी? इस सवाल का सही जवाब तो 10 मार्च 2022 को मिलेगा। भारत का निर्वाचन आयोग (ECI) 10 मार्च को उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर विधानसभा चुनाव के परिणाम घोषित करेगा। यूपी में 7 मार्च को आखिरी चरण का मतदान है। मतदान खत्म होते ही एग्जिट पोल के आंकड़े आ जाएंगे।
सबसे पहले एग्जिट पोल को समझ लीजिए
मतदान कर पोलिंग बूथ से निकल रहे वोटर्स से पूछकर कि उन्होंने किसको वोट दिया है, एग्जिट पोल तैयार किए जाते हैं। चूंकि वोटर्स से सवाल पोलिंग स्टे‍शन से बाहर निकलते समय होता है इसलिए ऐसे सर्वे Exit Poll कहलाते हैं।
एग्जिट पोल से क्या पता चलता है?
एग्जिट पोल के पीछे यह धारणा होती है कि फौरन वोट डालकर निकले वोटर के सच बताने की संभावना ज्यादा है। सभी जवाबों को एक जगह इकट्ठा करके चुनाव के नतीजों का अनुमान लगाया जाता है।
एग्जिट पोल/ओपिनियन पोल कौन कराता है?
वोटर्स को ध्यान रखने वाली सबसे जरूरी बात यह है कि कोई सरकारी एजेंसी एग्जिट पोल/ओपिनियन पोल नहीं कराती। आमतौर पर न्यूज मीडिया संस्थान और निजी सर्वे फर्म मिलकर एग्जिट पोल/ओपिनियन पोल कराते हैं।
क्या एग्जिट पोल के आंकड़े ही नतीजों में बदलते हैं?
बिल्कुल नहीं। एग्जिट पोल नतीजों का अनुमान लगाते हैं। चुनाव के नतीजे आधिकारिक रूप से भारत का निर्वाचन आयोग जारी करता है, वहीं इकलौते और अंतिम परिणाम होते हैं।
 

शिव साधना का महान पर्व महाशिवरात्रि!

शिव साधना का महान पर्व महाशिवरात्रि!

शिवरात्रि का पावन पर्व शिव साधना से परमात्मा शिव को खुश करके उनकी कृपा प्राप्त कर अपनी मनोकामना की पूर्ति करना है। यह वह दिन है जब सभी साधक भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए पूजा अर्चना करते हैं। इस साल महाशिवरात्रि 1 मार्च को मनाई जा रही है। शिवरात्रि के दिन लोग मंदिर जाते हैं और वहाँ जाकर शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं। इसी के साथ सभी साधक अपने-अपने तरीकों से भगवान शिव को साधना का प्रयास करते हैं। शिव की पूजा के समय खास रंग के कपड़े पहनने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती है। इस शिवरात्रि कौन से रंग के कपड़े आपकी पूजा को सफल बना सकते हैं।
भगवान शिव की आराधना के समय हरे रंग के कपड़े धारण करना शुभ माना जाता है। इसी के साथ अगर आप हरे रंग के साथ सफ़ेद रंग के वस्त्र भी धारण करते हैं तो यह अधिक लाभदायक होगा। जी दरअसल ऐसी मान्यता है कि भोले बाबा को सफ़ेद और हरा रंग बहुत प्रिये होता है इसलिए शिवरात्रि के दिन शिव जी को चढ़ाये हुए फूल और बेल-धतूरा सफ़ेद और हरे रंग के ही होते हैं।
इसी के साथ शिवरात्रि के दिन हरे रंग को धारण करना बहुत शुभ मन जाता है। वहीं अगर आपके पास हरे या सफ़ेद रंग के वस्त्र नहीं हैं तो आप लाल, केसरिया, पीला, नारंगी तथा गुलाबी रंग के वस्त्र धारण कर के भोले बाबा की आराधना कर सकते हैं। ध्यान रहे भगवान शिव को काला रंग बिलकुल भी प्रिये नहीं होता। दरअसल काला रंग अंधकार और भसम का प्रतीक होता है इसलिए कभी भी शिवरात्रि के दिन काले रंग के वस्त्र न धारण करें। आपको बता दें कि काले वस्त्रों के साथ काला दुपट्टा, बिंदी, चूडिय़ां भी नहीं पहनना चाहिए। वहीं अगर आप भगवान शिव को अपनी श्रद्धा और आराधना से प्रसन्न करना चाहते हैं तो शिवरात्रि के दिन काले रंग का त्याग कर दें।
महाशिवरात्रि पर्व शिव और शक्ति के मिलन का पर्व माना जाता है। वैसे तो प्रत्येक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को ये पर्व मनाया जाता है। लेकिन फाल्गुन महीने में आने वाली मासिक शिवरात्रि सबसे खास होती है जिसे महा शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। शिव भक्तों के लिए ये दिन काफी खास होता है। इस साल ये पर्व 1 मार्च को मनाया जा रहा है।महाशिवरात्रि 1 मार्च को सुबह 3 बजकर 16 मिनट से शुरू होकर 2 मार्च को सुबह 10 तक रहेगी।
पहला प्रहर का मुहूर्त-:1 मार्च शाम 6 बजकर 21 मिनट से रात्रि 9 बजकर 27 मिनट तक है।
दूसरे प्रहर का मुहूर्त-: 1 मार्च रात्रि 9 बजकर 27 मिनट से 12 बजकर 33 मिनट तक है।
तीसरे प्रहर का मुहूर्त-: 1 मार्च रात्रि 12 बजकर 33 मिनट से सुबह 3 बजकर 39 मिनट तक है।
चौथे प्रहर का मुहूर्त-: 2 मार्च सुबह 3 बजकर 39 मिनट से 6 बजकर 45 मिनट तक है।
पारण समय-: 2 मार्च को सुबह 6 बजकर 45 मिनट के बाद है।सनातन धर्म के अनुसार शिवलिंग स्नान के लिये रात्रि के प्रथम प्रहर में दूध, दूसरे में दही, तीसरे में घृत और चौथे प्रहर में मधु, यानी शहद से स्नान कराने का विधान है. इतना ही नहीं चारों प्रहर में शिवलिंग स्नान के लिये मंत्र भी अलग हैं।
प्रथम प्रहर में- 'ह्रीं ईशानाय नम:Ó
दूसरे प्रहर में- 'ह्रीं अघोराय नम:Ó
तीसरे प्रहर में- 'ह्रीं वामदेवाय नम:Ó
चौथे प्रहर में- 'ह्रीं सद्योजाताय नम:Ó।। मंत्र का जाप करना चाहिए।एक साल में कुल 12 शिवरात्रि आती हैं, लेकिन फाल्गुन मास की महाशिवरात्रि का विशेष महत्व है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन भगवान शिव और शक्ति का मिलन हुआ था। वहीं ईशान संहिता के अनुसार फाल्गुन मास की चतुर्दशी तिथि को भोलेनाथ दिव्य ज्योर्तिलिंग के रूप में प्रकट हुए थे। शिवपुराण में उल्लेखित एक कथा के अनुसार इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था और भोलेनाथ ने वैराग्य जीवन त्याग कर गृहस्थ जीवन अपनाया था। इस दिन विधिवत आदिदेव महादेव की पूजा अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है व कष्टों का निवारण होता है।अमावस्या से एक दिन पूर्व, हर चंद्र माह के चौदहवें दिन को शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। एक कैलेंडर वर्ष में आने वाली सभी शिवरात्रियों के अलावा फरवरी-मार्च माह में महाशिवरात्रि मनाई जाती है। इन सभी में से महाशिवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व सबसे ज्यादा है। इस रात, ग्रह का उत्तरी गोलार्द्ध कुछ ऐसी स्थिति में होता है कि मनुष्य में ऊर्जा सहज ही ऊपर की ओर बढ़ती है। इस दिन प्रकृति मनुष्य को उसके आध्यात्मिक शिखर तक जाने में सहायता करती है। इस अवसर का लाभ उठाने के लिए ही, इस परंपरा में हमने इस पूरी रात चलने वाले उत्सव की स्थापना की। इस उत्सव का एक सबसे मुख्य पहलू ये पक्का करना है कि प्राकृतिक ऊर्जाओं के प्रवाह को अपनी दिशा मिल सके। इसलिए आप अपनी रीढ़ की हड्डी सीधी रखते हुए जागते रहते हैं।आध्यात्मिक पथ पर चलने वालों के लिए महाशिवरात्रि का पर्व बहुत महत्वपूर्ण है। पारिवारिक परिस्थितियों में जी रहे लोगों तथा महत्वाकांक्षियों के लिए भी यह उत्सव बहुत महत्व रखता है। जो लोग परिवार के बीच गृहस्थ हैं, वे महाशिवरात्रि को शिव के विवाह के उत्सव के रूप में मनाते हैं। सांसारिक महत्वाकांक्षाओं से घिरे लोगों को यह दिन इसलिए महत्वपूर्ण लगता है क्योंकि शिव ने अपने सभी शत्रुओं पर विजय पा ली थी।
साधुओं के लिए यह दिन इसलिए महत्व रखता है क्योंकि वे इस दिन कैलाश पर्वत के साथ एकाकार हो गए थे। वे एक पर्वत की तरह बिल्कुल स्थिर हो गए थे। यौगिक परंपरा में शिव को एक देव के रूप में नहीं पूजा जाता,, वे आदि गुरु माने जाते हैं जिन्होंने ज्ञान का शुभारंभ किया। ध्यान की अनेक सहस्राब्दियों के बाद, एक दिन वे पूरी तरह से स्थिर हो गए। वही दिन महाशिवरात्रि था। उनके भीतर की प्रत्येक हलचल शांत हो गई और यही वजह है कि साधु इस रात को स्थिरता से भरी रात के रूप में देखते हैं।
यौगिक परंपरा के अनुसार इस दिन और रात का महत्व इसलिए भी है क्योंकि इस दिन आध्यात्मिक जिज्ञासु के सामने असीम संभावनाएँ प्रस्तुत होती हैं। आधुनिक विज्ञान अनेक चरणों से गुजऱते हुए, उस बिंदु पर आ गया है, जहाँ वे ये प्रमाणित कर रहे हैं – कि आप जिसे जीवन के रूप में जानते हैं, जिसे आप पदार्थ और अस्तित्व के तौर पर जानते हैं, जिसे ब्रह्माण्ड और आकाशगंगाओं के रूप में जानते हैं, वह केवल एक ऊर्जा है जो अलग-अलग तरह से प्रकट हो रही है।
यह वैज्ञानिक तथ्य ही प्रत्येक योगी का भीतरी अनुभव होता है। योगी शब्द का अर्थ है, ऐसा व्यक्ति जिसने अस्तित्व की एकात्मकता का एहसास पा लिया हो। जब मैं 'योगÓ शब्द का प्रयोग करता हूँ तो मैं किसी एक अभ्यास या तंत्र की बात नहीं कर रहा। उस असीमित को जानने की हर प्रकार की तड़प, अस्तित्व के उस एकत्व को जानने की इच्छा – योग है। महाशिवरात्रि की वह रात, उस अनुभव को पाने का अवसर भेंट करती है।हम सत्यम,शिवम,सुंदरम को आत्मसात कर स्वयं को आत्म बोध में स्थापित कर परमात्मा से अपनी लौ लगाये।यह लौ हमारे अंदर के विकारों से हमे मुक्त कर हमारे कल्याण का माध्यम बनती है।युग परिवर्तन के लिए भी परमात्मा शिव हमे संगम युग मे ईश्वरीय ज्ञान प्राप्ति कराकर कलियुग से सतयुग में लाने के लिए यज्ञ रचते है।जिसमे स्त्री शक्ति का पोषण कर उन्हें युग परिवर्तन के निमित्त बनाया जाता है।वस्तुत:विश्व रचियता परमात्मा एक है जिसे कुछ लोग भगवान,कुछ लोग अल्लाह,कुछ लोग गोड ,कुछ लोग ओम, कुछ लोग ओमेन ,कुछ लोग सतनाम कहकर पुकारते है। यानि जो परम ऐश्वर्यवान हो,जिसे लोग भजते हो अर्थात जिसका स्मरण करते हो एक रचता के रूप में ,एक परमशक्ति के रूप में एक परमपिता के रूप में वही ईश्वर है और वही
शिव है। एक मात्र वह शिव जो ब्रहमा,विष्णु और शकंर के भी रचियता है। जीवन मरण से परे है। ज्योति बिन्दू स्वरूप है। वास्तव में शिव एक ऐसा शब्द है जिसके उच्चारण मात्र से परमात्मा की सुखद अनुभूति होने लगती है। शिव को कल्याणकारी तो सभी मानते है, साथ ही शिव ही सत्य है
शिव ही सुन्दर है यह भी सभी स्वीकारते है। परन्तु यदि मनुष्य को शिव का बोध हो जाए तो उसे जीवन मुक्ति का लक्ष्य प्राप्त हो सकता है।
गीता में कहा गया है कि जब जब भी धर्म के मार्ग से लोग विचलित हो जाते है,समाज में अनाचार,पापाचार
,अत्याचार,शोषण,क्रोध,वैमनस्य,आलस्य,लोभ,अहंकार,का प्रकोप बढ़ जाता है।माया मोह बढ जाता है तब परमात्मा को स्वयं आकर राह भटके लोगो को सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा का
कार्य करना पडता है। ऐसा हर पाचं हजार साल में पुनरावृत
होता है। पहले सतयुग,फिर द्वापर,फिर त्रेता और फिर कलियुग तक
की यात्रा इन पांच हजार वर्षो में होती है। हांलाकि
सतयुग में हर कोई पवित्र,सस्ंकारवान,चिन्तामुक्त और सुखमय
होता है।परन्तु जैसे जैसे सतयुग से द्वापर और द्वापर से त्रेता
तथा त्रेता से कलियुग तक का कालचक्र धूमता है। वैसे वैसे
व्यक्ति रूप में मौजूद आत्मायें भी शान्त,पवित्र और
सुखमय से अशान्त,दुषित और दुखमय हो जाती है। कलियुग
को तो कहा ही गया है दुखों का काल। लेकिन जब कलियुग
के अन्त और सतयुग के आगमन की धडी आती है तो उसके
मध्य के काल को सगंम युग कहा जाता है यही वह समय जब
परमात्मा स्वंय सतयुग की दुनिया बनाने के लिए आत्माओं
को पवित्र और पावन करने के लिए उन्हे स्वंय ज्ञान देते है
औरउन्हे सतयुग के काबिल बनाते है। समस्त देवी देवताओ में मात्र शिव ही ऐसे देव है
जो देव के देव यानि महादेव है जिन्हे त्रिकालदर्शी भी
कहा जाता है। परमात्मा शिव ही निराकारी और ज्योति स्वरूप
है जिसे ज्योति बिन्दू रूप में स्वीकारा गया है। परमात्मा
सर्व आत्माओं से न्यारा और प्यारा है जो देह से परे है
जिसका जन्म मरण नही होता और जो परमधाम का वासी है
और जो समस्त संसार का पोषक है। दुनियाभर में
ज्योतिर्लिगं के रूप में परमात्मा शिव की पूजा अर्चना और
साधना की जाती है। शिवलिंग को ही ज्योतिर्लिंग के रूप
में परमात्मा का स्मृति स्वरूप माना गया है।धार्मिक दृष्टि में विचार मथंन करे तो भगवान शिव ही एक मात्र ऐसे परमात्मा है जिनकी देवचिन्ह के रूप में शिवलिगं की स्थापना कर पूजा की जाती है। लिगं शब्द का साधारण अर्थ चिन्ह अथवा लक्षण है। चूंकि भगवान शिव ध्यानमूर्ति के रूप में विराजमान ज्यादा होते है इसलिए प्रतीक रूप में अर्थात ध्यानमूर्ति के रूप शिवलिगं की पूजा की जाती है। पुराणों में लयनाल्तिमुच्चते अर्थात लय या प्रलय से लिगं की उत्पत्ति होना बताया गया है। जिनके प्रणेता भगवान शिव है। यही कारण है कि भगवान शिव को प्राय शिवलिगं के रूप अन्य सभी देवी देवताओं को मूर्ति रूप पूजा की जाती है।
शिव स्तुति एक साधारण प्रक्रिया है। ओम नम: शिवाय का साधारण उच्चारण उसे आत्मसात कर लेने का नाम ही शिव अराधना है।
- डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट


 

विश्व रेडियो दिवस: रेडियो संवाद का सशक्त माध्यम : मुख्यमंत्री श्री बघेल

विश्व रेडियो दिवस: रेडियो संवाद का सशक्त माध्यम : मुख्यमंत्री श्री बघेल

मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस के अवसर पर जारी अपने संदेश में कहा है कि रेडियो सदियों पुराना विश्वसनीय संचार माध्यम है। यह दूर-दराज स्थानों तक सूचना प्रवाह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उन्होंने कहा है कि लोकतंत्र में संवाद होना एवं संवाद के लिए सक्षम माध्यमों का होना अति महत्वपूर्ण है। ‘‘रेडियो‘‘ संवाद का एक सशक्त माध्यम बनकर उभरा है। आज विश्व रेडियो दिवस के अवसर पर हम रेडियो के योगदान को सलाम करते है। श्री बघेल ने कहा है कि आमजन से रू-ब-रू होने के लिए चलाए जा रहे ‘‘लोकवाणी‘‘ जैसे कार्यक्रम रेडियो के कारण ही संभव हो सके है। 

बसंत पंचमी पर विशेष: प्रकृति परिवर्तन का पर्व बसंत पंचमी!

बसंत पंचमी पर विशेष: प्रकृति परिवर्तन का पर्व बसंत पंचमी!

बसंत पंचमी का पावन पर्व माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है।इस दिन मां सरस्वती की पूजा अर्चना करने का विधान है। बसंत पंचमी 5 फरवरी को सिद्ध साध्य और रवि योग के त्रिवेणी योग में मनायी जाएगी। अबूझ मुहूर्त के कारण सभी इस घड़ी को विवाह योग के रूप में उपयोग कर सकते है। मंदिर में मां सरस्वती का विशेष श्रृंगार और पूजा की जाएगी। इस बार बसंत पंचमी 5 फरवरी, के दिन मनाई जा रही है। धार्मिक मान्यता है कि मां सरस्वती की पूजा करने से व्यक्ति को करियर और परीक्षा में सफलता मिलती है। खासतौर पर नौकरी-पेशा, स्कूल-कॉलेज, संस्थान और कला के क्षेत्र से जुड़े लोग इस दिन मां सरस्वती की पूजा करते हैं। आज ही के दिन पृथ्वी की अग्नि, सृजन की तरफ अपनी दिशा करती है। जिसके कारण पृथ्वी पर समस्त पेड़ पौधे फूल मनुष्य आदि गत शरद ऋतु में मंद पड़े अपने आंतरिक अग्नि को प्रज्जवलित कर नये सृजन का मार्ग प्रशस्त करते हैं। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि स्वयं के स्वभाव प्रकृति एवं उद्देश्य के अनुरूप प्रत्येक चराचर अपने सृजन क्षमता का पूर्ण उपयोग करते हुए, जहां संपूर्ण पृथ्वी को हरी चादर में लपेटने का प्रयास करता है, वहीं पौधे रंग—बिरंगे सृजन के मार्ग को अपनाकर संपूर्णता में प्रकृति को वास्तविक स्वरूप प्रदान करते हैं। इस रमणीय, कमनीय एवं रति आदर्श ऋतु में पूर्ण वर्ष शांत रहने वाली कोयल भी अपने मधुर कंठ से प्रकृति का गुणगान करने लगती है। एवं महान संगीतज्ञ बसंत रस के स्वर को प्रकट कर सृजन को प्रोत्साहित करते हैं। प्रकृति में प्रत्येक सौंदर्य एवं भोग तथा सृजन के मूल माने जाने वाले भगवान शुक्र देव अपने मित्र के घर की यात्रा के लिए बेचैन होकर इस उद्देश्य से चलना प्रारंभ करते हैं कि उत्तरायण के इस देव काल में वह अपनी उच्च की कक्षा में पहुंच कर संपूर्ण जगत को जीवन जीने की आस व साहस दे सकें।
शास्त्रों के अनुसार बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती के मंत्रों का जाप और सरस्वती वंदना अवश्य करनी चाहिए।इसके बाद मां सरस्वती की आरती करना बिल्कुल न भूलें।तभी सरस्वती की पूजा संपन्न मानी जाती है और पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होता है।
कहते है,सृष्टि के आरम्भ में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों की रचना की थी। जिनमे मनुष्य का भी उदभव हुआ।लेकिन अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे, उन्हें लगा कि कुछ कमी रह गई है, जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहा।तब भगवान विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से पृथ्वी पर जल छिड़का, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कम्पंन होने लगा। तभी एक चतुर्भुजी स्त्री के रूप में अदभुत शक्ति का प्राकट्य हुआ, जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला प्रतिष्ठित थीं।
ब्रह्मा जी ने प्रकट हुई देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुर नाद किया, संसार के समस्त जीव-जंतुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल हो गया व हवा चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्माजी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती नाम दिया। मां सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादिनी और बाग्देवी आदि अनेक नामों से पुकारा जाता है। यह देवी विद्या और बुद्धि की प्रदाता हैं, संगीत की उत्पत्ति करने के कारण यह संगीत की देवी भी कहलाती हैं।वही वसंत पंचमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने मां सरस्वती को वरदान दिया था कि उनकी प्रत्येक ब्रह्मांड में माघ शुक्ल पंचमी के दिन विद्या आरम्भ के शुभ अवसर पर पूजा होगी। श्रीकृष्ण के वर प्रभाव से प्रलयपर्यन्त तक प्रत्येक कल्प में मनुष्य, मनुगण, देवता, मोक्षकामी, वसु, योगी, सिद्ध, नाग, गन्धर्व और राक्षस आदि सभी बड़ी भक्ति के साथ सरस्वती की पूजा करते है। पूजा के अवसर पर विद्वानो द्वारा सम्यक् प्रकार से मां सरस्वती का स्तुति-पाठ होता है। भगवान श्री कृष्ण ने सर्वप्रथम देवी सरस्वती की पूजा की थी, तत्पश्चात ब्रह्मा, विष्णु , शिव और इंद्र आदि देवताओं ने मां सरस्वती की आराधना की। तब से मां सरस्वती सम्पूर्ण प्राणियों द्वारा सदा पूजित हो रही है। बसंत पंचमी पर मां सरस्वती को पीले रंग का फूल और फूल अर्पण किए जाते हैं। शुभ मुहूर्त में कई गई पूजा और साधना का भी महत्व है। यह दिन बसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक माना जाता है। इसलिए श्रद्धालु गंगा मां के साथ-साथ अन्य पवित्र नदियों में डुबकी लगाने के साथ आराधना भी करते है। वहीं इस समय फूलों पर बाहर आ जाती है, खेतों में सरसों के फूल चमकने लगते हैं, गेहूं की बालियां भी खिलखिला उठती हैं। इस दिन पीले रंग के कपड़े पहनने के साथ पतंग और स्वादिष्ट चावल बनाए जाते हैं। पीला रंग बसंत का प्रतीक है।संगीत के क्षेत्र से जुड़े लोग इस दिन का सालभर से इंतजार करते हैं। बसंत पंचमी के अवसर पर इस साल दो उत्तम योग बन रहे हैं, जिसके कारण पूरे जिन शुभ कार्य किए जा सकते हैं। इस दिन लोग पीले वस्त्र पहनकर सुबह सवेरे मां सरस्वती की अराधना करते हैं।
बसंत पंचमी के दिन सुबह जल्दी उठना चाहिए। कोशिश करनी चाहिए कि सूर्योदय से कम से कम दो घंटे पहले बिस्तर छोड़ देने चाहिए।बसंत पंचमी के दिन स्नान करके साफ कपड़े पहनने चाहिए।
बसंत पंचमी के दिन मंदिर की सफाई करनी चाहिए। मां सरस्वती को पूजा के दौरान पीली वस्तुएं अर्पित करनी चाहिए। जैसे पीले चावल, बेसन का लड्डू आदि।सरस्वती पूजा में पेन, किताब, पेसिंल आदि को जरूर शामिल करना चाहिए और इनकी पूजा करनी चाहिए।बसंत पंचमी के दिन लहसुन, प्याज से बनी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। महाकवि कालिदास ने ऋतुसंहार नामक काव्य में इसे ''सर्वप्रिये चारुतर वसंते'' कहकर अलंकृत किया है। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने ''ऋतूनां कुसुमाकरा:'' अर्थात मैं ऋतुओं में वसंत हूं, कहकर वसंत को अपना स्वरुप बताया है। वसंत पंचमी के दिन ही कामदेव और रति ने पहली बार मानव ह्रदय में प्रेम और आकर्षण का संचार किया था। इस दिन कामदेव और रति के पूजन का उद्देश्य दांपत्त्य जीवन को सुखमय बनाना है, जबकि सरस्वती पूजन का उद्देश्य जीवन में अज्ञानरूपी अंधकार को दूर करके ज्ञान का प्रकाश उत्त्पन्न करना है।वसंत पंचमी के दिन यथाशक्ति ''? ऐं सरस्वत्यै नम: '' का जाप करें। माँ सरस्वती का बीजमंत्र '' ऐं '' है, जिसके उच्चारण मात्र से ही बुद्धि विकसित होती है। इस दिन से ही बच्चों को विद्या अध्ययन प्रारम्भ करवाना चाहिए। ऐसा करने से बुद्धि कुशाग्र होती है और माँ सरस्वती की कृपा बच्चों के जीवन में सदैव बनी रहती है।इस बार पंचमी तिथि 5 फरवरी को प्रात: 3.47 बजे से अगले दिन छठे दिन प्रात: 3.46 बजे तक रहेगी। इस अवसर पर अगले दिन शाम 4 बजे से शाम 7.11 बजे से शाम 5.42 बजे तक सिद्धयोग रहेगा। 5.43 बजे से दिन तक साध्य योग रहेगा। इसके अलावा रवि योग का संयोग भी बना रहा। ये संयोग दिन को शुभ बना रहे हैं। इससे पहले गुप्त नवरात्रि 2 फरवरी से शुरू हो जाएगी।बसंत पंचमी 5 फरवरी शनिवार के दिन मनाई जाएगी। इस विशेष अवसर पर सिद्ध, साध्य और रवि योग के त्रिवेणी योग में ज्ञान की देवी सरस्वती की पूजा की जाएगी। जो कार्य में शुभता और सिद्धि प्रदान करती है। अबूझ मुहूर्त के चलते शहर भर में एक हजार से अधिक विवाह कार्यक्रम होंगे। इसके साथ ही विद्यारंभ समारोह होगा और मंदिरों में मां सरस्वती का विशेष श्रृंगार और पूजा की जाएगी। माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि 5 फरवरी को प्रात: 3.47 बजे से अगले दिन छठे दिन प्रात: 3.46 बजे तक रहेगी। इस अवसर पर अगले दिन शाम 4 बजे से शाम 7.11 बजे से शाम 5.42 बजे तक सिद्धयोग रहेगा। 5.43 बजे से दिन तक साध्य योग रहेगा। इसके अलावा रवि योग का संयोग भी बना रहा। ये संयोग दिन को शुभ बना रहे हैं। इससे पहले गुप्त नवरात्रि 2 फरवरी से शुरू होगी।
बसंत पंचमी का दिन दोषमुक्त दिन माना जाता है। इसी वजह से इसे सेल्फ साइडिंग और अबूझ मुहूर्त भी कहा जाता है। इसी वजह से इस दिन बड़ी संख्या में शादियां होती हैं। विवाह के अलावा मुंडन समारोह, यज्ञोपवीत, गृह प्रवेश, वाहन खरीदना आदि शुभ कार्य भी किए जाते हैं। इस दिन को बागेश्वरी जयंती और श्री पंचमी के नाम से भी जाना जाता है।
डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)

 

शहादत दिवस पर विशेष: विचारधारा मे हमेशा जीवित रहेंगे महात्मा गांधी !

शहादत दिवस पर विशेष: विचारधारा मे हमेशा जीवित रहेंगे महात्मा गांधी !

देश और दुनिया के लिए महात्मा गांधी उन महान व्यक्तित्वों में से एक थें जो अपने विश्वास पर हिमालय की तरह अटल और द्रढ रहते थे ससांर का प्रत्येक व्यक्ति सोचता है कि गांधी जी एक उत्तम व्यक्ति थें तो उन्हे क्यों मार डाला गया यह सवाल अनेक लोगों ने उठाया लेकिन इसका जवाब है कि कुछ लोग नही चाहते कि देश दुनिया में भले लोगो का वजूद कायम रहे इसी कारण कुछ सिरफिरे ऐसे महानतम लोगो के भी दुश्मन बन जाते है। महात्मा गांधी की यह भी विषेशता थी कि वह चाहे कही भी रहे और चाहे जिस तरह के काम व्यस्त हो लेकिन हर रोज सुबह सबसे पहले प्रार्थना जरूर करते थे। अपने देश के लोगों में भी महात्मा गांधी शीर्ष स्तर पर छाये रहे। वास्तव में यदि कोई सार रूप में भारत का प्रतिनिधित्व करने में योग्य था तो वह सिर्फ और सिर्फ महात्मा गांधी थे। बहुत सी बातों में लोगों का गांधी जी से मतभेद हो सकता है और बहुत से लोग उनसे अधिक विद्वान हो सकते है परन्तु उनमें चरित्र व राष्ट्रभक्ति की जो महतता है उसके कारण वह सब लोगों के आदर्श बन गये थे। गांधी जी निसंदेह उस धातु के बने हुए है जिस धातु से शुरमा और बलिदानी लोगों का निर्माण होता हैं आत्मिक शक्ति के बल पर महात्मा गांधी विश्व भर में छाये रहे।लेकिन दुर्भाग्य है कि देश को आजाद कराने का प्रबल आधार स्तभ बने महात्मा गांधी के प्रति कृज्ञता अभिव्यक्त करने के बजाए कुछ लोग उनके हत्यारे को महिमा मंडित करने का निदंनीय प्रयास कर रहे है। ऐसे लोगो को देश कभी माफ नही करेगा।
विचारधारा की भिन्नता के कारण ही सिरफिरे नाथूराम गोड़से ने दुनिया को अहिंसा का संदेश देने वाले उस मोहनदास कर्मचन्द गांधी को मार डाला था,जिससे भारत ही नही पूरी दुनिया प्रभावित थी और आज भी जिसका प्रभाव बरकरार है।एक ऐसा गांधी जिसने कभी अपने बारे में नही सोचा।एक ऐसा गांधी जिसने कभी अपने परिवार के बारे में नही सोचा, एक ऐसा गांधी जिसने कभी किसी पद या कुर्सी की चाहत नही की।जिसे पूरी दुनिया आज भी 'बापू' के रूप में सम्मान दे रही है,उस महान शख्सियत की गोलियों से भून कर हत्या हो जाना ,यह प्रमाणित जरूर करता है कि उस समय भी और आज भी हिंसा ने अहिंसा को बर्दाश्त नही किया है।ये दो धारायें आज भी एक दूसरे से समय समय पर टकराती है तो गांधी याद आते है।
'गांधी जी एक ऐसे महान व्यक्ति थे, जिन्हें मानवता की समझ थी। उनकी जिंदगी ने मुझे बचपन से ही प्रेरित किया है। ' दलाई लामा के ये शब्द आज भी गांधी के प्रेरक व्यक्तित्व का दर्पण है। अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति बराकओबामा के शब्दों में,' अपनी जिंदगी में प्रेरणा के लिए मैं हमेशा गांधी की तरफ देखता हूं क्योंकि वह बताते हैं कि खुद में बदलाव कर साधारण व्यक्ति भी असाधारण काम कर सकता है।' वही रबिंद्रनाथ टैगोर का विचार रहा कि महात्मा गांधी लाखों बेसहारा लोगों के दरवाजे पर पहुंच जाते हैं, उनसे उन्हीं की भाषा में बात करते हैं। आखिर और कौन है, जो इतनी सहजता से इस बड़े वर्ग को अपना रहा है। प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की सोच रही कि इस देश में जो लौ महात्मा गांधी के रूप में रोशन हुई, वह साधारण नहीं थी। यह लौ आने वाले हजारों सालों तक भी राह दिखाती रहेगी। लॉर्ड माउंटबेटन कहते थे कि इतिहास में महात्मा गांधी को गौतम बुद्ध और ईसा मसीह के बराबर देखा जाएगा।वही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शब्दो में,दो अक्तूबर को पोरबंदर में एक व्यक्ति ने जन्म नहीं लिया था बल्कि एक युग की शुरुआत हुई थी। मुझे इस बात पर पूरा विश्वास है कि वह आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने अपने समय में थे। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी कहती है ,'महात्मा गांधी ने दुनिया को अहिंसा,सत्यता,राष्ट्रभक्ति की राह दिखाई,सचमुच वे एक महान आत्मा थे।'आजादी के आंदोलन में महात्मा गांधी की गिनती नरम नेता के रूप में होती थी।लेकिन उक्त आन्दोलन के गरम दल के नेता भी उनका उतना ही सम्मान करते थे जितना नरम दल के लोग उनका आदर भाव करते थे।
गरम दल के नेता के रूप में चर्चित रहे नेताजी सुभाष चन्द्र बोश भी उन्हे अपना नेता मानते थे। यही गांधी जी की अहिंसा की सबसे बडी कामयाबी थी। बैरिस्टर सम्मानजनक व्यवसाय को छोडकर देश के लिए वे आजादी के आन्दोलन में कूद पडे थे। उनका एक ही नारा था कि जैसे भी हो हम हथियार नही उठायेगे और बिना हथियार ही भारत मां को आजादी दिलायेगें। इसके लिए उन्होने स्वयं भी अंगे्रजो की लाठिया खायी और उन्हे बहुत सी यातना भी सहन करनी पडी। लेकिन देश की खातिर उन्होने कभी पीछे मुड़कर कर नही देखा।
अहिंसा के पुजारी मोहन दास कर्मचन्द गांधी जिन्हे सम्मान से बापू या फिर महात्मा गांधी कहते है,का दुनियाभर में आज भी उनकी विचारधारा रूप में नाम है और हमेशा रहेगा।' देदी हमें आजादी बिना खडग बिना ढाल साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल' पंक्तिया चरितार्थ कर दिखाने वाले बापू के प्रति दुनियाभर के लोगों ने भरपूर सम्मान प्रकट किया है।
करोडों देशवासी उन्हे महान सन्त मानते थे। लक्ष्य साधन में उनकी सच्चाई और निष्ठा पर उंगली नहीें उठाई जा सकती थी। महात्मा गांधी के जीवित रहने से सारा संसार सम्पन्न था और उनके निधन से दुनिया भर को लगा कि पूरा संसार ही विपन्न हो गया है। गांधी के परामर्श देश के लिए सदा सहायक सिद्ध हुए।जिनके बल पर देश को आजादी प्राप्त हुई।
महात्मा गांधी एक ऐसे योद्धा थे जिन्होंने बल प्रयोग का सदा विरोध किया। वे बुद्धिमान नम्र, द्रढसंकल्पी और निश्चय के धनी थे।सच तो यह है कि आधुनिक इतिहास में किसी भी एक व्यक्ति ने अपनी चरित्र की वैयक्तिक शक्ति, ध्येय की पावनता और अंगीकृत उद्देश्य के प्रति निस्वार्थ निष्ठा से लोगों के दिमागों पर इतना असर नहीं डाला, जितना महात्मा गांधी का असर दुनिया पर हुआ था।
गांधी के जीवन, धर्म, राजनीति, चिंतन में, स्वतंत्रता संघर्ष में या कह लें कहीं भी, उनका हर क्षण धर्म से प्रच्छन्न था. उसी से प्रेरित-निर्देशित था. उनके पास धर्मविहीन या धर्म से परे कुछ भी नहीं था. गांधी का यह धर्म, उनके व्यक्तिगत जीवन में असंदिग्ध रूप से हिंदू था और अन्य दूसरे धर्मों के प्रति पूरी तरह सहिष्णु और विनीत था. इस धर्म का 'ईश्वर', इसकी 'आध्यात्मिकता', 'आत्मा' और 'नैतिकता' उनकी अपनी गढ़ी हुई या चुनी गई परिभाषाओं से तय होती थी. उनकी व्यक्तिगत जीवन शैली और आचरण से परिभाषित होती थी.
गांधी के जीवन के संस्कार अस्तेय, सत्य, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य से बने थे. गांधी कमोबेश इन्हें अपने जीवन में, अपने कर्म और दर्शन में हमेशा उतारने की कोशिश करते रहे. गांधी ने जब सन 1920 में अपनी पहली बड़ी राजनैतिक लड़ाई शुरू की, तब तक वे देश के पारंपरिक और कट्टर हिंदुओं के लिए भी, राष्ट्रीयता, स्वतंत्रता संघर्ष और अंग्रेजों के शासन से मुक्ति की आकांक्षा के साथ-साथ, उनकी हिंदू आस्था के रक्षक और हिंदू धर्म के पुनरुद्धार का प्रतीक भी बन चुके थे। गांधी ने खुद भी, 12 अक्तूबर, सन1921 के यंग इंडिया में घोषणा की थी: ''मैं अपने को सनातनी हिंदू कहता हूं क्योंकि मैं वेदों, उपनिषदों, पुराणों और समस्त हिंदू शास्त्रों में विश्वास करता हूं और इसीलिए अवतारों और पुनर्जन्मों में भी मेरा विश्वास है। मैं वर्णाश्रम धर्म में विश्वास करता हूं। इसे मैं उन अर्थों में मानता हूं जो पूरी तरह वेद सम्मत हैं लेकिन उसके वर्तमान प्रचलित और भोंडे रूप को नहीं मानता।
मैं प्रचलित अर्थों से कहीं अधिक व्यापक अर्थ में गाय की रक्षा में विश्वास करता हूं। मूर्तिपूजा में मेरा विश्वास नहीं है।बावजूद इस सबके, गांधी का यह हिंदू धर्म या उनका हिंदुत्व, देश के तत्कालीन प्रमुख हिंदू संगठनों, 'हिंदू महासभा' और 'राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ' के हिंदुत्व से पूरी तरह अलग था।महात्मा गांधी की प्रार्थना सभाओं में कुरआन का पाठ होता था। बाइबल और गीता उनके लिए बराबर का महत्व रखती थीं। गांधी का भारत वह भारत था, जिसमें समस्त स्तरों पर समानता के साथ, देश के समस्त धर्मों, जीवन पद्धतियों, उपासना पद्धतियों, रीति-रिवाजों का समावेश हो।उसी की आवश्यकता आज भी है। आने वाली पीढिय़ों को इस बात पर विश्वास करना मुश्किल होगा कि गांधी जैसा कोई व्यक्ति इस धरती पर चला करता था। अल्बर्ट आइंस्टीन के ये शब्द भावी पीढ़ी के मन मे गांधी की अहमियत का प्रमाण है।
डॉक्टर मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने भी कहा था कि अगर मानवता को आगे बढ़ाना है तो गांधी बहुत ही जरूरी हैं। दुनिया में शांति और सद्भाव के लिए ही वह जीते, सोचते और काम करते हैं। हम अपने जोखिम पर ही उन्हें नजरअंदाज कर सकते हैं। बड़ी संख्या में आज भी ऐसे
लोग है जो गांधी विचारधारा अपनाकर शांति,सदभाव, प्रेम,विश्वास और सौहार्द के साथ रहना चाहते है।गोड़से एक हत्यारा तो है लेकिन कभी जननायक नही कहलाया जबकि गांधी मरकर भी आमजन के मन मे महानायक है ,अहिंसा के पुजारी है,शांति और सदभाव के पैगम्बर है।जो हमेशा अमर रहेंगे।
डा0श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)

 

एक दिलचस्प किस्सा: नेताजी सुभाष चंद्र बोस की पत्नी एमिली शेंकल !

एक दिलचस्प किस्सा: नेताजी सुभाष चंद्र बोस की पत्नी एमिली शेंकल !

तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा आजादी मन्त्र के महानायक सुभाष चंद्र बोस के बारे में बहुत कम लोग जानते है नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने एमिली शेंकल से सन 1937 में विवाह किया था।एमिली शेंकल ने एक ऐसे देश भारत को ससुराल के रूप में चुना जहां कभी वह "बहू" के रूप में आई ही नही, तभी तो न बहू के आगमन पर मंगल गीत गाये गये, न उनकी बेटी अनीता बोस के पैदा होने पर कोई खुशियां ही मनाई गई।
उन्हें सात साल के अपने वैवाहिक जीवन में पति सुभाष चन्द्र बोस के साथ मात्र तीन वर्ष रहने का अवसर मिला, इसके बाद नेताजी अपनी पत्नी और नन्हीं सी बेटी को छोड़कर देश को आजाद कराने के लिए संघर्ष करने चले गये।जाते समय नेताजी अपनी पत्नी से यह वायदा करके गये कि, पहले देश आजाद करा लूँ ,फिर हम साथ-साथ रहेंगे, पर अफसोस कि ऐसा नहीं हुआ क्योंकि कथित विमान दुर्घटना में नेता जी हमेशा हमेशा के लिए लापता हो गए। उस समय उनकी पत्नी एमिली शेंकल युवा थीं वह चाहती तो युरोपीय संस्कृति के अनुसार दूसरी शादी कर लेती, परन्तु उन्होंने ऐसा नही किया और बेहद कठिन दौर में अपना जीवन गुजारा।उन्होंने एक तारघर में मामूली क्लर्क की नौकरी और बेहद कम वेतन के साथ वह अपनी बेटी को पालती रही. उनका बहुत मन था भारत आने का, कि एक बार अपने पति के वतन की मिट्टी को हाथ से छू कर उसमे नेताजी को महसूस कर सकू ,लेकिन भारत को आजादी मिलने के बाद भी ऐसा हो न सका । नेताजी की पत्नी का बड़प्पन देखिये कि उन्होंने इसकी कभी किसी से शिकायत भी नहीं की और गुमनामी में ही मार्च 1996 में अपना जीवन को अलविदा कह दिया।
सुभाष चंद्र बोस ने एमिली शेंकल से प्रेम-विवाह किया था। सन 1934 में सुभाष चंद्र बोस अपना इलाज कराने के लिए ऑस्ट्रिया गए थे ,इसी दौरान उन्हें अपनी जीवनी लिखने का विचार आया, जिसके लिए उन्हें एक टाइपिस्ट की आवश्यकता महसूस हुई ।
तब ऑस्ट्रिया के एक मित्र ने उनकी मुलाकात एमिली शेंकल से करवाई, जो धीरे-धीरे पहले उनकी मित्र बनीं और बाद में प्रेमिका और फिर पत्नी। दोनों ने सन 1937 में शादी कर ली। 29 नवंबर सन1942 को विएना में एमिली ने एक बेटी को जन्म दिया। सुभाष चन्द्र बोस ने अपनी बेटी का नाम अनीता बोस रखा था।
शेंकल ने कभी भी बोस की पत्नी होने की पहचान उजागर नहीं की और वह अपनी बेटी को लेकर आस्ट्रिया में रहती थीं औऱ आजीविका के लिए एक तारघर में काम करती थीं। सुभाष की बेटी अनीता बोस ने काफी समय बाद मीडिया से कहा था कि उनकी मां को भी उनके पिता की मौत की खबर अन्य लोगों की तरह रेडियो समाचार से मिली थी।
एक दिलचस्प बात यह है कि उनकी शादी हिंदू परंपरा से हुई थी।लेकिन बोस और एमिली की शादी का पंजीयन नहीं हो सका था, क्योंकि जर्मन सरकार ने यह आपत्ति कर दी थी कि दोनों ने चूंकि हिंदू परंपरा से शादी की है,इसलिए इनका पंजीयन नही हो सकता। बोस की पत्नी के अतीत में झांके तो पता चलता है कि एमिली अपने परिवार के लिए कमाने वाली एक मात्र सदस्य थीं। वह एक जिम्मेदार बेटी भी थीं, इसीलिए शादी के बाद बूढ़ी मां को छोड़कर भारत आने को राजी नहीं हुईं। एक बार विएना में सुभाष चंद्र बोस के भाई सरत चंद्र बोस, उनकी पत्नी और बच्चों से वह मिली थीं और भावुक हो गई थीं। बोस और एमिली की शादीशुदा जिदंगी 9 साल रही। इसमें से दोनों केवल 3 साल ही साथ रहे। 18 अगस्त 1945 को ताईवान में विमान दुर्घटना में बोस का निधन हो गया था। मार्च 1996 में 85 वर्ष की उम्र में एमिली का भी निधन हो गया।
उनकी बेटी अनिता बोस एक जर्मन अर्थशास्त्री हैं। वे ऑग्सबर्ग यूनीवर्सिटी में प्रोफेसर रही और इस समय अपने पति प्रो. मार्टिन फाफ के साथ उनकी जर्मन सोशल डिमोक्रेटिक पार्टी में सक्रिय रहती हैं।
डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)
नोट: उपरोक्त लेख लेखक के अपने निजी विचार और just36news उपरोक्त लेख की पुष्टि नही करता है.
 

आलेख: एनडीए का बजट मंत्र: सुधार, परिवर्तन, प्रदर्शन- अनिल पद्मनाभन

आलेख: एनडीए का बजट मंत्र: सुधार, परिवर्तन, प्रदर्शन- अनिल पद्मनाभन

अब से कुछ सप्ताह के बाद, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का 10 वां केंद्रीय बजट पेश करेंगी। बजट-पूर्व परिदृश्य से पता चलता है कि केंद्रीय बजट, यह देखते हुए कि कोविड-19 का खतरा वापस आ गया है, जीवन बनाम आजीविका के संतुलन पर अपने ध्यान को केंद्रित रखना जारी रखेगा। सतत विकास पर नजर रखते हुए उद्यमिता की भावनाओं को और अधिक अवसर देने तथा उन्हें प्रेरित करने के साथ ही विभिन्न नई योजनाओं के अनावरण किए जाने की भी उम्मीद है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा केंद्रीय बजट पर उद्यम पूंजीदाताओं और निजी इच्टिी निवेशकों के एक समूह के साथ आयोजित पहली गोलमेज बैठक में इस आशय का संकेत मिलता है। खासतौर पर तब, जब प्रधानमंत्री ने वैश्विक पूंजी की सर्वाधिक प्रमुख हस्तियों से 'कारोबार करने में आसानीÓ को और बेहतर बनाने के लिए आवश्यक अभिनव विचारों के बारे में जानकारी ली थी।
जाहिर है, इसमें एक योजना मौजूद है। वास्तव में, यह मोदीनॉमिक्स का प्रमुख संकेत रहा है। लेकिन कभी-कभी अप्रत्याशित घटनाक्रम सुचारु रूप से चल रही कार्यप्रणाली में कई बाधाएं खड़ी कर देते हैं, तथापि एनडीए को योजना ही न होने के लिए दोष नहीं दिया जा सकता है।
सरसरी तौर पर नजर डालने से पता चलता है कि शासन और विकास दोनों के लिए एक नई वास्तुकला विकसित की जा रही है और इसके लिए प्रत्येक बजट क्रमिक रूप से निर्माण-कार्य को पूरा कर रहा है। वैश्विक आर्थिक व्यवधानों या हाल ही में कोविड-19 महामारी से हुए नुकसान को कम से कम करने के उपायों के साथ-साथ उक्त सभी कार्यों को अंतिम रूप दिया जा रहा है।
एनडीए कार्यकाल के शुरुआती बजटों में भ्रष्टाचार विरोधी और गरीबी उन्मूलन उपायों पर जोर दिया गया था, जबकि नियम-आधारित शासन स्थापित करने की दिशा में छोटे कदम उठाए गए, जो अपवाद-आधारित शासन में संचालित सात दशकों के परंपरागत तरीकों के विपरीत थे। ये परंपरागत तरीके कोयला खदानों और स्पेक्ट्रम की नीलामी आदि के जरिये एक ऐसा इकोसिस्टम बनाते थे, जो भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता था।
अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए उठाए गए कदमों में 2016 में किए गए उच्च मूल्य की मुद्राओं के विमुद्रीकरण एवं आधार को आयकर पैन से जोडऩे और सार्वजनिक सामानों एवं सेवाओं की लक्षित आपूर्ति शुरू करने सहित अवैध धन के खिलाफ कार्रवाई शामिल है। सार्वजनिक सामानों एवं सेवाओं की लक्षित आपूर्ति के लक्ष्य को जाम (जनधन, आधार और मोबाइल) के संक्षिप्त नाम वाले एक डिजिटल ढांचे का लाभ उठाते हुए हासिल किया गया था।
बदले में, इसका दोहरा फायदा हुआ। पहला, जाम की तिकड़ी ने प्रत्येक लाभार्थी के लिए एक आर्थिक जीपीएस को संभव बनाया जिसने सब्सिडी वाली रसोई गैस, ग्रामीण रोजगार सुरक्षा जाल, किसानों को आय सहायता और कोविड-19 संबंधी राहत सहित कई सामाजिक सुरक्षा भुगतानों की लक्षित आपूर्ति सुनिश्चित की। प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के परिणामस्वरूप मार्च 2020 के अंत में राजकोष में कुल 1.7 ट्रिलियन रुपये की बचत हुई।
दूसरा, इसने स्वदेशी प्रौद्योगिकियों के एक युग्म के केंद्र के रूप में 'आधारÓ, जोकि देश के सभी निवासियों को जारी की गई 12-अंकों वाली विशिष्ट पहचान है, के साथ भारत में डिजिटल तरीकों के एक नए सेट का शुभारंभ भी किया।
यह ठीक वही चीज थी, जिसने भुगतान का आधार बनी यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस या यूपीआई को इस कैलेंडर वर्ष में एक ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के लेन-देन का रिकॉर्ड दर्ज करने में सक्षम बनाया। सिर्फ यूपीआई ने ही फिनटेक क्रांति को बढ़ावा नहीं दिया है, बल्कि अकाउंट एग्रीगेटर फ्रेमवर्क, जोकि छोटे और मध्यम उद्यमों के नकदी प्रवाह डेटा को जमानत-मुक्त ऋण तक पहुंचने में मदद देगा, के निर्माण के उद्देश्य से अंतर्निहित प्रौद्योगिकियों के युग्म का लाभ उठाने वाले नवाचार वित्तीय समावेशन में अभूतपूर्व गति से तेजी ला रहे हैं।
इन नए डिजिटल तरीकों का एक महत्वपूर्ण पहलू भारतीय अर्थव्यवस्था को औपचारिक रूप देने पर जोर देना है। फिलहाल तीन-चौथाई से अधिक भारतीयों के पास बैंक खाता है, जोकि औपचारिक होने की दिशा में एक आवश्यक कदम है।
औपचारिक होने की दिशा में अब तक का सबसे बड़ा कदम वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की शुरुआत थी, जिसने पहली बार देश को आर्थिक रूप से एकीकृत किया। रातोंरात, भारत जटिल अप्रत्यक्ष करों के चक्रव्यूह से निकलकर 'एक देश, एक करÓ की ओर बढ़ गया। तथ्य यह है कि राज्यों और केंद्र सरकार द्वारा अपनी संप्रभुता को सहेजने की प्रक्रिया ने एक नई संघीय राजनीति-सहकारी संघवाद- की नींव भी रखी।
साथ ही हाल के वर्षों में केंद्रीय बजट का उपयोग भारतीय अर्थव्यवस्था का स्वरूप एकदम नए सिरे से तय करने के बारे में संकेत देने के लिए किया गया है, जिसमें निजी उद्यमों की अब समान हिस्सेदारी है। जहां तक निजी उद्यमों का सवाल है, इनमें न केवल भारतीय कॉरपोरेट जगत, बल्कि तेजी से विकसित हो रहे स्टार्ट-अप्स और छोटे उद्यम भी शामिल हैं।
कारोबार करने में और आसानीÓ सुनिश्चित करने के अलावा महामारी का प्रकोप शुरू होने के बाद पेश किए गए पहले बजट में एक अभूतपूर्व और साहसिक निर्णय लिया गया जिसके तहत यह घोषणा की गई कि सार्वजनिक क्षेत्र अब अर्थव्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र नहीं रह गया है। बजट में फिर एक कदम और आगे बढ़कर यह घोषणा की गई कि सार्वजनिक उपक्रमों (पीएसयू) की परिसंपत्तियों का मुद्रीकरण किया जाएगा, ताकि बुनियादी ढांचागत सुविधाओं या अवसंरचना में नए निवेश हेतु आवश्यक धनराशि का इंतजाम करने के लिए दुर्लभ पूंजी को जारी किया जा सके। उल्लेखनीय है कि देश में अपेक्षा के अनुरूप अवसंरचना न होने के कारण वस्तुओं एवं सेवाओं की आपूर्ति में बड़ी बाधा उत्पन्न होती रही है जिस वजह से अर्थव्यवस्था के विकास की गति निरंतर तेज नहीं हो पा रही है।
दरअसल, वित्त वर्ष 2021-22 के केंद्रीय बजट ने न केवल पिछले चार दशकों की राजकोषीय खामियों को ठीक करके केंद्र सरकार के बही-खातों को बिल्कुल दुरुस्त कर दिया है, बल्कि इसके साथ ही खर्च करने के स्वरूप को भी बदल दिया है जो राजस्व व्यय के बजाय अब पूंजीगत व्यय हो गया है।
अंतिम विश्लेषण में यह स्पष्ट हो गया है कि नए सिरे से मौलिक बदलाव लाने वाले इन समस्त बजटीय उपायों का एक ही उद्देश्य है: सतत विकास।
(लेखक एक पत्रकार हैं जो कैपिटलकैलकुलस ट्वीट करते हैं)

 

आलेख: कोरोना की दहाड़ और चुनावी हुंकार- प्रदीप कुमार दीक्षित

आलेख: कोरोना की दहाड़ और चुनावी हुंकार- प्रदीप कुमार दीक्षित

त्योहारों के लिए प्रसिद्ध इस देश में एक नया त्योहार जुड़ा है, वह है चुनाव। आये दिन कहीं न कहीं, किसी न किसी स्तर के चुनाव होते रहते हैं। देश में फिर चुनाव का माहौल बन रहा है। हर मुद्दे पर एक-दूसरे की टांग-खिंचाई करने वाले और कभी एक-दूसरे से सहमत नहीं होने वाले दल कुछ राज्यों में चुनाव करवाने पर सहमत हो गए हैं। किसी निर्दलीय ने भी कोरोना के जोखिम में चुनाव करवाने पर असहमति दर्ज नहीं करवाई है। चुनाव आयोग ने मतदान की तिथियों की घोषणा कर दी है और चुनाव का बिगुल बज गया है। चुनाव आयोग ने महामारी से बचने के लिए कुछ दिशा-निर्देश दिए हैं। उनका उल्लंघन करने के लिए विभिन्न दल उतावले हो रहे हैं। महामारी की दहाड़ के बीच चुनाव की हुंकार भरी जा रही है।
कैसा भी मौसम हो, कैसी भी विपदा आई हो, किसी भी वायरस का खतरा सिर पर खड़ा हो, इन्हें तो चुनाव लडऩा है। सत्तारूढ़ दल किसी भी तरह सत्ता में टिका रहना चाहता है। कुर्सी में उसकी आत्मा है। सत्ता में रहते हुए उसे हरा ही हरा दिखाई देता है। विपक्षी दल किसी भी तरह सत्ता में आना चाहता है। इसके लिए वह भरपूर दांव-पेच आजमाता रहता है। उसे सत्ता की हरियाली सपने में भी लुभाती रहती है।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर विभिन्न मुद्दों पर शब्दों से कुश्ती लडऩे वाले बांके इस मुद्दे पर 'शीत निष्क्रियता’ की स्थिति में हैं। वाद-विवाद और बयानबाजी के बाद भाषणबाजी का दौर शुरू हो चुका है। दोनों पक्षों की ओर से बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं। मास्क लगाने वाले और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने वाले अल्पसंख्यक रह गये हैं। कोरोना के ओमीक्रोन वेरिएंट के मामले तेजी से बढऩे के बीच चुनावी नारे हवा में गूंजने लगे हैं।
महामारी तो देर-सवेर काबू में आ जाएगी। इसकी कौन परवाह करता है। सत्ता के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है। भले ही नेता स्वयं चपेट में आ जाएं, वे वोटर और अपनी जान को जोखिम में डाल कर भी सत्ता का सुख लेना चाहते हैं। और वोटर... उसकी कौन चिंता करता है। सत्य बात तो यह है कि वोटर को स्वयं अपनी चिंता नहीं है, उसे तो बस इस-उस नेता का जय-जयकार करना है। वह मोहरा भर है।
(ये लेख लेखक के निजी विचार है)
 

आलेख: स्वामी विवेकानंद की विचारधारा युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत

आलेख: स्वामी विवेकानंद की विचारधारा युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत

आज की प्रौद्योगिकी संचालित दुनिया में, युवा एक लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं, इसलिए स्वामी विवेकानंद जी के दर्शन को समझने की आवश्यकता है । सन् 1984 में भारत सरकार ने 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद जयंती के रूप मनाने की घोषणा की थी। तब से हम इस दिन को पूरी ईमानदारी के साथ मना रहे हैं और अपने देश के युवाओं के बीच स्वामी विवेकानंद की विचारधारा को प्रेषित करने का प्रयास कर रहे हैं ।
12 जनवरी 1863 को नरेंद्र नाथ दत्त का जन्म हिन्दू परिवार में हुआ । जिन्हे बाद में स्वामी विवेकानंद के नाम से दुनिया भर में जाना गया । युवाओं के प्रति उनकी सोंच के कारण भारत में हर साल 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। युवाओं के लिए प्रेरणा के अपार स्रोत रहे स्वामी विवेकानंद की कही एक-एक बात युवाओं को ऊर्जा से भर देती है। अपने छोटे से जीवन काल में ही उन्होंने पूरे दुनिया पर भारत और हिंदुत्व की गहरी छाप छोड़ी ।
11 सितंबर 1893 को शिकागो में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में एक बेहद चर्चित भाषण दिया था, जो आज भी युवाओं को गर्व से भर देता है। युवाओं को प्रेरित करने वाले उनके विचार कुछ इस प्रकार है-
उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाये।
उठो मेरे शेरो, इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो । तुम एक अमर आत्मा हो, स्वच्छंद जीव हो, धन्य हो, सनातन हो, तुम तत्व नहीं हो, ना ही शरीर हो, तत्व तुम्हारा सेवक है तुम तत्व के सेवक नहीं हो।
विवेकानंद युवाओं से कहते हैं कि जिस तरह से विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न धाराएं अपना जल समुद्र में मिला देती हैं, उसी प्रकार मनुष्य द्वारा चुना हर मार्ग, चाहे अच्छा हो या बुरा भगवान तक जाता है। हमारा कर्तव्य है कि हम हर किसी को उसका उच्चतम आदर्श जीवन जीने के संघर्ष में प्रोत्साहन करें, और साथ ही साथ उस आदर्श को सत्य के जितना निकट हो सके लाने का प्रयास करें। युवा हमेशा सही रास्ते पर चलने का प्रयास करें तब जाके वो अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं ।
स्वामी कहते हैं कि तुम्हे अन्दर से बाहर की तरफ विकसित होना है। कोई तुम्हे पढ़ा नहीं सकता, कोई तुम्हे आध्यात्मिक नहीं बना सकता। तुम्हारी आत्मा के अलावा कोई और गुरु नहीं है।' यदि आप अपने जीवन में उत्कृष्ट बनना चाहते हैं आप को अपने अन्तर मन की बात सुननी पड़ेगी।
उनके अनुसार जीवन में 'एक विचार लो, उस विचार को अपना जीवन बना लो – उसके बारे में सोचो उसके सपने देखो, उस विचार को जियो। अपने मस्तिष्क, मांसपेशियों, नसों, शरीर के हर हिस्से को उस विचार में डूब जाने दो, और बाकी सभी विचार को किनारे रख दो। यही सफल होने का तरीका है।उनका यह भी मानना था जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते हैं । सत्य को हजार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी हर सत्य एक ही होगा।
21वीं सदी में, जब भारत के युवा नई समस्याओं का सामना कर रहे हैं, और बेहतर भविष्य की आकांक्षा कर रहे हैं, तब इस दौर में स्वामी विवेकानंद के विचार अधिक प्रासंगिक हो गए हैं। सार्थक जीवन जीने के लिए उनके चार मन्त्रों द्वारा उनके विचारों को समझा जा सकता है – शारीरिक: शारीरिक खोज से उनका मतलब था, मानव शरीर की देखभाल करना और शारीरिक कष्टों को कम करने के लिए गतिविधियाँ करना। विवेकानंद का विचार था कि युवा तभी सफल जीवन जी सकते हैं जब वे शारीरिक रूप से स्वस्थ हों। सामाजिक मंत्र में विवेकानंद चाहते थे कि युवा न केवल समाज की बेहतरी के लिए बल्कि अपने व्यक्तिगत विकास और सामाजिक विकास के लिए भी गतिविधियां करें। उन्होंने युवाओं को मनुष्य में भगवान की सेवा करने की सलाह दी। विवेकानंद ने अध्यात्म को समाज सेवा से जोड़ा ।
बौद्धिक मंत्र में उन्होंने बौद्धिक खोज यानी स्कूल, कॉलेज चलाने और जागरूकता और अधिकारिता कार्यक्रम चलाने की ऊपर जोर दिया और अपने बौद्धिक स्तर को ऊपर उठाना, ज्ञान प्राप्त करना और इसे समाज के साथ फैलाना है। उन्होंने सुझाव दिया कि भारतीय समाज के पुनर्निर्माण के लिए शिक्षा लोगों को सशक्त बनाने का प्राथमिक साधन है और सबके लिए शिक्षा पर जोर दिया। आध्यात्मिक खोज पर उन्होंने सुझाव दिया कि युवा पश्चिम से बहुत कुछ सीख सकते हैं लेकिन हमें अपनी आध्यात्मिक विरासत में विश्वास रखना चाहिए। आज, जब हमारे युवा भौतिक सफलता के बावजूद बढ़ते अलगाव, उद्देश्यहीनता, अवसाद और खुद को जकड़े हुए पाते हैं, तो उन्हें आध्यात्मिक खोज के लिए जाना चाहिए और अधिक से अधिक लक्ष्य प्राप्त करना चाहिए।
स्वामी जी ने कहा, जीवन छोटा है, लेकिन आत्मा अमर और शाश्वत है, और एक बात निश्चित है, मृत्यु..., आइए हम एक महान आदर्श को अपनाएं और अपना पूरा जीवन इसके लिए त्याग दें। विवेकानंद ने युवाओं के लिए एक आदर्श और लक्ष्य के रूप में इन चार खोजों की सलाह दी। इन मन्त्रों का उद्देश्य समग्र रूप से व्यक्तिगत और राष्ट्रीय चेतना को जगाना था। इसलिए उन्होंने युवाओं का आह्वान किया कि वे अपनी सामूहिक ऊर्जा को राष्ट्र निर्माण की ओर लगाएं। स्वामी विवेकानंद ने भारतीय संस्कृति की जड़ों से जुडऩे के लिए हमारे देश के अन्य महान विचारकों द्वारा किए गए प्रयासों को आगे बढ़ाया। यही कारण है कि उन्हें दुनिया भर में स्वीकार्य है और उन्हें सनातन धर्म के प्रवक्ता के रूप में स्थापित करता है, जो हिंदुस्तान और हिंदुस्तानी संस्कृति का प्रतीक है।
- प्रो. सुरेश चंद्र नायक
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

 

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