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मदर्स डे स्पेशल: इस बार बाजार को ‘अम्मां’ याद आएगी - मनोज कुमार

मदर्स डे स्पेशल: इस बार बाजार को ‘अम्मां’ याद आएगी - मनोज कुमार

ज्यादतर लोग भूल गए हैं कि आज 10 मई है। 10 मई मतलब वैष्विक तौर पर मनाया जाने वाला ‘मदर्स डे’। ‘मदर्स डे’ मतलब बाजार का डे। इस बार यह डे, ड्राय डे जैसा होगा। बाजार बंद हैं। मॉल बंद है। लोग घरों में कैद हैं तो भला किसका और कौन सा ‘मदर्स डे’। अरे वही वाला मदर्स डे जब चहकती-फुदकती बिटिया अम्मां से नहीं, मम्मी से गले लगकर कहती थी वो, लव यू ममा... ममा तो देखों मैं आपके लिए क्या गिफ्ट लायी हूं... इस बार ये सब कुछ नहीं हो पाएगा। इस बार मम्मी, मम्मा नहीं बल्कि मां और अम्मां ही याद आएगी। ‘मदर्स डे’ सेलिब्रेट करने वाले बच्चों को इस बार अम्मां के हाथों की बनी खीर पूड़ी से ही संतोष करना पड़ेगा। मम्मा के लिए गिफ्ट लाने वाले बच्चे अब अम्मां कहकर उसके आगे पीछे रसोई घर में घूूमेंगे। बच्चों से ज्यादा इस बार बाजार को अम्मां याद दिलाएगी। मां के लाड़ को, उसके दुलार को वस्तु बना दिया था बाजार ने। यह घर वापसी का दौर है। रिष्तों को जानने और समझने का दौर है। कोरोना के चलते संकट बड़ा है लेकिन उसने घर वापसी के रास्ते बना दिए हैं। ‘मदर्स डे’ तो मॉल में बंद रह गया लेकिन किचन से अपनी साड़ी के पल्लू से जवान होती बिटिया के माथे से पसीना पोंछते और उसे दुलारने का मां का खालीपन इस ‘मदर्स डे’ पर भरने लगा है।
साल 2020 के शुरूआत में ही कोरोना ने दस्तक देना शुरू कर दिया था। दबे पांव मौत के इस साये से हम बेखौफ थे लेकिन दिन गुजरने के साथ हमारी घर वापसी होने लगी। मार्च के दूसरे पखवाड़े में तो लोग लॉकडाउन हो चुके थे। कुछ दुस्साही लोगों को परे कर दे ंतो अधिसंख्य अपने घरों में थे। भारतीय परिवारों में मार्च के बाद से छोटे छोटे पर्व की शुरूआत हो जाती है। अक्षय तृतीया के साथ ही शादी-ब्याह का सिलसिला भी शुरू हो जाता है। लेकिन कोरोना ने सब पर पाबंदी लगा दी। कह दिया घर में रहो। अपनों को जानो और अपनों को समझने की कोषिष करो। इसी दरम्यान वैष्विक रूप से मनाया जाने वाला ‘मदर्स डे’ भी आकर निकलने वाला है। बाजार ठंडे हैं। शॉपिंग मॉल के दरवाजों पर ताले जड़े हैं। ऑन लाईन भी ममा को प्यार करने वाला तोहफा नहीं मिल रहा है। सही मायने में इस बार ‘मदर्स डे’ की जगह मातृ दिवस होगा। बच्चे मां के हाथों का बना खाना खाकर तृप्त हो रहे हैं। मां स्वयं को धन्य मान रही है कि ममा से वह एक बार फिर अम्मां बन गई है। कोई नकलीपन उन्हें छू तक नहीं पा रहा है। ना महंगे तोहफे हैं और ना बड़े होटल में ‘मदर्स डे’ की कोई पार्टी। सच में इस बार अम्मां का दिन है। डे की जगह उत्सव का दिन।
‘मदर्स डे’ तो नहीं मना पा रहे हैं। लेकिन एक सवाल मन में है कि क्या जो लोग बड़े उत्साह से ‘मदर्स डे’ पर महंगे तोहफे अपनी ममा को दिया करते थे, आज वे अपनी अम्मां के पैर छूकर आषीर्वाद ले रहे हैं? शायद नहीं क्योंकि ‘मदर्स डे’ बाजार का दिया दिन है। जिनके जेब में दम है, उनके लिए ‘मदर्स डे’ है और जो कंगाल हैं, उनके लिए बाजार में कोई जगह नहीं है। ‘मदर्स डे’ मनाने वाले हमारे बच्चे अपनी संस्कृति और परम्परा से कब के बेगाने हो चुके हैं। माता-पिता के चरण स्पर्ष करना उन्हें गंवारा नहीं है। वे हर बार, हर बात पर उपहार देकर अपना प्यार जताते हैं। इस बहाने ही सही, अपने बड़े और कमाऊ बन जाने का एहसास भी माता-पिता को कराते हैं। यह प्यार नहीं है बल्कि अर्थ और शक्तिवान बन जाने का प्यार है। अम्मां प्यार नहीं करती है। वह स्नेह करती है। बाजार इस बार हार गया है। कोरोना ने उसे भी परास्त कर दिया है। अम्मां जीत गई है। हालांकि बच्चों के लिए बार बार और हर बार अम्मां को हारना ही पसंद है।
दो दषक से ज्यादा समय से बाजार ने समाज को निगल लिया है। समाज अब अपनी नजर से नहीं चलता है। समाज की चलती भी नहीं है। समाज की मान्य परम्परा और स्वभाव तिरोहित होते जा रहे हैं। बाजार समाज को निर्देषित कर रहा है। एक हद तक नियंत्रित भी। बाजार कहता है वह सर्वोपरि हो चुका है। हमारी समूची जीवनषैली को बाजार ने बदल दिया है। हम और आप वही सोचते हैं। वही करते हैं। वही देखते और सुनते हैं। जो बाजार हमें देखने सुनने को कहता है। कौन सा कपड़ा हमारे देह को फबेगा, यह हम तय नहीं करते हैं। बाजार तय करता है कि हमें क्या पहनना है। भले ही उस पहनावे में हम भोंडे और बदषक्ल दिखें। बदषक्ली और बदजुबानी हमारी जीवनषैली बन चुकी है। इसे हम फैषन कहते हैं। बाजार कहता है कि ऐसा नहीं करोगे तो पिछड़ जाओगे। हम आगे बढ़ने के फेर में कितने पीछे चले जा रहे हैं, इस पर हम बेखबर हैं।
नए जमाने की ममा अपने बच्चों को स्तनपान कराने से बचती है क्योंकि उसकी ब्यूटी खराब हो जाएगी। वह अपने नन्हें बच्चे को नैफी पहनाना पसंद करती है। वह इस बात से भी बेखबर है कि बच्चे को मालिष की जरूरत है। खान-पान के लिए उसके पास वक्त नहीं है। बाजार कहता है कि जैसे नैफी खरीदो वैसे ही उसके लिए महंगे ब्रांड के तेल ले आओ। आया रखो क्योंकि तुम आफिस में काम करती थक जाती हो। तुम्हारे लिए यही बच्चा ‘मदर्स डे’ का आगे गिफ्ट लेकर आएगा। दोनों खुष और बाजार आनंद में। बाजार अम्मां को अपनी गिरफ्त में नहीं ले पाता है तो कहता है ये पुराने जमाने की हैं। अब जमाना बदल गया है। इन्हें कुछ भी नहीं मालूम। लेकिन एक अम्मां है जो टकटकी लगाए देख रही है। उसे ममा कहलाना पसंद नहीं है। उसका दुलार अम्मां सुन लेने में है। वह जानती है कि दादी-नानी के हाथों की मॉलिष से बच्चा खिलखिला उठता है। आया तो एक टूल है। उसके पास हुनूर है। दुलार नहीं। उसके पास मां का प्यार भी नहीं है। वह नौकरी करती है। अम्मां हौले से नए जमाने की बेटी-बहू को समझाती है मां का दूध बच्चे के लिए अमृत होता है। इससे मां की सुंदरता निखरती है। कम नहीं होती है। उसके पास अनुभव का खजाना है। वह अपने आपमें किताब है। एक चलती फिरती जीवन की पाठषाला है।
कोरोना तुझे ममा से अम्मां के पास ले आने के लिए शुक्रिया तो बोलना चाहता हूं लेकिन बोल नहीं पाऊंगा। तूने अम्मां को उसके बच्चे लौटाए। ‘मदर्स डे’ के नए मायने समझाए। प्रकृत्ति को उसका वैभव वापस किया। लोगों का जिंदगी का अर्थ भी समझाने में तूने अपना रोल अदा किया। लेकिन फिर भी हम तुझे नाषुक्र कहेंगे क्योंकि तूने किसी का पिता, किसी का बेटा और किसी की मां तो किसी से उसकी बहन छीन लिया। तूने काम कुछेक अच्छे किए लेकिन तेरा अपराध इससे कम नहीं हो जाता है। हम तुझे याद करेंगे लेकिन उस तरह से जिसने दिया बहुत कुछ तो उससे ज्यादा छीन भी लिया। खैर, बाजार को इस बार अम्मां याद आ रही है क्योंकि बाजार से मदर गायब है। इस बार ‘मदर्स डे’ नहीं लेकिन किचन की मां का उत्सव हमें याद रहेगा। आंगन में तुलसी के पौधे को पानी देते। राधा-ष्याम के लिए भजन गाती अम्मां जब आंखें तरेर कर कहती है चुप हो जाओ तो लगता है हर घर में, सही मायने में ‘मदर्स डे’ का उत्सव हो गया है।


- मनोज कुमार
वरिष्ठ पत्रकार

 

 

समस्त तिथियों से सबसे विशेष स्थान प्राप्त है अक्षय तृतीया को, जानिए इस दिन का महत्व एवं इस वर्ष का शुभ मुहूर्त

समस्त तिथियों से सबसे विशेष स्थान प्राप्त है अक्षय तृतीया को, जानिए इस दिन का महत्व एवं इस वर्ष का शुभ मुहूर्त

पौराणिक मान्यता है कि इस तिथि में आरंभ किए गए कार्यों को कम से कम प्रयास में ज्यादा से ज्यादा सफलता मिलती है। अक्षय तृतीया में 42 घटी और 21 पल होते हैं। ‘अक्षय तृतीया’ के रूप में प्रख्यात वैशाख शुक्ल तीज को स्वयं सिद्ध मुहूर्तों में से एक माना जाता है।

अध्ययन आरंभ करने के लिए यह सर्वश्रेष्ठ दिन है। सोना खरीदने के लिए यह श्रेष्ठ काल माना गया है। अक्षय तृतीया कुंभ स्नान व दान पुण्य के साथ पितरों की आत्मा की शांति के लिए आराधना का दिन भी माना गया है।

अक्षय तृतीया के पावन पर्व को कई नामों से पहचाना जाता है। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को 'अक्षय तृतीया' या 'आखातीज' कहते हैं। 'अक्षय' का शाब्दिक अर्थ है- जिसका कभी नाश (क्षय) न हो अथवा जो स्थायी रहे। स्थायी वही रह सकता है जो सदा शाश्वत है।
इस पृथ्वी पर सत्य केवल परमात्मा है जो अक्षय, अखंड और सर्वव्यापक है यानी अक्षय तृतीया तिथि ईश्वर की तिथि है। इसी दिन नर-नारायण, परशुराम और हयग्रीव का अवतार हुआ था इसलिए इनकी जयंतियां भी अक्षय तृतीया को मनाई जाती है।

परशुरामजी की गिनती 7 चिंरजीवी विभूतियों में की जाती है। इसी वजह से यह तिथि 'चिरंजीवी तिथि' भी कहलाती है। चार युग- सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग और कलयुग में से त्रेतायुग का आरंभ इसी अक्षय तृतीया से हुआ है।
अंकों में विषम अंकों को विशेष रूप से '3' को अविभाज्य यानी ‘अक्षय’ माना जाता है। तिथियों में शुक्ल पक्ष की ‘तीज’ यानी तृतीया को विशेष महत्व दिया जाता है। वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को समस्त तिथियों से सबसे विशेष स्थान प्राप्त है।

भारतीय शास्त्रों में 4 अत्यंत शुभ सिद्ध मंगल मुहूर्त माने गए हैं, जो निम्न है- 1. गुड़ी पड़वा। 2. अक्षय तृतीया। 3. दशहरा। 4. दीपावली के पूर्व की प्रदोष। शास्त्रों में अक्षय तृतीया को स्वयंसिद्ध मुहूर्त माना गया है। अक्षय तृतीया के दिन मांगलिक कार्य जैसे-विवाह, गृहप्रवेश, व्यापार अथवा उद्योग का आरंभ करना अति शुभ फलदायक होता है। तिथि का उन लोगों के लिए विशेष महत्व होता है। जिनके विवाह के लिए ग्रह-नक्षत्र मेल नहीं खाते।

इस शुभ तिथि पर सबसे ज्यादा विवाह संपन्न होते हैं। अक्षय तृतीया पर सूर्य व चंद्रमा अपनी उच्च राशि में रहते हैं। सही मायने में अक्षय तृतीया अपने नाम के अनुरूप शुभ फल प्रदान करती है।

अक्षय तृतीया इस बार 26 अप्रैल 2020 को है लेकिन इस दौरान भारत में लॉकडाउन रहेगा। आइए जानिए सबसे अच्छे मुहूर्त...

अक्षय तृतीया 2020 शुभ मुहूर्त

तृतीया तिथि प्रारम्भ – सुबह 11 बजकर 51 मिनट बजे से (25 अप्रैल 2020)
अक्षय तृतीया तिथि समाप्त – अगले दिन दोपहर 01 बजकर 22 मिनट तक (26 अप्रैल 2020)

अक्षय तृतीया पूजा मुहूर्त – सुबह 5 बजकर 45 मिनट से दोपहर 12 बजकर 19 मिनट तक (26 अप्रैल 2020)

अक्षय तृतीया पर सोना खरीदने का समय – रात 11 बजकर 51 मिनट (25 अप्रैल 2020) से सुबह 05 बजकर 45 मिनट तक (26 अप्रैल 2020)
अक्षय तृतीया पर सोना खरीदने का समय – सुबह 5 बजकर 45 मिनट से दोपहर 1 बजकर 22 मिनट तक (26 अप्रैल 2020)

अक्षय तृतीया 2020 शुभ चौघड़िया मुहूर्त

प्रातः मुहूर्त (चर, लाभ, अमृत) – सुबह 7 बजकर 23 मिनट से दोपहर 12 बजकर 19 मिनट तक

अपराह्न मुहूर्त (चर, लाभ, अमृत) – दोपहर 12 बजकर 19 मिनट से शाम 5 बजकर 14 मिनट तक
शाम मुहूर्त (लाभ) – शाम 6 बजकर 53 मिनट से रात 8 बजकर 14 मिनट तक

रात्रि मुहूर्त (शुभ, अमृत, चर) – रात 9 बजकर 36 मिनट से रात 1 बजकर 40 मिनट तक

उषाकाल मुहूर्त (लाभ) – सुबह 4 बजकर 23 मिनट से सुबह 5बजकर 45 मिनट तक

 

 

हनुमान जन्मोत्सव 2020 : जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, कथा और 5 मंत्र

हनुमान जन्मोत्सव 2020 : जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, कथा और 5 मंत्र

हनुमान जंयती के दिन बजरंग बली की विशेष पूजा अर्चना की जाती है, पुराणों के अनुसार इन्हें भगवान शिव का 11वां रूद्र अवतार माना जाता है। हनुमान जी के पिता का नाम वनरराज केसरी और माता का नाम अंजना था....
आइए जानते हैं हनुमान जंयती 2020 शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि...

हनुमान जयंती 2020 तिथि

8 अप्रैल 2020

हनुमान जयंती 2020 शुभ मुहूर्त

पूर्णिमा तिथि प्रारंभ- दोपहर 12 बजकर 1 मिनट से (7 अप्रैल 2020)
पूर्णिमा तिथि समाप्त - अगले दिन सुबह 8 बजकर 4 मिनट तक (8 अप्रैल 2020)


हनुमान जी की पूजा विधि

1. हनुमान जी की पूजा में ब्रह्मचर्य का विशेष रूप से ध्यान रखा जाता है। इसलिए आपको हनुमान जंयती के एक दिन पहले से ही ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।

2. इसके बाद एक चौकी पर गंगाजल छिड़कें और उस पर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं..
3.कपड़ा बिछाने के बाद भगवान श्री राम और माता का स्मरण करें और एक चौकी पर भगवान राम, सीता और हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित करें।

4.इसके बाद हनुमान जी के आगे चमेली के तेल का दीपक जलाएं और उन्हें लाल पुष्प, चोला और सिंदूर अर्पित करें।

5. ये सभी चीजें अर्पित करने के बाद , हनुमान चालीसा , हनुमान जी के मंत्र और श्री राम स्तुति का पाठ अवश्य करें।

6. इसके बाद हनुमान जी की विधिवत पूजा करें और यदि संभव हो तो इस दिन रामयाण का पाठ भी अवश्य करें।
7. हनुमान जी की विधिवत पूजा करने के बाद उनकी धूप व दीप से आरती अवश्य उतारें।

8. इसके बाद हनुमान जी की आरती उतारें और उन्हे गुड़ चने और बूंदी के प्रसाद का भोग लगाएं ।

9. भोग लगाने के बाद हनुमान जी से क्षमा याचना अवश्य करें। क्योंकि अक्सर पूजा में जानें अनजाने कोई न कोई भूल हो जाती है।

10.अगर हो सके तो इस दिन बंदरो को गुड़ और चना अवश्य खिलाएं। इस दिन बंदरों को गुड़ और चना खिलाना काफी शुभ माना जाता है।

हनुमान जी जन्म कथा

राम भक्त हनुमान जी को कलयुग का सबसे प्रभावशाली देवता और भगवान शिव का 11वां रूद्र अवतार माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार जिस समय जिस समय असुरों और देवताओं ने अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन किया था। तब अमृत के लिए देवता और असुर आपस में ही झगड़ा होने लगा। इसके बाद भगवान विष्णु ने मोहनी रूप धारण किया। जब भगवान शिव ने भगवान विष्णु के मोहिनी रूप को देखा तो भगवान शंकर वासना में लिप्त हो गए। उस समय भगवान शिव ने अपने वीर्य का त्याग कर दिया। उस वीर्य को पवनदेव ने अंजना के गर्भ में स्थापित कर दिया।
जिसके बाद अंजना के गर्भ से हनुमान जी ने जन्म लिया था। वनराज केसरी और अंजना ने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया था कि वह अंजना के कोख से जन्म लेंगे। हनुमान जी को वायुपुत्र भी कहा जाता है। क्योंकि जिस समय हनुमान जी ने सूर्य को निगल लिया था। उस समय इंद्र ने उन पर व्रज से प्रहार किया था। जिसके बाद पवनदेव ने तीनों लोकों से वायु का प्रवाह बंद कर दिया था। इसके बाद सभी देवताओं ने हनुमान जी को आर्शीवाद दिया था।

हनुमान जी के मंत्र

1.ॐ अं अंगारकाय नमः

 

2.मनोजवं मारुततुल्यवेगं, जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं, श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥

 

3.ॐ हं हनुमते नम:

 

4.अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥


5.ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट

 

सम्पादकीय: कोरोना संक्रमण को लेकर कठघरे में चीन - नीरज श्रीवास्तव

सम्पादकीय: कोरोना संक्रमण को लेकर कठघरे में चीन - नीरज श्रीवास्तव

कोरोना महामारी पर इटली की मदद को पहुंची चीनी रेडक्रॉस टीम ने वहां पहुंचने पर इटैलियन प्रयासों की आलोचना करते हुए कहा : 'इटली में न तो क्वारंटाइन ढंग से किया जा रहा है, न ही देशव्यापी लॉकडाउन को गंभीरता से ले रहे हैं। 12 मार्च को चीन के विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता लिजियन झाओ ने ट्वीट कर कहा था : 'कोविड-19 वायरस का उद्गम स्थल अमेरिका है। जाहिर है झाओ का यह आरोप उटपटांग है क्योंकि अगर वाकई अमेरिका ने इस तरह का कुछ काम किया होता तो सबसे पहले अपनी आबादी के बचाव के लिए सुरक्षा उपाय अपनाए होते, वह भी यह बात भलीभांति जानते हुए कि वायरस अंतत: उसके अपने इलाके तक भी आन पहुंचेगा। ऐसे में जो विकट स्थिति वहां आज बन गई है, उसमें खुद को न पाता।
इस आरोप पर अमेरिकी राष्ट्रपति इस कदर नाराज हुए कि उन्होंने 18 मार्च को प्रेस वार्ता करते हुए न केवल कड़ी नाराजगी जाहिर करते हुए इसे नकारा बल्कि कोविड-19 को 'चाइनीज़ वायरस का नाम दे डाला। इस शब्द को उन्होंने आगे कई बार दोहराया भी है। 18 मार्च को ब्राज़ील के राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो का बेटा एडुअर्डो बोल्सोनारो कोरोना पॉजीटिव पाया गया। उन्होंने ट्वीट किया, जिसका भाव था कि कोरोना महामारी में चीन की भूमिका ठीक वैसी लीपापोती वाली रही है जैसी चैर्नोबिल परमाणु बिजलीघर हादसे में तत्कालीन सोवियत संघ सरकार की रही थी यानी चीजों को ढांपना। उन्होंने आगे कहा : यह गलती सरासर चीन की है और जवाब है जांच करने की आजादी।
बोल्सनारो के यह शब्द ट्रंप के कहे शब्दों की प्रतिध्वनि जैसे ही हैं, इस पर उत्तेजित होकर ब्रासीलिया स्थित चीनी दूतावास ने गुस्साए प्रतिकर्म में ट्वीट किया कि बोल्सनारो को वस्तुत: 'मैंटल वायरस चिपक गया है जबकि वे कुछ दिन पहले अमेरिका गए थे। चीनी दूतावास के ट्वीट में कहा गया : 'अफसोस है कि आप ऐसे व्यक्ति हैं, जिनके अंदर किसी तरह का अंतर्राष्ट्रीय दूरअंदेशी भरा या सामान्य ज्ञान नहीं है, हमारा आपको परामर्श है कि जल्दबाजी में ब्राजील में अमेरिका के प्रवक्ता न बनें या सतही बात न करें। पॉजीटिव पाए गए एडुअर्डो अपने पिता के मुख्य विदेश नीति सलाहकार भी हैं और विदेश मामलों पर देश की संसदीय कमेटी के मुखिया भी हैं। उपरोक्त प्रसंग दो चीजों की ओर इंगित करते है : पहला, चीन हरचंद तरीके से नकार रहा है कि कोविड-19 का उद्गम वुहान से हुआ है। दूसरा, चीन वायरस को लेकर बनी धारणा को यह कहकर घुमाने में लगा है कि चीनी प्रशासन ने बाकी चीन के अंदर कोरोना का फैलाव रोकने में वीरतापूर्ण काम कर दिखाया है और अब वह दूसरे देशों को वायरस की रोकथाम अपनी सीमा तक रखने में मदद की पेशकश कर रहा है।
उपरोक्त दोनों ही बिंदु गलत हैं और इसे सिद्ध करने के सबूत हैं। 1 जनवरी को चीनी प्रकाशन ग्लोबल टाइम्स में छपे एक लेख में कहा गया : 'वुहान के सी-फूड (समुद्री जीवों की मांस मंडी) को 27 दिसम्बर के बाद से बंद कर दिया है, जब 27 लोग अनजाने वायरस के कारण हुए निमोनिया से ग्रस्त पाए गए हैं। इनमें ज्यादातर इस मंडी में काम करने वाले दुकानदार या कर्मी हैं।Ó 22 फरवरी को अखबार में छपे एक अन्य लेख में बताया गया : 'दिसंबर के उत्तरार्द्ध में वुहान सी-फूड मंडी से शुरू हुए वायरस का फैलाव बड़े स्तर पर हो गया है।Ó
अब सवाल है : चीनी प्रशासन ने उस वक्त क्या किया जब वुहान में दिसम्बर के पहले दिनों में वायरस ने अपना प्रकोप दिखाना शुरू किया था उत्तर है : कुछ नहीं। इस तरह तीन हफ्ते से ज्यादा का समय खो दिया जाता है। 23 जनवरी को वुहान में लॉकडाउन की घोषणा की जाती है, नतीजा यह कि और तीन सप्ताह हाथ से निकल गए। इस तरह देखा जाए तो जब वुहान में पहली बार वायरस की पहचान हुई तब से लेकर चीनी प्रशासन ने लगभग 7-8 हफ्तों तक न कोई ठोस काम किया न ही बाकी की दुनिया को इसकी कोई आधिकारिक चेतावनी जारी की और इस दौरान यह वायरस दुनियाभर में फैल गया, जिससे अभूतपूर्व स्तर का वैश्विक संकट उत्पन्न हो गया है।
यहां यह सवाल करने से कोई खुद नहीं रोक नहीं पाएगा कि अगर यह वायरस अमेरिका या किसी अन्य देश ने चीन पहुंचाया होता तो क्या चीन इतने दिनों तक इस पर चुप्पी साधे रखता इसका उत्तर सीधा है : नहीं। इसके अलावा जब चीन के अपने समाचारपत्र ग्लोबल टाइम्स की खबर कहती है कि वुहान में दिसम्बर माह के शुरू में वायरस का फैलाव वृहद स्तर पर हुआ था तो 23 जनवरी को वुहान का लॉकडाउन करना यानी लगभग 7-8 हफ्ते बाद साहसिक फैसला कैसे हुआ इसके अतिरिक्त, जैसा कि विश्वभर का मीडिया बताता है कि चीनी प्रशासन ने ली वेनलियांग नामक 34 वर्षीय उस डॉक्टर को तंग किया और चुप करा दिया, जिसने सबसे पहले 30 दिसंबर को अपनी खोज के बाद कोरोना वायरस को लेकर चेतावनी दी थी। वुहान केंद्रीय अस्पताल में काम करते हुए संक्रमित होने, खुद उसकी मौत 7 फरवरी को हो जाती है।
कोरोना वायरस की असली कहानी में बताया जाना चाहिए कि इस वायरस का उद्गम वुहान की सी-फूड मार्किट से हुआ है और चीनी प्रशासन ने कई हफ्तों तक इसके फैलाव की जानकारी बाकी दुनिया से दबा कर रखी। जब तक कि उसके लिए और आगे छुपाकर रखना असंभव नहीं बन गया। इस तरह चीन ने इस वायरस का निर्यात दुनियाभर में किया है, जो अब इसको नियंत्रित करने में बुरी तरह से हाथ-पांव मार रहा है। इसी बीच अपने देश में कोरोना वायरस पर नियंत्रण पा लेने के बाद चीनी अब अमेरिका पर कोविड-19 बनाने का इल्जाम लगाने में मशगूल हैं। चीन ने यह समस्या न केवल अपने लिए खड़ी की बल्कि पूरे विश्व के लिए हाहाकारी स्तर का जीवन-मरण की बन आई है, हजारों लोग मारे जा चुके हैं और आर्थिकी तबाह हो गई है। इस चूक के लिए विश्व को चीन की बनाई काल्पनिक कहानी पर यकीन करके उसको कठघरे से बाहर नहीं करना चाहिए।
पूरी दुनिया, खासकर भारत को इस संकट से कुछ महत्वपूर्ण शिक्षा लेनी होगी। उसमें एक यह है कि सामरिक महत्व की वस्तुओं के लिए चीन पर निर्भरता, खासकर भारतीय दवा उद्योग के लिए दवाओं में इस्तेमाल होने वाले अवयवों की आपूर्ति करना बंद करना होगा क्योंकि इनका 70 प्रतिशत चीन से आयात किया जाता है। सामरिक वस्तुओं में आत्मनिर्भरता बनानी होगी भले ही इसके लिए लागत ज्यादा क्यूं न आए। वैसे भी चीनी नेताओं का रिकार्ड रहा है कि कालांतर में वे सामरिक वस्तुओं का निर्यात उन देशों को रोक देते हैं, जिन्हें सबक सिखाना होता है (जैसे कि रेयर अर्थ मिनरल्स में किया है)
उम्मीद की जाए कि कोरोना वायरस का संकट अंतत: भारत के नीति-नियंताओं को यह अहसास करवा देगा कि मोबाइल में 5-जी सर्विस का ठेका चीनी कंपनी हुआवे को न दिया जाए। हम सामरिक महत्व के दूरसंचार नेटवर्क को चीन जैसे गैर-भरोसेमंद और विरोधी रहे देश को सौंपना गवारा नहीं कर सकते।
 

कैसे करें होलिका दहन की पूजा, यहां जानिए विधि, मुहूर्त और कथा

कैसे करें होलिका दहन की पूजा, यहां जानिए विधि, मुहूर्त और कथा

आइए जानते हैं इस साल कब मनाई जाएगी होली, कब होगा होलिका दहन, क्या है शुभ मुहूर्त...

कब मनाई जाएगी होली
10 मार्च, मंगलवार को रंगों का त्योहार होली मनाई जाएगी।

कब होगा होलिका दहन?
9 मार्च, सोमवार को होलिका दहन किया जाएगा।

होलिका दहन 2020 शुभ मुहूर्त

संध्या काल में- 06 बजकर 22 मिनट से 8 बजकर 49 मिनट तक
भद्रा पुंछा - सुबह 09 बजकर 50 मिनट से 10 बजकर 51 मिनट तक
भद्रा मुखा : सुबह 10 बजकर 51 मिनट से 12 बजकर 32 मिनट तक

यह है सही विधि
होलिका दहन होने के बाद होलिका में जिन वस्तुओं की आहुति दी जाती है, उनमें कच्चे आम, नारियल, भुट्टे या सप्तधान्य, चीनी के बने खिलौने, नई फसल का कुछ भाग है। सप्तधान्य हैं गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर।

होलिका दहन करने से पहले होली की पूजा की जाती है। इस पूजा को करते समय पूजा करने वाले व्यक्ति को होलिका के पास जाकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए। पूजा करने के लिए निम्न सामग्री को प्रयोग करना चाहिए-

एक लोटा जल, माला, रोली, चावल, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल आदि का प्रयोग करना चाहिए। इसके अति‍रिक्त नई फसल के धान्यों जैसे पके चने की बालियां व गेहूं की बालियां भी सामग्री के रूप में रखी जाती हैं।

इसके बाद होलिका के पास गोबर से बनी ढाल तथा अन्य खिलौने रख दिए जाते हैं।

होलिका दहन मुहूर्त समय में जल, मौली, फूल, गुलाल तथा ढाल व खिलौनों की चार मालाएं अलग से घर से लाकर सु‍‍रक्षित रख ली जाती हैं। इनमें से एक माला पितरों के नाम की, दूसरी हनुमानजी के नाम की, तीसरी शीतलामाता के नाम की तथा चौथी अपने घर-परिवार के नाम की होती है।

कच्चे सूत को होलिका के चारों ओर तीन या सात परिक्रमा करते हुए लपेटना होता है। फिर लोटे का शुद्ध जल व अन्य पूजन की सभी वस्तुओं को एक-एक करके होलिका को समर्पित किया जाता है। रोली, अक्षत व पुष्प को भी पूजन में प्रयोग किया जाता है। गंध-पुष्प का प्रयोग करते हुए पंचोपचार विधि से होलिका का पूजन किया जाता है। पूजन के बाद जल से अर्घ्य दिया जाता है।

सुख और समृद्धि के लिए पढ़ें होली का शुभ मंत्र -

होली पर कई सारे टोटके और मंत्र आजमाए जाते हैं। लेकिन सही मायनों में मात्र एक ही मंत्र है जिसके जप से होली पर पूजा की जाती है और इसी शुभ मं‍त्र से सुख, समृद्धि और सफलता के द्वार खोले जा सकते हैं।
अहकूटा भयत्रस्तै:कृता त्वं होलि बालिशै: अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम:

इस मंत्र का उच्चारण एक माला, तीन माला या फिर पांच माला विषम संख्या के रूप में करना चाहिए।

होलिका दहन कथा

शास्त्रों के अनुसार होलिका दहन की परंपरा भक्त और भगवान के संबंध का अनोखा एहसास है। कथानक के अनुसार भारत में असुरराज हिरण्यकश्यप राज करता था। उनका पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था, लेकिन हिरण्यकश्यप विष्णु द्रोही था।


हिरण्यकश्यप ने पृथ्वी पर घोषणा कर दी थी कि कोई देवताओं की पूजा नहीं करेगा। केवल उसी की पूजा होगी, लेकिन भक्त प्रहलाद ने पिता की आज्ञा पालन नहीं किया और भगवान की भक्ति लीन में रहा। हिरण्यकश्यप ने पुत्र प्रहलाद की हत्या कराने की कई बार कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हो पाया तो उसने योजना बनाई। इस योजना के तहत उसने बहन होलिका की सहायता ली। होलिका को वरदान मिला था, वह अग्नि से जलेगी नहीं।

योजना के तहत होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई, लेकिन भगवान ने भक्त प्रहलाद की सहायता की। इस आग में होलिका तो जल गई और भक्त प्रहलाद सही सलामत आग से बाहर आ गए। तब से होलिका दहन की परंपरा है।
 

कोरोना वायरस के डर से बेरंग न करें अपनी होली, बस अपनाएं ये खास टिप्स

कोरोना वायरस के डर से बेरंग न करें अपनी होली, बस अपनाएं ये खास टिप्स

कोरोना वायरस का खौफ इस समय पूरी दुनिया में फैला हुआ है. लोग इतना डर गए हैं कि भीड़ भाड़ वाले इलाके में जाने से डर रहे हैं. ऐसे में होली के त्योहार को लेकर लोगों में चिंता बढ़ गई है. ऐसे में अटकलें ये भी लगाई जा रही हैं कि इस खतरनाक वायरस का प्रकोप होली के त्योहार में और ज्यादा बढ़ सकता है. हालांकि सिर्फ कोरोनावायरस ही नहीं किसी भी प्रकार के वायरस से बचने के लिए लोगों को सतर्क रहने की जरूरत होती है.
दरअसल होली में लोग एक जगह पर जमा होते हैं और साथ ही पानी का भी खूब इस्तेमाल करते हैं. ऐसी स्थिति में वायरस का संक्रमण लोगों को इफेक्ट कर सकता है लेकिन ऐसा भी नहीं है कि किसी चीज के डर से होली के त्योहार का आनंद ही न लिया जा सके. पर्व-त्योहार के जश्न में हम कई बार चीजों को अनदेखा कर देते हैं. होली के मौके पर हमें विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है. आइए आपको बताते हैं कुछ खास टिप्स के बारे में जिन्हें ध्यान में रखकर आप कोरोनावायरस या फिर किसी दूसरे प्रकार के इंफेक्शन से बचाव करते हुए होली खेल सकें.
होली का त्योहार वैसे तो रंग और गुलाल का होता है लेकिन इंफेक्शन और वायरस से बचाव के लिए इस बार पानी वाली होली से दूर रहना की सही होगा. गंदे पानी से होली खेलने से बचें.
कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए सूखी होली कारगर हो सकती है. जितना हो सके हर्बल रंगों के साथ ही होली खेलें. रंग लगाने के लिए गुलाल का इस्तेमाल करें.
होली के जश्न में स्वास्थ्य लक्षणों को नजरअंदाज न करें. इस दौरान ध्यान रखें कि नाक या आंखों से पानी न आए. इन्हें इग्नोर करने की गलती बिल्कुल भी न करें और ऐसा होने पर तुरंत डॉक्टर से सलाह लें.
कोशिश करें कि भीड़ वाली जगह पर कम जाएं. बेहतर होगा कि अपने घर पर ही एक दूसरे के साथ होली खेलें. बच्चों को होली की भीड़ वाली पार्टी से दूर रखें. उन्हें होली के गंदे पानी से बचाकर रखें.होली के दिन अगर बाहर से कोई मेहमान आपके घर आ रहा है तो उसे सेनेटाइजर इस्तेमाल कराने के बाद ही रंग लगाने दें. सार्वजनिक जगहों पर जाते वक्त मास्क पहनना बिल्कुल न भूलें. होली की पार्टी में मास्क और चश्मा पहनकर जाएं. सूखे रंगों के साथ होली खेलें.
इस होली पर एक दूसरे को पूरी तरह से गीले रंगों में भिगोने की जगह माथे पर गुलाल से तिलक लगाकर होली मनाएं.
होली के दिन बाजार की बनी मिठाइयों के जगह घर की बनी मिठाइयों का इस्तेमाल करें.
होली खेलने के बाद अच्छे से नहाएं और साफ कपड़े पहनें.

 

देश में ऐसे कई स्थान हैं जहां कि होली देखने और खेलने का अपना अलग ही मजा है, आइये जाने कौन कौन सी है वो जगह

देश में ऐसे कई स्थान हैं जहां कि होली देखने और खेलने का अपना अलग ही मजा है, आइये जाने कौन कौन सी है वो जगह

भारत में होली का त्योहार बहुत ही मजेदार और रंगिला होता है। कई लोग होली मनाने के लिए अपने घर या शहर से बहार जाते हैं। कई लोग जो गांव छोड़कर शहरों में काम कर रहे हैं वे अपने गांव जाते हैं। हालांकि देश में ऐसे कई स्थान हैं जहां कि होली देखने और खेलने का अपना अलग ही मजा है। ऐसे 11 स्थान हम आपके लिए चुन कर लाएं हैं।

1. ब्रज मंडल की होली : ब्रज मंडल में मथुरा, बरसाना, गोकुल, वृंदावन, गोवर्धन नंदगाव आदि कई गांव और शहर आते हैं। इसमें से बरसाना और नंदगाव की होली देखने और उसमें शामिल होना का अपना अलग ही मजा है। यहां लट्ठमार होली का शानदार आयोजन होता है।


2. मुंबई की होली : मायानगरी मुंबई को पहले बॉम्बे कहा जाता था। यहां जिस तरह गणेश उत्सव की धूम रहती है उसी तरह यहां होली की धूम भी रहती है। यहां गोविंदा होली मनाई जाती है। महाराष्ट्र और गुजरात के क्षेत्रों में गोविंदा होली अर्थात मटकी-फोड़ होली खेली जाती है। इस दौरान रंगोत्सव भी चलता रहता है।

3. आनंदपुर साहिब की होली : पंजाब में होली को 'होला मोहल्ला' कहते हैं। पंजाब में होली के अगले दिन अनंतपुर साहिब में 'होला मोहल्ला' का आयोजन होता है। ऐसा मानते हैं कि इस परंपरा का आरंभ दसवें व अंतिम सिख गुरु, गुरु गोविंदसिंहजी ने किया था। इस दौरान शारीरिक शक्ति का प्रदर्शन किया जाता है।


4. उदयपुर, जयपुर की होली : राजस्थान के उदयपुर में 'रॉयल होली उत्सव' मनाया जाता है। होली से पहले उदयपुर, मेवाड़ राज परिवार के घोड़ों के शानदार जुलूस निकलते हैं जिसके बाद शहर सुंदर रंगों से सराबोर हो जाता है। इसी तरह की होली का आयोजन जयपुर में भी होती है। जयपुर होली उत्सव में हाथी और घोड़ों को वस्त्र और रंगों से सजाया गया है। समारोह में हाथी प्रतियोगिता और टग-ऑफ-युद्ध शामिल हैं। यहां की होली को देखने के लिए भी देश-विदेश से लोग एकत्रित होते हैं।

5. भगोरिया उत्सव : मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के आदिवासियों में होली की खासी धूम होती है। मध्यप्रदेश में झाबुआ के आदिवासी क्षेत्रों में भगोरिया नाम से होलिकात्वस मनाया जाता है। भगोरिया के समय धार, झाबुआ, खरगोन आदि क्षेत्रों के हाट-बाजार मेले का रूप ले लेते हैं और हर तरफ फागुन और प्यार का रंग बिखरा नजर आता है। देश विदेश से लोग यहां की होली को देखने आते हैं।

6. इंदौर की होली : आजकल मध्यप्रदेश के शहर इंदौर की होली भी प्रसिद्ध हो चली है। इंदौर की सड़कों पर हजारों लोगों को नृत्य करते और रंग खेलते देखा जा सकता है। पूरे शहर में लोग एक ही स्थान पर एक साथ इकठ्ठे होते हैं और होली खेलते हैं।


7. पुरूलिया की होली : पश्चिसम बंगाल के पुरुलिया में होली को रंगीन पाउडर और पारंपरिक चाउ नृत्य से मनाया जाता है। नृत्य कुछ ऐसा होता है जिसे आपने पहले नहीं देखा होगा। यहां की होली देखने के लिए भी देश विदेश से लोग एकजुट होते हैं।

8. हम्पी : कर्नाटक के हम्पी में होली का उत्सव भी बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। हम्पी 2 दिनों के लिए होली के रंगों और ढोल की आवाज से धड़कता है। होली के रंगों के बीच ऐतिहासिक विरासत और स्मारकों को देखना अद्भुत होता है।


9. गोवा की होली : गोवा के मछुआरा समाज इसे शिमगो या शिमगा कहता है। गोवा की स्थानीय कोंकणी भाषा में शिमगो कहा जाता है। यहां समुद्र के किनारे होली मनाना बहुत ही शानदार और अद्भुत अनुभव होता है। यहां होली मानने के लिए स्पेशल पैकेज रहते हैं।

10. मणिपुर और असम : मणिपुर में इसे योशांग या याओसांग कहते हैं। यहां धुलेंडी वाले दिन को पिचकारी कहा जाता है। असम इसे 'फगवाह' या 'देओल' कहते हैं। त्रिपुरा, नगालैंड, सिक्किम और मेघालय में भी होली की धूम रहती है। मणिपुर में रंगों का यह त्योहार 6 दिनों तक मनाया जाता है। साथ ही इस पर्व पर यहां का पारंपरिक नृत्य 'थाबल चोंगबा' का आयोजन भी किया जाता है। अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य के बीच यहां का थाबल चोंगबा नृत्य के साथ होली खेलना बहुत ही शानदार होता है।

11. कुमाउनी होली : उत्तराखंड और हिमाचल में होली को भिन्न प्रकार के संगीत समारोह के रूप में मनाया जाता है। यहां की कुमाउदी होली जग प्रसिद्ध है। कुमाउनी होली तीन प्रकार से खेली जाती है। पहला बैठकी होली, दूसरा खड़ी होली और तीसरा महिला होली। बसंत पंचमी के दिन से ही होल्यार प्रत्येक शाम घर-घर जाकर होली गाते हैं और यह उत्सव लगभग 2 महीनों तक चलता है।

 

6 मार्च को है रंगभरी एकादशी, इस दिन करे ये काम...

6 मार्च को है रंगभरी एकादशी, इस दिन करे ये काम...

फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी रंगभरी एकादशी के नाम से भी जानी जाती है, हालांकि इसे आमलकी एकादशी भी कहते हैं। इस वर्ष रंगभरी एकादशी 06 मार्च दिन शुक्रवार को है।

रंगभरी एकादशी का दिन भगवान शिव की नगरी काशी के लिए विशेष होता है। इस दिन भगवान शिव माता गौरा और अपने गणों के साथ रंग-गुलाल से होली खेलते हैं। इस हर्षोल्लास के पीछे एक विशेष बात भी है। आज का दिन भगवान शिव और माता गौरी के वैवाहिक जीवन में बड़ा महत्व रखता है।

रंगभरी एकादशी का महत्व

रंगभरी एकादशी के दिन काशी में बाबा विश्वनाथ का विशेष श्रृंगार होता है और उनको दूल्हे के रूप में सजाते हैं। इसके बाद बाबा विश्वनाथ जी के साथ माता गौरा का गौना कराया जाता है। रंगभरी एकादशी के दिन ही भगवान शिव माता गौरा को विवाह के बाद पहली बार काशी लाए थे। इस उपलक्ष्य में भोलेनाथ के गणों ने रंग-गुलाल उड़ाते हुए खुशियां मनाई थी। तब से हर वर्ष रंगभरी एकादशी को काशी में बाबा विश्वनाथ रंग-गुलाल से होली खेलते हैं और माता गौरा का गौना कराया जाता है।
रंगभरी एकादशी का मुहूर्त

फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का प्रारंभ 05 मार्च दिन गुरुवार को दोपहर 01 बजकर 18 मिनट पर हो रहा है, जो अगले दिन शुक्रवार 06 मार्च को 11 बजकर 47 मिनट तक है। ऐसे में रंगभरी एकादशी 06 मार्च दिन शुक्रवार को मनाई जाएगी।

रंगभरी एकादशी के दिन स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद पूजा स्थान पर भगवान शिव और माता गौरी की मूर्ति स्थापित करें। इसके बाद माता गौरी और भगवान शिव की अक्षत, धूप, पुष्प, गंध आदि से पूजा-अर्चना करें। इसके बाद माता गौरी और भगवान शिव को रंग तथा गुलाल अर्पित करें। फिर घी के दीपक या कपूर से दोनों की आरती करें। पूजा के समय माता गौरी को श्रृंगार का सामान अर्पित करें, तो यह खुशहाल जीवन के लिए शुभ होगा।

 

होलाष्टक 2 मार्च से आरंभ, कदापि न करें ये काम

होलाष्टक 2 मार्च से आरंभ, कदापि न करें ये काम

इस साल 2 मार्च, 2020 से लगने वाला होलाष्टक 9 मार्च को खत्म होगा। 8 दिनों तक चलने वाले होलाष्टक को अशुभ माना गया है।
होली से पहले आठ दिनों तक चलने वाला होलाष्टक इस बार 2 मार्च से शुरू होने जा रहा है। हिंदू धर्म में होलाष्टक के दिनों को अशुभ माना गया है। होलाष्टक की शुरुआत फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से होती है।
इसका समापन फाल्गुन की पूर्णिमा को होता है और इसी दिन होलिका दहन की परंपरा है। इस साल 2 मार्च, 2020 से लगने वाला होलाष्टक 9 मार्च को खत्म होगा।

एक पौराणिक कथा के अनुसार प्रह्लाद की भक्ति से नाराज होकर हिरण्यकश्यप ने होली से पहले के आठ दिनों में उन्हें अनेक प्रकार के कष्ट और यातनाएं दीं। इसलिए इसे अशुभ माना गया है।

होलाष्टक में नहीं करने चाहिए ये 5 काम

शादी: ये किसी के भी जीवन के सबसे महत्वपूर्ण लम्हों में से एक होता है। यह वो मौका होता है जब आप किसी के साथ पूरा जीवन व्यतीत करने के वादे करते हैं। यहां से जिंदगी का एक अलग पन्ना भी शुरू होता है। इसलिए शादी को बहुत ही शुभ माना गया है। यही कारण है कि हिंदू धर्म मे होलाष्टक में विवाह की मनाही है। अत: इन दिनों में विवाह का कार्यक्रम नहीं किया जाना चाहिए।

नामकरण संस्कार: किसी नवजात बच्चे के नामकरण संस्कार को भी होलाष्टक में नहीं किया जाना चाहिए। हमारा नाम ही पूरे जीवन के लिए हमारी पहचान बनता है। नाम का असर भी हमारे जीवन पर अत्यधिक पड़ता है। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि इसे शुभ काल में किया जाए।

विद्या आरंभ: बच्चों की शिक्षा की शुरुआत भी इस काल में नहीं की जानी चाहिए। शिक्षा किसी के भी जीवन के सबसे शुभ कार्यों में से एक है। इसलिए जरूरी है कि जब अपने बच्चे को किसी गुरु के देखरेख में दिया जाए तो वह शुभ काल हो। इससे बच्चे की शिक्षा को लेकर अच्छा असर होता है और तेजस्वी बनता है।

संपत्ति की खरीद-बिक्री: ये कार्य भी होलाष्टक काल में नहीं किया जाना चाहिए। इससे अशांति का माहौल बनता है। संभव है कि आपने जो संपत्ति खरीदी या बेची है, वह बाद में आपके लिए परेशानी का सबब बन जाए। इसलिए कुछ दिन रूककर और होलाष्टक खत्म होने के बाद ही इन कार्यों को हाथ लगाएं।

नया व्यापार और नई नौकरी: आप नया व्यापार शुरू करना चाहते हैं या फिर कोई नई नौकरी ज्वाइन करना चाहते हैं तो बेहतर है इन दिनों में इसे टाल दें। आज की दुनिया में व्यवसाय या नौकरी किसी के भी अच्छे जीवन का आधार है। इसलिए होलाष्टक के बाद इन कार्यों को करें। इससे सकारात्मक ऊर्जा आपके साथ रहेगी और आप सफलता हासिल कर सकेंगे।

 

होलाष्टक 2 मार्च से होने जा रहा है प्रारंभ, होलाष्टक में ये 13 काम करेंगे तो नहीं आएगा कोई संकट

होलाष्टक 2 मार्च से होने जा रहा है प्रारंभ, होलाष्टक में ये 13 काम करेंगे तो नहीं आएगा कोई संकट

होलाष्टक 2 मार्च से प्रारंभ हो रहा है। प्राचीन मान्यता अनुसार इस अवधि में नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव अधिक होता है। इस नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव को समाप्त करने के लिए ही होलिका का निर्माण किया जाता है। विशेषकर गाय के गोबर से निर्मित शुद्ध कंडों से होली का दहन किया जाए तो सकारात्मक ऊर्जा का संचार किया जा सकता है।
होलाष्टक कब से कब तक

होलाष्टक होली से पहले के 8 दिनों को कहा जाता है। इस वर्ष होलाष्टक 02 मार्च से प्रारंभ हो रहा है, जो 09 मार्च यानी होलिका दहन तक रहेगा। फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर पूर्णिमा ​तिथि तक होलाष्टक माना जाता है। 09 मार्च को होलिका दहन के बाद अगले दिन 10 मार्च को रंगों का त्योहार होली धूमधाम से मनाया जाएगा। होलाष्टक के 8 दिनों में मांगलिक कार्यों को करना निषेध होता है।

इस समय मांगलिक कार्य करना अशुभ माना जाता है। होलाष्टक में तिथियों की गणना की जाती है। मतांतर से इस बार होलाष्टक 03 मार्च से प्रारंभ होकर 09 मार्च को समाप्त माना जा रहा है, ऐसे में यह कुल 7 दिनों का हुआ।

लेकिन तिथियों को ध्यान में रखकर गणना की जाए तो यह अष्टमी से प्रारंभ होकर पूर्णिमा तक है, ऐसे में दिनों की संख्या 8 होती है। ज्यादातर विद्वान इसे भानु सप्तमी 2 मार्च से आरंभ मान रहे हैं। इन 13 कार्यों को कर आप समस्त दोषों से बच सकते हैं।


1. इस अवधि में मनुष्य को अधिक से अधिक भगवत भजन,जप,तप,स्वाध्याय व वैदिक अनुष्ठान करना चाहिए। ताकि समस्त कष्ट, विघ्न व संतापों का क्षय हो सके।

2. यदि शरीर में कोई असाध्य रोग हो जिसका उपचार के बाद भी लाभ नहीं हो रहा हो तो रोगी भगवान शिव का पूजन करें। योग्य वैदिक ब्राह्मण द्वारा महामृत्युंजय मंत्र का अनुष्ठान प्रारम्भ करवाएं,बाद में गूगल से हवन करें।

3. लड्डू गोपाल का पूजन कर संतान गोपाल मंत्र का जाप या गोपाल सहस्त्र नाम पाठ करवा कर अंत में शुद्ध घी व मिश्री से हवन करें त ो शीघ्र संतान प्राप्ति होती है।
4. लक्ष्मी प्राप्ति व ऋण मुक्ति हेतु श्रीसूक्त व मंगल ऋण मोचन स्त्रोत का पाठ करवाएं।

5. कमल गट्टे,साबूदाने की खीर से हवन करें।

6. विजय प्राप्ति हेतु-आदित्यहृदय स्त्रोत,सुंदरकांड का पाठ या बगलामुखी मंत्र का जाप करें।
7. अपार धन-संपदा के लिए गुड़,कनेर के पुष्प, हल्दी की गांठ व पीली सरसों से हवन करें।

8. परिवार की समृद्धि हेतु-रामरक्षास्तोत्र ,हनुमान चालीसा व विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
9 . करियर में चमकदार सफलता के लिए जौ, तिल व शकर से हवन करें।

10. कन्या के विवाह हेतु-कात्यायनी मंत्रों का इन दिनों जाप करें।

11. सौभाग्य की प्राप्ति के लिए चावल,घी, केसर से हवन करें।

12. बच्चों का पढाई में मन नहीं लग रहा है तो गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करें। मोदक व दूर्वा से हवन करें।

13. नवग्रह की कृपा प्राप्ति हेतु भगवान शिव का पंचामृत अभिषेक करें।
उक्त अनुष्ठानों को योग्य वैदिक ब्राह्मण के द्वारा ही संपादित कर होलिका दहन के पश्चात उसी स्थान पर हवन कर अनुष्ठान की पूर्णाहुति करें यदि होलिका दहन के स्थान पर हवन करना संभव न हो तो होली में प्रज्वलित अग्नि का कंडा घर ला कर उसमें भी हवन कर सकते हैं।

जानिए कब है फुलेरा/ फुलैरा दूज, इस दिन क्या करें और क्या ना करे

जानिए कब है फुलेरा/ फुलैरा दूज, इस दिन क्या करें और क्या ना करे

होली से पहले फुलैरा दूज का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन विधि विधान के साथ कृष्ण जी और राधा जी की पूजा से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। साल 2020 में 25 फरवरी को फुलैरा दूज का त्योहार मनाया जाएगा। हम आपको बता रहे हैं फुलैरा दूज पर क्या करें और क्या न करें।

1. फुलेरा/ फुलैरा दूज पर भगवान श्री कृष्ण और राधा जी की पूजा की जाती है। इस दिन दोनों पर गुलाल जरूर अर्पित करें क्योंकि इस दिन से होली शुरू होती है।

2. फुलेरा/ फुलैरा दूज पर राधा कृष्ण को रंग बिरंगे फूल जरूर अर्पित करें, इससे परस्पर प्यार बढ़ेगा। राधा-कृष्ण के मंदिर जाकर इस दिन दर्शन जरूर कर लें। ऐसा करना शुभ माना जाता है।

3. फुलेरा/ फुलैरा दूज के दिन राधा जी को श्रृंगार की वस्तुएं जरूर अर्पित करें और उनमें से कोई चीज अपने पास संभाल कर रख लें। ऐसा करने से जल्द विवाह होगा। आप चाहें तो इस दिन बिना किसी मुहूर्त के भी विवाह कर सकते हैं।

4. फुलेरा/ फुलैरा दूज पर सभी मांगलिक कार्य करें। गाय को भोजन कराने से शुभ फलों की प्राप्ति होगी और सभी दुख दूर हो जाएंगे।

5. फुलेरा/ फुलैरा दूज पर किसी का भी अपमान न करें। प्रेमी का तो बिल्कुल भी नहीं, इसी तरह घर के वरिष्ठों का भी नहीं। यह अशुभ फलदायक होता है।

6. फुलेरा/ फुलैरा दूज के दिन राधा कृष्ण को गुलाल अर्पित किया जाता है। इस गुलाल को अपने पैरों में न आने दें। इस दिन किसी की निंदा न करें। किसी कृष्ण भक्त का अपमान न करें। गाय, मयूर और छोटी बछिया को आहार दें।

7. फुलेरा/ फुलैरा दूज के मौके पर भूलकर भी मांसाहार न करें। इस दिन शराब के सेवन से भी दूर रहें।
 

फाल्गुनी अमावस्या पर ये कार्य करने से  कट जाएगा संकट और बन जाएंगे धनवान

फाल्गुनी अमावस्या पर ये कार्य करने से कट जाएगा संकट और बन जाएंगे धनवान

अमावस्या माह में एक बार ही आती है। मतलब यह कि वर्ष में 12 अमावस्याएं होती हैं। शास्त्रों में अमावस्या तिथि का स्वामी पितृदेव को माना जाता है। मतलब यह कि यह अमावस्याएं श्राद्ध, दान और स्नान हेतु होती है।

प्रमुख अमावस्याएं : सोमवती अमावस्या, भौमवती अमावस्या, मौनी अमावस्या, शनि अमावस्या, हरियाली अमावस्या, दिवाली अमावस्या, सर्वपितृ अमावस्या आदि मुख्ये अमावस्या होती है।

इस बार फाल्गुन माह में अमावस्या रविवार को आ रही है। शास्त्रों में फाल्गुन माह की अमावस्या का खास महत्व बताया गया है।
1- फाल्गुन अमावस्या की शाम किसी लक्ष्मीनारायण मंदिर में जाकर कच्चे अनाज का दान करें एवं गरीब ब्राह्मण को भोजन कराकर आशीर्वाद लें। धन आवक की सारी बाधाएं दूर हो जायेगी।
2- फाल्गुन अमावस्या की शाम को किसी भी तालाब या नदी में जाकर गेहूं के आटे की गोलियां बनाकर मछलियों को खिलाएं। ऐसा करने से पितृ पूर्वज प्रसन्न होकर धनधान्य पूर्ति का आशीर्वाद देते हैं।
3- फाल्गुन अमावस्या पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाएं और सात बार उसकी परिक्रमा करें। मात्र इस उपाय से राहु, शनि और केतु के दोष दूर होते हैं।
4- फाल्गुन अमावस्या के दिन हनुमानजी को भोग लगाएं और हनुमान चालीसा का पाठ करने से सैकड़ों बाधाएं दूर हो जाती है।
5- फाल्गुन अमावस्या को शिवजी की प्रिय अमावस्या तिथि भी माना जाता है, इस दिन सूर्यास्त के समय शिवलिंग पर जल, दूध और काले तिल अर्पित करने से धन संबंधित सभी समस्याएं दूर हो जाती है।
6- फाल्गुन अमावस्या की रात में शनि मंदिर में जाकर शनि प्रतिमा पर तेल चढ़ाकर, काली उड़द, काले तिल, लोहा और काले कपड़े का दान करने से व्यक्ति कुछ ही दिनों में करोड़पति बन सकता है।
7. फाल्गुन मास की अमावस्या पर पितृ शांति और काल सर्प दोष की शांति पूजा का भी विधान है। इस दिन व्रत रखा जाता है।

 


 

महाशिवरात्रि: जानिए महाशिवरात्रि से जुडी कुछ जरूरी जानकारिया, संशय को करे अब दूर...

महाशिवरात्रि: जानिए महाशिवरात्रि से जुडी कुछ जरूरी जानकारिया, संशय को करे अब दूर...

 आज हम आपको बताएंगे महाशिवरात्रि से जुडी कुछ विशेष जानकारिया| चतुर्दशी तिथि भगवान शिव की तिथि है। चतुर्दशी तिथि को ही शिवरात्रि होती है। फाल्गुन के महीने की शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है। महाशिवरात्रि पर्व की तिथि को लेकर कुछ लोग संशय में हैं। आइए जानते हैं महाशिवरात्रि की सही तिथि क्या है?



कब मनाई जाएगी महाशिवरात्रि?
इस साल जो महाशिवरात्रि है वह 21 फरवरी को है। 21 तारीख को शाम को 5 बजकर 20 मिनट पर त्रयोदशी तिथि समाप्त हो जाएगी और चतुर्दशी तिथि शुरू होगी।

महाशिवरात्रि का शुभ मुहूर्त-
21 फरवरी को ये शिवरात्रि शाम को 5 बजकर 20 मिनट से शुरु होकर शनिवार 22 फरवरी को शाम 7 बजकर 2 मिनट तक रहेगी। रात्रि की पूजा शाम को 6 बजकर 41 मिनट से शुरू होकर रात 12 बजकर 52 मिनट तक होगी. शिवरात्रि में जो रात का समय होता है उसमें चार पहर की पूजा होती है।

व्रत खोलने का समय-
21 फरवरी को त्रयोदशी के दिन जो लोग पूजन नहीं कर पा रहे हैं तो वे 22 फरवरी को भी चतुर्दशी के समय तक शिव का पूजन कर सकते हैं। मंदिरों में 22 फरवरी को भी धूमधाम से शिव का पूजन किया जाएगा। शिवरात्रि तभी मनानी चाहिए जिस रात्रि में चतुर्दशी तिथि हो। शिवरात्रि का व्रत रखने वाले अगले दिन 22 फरवरी को सुबह 6 बजकर 57 मिनट से लेकर दोपहर 3 बजकर 22 मिनट तक पारण कर सकते हैं।

महाशिवरात्रि की पूजा विधि-
शिव रात्रि को भगवान शंकर को पंचामृत से स्नान कराएं। केसर के 8 लोटे जल चढ़ाएं। पूरी रात्रि दीपक जलाएं। चंदन का तिलक लगाएं।

तीन बेलपत्र, भांग धतूर, तुलसी, जायफल, कमल गट्टे, फल, मिष्ठान, मीठा पान, इत्र व दक्षिणा चढ़ाएं. सबसे बाद में केसर युक्त खीर का भोग लगा कर प्रसाद बांटें।


पूजा में सभी उपचार चढ़ाते हुए ॐ नमो भगवते रूद्राय, ॐ नमः शिवाय रूद्राय् शम्भवाय् भवानीपतये नमो नमः मंत्र का जाप करें।
महाशिवरात्रि: ना करे भूल कर भी महाशिवरात्रि में यह 7 गलतियां, वरना हो सकता है बड़ा नुकसान...

महाशिवरात्रि: ना करे भूल कर भी महाशिवरात्रि में यह 7 गलतियां, वरना हो सकता है बड़ा नुकसान...

इस बार महाशिवरात्रि पर सर्वार्थ सिद्धि योग का संयोग बन रहा है। ज्योतिष शास्त्र में साधना के लिए तीन रात्रि विशेष मानी गई हैं। इनमें शरद पूर्णिमा को मोहरात्रि, दीपावली की कालरात्रि तथा महाशिवरात्रि को सिद्ध रात्रि कहा गया है। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का महापर्व मनाया जाता है। महाशिवरात्रि को इस बार 117 साल बाद फागुन मास कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को एक अद्भुत संयोग बन रहा है। इस साल यह पर्व शुक्रवार 21 फरवरी को मनाया जाएगा। 


शनि स्वयं की राशि मकर में है और शुक्र अपनी उच्च की राशि मीन में होंगे जो कि एक दुर्लभ योग है। इस योग में भगवान शिव-पार्वती की पूजा-अर्चना को श्रेष्ठ माना गया है। महाशिवरात्रि को शिव पुराण और महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना चाहिए। इस व्रत को लेकर कई नियम भी बताए गए हैं। जिनका पालन न करने पर व्यक्ति भगवान शिव की कृपा से वंचित रह जाता है।

जानिए आखिर वो कौन से कार्य है जो मानव को नहीं करनी चाहिए-

शिव पूजा के दौरान भूलकर भी न करें ये 7 गलतियां

1-शंख जल- भगवान शिव ने शंखचूड़ नाम के असुर का वध किया था। शंख को उसी असुर का प्रतीक माना जाता है जो भगवान विष्णु का भक्त था इसलिए विष्णु भगवान की पूजा शंख से होती है शिव की नहीं।

2-पुष्प- भगवान शिव की पूजा में केसर, दुपहरिका, मालती, चम्पा, चमेली, कुन्द, जूही आदि के पुष्प नहीं चढ़ाने चाहिए।

3-करताल- भगवान शिव के पूजन के समय करताल नहीं बजाना चाहिए।

4-तुलसी पत्ता- जलंधर नामक असुर की पत्नी वृंदा के अंश से तुलसी का जन्म हुआ था जिसे भगवान विष्णु ने पत्नी रूप में स्वीकार किया है। इसलिए तुलसी से शिव जी की पूजा नहीं होती है।

5- काला तिल-यह भगवान विष्णु के मैल से उत्पन्न हुआ माना जाता है इसलिए इसे भगवान शिव को नहीं अर्पित किया जाना चाहिए।

6-टूटे हुए चावल- भगवान शिव को अक्षत यानी साबुत चावल अर्पित किए जाने के बारे में शास्त्रों में लिखा है। टूटा हुआ चावल अपूर्ण और अशुद्ध होता है इसलिए यह शिव जी को नहीं चढ़ाया जाता है।

7-कुमकुम- यह सौभाग्य का प्रतीक है जबकि भगवान शिव वैरागी हैं इसलिए शिव जी को कुमकुम नहीं चढ़ता।

शुभ मुहूर्त-
महाशिवरात्रि 21 फरवरी 2020 को शाम को 5 बजकर 16 मिनट से शुरू होकर अगले दिन यानी 22 फरवरी दिन शनिवार को शाम 07 बजकर 9 मिनट तक रहेगी। जो श्रद्धालु मासिक शिवरात्रि का व्रत करना चाहते है, वह इसे महाशिवरात्रि से शुरू कर सकते हैं।
महाशिवरात्रि: घर पर ऐसे करे महाशिवरात्रि की पूजन, जाने अत्यंत आसान विधि...

महाशिवरात्रि: घर पर ऐसे करे महाशिवरात्रि की पूजन, जाने अत्यंत आसान विधि...

महाशिवरात्रि पर्व पर भगवान महादेव को प्रसन्न करने के लिए भक्त-गण विविध उपाय करते हैं। लेकिन हर उपाय साधारण जनमानस के लिए सरल नहीं होते।


पेश है घर पर ही महाशिवरात्रि पूजन की अत्यंत आसान विधि। यह पूजन विधि जितनी आसान है उतनी ही फलदायी भी। भगवान शिव अत्यंत सरल स्वभाव के देवता माने गए हैं अत: उन्हें सरलतम तरीकों से ही प्रसन्न किया जा सकता है।

वैदिक शिव पूजन - भगवान शंकर की पूजा के समय शुद्ध आसन पर बैठकर पहले आचमन करें। यज्ञोपवित धारण कर शरीर शुद्ध करें। तत्पश्चात आसन की शुद्धि करें। पूजन-सामग्री को यथास्थान रखकर रक्षादीप प्रज्ज्वलित कर लें।

अब स्वस्ति-पाठ करें।

स्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा:, स्वस्ति ना पूषा विश्ववेदा:, स्वस्ति न स्तारक्ष्यो अरिष्टनेमि स्वस्ति नो बृहस्पति र्दधातु।

इसके बाद पूजन का संकल्प कर भगवान गणेश एवं गौरी-माता पार्वती का स्मरण कर पूजन करना चाहिए।

यदि आप रूद्राभिषेक, लघुरूद्र, महारूद्र आदि विशेष अनुष्ठान कर रहे हैं, तब नवग्रह, कलश, षोडश-मात्रका का भी पूजन करना चाहिए।

संकल्प करते हुए भगवान गणेश व माता पार्वती का पूजन करें फिर नन्दीश्वर, वीरभद्र, कार्तिकेय (स्त्रियां कार्तिकेय का पूजन नहीं करें) एवं सर्प का संक्षिप्त पूजन करना चाहिए।

इसके पश्चात हाथ में बिल्वपत्र एवं अक्षत लेकर भगवान शिव का ध्यान करें।

भगवान शिव का ध्यान करने के बाद आसन, आचमन, स्नान, दही-स्नान, घी-स्नान, शहद-स्नान व शक्कर-स्नान कराएं।

इसके बाद भगवान का एक साथ पंचामृत स्नान कराएं। फिर सुगंध-स्नान कराएं फिर शुद्ध स्नान कराएं।

अब भगवान शिव को वस्त्र चढ़ाएं। वस्त्र के बाद जनेऊ चढाएं। फिर सुगंध, इत्र, अक्षत, पुष्पमाला, बिल्वपत्र चढाएं।

अब भगवान शिव को विविध प्रकार के फल चढ़ाएं। इसके पश्चात धूप-दीप जलाएं।

हाथ धोकर भोलेनाथ को नैवेद्य लगाएं।

नैवेद्य के बाद फल, पान-नारियल, दक्षिणा चढ़ाकर आरती करें। (जय शिव ओंकारा वाली शिव-आरती)

इसके बाद क्षमा-याचना करें।

क्षमा मंत्र: आह्वानं ना जानामि, ना जानामि तवार्चनम, पूजाश्चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वर:।
इस प्रकार संक्षिप्त पूजन करने से ही भगवान शिव प्रसन्न होकर सारे मनोरथ पूर्ण करेंगे। घर में पूरी श्रद्धा के साथ साधारण पूजन भी किया जाए तो भगवान शिव प्रसन्न हो जाते हैं।
छत्तीसगढ़ के प्रयागराज राजिम का विशेष मेला “माघी पुन्नी मेला”

छत्तीसगढ़ के प्रयागराज राजिम का विशेष मेला “माघी पुन्नी मेला”

छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में स्थित पवित्र धार्मिक नगरी राजिम में प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक पंद्रह दिनों का मेला लगता है। राजिम तीन नदियों का संगम है इसलिए इसे त्रिवेणी संगम भी कहा जाता है, यहाँ मुख्य रूप से तीन नदिया बहती है, जिनके नाम क्रमशः महानदी, पैरी नदी तथा सोढुर नदी है, राजिम तीन नदियों का संगम स्थल है, संगम स्थल पर कुलेश्वर महादेव जी विराजमान है। वर्ष 2001 से राजिम मेले को राजीव लोचन महोत्सव के रूप में मनाया जाता था, 2005 से इसे कुम्भ के रूप में मनाया जाता रहा था, और अब 2019 से राजिम पुन्नी मेला महोत्सव मनाया जा रहा है। यह आयोजन छत्तीसगढ़ शासन धर्मस्व एवं पर्यटन विभाग एवम स्थानीय आयोजन समिति के सहयोग से होता है। मेला की शुरुआत कल्पवाश से होती है पखवाड़े भर पहले से श्रद्धालु पंचकोशी यात्रा प्रारंभ कर देते है पंचकोशी यात्रा में श्रद्धालु पटेश्वर, फिंगेश्वर, ब्रम्हनेश्वर, कोपेश्वर तथा चम्पेश्वर नाथ के पैदल भ्रमण कर दर्शन करते है तथा धुनी रमाते है। 101 कि॰मी॰ की यात्रा का समापन होता है और माघ पूर्णिमा से मेला का आगाज होता है, राजिम माघी पुन्नी मेला में विभिन्न जगहों से हजारो साधू संतो का आगमन होता है, प्रतिवर्ष हजारो के संख्या में नागा साधू, संत आदि आते है, तथा विशेष पर्व स्नान तथा संत समागम में भाग लेते है, प्रतिवर्ष होने वाले इस माघी पुन्नी मेला में विभिन्न राज्यों से लाखो की संख्या में लोग आते है और भगवान श्री राजीव लोचन तथा श्री कुलेश्वर नाथ महादेव जी के दर्शन करते है और अपना जीवन धन्य मानते है। लोगो में मान्यता है की भनवान जगन्नाथपुरी जी की यात्रा तब तक पूरी नही मानी जाती जब तक भगवान श्री राजीव लोचन तथा श्री कुलेश्वर नाथ के दर्शन नहीं कर लिए जाते, राजिम माघी पुन्नी मेला का अंचल में अपना एक विशेष महत्व है।
राजिम अपने आप में एक विशेष महत्व रखने वाला एक छोटा सा शहर है राजिम गरियाबंद जिले का एक तहसील है प्राचीन समय से राजिम अपने पुरातत्वो और प्राचीन सभ्यताओ के लिए प्रसिद्द है राजिम मुख्य रूप से भगवान श्री राजीव लोचन जी के मंदिर के कारण प्रसिद्द है। राजिम का यह मंदिर आठवीं शताब्दी का है। यहाँ कुलेश्वर महादेव जी का भी मंदिर है। जो संगम स्थल पर विराजमान है। राजिम माघी पुन्नी मेला प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक चलता है। इस दौरान प्रशासन द्वारा विविध सांस्कृतिक व् धार्मिक आयोजन आदि होते रहते है।

 

वसंत पंचमी 2020 : कब मनाएं पर्व, बन रहे हैं 2 बड़े शुभ संयोग

वसंत पंचमी 2020 : कब मनाएं पर्व, बन रहे हैं 2 बड़े शुभ संयोग

इस वर्ष विद्या की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती का जन्मोत्सव वसंत पंचमी यानी 29 जनवरी को है। माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को वसंत पंचमी पर्व मनाया जाएगा। वसंत पंचमी के दिन सिद्धि व सर्वार्थसिद्धि योग जैसे दो शुभ मुहूर्त का संयोग भी बन रहा है। इसे वाग्दान, विद्यारंभ, यज्ञोपवीत आदि संस्कारों व अन्य शुभ कार्यों के लिए श्रेष्ठ माना गया है। वसंत पंचमी पर मां सरस्वती की आराधना के साथ ही विवाह के शुभ मुहूर्त भी रहेंगे। ऐसे में खूब शहनाई गूंजेगी।
वसंत पंचमी इस बार विशेष रूप से श्रेष्ठ है। वर्षों बाद ग्रह और नक्षत्रों की स्थिति इस दिन को और खास बना रही है। इस बार 3 ग्रह खुद की ही राशि में रहेंगे। मंगल वृश्चिक में, बृहस्पति धनु में और शनि मकर राशि में, विवाह और अन्य शुभ कार्यों के लिए ये स्थिति बहुत ही शुभ मानी जाती है।

वसंत पंचमी अबूझ मुहूर्त वाले पर्वों की श्रेणी में शामिल है, लेकिन इस दिन गुरुवार और उतराभाद्रपद नक्षत्र होने से सिद्धि योग बनेगा। इसी दिन सर्वार्थसिद्धि योग भी रहेगा। दोनों योग रहने से वसंत पंचमी की शुभता में और अधिक वृद्धि होगी।
वसंत पंचमी को लेकर पंचाग भेद भी है। इसलिए कुछ जगहों पर ये पर्व 29 और कई जगह 30 जनवरी को मनेगा। पंचमी तिथि बुधवार सुबह 10.46 से शुरू होगी जो गुरुवार दोपहर 1.20 तक रहेगी। दोनों दिन पूर्वाह्न व्यापिनी तिथि रहेगी। ग्रंथों के अनुसार यदि चतुर्थी तिथि विद्धा पंचमी होने से शास्त्रोक्त रूप से 29 जनवरी बुधवार को वसंत पंचमी मनाना श्रेष्ठ रहेगा।

 

मौनी अमावस्या है खास, करेंगे ये काम तो बनेंगे मालामाल

मौनी अमावस्या है खास, करेंगे ये काम तो बनेंगे मालामाल

वर्ष 2020 में मौनी अमावस्या 24 जनवरी, शुक्रवार को मनाई जा रही है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार माघ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मौनी अमावस्या तथा माघी अमावस्या कहा जाता है।

प्राचीन ग्रंथों में भगवान नारायण को पाने का सुगम मार्ग माघ मास के पुण्य स्नान को बताया गया है, विशेषकर मौनी अमावस्या को किया गया गंगा स्नान खास महत्व का माना गया है। मौनी अमावस्या का दिन बहुत पवित्र होता है। इस दिन मौन व्रत धारण करने का अधिक महत्व माना गया है।

पुराणों के अनुसार माघ मास की प्रत्येक तिथि पर्व है। अमावस्या के दिन जो लोग कुंभ या नदी, सरोवर के तट पर जाकर स्नान नहीं कर सकते, वो घर में गंगा जल डालकर स्नान करें तो उन्हें अनंत फल की प्राप्ति होती है।

आइए जानें :-

मौनी अमावस्या के दिन क्या करें -

* मौनी, माघी अमावस्या के दिन जप-तप, ध्यान-पूजन करने से विशेष धर्मलाभ प्राप्त होता है।

* मौनी अमावस्या के दिन मौन रहकर आचरण तथा स्नान-दान करने का विशेष महत्व है।

* माघ मास में पवित्र नदियों में स्नान करने से एक विशेष ऊर्जा प्राप्त होती है।

* इस दिन सूर्य नारायण को अर्घ्य देने से गरीबी और दरिद्रता दूर होती है।

* अमावस्या के दिन 108 बार तुलसी परिक्रमा करना चाहिए।

* इसके अलावा मंत्र जाप, सिद्धि साधना एवं दान देकर मौन व्रत को धारण करने से पुण्य प्राप्ति और भगवान का आशीर्वाद मिलता है।

* जिन लोगों का चंद्रमा कमजोर है, वह गाय को दही और चावल खिलाएं तो मानसिक शांति प्राप्त होगी।

* जो लोग घर पर स्नान करके अनुष्ठान करना चाहते हैं, उन्हें पानी में थोड़ा-सा गंगा जल मिलाकर तीर्थों का आह्वान करते हुए स्नान करना चाहिए।

* शास्त्रों में वर्णित है कि माघ मास में पूजन-अर्चन व नदी स्नान करने से भगवान नारायण को प्राप्त किया जा सकता है तथा इन दिनों नदी में स्नान करने से स्वर्ग प्राप्ति का मार्ग मिल जाता है।

 

20 जनवरी को आ रही है सबसे खास एकादशी, जानें कैसे करें पूजन, महत्व एवं लाभ

20 जनवरी को आ रही है सबसे खास एकादशी, जानें कैसे करें पूजन, महत्व एवं लाभ

नए साल में 20 जनवरी 2020, सोमवार को षटतिला एकादशी आ रही है। यह व्रत भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा का व्रत है। माघ मास की कृष्ण2 पक्ष की एकादशी को यह व्रत किया जाता है। इस एकादशी में काले तिल से विष्णु जी का पूजन करने का महत्व है। इस व्रत के करने से अनेक प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं।
आइए जानें षट्तिला एकादशी व्रत क्या है, कैसे किया जाता है इस दिन पूजन, महत्वे और लाभ :-

एक समय दालभ्य ऋषि ने पुलस्त्य ऋषि से पूछा कि- हे महाराज, पृथ्वी लोक में मनुष्य ब्रह्म हत्यादि महान पाप करते हैं, पराए धन की चोरी तथा दूसरे की उन्नति देखकर ईर्ष्या करते हैं। साथ ही अनेक प्रकार के व्यसनों में फंसे रहते हैं, फिर भी उनको नरक प्राप्त नहीं होता, इसका क्या कारण है? वे न जाने कौन-सा दान-पुण्य करते हैं जिससे उनके पाप नष्ट हो जाते हैं। यह सब कृपापूर्वक आप कहिए।

पुलस्त्य मुनि कहने लगे कि- हे महाभाग! आपने मुझसे अत्यंत गंभीर प्रश्न पूछा है। इससे संसार के जीवों का अत्यंत भला होगा। इस भेद को ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र तथा इंद्र आदि भी नहीं जानते परंतु मैं आपको यह गुप्त तत्व अवश्य बताऊंगा।

उन्होंने कहा कि माघ मास लगते ही मनुष्य को स्नान आदि करके शुद्ध रहना चाहिए। इंद्रियों को वश में करके काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या तथा द्वेष आदि का त्याग कर भगवान का स्मरण करना चाहिए।

कैसे करें पूजन :-

पुष्य नक्षत्र में गोबर, कपास, तिल मिलाकर उनके कंडे बनाना चाहिए। उन कंडों से 108 बार हवन करना चाहिए।

उस दिन मूल नक्षत्र हो और एकादशी तिथि हो तो अच्छे पुण्य देने वाले नियमों को ग्रहण करें।

स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर सब देवताओं के देव श्री भगवान का पूजन करें और एकादशी व्रत धारण करें।

रात्रि को जागरण करना चाहिए।

उसके दूसरे दिन धूप-दीप, नैवेद्य आदि से भगवान का पूजन करके खिचड़ी का भोग लगाएं।

तत्पश्चात पेठा, नारियल, सीताफल या सुपारी का अर्घ्य देकर स्तुति करनी चाहिए -

हे भगवान! आप दीनों को शरण देने वाले हैं, इस संसार सागर में फंसे हुओं का उद्धार करने वाले हैं। हे पुंडरीकाक्ष! हे विश्वभावन! हे सुब्रह्मण्य! हे पूर्वज! हे जगत्पते! आप लक्ष्मीजी सहित इस तुच्छ अर्घ्य को ग्रहण करें।
इसके पश्चात जल से भरा कुंभ (घड़ा) ब्राह्मण को दान करें तथा ब्राह्मण को श्यामा गौ और तिल पात्र देना भी उत्तम है।

तिल स्नान और भोजन दोनों ही श्रेष्ठ हैं।

इस प्रकार जो मनुष्य जितने तिलों का दान करता है, उतने ही हजार वर्ष स्वर्ग में वास करता है।

1. तिल स्नान, 2. तिल का उबटन, 3. तिल का हवन, 4. तिल का तर्पण, 5 तिल का भोजन और 6. तिलों का दान- ये तिल के 6 प्रकार हैं। इनके प्रयोग के कारण यह षटतिला एकादशी कहलाती है।

 

भारत के इन 11 पर्वतों की यात्रा जरूर करें, जानिए उनका रहस्य...

भारत के इन 11 पर्वतों की यात्रा जरूर करें, जानिए उनका रहस्य...

हम यहां न तो सबसे ऊंचे पर्वतों की बात कर रहे हैं और न ही पर्वतमालाओं की। हम बात कर रहे हैं धार्मिक दृष्टि से सबसे पवित्र कहे जाने वाले पर्वतों की। तो आओ जानते हैं 10 सबसे पवित्र पर्वतों के बारे में संक्षिप्त जानकारी।
1. कैलाश पर्वत : यह पर्वत हिन्दुओं के लिए सबसे पवित्र पर्वत माना गया है। यहां साक्षात शिव विराजमान हैं। इसी पर्वत के पास मानसरोवर स्थित है। इस स्थान से जुड़े विभिन्न मत और लोककथाएं केवल एक ही सत्य को प्रदर्शित करती हैं, जो यह है कि ईश्वर ही सत्य है और सत्य ही शिव है। यह पर्वत चीन के तिब्बत क्षेत्र में है।
2. नंदादेवी पर्वत : मां नंदादेवी के नाम से जाने जाना वाला यह पर्वत भारत का दूसरा और विश्व् का 23वां सबसे ऊंचा पर्वत है। इससे ऊंचा पर्वत भारत में कंचनजंगा का पर्वत है। नंदादेवी का पर्वत भारत और नेपाल की सीमा क्षेत्र में फैला है। नंदादेवी पर्वत भारत के उत्तराखंड राज्य के अंतर्गत गढ़वाल जिले में स्थित है।
3. माउंट आबू : माउंट आबू पर्वत राजस्थान और गुजरात सीमा पर स्थित है। यह नीलगिरि पहाड़ी श्रृंखला की सबसे ऊंची चोटी है, जो राजस्थान के सिरोही जिले में स्थित है। माउंट आबू हिन्दू और जैन धर्म का प्रमुख तीर्थस्थल है। माउंट आबू प्राचीनकाल से ही साधु-संतों का निवास स्थान रहा है। जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर भी यहां आए थे। माउंट आबू में ही दुनिया का इकलौता ऐसा मंदिर है, जहां शिवजी के पैर के अंगूठे की पूजा होती है।
4. गोवर्धन पर्वत : उत्तरप्रदेश के मथुरा जिले में स्थित गोवर्धन पर्वत के बारे में कहा जाता है कि यह एक शाप के चलते धीरे-धीरे घटता जा रहा है। परंपरा के अनुसार दूर-दूर से भक्तजन गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने आते हैं। यह परिक्रमा लगभग 21 किलोमीटर की है। परिक्रमा जहां से शुरू होती है वहीं एक प्रसिद्ध मंदिर भी है जिसे दानघाटी मंदिर कहा जाता है। परिक्रमा मार्ग में कई प्राचीन और धार्मिक स्थल आते हैं जिसमें से एक वह स्थान भी है, जहां से भगवान कृष्ण ने इस पर्वत को उठा लिया था।
5. गिरनार पर्वत : गुजरात में जूनागढ़ के निकट गिरनार पर्वत है। एशियाई सिंहों के लिए विख्यात 'गिर वन राष्ट्रीय उद्यान' इसी पर्वत के जंगल क्षेत्र में स्थित है। गिरनार का प्राचीन नाम 'गिरिनगर' था। गिरनार मुख्यत: जैन मतावलं‍बियों का पवित्र तीर्थ स्थान है। यहां मल्लिनाथ और नेमिनाथ के मंदिर बने हुए हैं। यहीं पर सम्राट अशोक का एक स्तंभ भी है। महाभारत में अनुसार रेवतक पर्वत की क्रोड़ में बसा हुआ प्राचीन तीर्थ स्थल है।
6. गब्बर पर्वत : भारत राज्य गुजरात के बनासकांठा जिले में एक छोटा-सा पहाड़ है जिसे गब्बर पर्वत कहा जाता है, जो प्रसिद्ध तीर्थ अम्बाजी से 5 किलोमीटर दूर है। यहीं से अरासुर पर्वत पर पवित्र वैदिक नदी सरस्वती का उद्गम भी होता है। यह स्थान यह प्राचीन पौराणिक 51 शक्तिपीठों में से एक गिना जाता है। पुराणों के अनुसार यहां सती का हृदय भाग गिरा था। इसका वर्णन तंत्र चूड़ामणि में भी मिलता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए पहाड़ी पर 999 सीढिय़ां चढ़नी पड़ती हैं।
7. चामुंडा पहाड़ी : मैसूर से लगभग 13 किमी दक्षिण में चामुंडा पहाड़ी स्थित है। इस पहाड़ी की चोटी पर चामुंडेश्वरी मंदिर है, जो देवी दुर्गा को समर्पित है। यह मंदिर देवी दुर्गा की राक्षस महिषासुर पर विजय का प्रतीक है। पहाड़ की चोटी से मैसूर का मनोरम दृश्य दिखाई पड़ता है। मंदिर के पास ही महिषासुर की विशाल प्रतिमा रखी हुई है।
8. त्रिकूट पर्वत : भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य के जम्मू के कटरा जिले में स्थित त्रिकूट पर्वत पर पवित्र तीर्थस्थल है, जहां मातारानी वैष्णोजदेवी विराजमान हैं। माता के साथ यहां हनुमानजी और भैरवनाथजी भी विराजमान हैं। यह हिन्दुओं का सबसे पवित्र स्थल माना गया है।
9. तिरुमाला पर्वत : यहां पर प्रसिद्ध तिरुपति बालाजी भगवान व्यंकटेश स्वामी का मंदिर है। यह हिन्दुओं के लिए सबसे पवित्र स्थलों में से एक है। यह स्थल दक्षिण भारत के तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई से 130 किलोमीटर दूर स्थित है।
ऐसा माना जाता है कि यहां भगवान विष्णु ने कुछ समय गुजारा था। इस मंदिर का ज्ञात इतिहास 9वीं सदी से शुरू होता है।
10. मनसादेवी पहाड़ी मंदिर : शिवालिक की पहाड़ियों के बीच स्थित मां मनसादेवी का प्रसिद्ध मंदिर है। यह पहाड़ी क्षेत्र उत्तरप्रदेश के हरिद्वार में स्थित है। ऊंची पहाड़ी पर होने की वजह से मंदिर में पहुंचने के लिए रोप-वे का इस्तेमाल होता है। मनसादेवी को भगवान शिव की मानस पुत्री के रूप में पूजा जाता है। इनका प्रादुर्भाव मस्तक से हुआ है इस कारण इनका नाम मनसा पड़ा। इनके पति जगत्कारु तथा पुत्र आस्तिकजी हैं। ये नागराज वासुकि की बहन हैं। ये मूलत: आदिवासियों की देवी हैं।
11. पावागढ़ की पहाड़ी : माना जाता है कि गुजरात के पावागढ़ में मां के वक्षस्थल गिरे थे। पावागढ़ माहाकाली माता का जाग्रत स्थान है। यहां लाखों भक्त माता के दरबार में हाजरी लगाने आते हैं। इस पहाड़ी को गुरु विश्वामित्र से भी जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि गुरु विश्वामित्र ने यहां काली मां की तपस्या की थी। यह भी माना जाता है कि काली मां की मूर्ति को विश्वामित्र ने ही प्रतिष्ठित किया था। यहां बहने वाली नदी का नामाकरण भी उन्हीं के नाम पर ‘विश्वामित्री’ किया गया है।