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न्यूज़ बुलेटिन : देखें आज 29 जुलाई की दिन भर की बड़ी खबरें

न्यूज़ बुलेटिन : देखें आज 29 जुलाई की दिन भर की बड़ी खबरें

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बड़ी खबर: प्रदेश में आज 229 नये मरीज मिले, रायपुर से 98 समेत किन जिलो से कितने मरीज मिले है देखे

 

अनलॉक 3 के लिए गाइडलाइन जारी, इस तारीख से खुलेंगे योगा सेंटर और जिम

 

शिवराज के एक और मंत्री हुए कोरोना पॉजिटिव, पढ़े पूरी खबर

 

पीएम मोदी ने कुछ इस तरह से किया राफेल लड़ाकू विमान का स्वागत, पढ़िए पूरी खबर

 

नई एजुकेशन पॉलिसी को कैबिनेट की मंजूरी, HRD का नाम अब शिक्षा मंत्रालय हुआ

 

पीसीसी अध्यक्ष मोहन मरकाम के बंगले में कोरोना ने दी दस्तक: भाई, भतीजा और पीएसओ समेत 5 लोग मिले कोरोना पॉजिटिव

 

रायपुर में महिला के साथ डॉ ने किया दुष्कर्म, नशे की गोली खिलाकर बनाया एमएमएस

 

बकरीद को लेकर गाइडलाइन जारी: ईद के दिन भी निर्धारित सीमित समय मे लॉकडाउन नियमों के तहत होंगे कार्यक्रम

 

गणेशोत्सव को लेकर रायपुर कलेक्टर ने जारी किया निर्देश, गणेश पूजा के लिए इस बार 26 नियम

 

दुकान खुलते ही ग्राहकों की लगी भीड़, सामान खरीदते समय लोग भूले सोशल डिस्टेंसिंग

न्यूज़ बुलेटिन : देखें आज 28 जुलाई की दिन भर की बड़ी खबरें

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रायपुर में 138 समेत प्रदेश से 277 मरीजो कि हुई पहचान, देखे किन किन जिलो से है कितने

 

बॉलीवुड को लगा एक और झटका : जानी-मानी अभिनेत्री कुमकुम का लम्बी बीमारी के बाद 86 साल की उम्र में निधन

 

पुलिस विभाग में बड़े पैमाने पर हुआ फेरबदल: थाना प्रभारी, एसआई, एएसआई और हेड कांस्टेबल का जारी हुआ तबादला

 

नकली नोट छापने वाले गिरोह का हुआ पर्दाफाश: 21 लाख रुपए जप्त और 5 आरोपी गिरफ्तार

 

राजधानी के कांग्रेस नेता की रिपोर्ट आई कोरोना पॉजिटिव, एम्स में कराया गया भर्ती

 

मंत्रालय एवं विभागाध्यक्ष कार्यालयों का लॉक डाउन अवधि में नहीं होगा संचालन, आदेश जारी

 

हेलमेट नहीं पहनने पर पुलिसकर्मी ने घोंप दी युवक के माथे में चाबी, आक्रोशित लोगों ने किया थाने पर पथराव, देखें विडियो

 

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स्वास्थ्य विभाग ने जारी की रेड, ऑरेंज और ग्रीन जोन की सूची

 

चैम्बर ऑफ कॉमर्स की अपील: 29 और 30 जुलाई को किराना-राशन की दुकान सुबह 8 से 2 बजे तक खोलने की मांग

 

राम मंदिर भूमि पूजन को लेकर ओवैसी ने बोला - पीएम मोदी का पूजन में जाना संविधान की शपथ का होगा उल्लंघन

 

न्यूज़ बुलेटिन : देखें आज 27 जुलाई की दिन भर की बड़ी खबरें

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न्यूज़ बुलेटिन : देखें आज 26 जुलाई की दिन भर की बड़ी खबरें

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 न्यूज़ बुलेटिन : देखें आज 25 जुलाई की दिन भर की बड़ी खबरें

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न्यूज़ बुलेटिन : देखें आज 23 जुलाई की दिन भर की बड़ी खबरें

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हरेली, हरियाली व खुशहाली का त्यौहार है -डॉक्टर पुरुषोत्तम चंद्राकर

हरेली, हरियाली व खुशहाली का त्यौहार है -डॉक्टर पुरुषोत्तम चंद्राकर

रायपुर छत्तीसगढ़ का पारंपरिक त्यौहार हरेली पूरे अंचल में मनाया जाता है खास बात यह है कि इस दिन किसान खेत खलिहान में कृषि औजार, गेड़ी आदि की पूजा अर्चना करते हैं, साथ ही गांव में गेड़ी दौड़,नारियल फेक जैसी कई स्पर्धाएं आयोजित की जाती है |
डॉक्टर पुरुषोत्तम चंद्राकर ने बताया कि प्रातः गांव का बैगा द्वारा घर-घर जाकर चौखट में कील् लगाई जाती है, एवं नीम की डाल लगाता है, ताकि उस घर को किसी की बुरी नजर ना लगे, दूसरी और ऐसी मान्यता है कि नीम की डाल के कारण घर का वातावरण शुद्ध हो जाता है, विषाणु नष्ट होते हैं गांव में घरों की दीवारों पर गोबर से श्री हनुमान जी का चित्र बनाया जाता है ताकि भूत-प्रेत उस घर में प्रवेश नहीं कर सके, माना जाता है कि हरेली के दिन खेत में नागर कुदाली फावड़ा आदि का काम पूरा हो जाता है, इसलिए आज के दिन कृषि औजार नांगर,कुदाली, गैती, रापा, सहित खेती बाड़ी के काम में आने वाले औजारों की पूजा की जाती है, पशुधन को औषधि खिलाई जाती है, इस दिन बैलों के साथ गायों की पूजा अर्चना की जाती है | आगे डॉक्टर पुरुषोत्तम चंद्राकर ने कहा कि हरेली में ग्रामीणों द्वारा अपने कुल देवताओं का भी विशेष पूजन किया जाता है गेड़ी आदि की पूजा अर्चना कर चीला, फरा, सोहारी गुलगुला भजिया आदि का भोग लगाया जाता है इसके पश्चात सभी घर के सदस्य प्रसाद ग्रहण करते हैं, बच्चे पूजा के बाद गेड़ी पर चढ़कर गांव की गलियों सड़कों पर इस त्योहार को मनाते हैं | हरेली का मुख्य आकर्षण गेड़ी ही होती है, जो हर उम्र के लोगों को लुभाती है यह बांस से बना एक सहारा होता है जिसके बीच में पैर रखने के लिए खाॕचा बनाया जाता है गेड़ी की ऊंचाई हर कोई अपने हिसाब से तय करता है कई जगहों पर 10 फीट से भी ऊंची जोड़ी भी देखने को मिलता है |
 

पल भर में दूध को दही में बदल देता है यह चमत्कारी पत्थर

पल भर में दूध को दही में बदल देता है यह चमत्कारी पत्थर

दही जमाने के लिए लोग अक्सर जामन ढूंढ़ते नजर आते हैं | वहीं राजस्थान के जैसलमेर जिले में स्थित इस गांव में जामन की जरूरत नहीं पड़ती है | यहां ऐसा पत्थर है, जिसके संपर्क में आते ही दूध जम जाता है |  इस पत्थर पर विदेशों में भी कई बार रिसर्च हो चुकी है | फॉरेनर यहां से ले जाते हैं इस पत्थर के बने बर्तन ।
स्वर्णनगरी जैसलमेर का पीला पत्थर विदेशों में अपनी पहचान बना चुका है | इसके साथ ही जिला मुख्यालय से 40 किमी दूर स्थित हाबूर गांव का पत्थर अपने आप में विशिष्ट खूबियां समेटे हुए है | इसके चलते इसकी डिमांड निरंतर बनी हुई है |
हाबूर का पत्थर दिखने में तो खूबसूरत है ही, साथ ही उसमें दही जमाने की भी खूबी है| इस पत्थर का उपयोग आज भी जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में दूध को जमाने के लिए किया जाता है| इसी खूबी के चलते यह विदेशों में भी काफी लोकप्रिय है | इस पत्थर से बने बर्तनों की भी डिमांड बढ़ गई है|
कहा जाता है कि जैसलमेर में पहले अथाह समुद्र हुआ करता था। कई समुद्री जीव समुद्र सूखने के बाद यहां जीवाश्म बन गए व पहाड़ों का निर्माण हुआ | हाबूर गांव में इन पहाड़ों से निकलनेवाले इस पत्थर में कई खनिज व अन्य जीवाश्मों की भरमार है, जिसकी वजह से इस पत्थर से बनने वाले बर्तनों की भारी डिमांड है। साथ ही वैज्ञानिकों के लिए भी ये पत्थर शोध का विषय बन गया है... इस पत्थर से सजे दुकानों पर बर्तन व अन्य सामान पर्यटकों की खास पसंद होते हैं और जैसलमेर आनेवाले लाखों देसी विदेशी सैलानी इसको बड़े चाव से खरीद कर अपने साथ ले जाते हैं।

क्यों है खास हाबूर का पत्थर
इस पत्थर में दही जमाने वाले सारे कैमिकल मौजूद हैं | विदेशों में हुए रिसर्च में ये पाया गया है कि इस पत्थर में एमिनो एसिड, फिनायल एलिनिया, रिफ्टाफेन टायरोसिन हैं | ये कैमिकल दूध से दही जमाने में सहायक होते हैं | इसलिए इस पत्थर से बने कटोरे में दूध डालकर छोड़ देने पर दही जम जाता है | इन बर्तनों में जमा दही और उससे बननेवाली लस्सी के पयर्टक दीवाने हैं | अक्सर सैलानी हाबूर स्टोन के बने बर्तन खरीदने आते हैं | इन बर्तनों में बस दूध रखकर छोड़ दीजिए, सुबह तक शानदार दही तैयार हो जाता है, जो स्वाद में मीठा और सोंधी खुशबू वाला होता है | इस गांव में मिलने वाले इस स्टोन से बर्तन, मूर्ति और खिलौने बनाए जाते हैं | ये हल्का सुनहरा और चमकीला होता है | इससे बनी मूर्तियां लोगों को खूब अट्रैक्ट करती हैं ।

 

 गुरुपूर्णिमा ही है गुरु और शिष्य के मिलन का पर्व

गुरुपूर्णिमा ही है गुरु और शिष्य के मिलन का पर्व

इस वर्ष 05 जुलाई अर्थात आज गुरुपूर्णिमा का महापर्व है। यह दिन अध्यात्म जगत की सबसे बड़ी घटना के रूप में जाना जाता है। इस दिन गुरु और शिष्य दोनों की आत्माओं का मिलन, समर्पण तथा विसर्जन-विलय होता है। इस दिन गुरु का महाप्राण शिष्य के प्राण में घुलता है और अपने गुरु के महाप्राण में शिष्य के प्राण विलीन हो जाता है। यह महापर्व जानने समझने का कम, अनुभूति के महासागर में डूब जाने का अधिक है। यह पर्व अकथ-कथा है, अबोल-बोल है तथा अमूर्त-मूर्त है, क्योंकि गुरु शिष्य की आत्मा में जीता है। वह होता ही है सदैव शिष्य में। शिष्य का अपना चोला भर होता है, भीतर तो गुरु की महाचेतना ही लहराती रहती है।
सद्गुरु सामान्य नहीं होते, वे महाचेतना के शक्तिपुञ्ज होते हैं, परमात्मा के प्रखर प्रतिनिधि होते हैं। स्वयं परमात्मा इनकी नियुक्ति करता है और उनकी भावी कार्य योजना बनाता है। सद्गुरु भगवत् योजना को लेकर धरती पर अवतरित होते हैं, और कार्य को पूर्णता देकर पुन: वहीं भगवद्धाम में वापस लौट जाते हैं। उनकी कार्य-योजना में अपने शिष्य को खोजना, उसे गढऩा और फिर उसे ढालना प्रमुख होता है। उन्हें सब कुछ योजना के अनुसार करना पड़ता है। उन्हें ही पता होता है कि वे क्या करते हैं और क्या करना है उनके कार्य बड़े अजब-अनूठे व निराले होते हैं। सामान्य ढंग से न तो उसे समझा जा सकता है और न ही उसका अंदाज ही लगाया जा सकता है।
गुरु का हर कार्य अनोखा और अद्भुत होता है। उसकी चाहत व प्रेम असाधारण होते हैं। उसकी चाहत शिष्य की अनन्त गहराई तक पहुँचती है और यह चाहत बीच में आने वाली सभी बाधाओं को रौंदते हुए चलती है तथा पहुँचती वहीं है, जहाँ उसे जाना होता है। जहाँ उसे स्थिर होना होता है। यही गुरु का प्रेम होता है। उनका प्रेम शिष्य का परिष्कार कर उसे प्रेम के लायक बनाता है। शिष्य धुले और उसकी नस-नाडिय़ों में प्रेम का रस बहे। बस, यही तो गुरु चाहते हैं।
समर्थ गुरु की चाहत को पूरा करने का साहस समर्पित शिष्य को जुटाना पड़ता है। उसे इस कार्य में अपने समस्त अस्तित्व के साथ गुरु की शरण में जाना होता है। उसे हर परिस्थिति में, मान-अपमान, लाँछन-तिरस्कार में, यहाँ तक कि मृत्यु तुल्य कष्ट को झेलने के लिए सहर्ष तैयार एवं तत्पर रहना पड़ता है। यदि वह अपने मृत्यु के प्रमााण पत्र में अपने प्राण से हस्ताक्षर करता है, तभी वह अपने इष्ट की चाहत व प्रेम का सच्चा अधिकारी बन सकने की प्रथम शर्त पूर्ण करता है। इसके पश्चात् गुरु का प्रेम जब शिष्य पर बरसता है, कृपा अवतरित होती है, तो शिष्य का जीवन एक नए जन्म की ओर अग्रसर होता है।
गुरु की कृपा पाप को काटने के लिए महाकष्ट के रूप में उतरती है, परन्तु उसकी दया से सांसारिक जीवन सुख-सुविधाओं से भर जाता है। जब वह दया करते हैं, तो मान-सम्मान, प्रतिष्ठा व भौतिक वैभव में बाढ़-सी आ जाती है पर उनकी महाकृपा से जीवन जीने के लिए भी तरस जाता है। स्वामी विवेकानन्द कहते हैं कि जब जीवन में सद्गुरु की कृपा बरसती है, तो कठिनाइयाँ ट्रेन के डिब्बे के समान धड़धड़ाते हुए चलती चली आती है। एक गई नहीं कि दूसरी आ जाती है। गुरु उन पर दया करते हैं जिनका मन और शरीर आध्यात्मिक शक्तियों को धारण और ग्रहण करने लायक नहीं होता और उन्हें उनके सांसारिक वैभव प्रदान करते हैं, परन्तु जिनकी स्थिति इस लायक होती है, वे उन शिष्यों के चित्त में जमे सभी संस्कारों को धूल के समान झाड़ देते है। सत्पात्र शिष्यों पर गुरु-कृपा बरसती है।
शिष्यत्व ग्रहण करने के लिए हमें उन्हीं के कार्यों को निष्काम भाव से करना चाहिए। गुरु स्मरण एवं गुरु कार्य से ही शिष्यत्व की पात्रता आती है। अत: इस गुरुपूर्णिमा से हमें कुछ विशेष करने का संकल्प लेना चाहिए। तभी हमारे सद्गुरु हमारे जीवन में अवतरित होंगे और जीवन धन्य बन सकेगा।
डॉ. प्रणव पण्ड्या

 

लेख: चीन को आर्थिक मोर्चे पर मात देने से ही बनेगी बात-कृष्णमोहन झा

लेख: चीन को आर्थिक मोर्चे पर मात देने से ही बनेगी बात-कृष्णमोहन झा

हम एक बार फिर अपने पडोसी देश चीन के छल का शिकार हो गए। पिछले कुछ दिनो में चीन के साथ सैन्य स्तर की थोड़ी सी वार्ता के बाद ही हम अपने पडोसी देश की बातों में आ गए। उसने हमारी जमीन पर अपना नाजायज कब्जा छोडऩे का हमें आश्वासन दिया और हमने झट यह मान लिया कि अतीत में कई बार हमें अपने छल का शिकार बना चुका हमारा पडोसी देश इस बार हमारे साथ कोई विश्वासघात नहीं करेगा।इधर हम वास्तविक नियंत्रण रेखा पर जारी विवाद का जल्द ही शांतिपूर्ण समाधान निकल आने की उम्मीदों के फलीभूत होने की प्रतीक्षा कर रहे थे और उधर चीन हमारी उम्मीदों पर पानी फेरने की साजिश रचने में जुटा हुआ था और आखिर में वही हुआ जिसकी आशंका को हम हमेशा नकारतेआए हैं।इस बार भी हमारी उम्मीदों पर चीन के धोखे ने पानी फेर दिया। लद्दाख क्षेत्र में 14 हजार फुट की ऊँचाई पर स्थित गलवान घाटी में चीनी सैनिकों ने निहत्थे भारतीय. सैनिकों के साथ जो क्रूरता दिखाई वह उसकी ऐसी शर्मनाक कायराना हरकत थी जिसकी जितनी भी निंदा की जाए कम है। इस हमले में भारतीय सेना के एक कर्नल सहित 20जवान शहीद हो गए। भारतीय सेना की जवाबी कार्रवाई में चीन के भी 43 सैनिक मारे गए और उसे भी काफी नुकसान पहुंचा। आश्चर्य की बात तो यह है कि चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स में दोनों देशों के बीच हुई हिंसक झडप के लिए चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने भारतीय सेना को जिम्मेदार ठहराने में भी कोई देर नहीं की। चीन की इस हरकत पर सारे देश में आक्रोश है देश के कई भागों में चीनी सामान की होली जलाई जा रही है और चीन से आयात किए जाने सामान का बहिष्कार करने के एक अभियान की भी शुरुआत हो चुकी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि देश की सीमा पर वीर जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। सारा देश भी यही चाहता है कि चीन को इस बार ऐसा सबक सिखाया जाए कि वहदुबारा भारत को धोखा देने की हिमाकत न कर सके। एक कहावत है कि दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक पीता है अब जब भी चीन के साथ सीमा विवाद समाधान की उम्मीद करें तो हमें इस कहावत में छिपे भावार्थ को कभी नहीं भूलना चाहिए। चीन की कुटिलता इस बात से भी जाहिर होती है कि उसने भारतीय सेैनिकों पर तब आक्रमण किया जब वे पूरी तरह निहत्थे थे और यही नहीं, भारतीय सैनिकों पर चीन के सैनिकों ने लोहे के कांटेदार तारों में लिपटी लाठियों एवं पत्थरों से हमला करके खुद ही यह साबित कर दिया कि अपनी घृणित मानसिकता का प्रदर्शन करने में भी उन्हें कोई शर्म महसूस नहीं होती। चीन की कुटिलता इस बात से भी जाहिर हो जाती है कि उसने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सोची समझी खुराफात करने के लिए यह नाजुक समय चुना जब भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण की रफ्तार रोजाना भयावह गति से बढ़ रही है और उस पर नियंत्रण पाने के सारे उपाय निष्फल सिद्ध हो रहे हैं। वैसे भी जब चीन को जब इस बात के लिए कोई शर्मिंदगी नहीं है किै जिस जानलेवा वायरस ने दुनिया भर में लाखों जिन्दगियों को लील लिया है उसका जन्म उसके अपने वुहान शहर में स्थित एक प्रयोग शाला में हुआ था तब यह तो कल्पना ही व्यर्थ है कि निहत्थे भारतीय सैनिकों पर हमले और उसके लिए यह नाजुक समय चुनने पर उसके अंदर कभी शर्मिंदगी का भाव जागेगा।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कोरोना संकट की ताज़ा स्थिति पर विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों से चर्चा के दौरान दो टूक कहा है कि भारत की अखंडता और संप्रभुता को कोई चुनौती नहीं दे सकता। हम ऐसी हर चुनौती का प्रतिकार करने में समर्थ हैं। प्रधान मंत्री ने यह भी कहा कि सीमा पर हमारे जो सौनिक मारते मारते मरे हैं उनका बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा।प्रधान मंत्री के इस कथन का आशय यही है कि हम चीन को उसकी इस हिमाकत का मुंहतोड़ जवाब दिए बिना चैन से नहीं बैठेंगे। सीमा पर तैनात सैनिकों को सरकार की ओर से पूरी छूट दे दी गई है। अब सारा देश यह जानने के लिए उत्सुक है कि चीन के साथ हिसाब चुकता करने के लिए सरकार उसके विरुद्धकिस तरह की कार्रवाई करने का मन बना चुकी है यद्यपि चीन के साथ हिंसक झडप में चीन के जो सैनिक मारे गए हैं उनकी संख्या हमारे शहीद सैनिकों से कहीं अधिक है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने चीन के कूटनीतिक स्तर पर बातचीत के दौरान जो दबाव बनाया उसके फलस्वरूप चीन को भारत के दस जवानों को भी छोडऩा पड़ा है जिनमें दो अधिकारी भी शामिल हैं लेकिन इस घटना के बाद चीन अपनुी खुराफात से बाज आएगा यह मान लेना हमारी भूल होगी। गौरतलब है कि गलवान घाटी के जिस हिस्से में यह हिंसक झडप हुई उसे चीन अभी भी अपना भूभाग बता रहा है जबकि भारत यह स्पष्ट कह चुका है कि गलवान घाटी भारत का ही हिस्सा है। जाहिर सी बात है कि चीन इतनी आसानी से रास्ते पर नहीं आएगा लेकिन इस मुद्दे पर देश के अंदर जो राजनीति हो रही है उसके लिए यह अवसर उचित नहीं है। प्रधानमंत्री के बारे में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी जो टिप्पणियां कर रहे हैं उनसे तो विपक्ष भी सहमत नहीं है। प्रधान मंत्री ने विगत दिनों जो सर्वदलीय बैठक बुलाई थी उसमें भी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने ऐसे सवाल, उठाए जो राहुल गांधी पहले ही कर चुके हैं परंतु इस सर्वदलीय बैठक में राकांपा अध्यक्ष शरद पवार और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री व तृणमूलकांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी जैसे विरोधी नेताओं ने भी जब राष्ट्र की संप्रभुता और अखंडता से जुड़े इस मुद्दे पर सरकार के साथ एकजुटता प्रदर्शित की तब कांग्रेस से ऐसे सवालों की अपेक्षा नहीं थी जिनका चीन हमारे देश के विरुद्ध दुष्प्रचार करने में इस्तेमाल कर सकता है।चीन ने वास्तविक सीमारेखा पर जो खुराफात की है उसके पीछे कई कारण हैं लेकिन तात्कालिक कारण तो यही माना जा रहा है कि जिस कोरोना वायरस ने सारी दुनिया में हाहाकार की स्थिति पैदा कर दी है उसकी उत्पत्ति चीन की एक प्रयोगशाला में होने के आरोपों को नकारने की सारी कोशिशों में उसे असफलता हाथ लगी है। दुनिया के कई देश यह मानते हैं कि चीन को इसकी जांच के लिए अंतर्राष्ट्रीय वैग्यानिकों की टीम को अपने यहां अनुमति देना चाहिए। भारत ने इस पहल का समर्थन किया है।चीन ने इस खुराफात के जरिए अंतर्राष्ट्रीय जगत का ध्यान मोडने की कोशिश की है। वह दक्षिण एशिया में भारत के बढते प्रभाव से भी चिन्तित है।उसे यह बात अच्छी तरह मालूम है कि इस इलाके में भारत के पास ही उसके प्रभुत्व को चुनौती देने का साहस और सामर्थ्य है। अमेरिका के साथ भारत की बढती निकटता व जी-7 समूह का दायरा बढ़ा कर इस समूह में भारत को भी शामिल करने की अमेरिकी पहल से भी वह खफा है। इन सब कारणों के अलावा गलवान घाटी इलाके में भारत द्वारा सडक का निर्माण उसकी खीज का एक प्रमुख कारण है। गलवान घाटी से लगा हुआ अक्साई चिन्ता इलाके पर चीन का कब्जा है।पूर्वी लद्दाख में गत 15 वर्षों से भारत जो 255 किलोमीटर लंबी सडक बना रहा है उसके निर्माण पर चीन की आपत्ति को दरकिनार करते हुए सडकका निर्माण कार्य भारत ने नहीं रोका है। विस्तारवादी चीन इस इलाके पर अपना दावा जताता रहा है। इस सडक के बन जाने के बाद भारतीय सैनिकों को पूर्वी लद्दाख में आने जाने में काफ़ी सहूलियत होगी। यही बात चीन को परेशान कर रही है। इसलिए भी चीन ने वास्तव में भारत को परोक्ष धमकी देने की मंशा से यह हमला किया।चीन लगभग दो माहों से वास्तविक नियंत्रण रेखा पर खुराफात करके भारत को परेशान करने की कोशिशों में जुटा हुआ है। हमें उसकी इन कोशिशों को विफल बनाने के लिए हथियारों के प्रयोग से पहले और दूसरे विकल्पों पर भी गंभीरता से सोचना होगा। इनमें सबसे अच्छा विकल्प यह है कि चीन को आर्थिक मोर्चे पर मात दी जाए पर इसके लिए हमें चीन पर अपनी निर्भरता लगातार कम करनी होगी और स्वदेशी के मंत्र को अपने जीवन में उतारना होगा। हमें चीन में निर्मित जीवनोपयोगी वस्तुओं का बहिष्कार केवल वर्तमान विवाद के सुलझ जाने तक नहीं करना है बल्कि हमें अब यह संकल्प ले लेना चाहिए कि हम चीन में निर्मित वस्तुओं का भविष्य में भी कभी इस्तेमाल नहीं करेंगे। इसी सिलसिले में कई प्रदेशों के व्यापारी संगठनों ने चीनी उत्पाद नहीं बेचने का जो फैसला किया है वह स्वागतेय है। हम अतीत में भी ऐसा कर चुके हैं परंतु हम अपने फैसले पर पहले ही अडिग रहे होते तो चीन भी काफी हद तक सुधर गया होता। खैर, तब नहीं तो अब सही।सरकार ने इस दिशा में कदम बढा दिए हैं। सीमा पर हिंसक झडप के बाद रेल मंत्रालय ने चीन की एक कंपनी को दिया गया 471 करोड़ रुपये का ठेका रद्द कर दिया है। गौरतलब है की कंपनियों ने भारत में भारी निवेश कर रखा है।हम चीन को जितना निर्यात करते हैं उसका करीब दोगुना चीन से आयात करते हैं।चीन दीर्घ काल से भारतीय बाजार पर कब्जा जमाने की मंशा पाले हुए है। हमें चीनी उत्पादों पर निर्भरता को न्यूनतम स्तर पर ले जाने का अभियान को कभी विराम नहीं देना चाहिए। चीन से इतने धोखे खाने के बाद हमें यह मान लेना चाहिए कि चीन वह देश नहीं हो सकता जिस पर हम आंख मूंद कर भरोसा कर सकें।

 

इस कठिन समय में विश्व को सत्य और करुणा की आवश्यकता है - मोनिका टॉमस

इस कठिन समय में विश्व को सत्य और करुणा की आवश्यकता है - मोनिका टॉमस

मेरे बचपन की शुरुआती यादें सादगी और स्वतंत्रता के बारे में थीं, ठीक मेरे जन्म-स्थान, कुन्नूर की तरह जहां मैं बड़ी हुई थी। मुझे लगता था जैसे लोगों का चरित्र नगर का ही एक प्रतिबिंब था ... सरल, सच्चा और दयालु। पीछे मुड़कर देखने पर, मुझे लगता है जैसे मेरा मन आज भी उन पहाड़ों की विशालता में भटक़ रहा हो। मैं हमेशा सोचती थी कि जीवन और अस्तित्व कहाँ से आया है! जैसे-जैसे समय बीतता गया, मैं अपनी पढ़ाई और फिर नौकरी के लिए एक बड़े शहर में चली गयी; मेरे पहले के निर्मल जीवन की तुलना में वहां जीवन बिलकुल विपरीत था। उन नए तरीकों से अनुकूल होने की कोशिश करते हुए, मैं उस शांत माहौल को खोज रही थी जो कभी मेरे पास था। लेकिन उस शांत अनुभव की तलाश सरल नहीं थी, क्योंकि लगभग हर चीज जो मुझे मिली वह सतही और दिखावटी थी।

2017 के दौरान, मेरा परिचय फालुन दाफा से हुआ (जिसे फालुन गोंग भी कहा जाता है, जो सत्य, करुणा और सहनशीलता के सिद्धांतों पर आधरित मन और शरीर का साधना अभ्यास है)। कुछ ही हफ्तों में मैं इसके व्यायाम और ध्यान को नियमित रूप से करने लगी, जिससे मुझे ऊर्जावान, बेहद जागरूक और खुद को कई तरीकों से जुड़ा हुआ महसूस होने लगा। मेरे मित्र के सुझाव पर, जिसने मुझे अभ्यास के बारे में बताया था, मैंने फालुन दाफा के संस्थापक श्री ली होंगज़ी द्वारा लिखित पुस्तक ज़ुआन फालुन को पढ़ना शुरू किया। पुस्तक में मुझे उन प्रश्नों के उत्तर मिले जो मैं हमेशा से खोज रही थी। मैंने सत्य, करुणा और सहनशीलता के सिद्धांतों को अपने जीवन में अपनाया और मुझे बहुत से सकारात्मक बदलाव महसूस हुए। मैं समझ गयी कि मौलिक रूप से बदलाव लाने के लिए अपने मन और शरीर का उत्थान करना आवश्यक है।

न्यूयॉर्क की अपनी एक यात्रा के दौरान, मैं चीन की एक लड़की से मिली, हमने थोड़ी बात की और मैंने उसे बताया कि कैसे फालुन गोंग का अभ्यास करने के बाद मैं एक बदले हुए व्यक्ति की तरह महसूस करती हूं। यह सुनने के बाद वह कुछ आशंकित लगी और उसने मुझे बताया कि यह अच्छा नहीं है और इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए। यह सुन कर मुझे एक धक्का सा लगा, क्योंकि दुनिया भर के लाखों अन्य लोगों की तरह मुझे भी इस अभ्यास से बहुत लाभ हुआ था। मुझे तब एहसास हुआ कि चीन में फालुन गोंग पर हो रहे अत्याचार के बारे में मुझे बहुत कम जानकारी है।

जानकारी की तलाश में, मैंने पाया कि चीनी कम्युनिस्ट शासन ने जुलाई 1999 से इस अभ्यास को खत्म करने के लिए एक राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया था। फालुन गोंग की बढ़ती लोकप्रियता और स्वतंत्रता को कम्युनिस्ट शासन ने एक चुनौती समझा और इसे दबाने के लिए क्रूर दमन आरम्भ कर दिया जो आज तक जारी है। लाखों फालुन गोंग अभ्यासियों को बंदी बना लिया गया, लेबर कैंप में भेजा गया, उनकी जमीन-जायदाद जब्त कर ली गयी। अभ्यासियों को शारीरिक और मानसिक यातनाएं दी जाती हैं और अभ्यास को छोड़ने के लिए ब्रेनवाश किया जाता है। डॉक्यूमेंट्री ह्यूमन हार्वेस्टदेखने के बाद, मुझे जो सबसे भयावह लगा, वह था कि चीनी शासन, सरकारी अस्पतालों की मिलीभगत से, फालुन गोंग अभ्यासियों के अवैध मानवीय अंग प्रत्यारोपण के अपराध में संग्लित है। इस अमानवीय कृत्य में हजारों फालुन गोंग अभ्यासियों की हत्या की जा चुकी है और बड़े पैमाने पर अवैध धन कमाया जा रहा है। 

आज चीन में, फालुन गोंग एक ऐसा विषय है, जिसके बारे में कोई बात नहीं करना चाहता। जिस चीनी लड़की से मैं मिली थी, उसी तरह कई लोग अब भी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा फैलाए गए झूठे प्रचार और मनगढ़ंत जानकारियों पर विश्वास करते हैं, वे या तो डर जाते हैं या फालुन गोंग के विषय में कुछ सुनना नहीं चाहते।

वास्तविकता जानने की कोशिश में, मुझे सच्चाई का पता चला। मुझे मानवाधिकारों के दुरुपयोग के इस मुद्दे पर तथ्यों को स्पष्ट करना और जागरूकता बढ़ाना उचित लगता है, क्योंकि इससे अमानवीय दमन को समाप्त करने में मदद मिलेगी । इस प्रकार लोग सूचित निर्णय ले सकते हैं और झूठे प्रचार से गुमराह नहीं होंगे।

कम्युनिस्ट चीन में प्रचलित परिस्थितियाँ किसी भी आस्था रखने वाले व्यक्ति के लिए बहुत विषम हैं, विशेष रूप से मेरे लिए जो अपने पहाड़ी नगर की अद्भुत यादें संजो कर रखे है, जहां लोग अभी भी शांति और सादगी का जीवन जीते हैं क्योंकि वे आस्था के मूल अधिकार का उपयोग करने के लिए स्वतंत्र हैं! इसके विपरीत मुझे फालुन गोंग के अद्भुत अभ्यास के माध्यम से अपनी खोज के उत्तर मिले। कठिन समय के बीच मुझे सबसे बड़ा उपहार मिला ... और मेरे अनुभवों के माध्यम से मुझे एहसास हुआ, सच्चाई कभी नहीं बदल सकती ... भले ही आपका परिवेश बदल जाए! इस कठिन समय में विश्व को सत्य और करुणा की आवश्यकता है।

(मोनिका टॉमस तमिलनाडु के पहाड़ी नगर कुन्नूर से हैं। उन्होंने मुंबई से अपने मॉडलिंग करियर की शुरुआत की। वर्तमान में, वे न्यूयॉर्क में एक अंतरराष्ट्रीय मॉडलिंग एजेंसी के लिए काम कर रही हैं और एक सफल फैशन मॉडल हैं) 

रविवार को लगेगा कंकण चूड़ामणि सूर्य ग्रहण: शास्त्री

रविवार को लगेगा कंकण चूड़ामणि सूर्य ग्रहण: शास्त्री

नईदिल्ली। अखिल भारतीय ब्राह्मण संरक्षण संघ के प्रदेश अध्यक्ष गोल्ड मेडलिस्ट आचार्य डी.पी.शास्त्री ने 21 जून रविवार को लगने वाले ग्रहण के संबंध में बताया है कि इस दिन कंकण चूड़ामणि ग्रहण है। इस दक्षिण चूड़ामणि सूर्यग्रहण का प्रभाव समस्त भारत और पूर्वी यूरोप आस्टे्रलिया  के केवल उतरी क्षेत्रों प्रशान्त एवं हिन्द्र महासागर मध्य पूर्वी एशिया पाकिस्तान, चीन, बर्मा, फिलीपीन्स में दिखाई देगा जिसका सुतक 12 घण्टें पूर्व लग जाता है। ऐसे तो आकाशीय घटना ग्रह के अनुसार बराबर होता रहता है। लेकिन जिसका प्रभाव धरातल-मानव से जुड़ा हो उसकी  चर्चा है। हमारे ज्योतिष शास्त्र में ऋषि-मुनि द्वारा की गई है। यह ग्रहण आषाढ़ कृष्ण पक्ष अमावस्या रविवार मृगशिरा आद्र्रा नक्षत्र में मिथुन राशि पर घटित हो रहा है। जो सुबह 09-15 से दोपहर 3-04 लगभग 5 घंटा 48 मिनट तक रहेगा जिसमें चार ग्रह का योग मिथुन राशि पर है। भारत की कुंडली में भी यह संयोग ठीक नहीं है। राजनीतिक में तनाव, व्यपार में नुकसान कोरोना महामारी से त्रस्त देश राज्य-सरकार की स्थिति भयावह रहेगी। शनि-गुरु-वक्री होने से भी भूकंप की स्थिति का सामना करना पड़ेगा। धर्म-क्षेत्र मिडिया, फिल्म-जगत् में भी तनाव का महौस रहेगा 29 सितम्बर 2020 के बाद शांति एवं वैश्विक महामारी से मुक्ति, मेडिसीन मिलने का योग बनेगा। विश्व में कही अनहोनी का भी योग वर्तमान में वन रहा है। मंगल के नक्षत्र में होने से जमीन-आग पंट्रोलियम खनिज पदार्थ में नुकसान रहेगा, लेकिन मेष-सिंह, मीन, राशि वालों के लिए लाभदायक रहेगा तथा शेष राशियों के लिए ठीक नहीं है। मिथुन, धनु राशि वाले तनाव एवं नुकसान में रहेंगे। इस ग्रहण के पूर्व ही संपूर्ण जगत त्रस्त है। यह योग अचानक सृष्टि क्रम के अनुसार फल देता है। सनातम परम्परा में धर्म ज्योतिष वेद का नेत्र है। जिससे देखकर हम गणना करते है। ग्रहण काल में सूर्य उपासना आदित्य हृदय स्त्रोत, इस्ट मंत्र जाप  शिव-दुर्गा-विष्णु स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। नग्न आँखों से ग्रहण को ना देखें। ग्रहण काल के समय पका हुअ अन्न अशुद्ध हो जाता है। अन्न पदार्थ में कुशा-तुलसी रखें। बच्चें, गर्भवती-स्त्री, बुजुर्ग को सुतक दोष नहीं लगता है। चए ग्रह एक साथ होने से राजनीतिक तथा प्राकृतिक प्रकोप से व्यापार तथा जन-धन हानि होने का योग है। ग्रहण समाप्ति काल के बाद गंगा स्नान, ध्यान तीर्थ स्नान अन्न-जल, दान छाया पात्र काला तील, तेल का दान करना श्रेष्ठ होता है। मिथुन राशि के प्रधान नेता पाकिस्तान मुस्लिम देशों के केन्द्रिय सत्ता में परिवर्तन, यमुना  निकट क्षेत्रों के लिए कढिन चुनौतिपूर्ण समय रहेगा। प्राकृतिक प्रकोप से जन-धन, की हानि है। ग्रहण के बाद भी कुछ समय तक दमिक्ष अकाल जन्म स्थिति रहेगी। जिसका प्रभावा मिथुन संक्रन्ति तक रहेगा। वैश्वक महामारी से धन क्षत्र होगा। इस समय महामाई दुर्गा का ध्यान पूजन करना श्रेष्ठ होगा। वर्ष के अंत तक सब कुछ सामान्य होने की सम्भावना है।
लेख: नेपाल तो कठपुतली और मुखौटा है, आंखें तो है चीन की- शशांक शर्मा

लेख: नेपाल तो कठपुतली और मुखौटा है, आंखें तो है चीन की- शशांक शर्मा

कभी सांस्कृतिक एवं धार्मिक दृष्टि से भारत का सबसे विश्वासपात्र पड़ोसी देश नेपाल अब भारत विरोधी व्यवहार कर रहा है। पड़ोसियों के बीच अनबन होना कोई बड़ी बात भी नहीं है किन्तु जब दुनिया को कोरोना संकट भयभीत किए हुए है और सभी देश अपने नागरिकों को इस महामारी से बचाने का प्रयत्न करने में लगी हैं, ऐसे समय नेपाल संसद विधेयक पारित कर सीमा के क्षेत्रों को अपने नक्शे में मिला लेने की कार्यवाही करे तो थोड़ा आश्चर्य तो होता है। वह भी ठीक उस समय जब चीन की सेना अक्साई चीन के क्षेत्र में अतिक्रमण करने का प्रयास कर रहा हो। जैसे ही यह दोनों घटनाएं मीडिया में प्रसारित होती हैं, वैसे ही देश का एक विशेष समूह जिसमें विरोधी राजनीतिक पार्टियां भी शामिल हैं नरेन्द्र मोदी सरकार पर ग़ैर जि़म्मेदाराना टिप्पणी करने लगते हैं। क्या इन घटनाओं के पीछे एक सोच काम कर रही है या महज़ नेपाल और चीन का भारत विरोधी  व्यवहार एक संयोग ही है?

सबसे पहले देश के उन बौद्धिक टिड्डे दलों की टिप्पणियों की चर्चा करें, जिनके अनुसार मोदी सरकार के पहले नेपाल और भारत के संबंध अति मधुर थे। भारत सरकारों की में विदेश नीतियां कभी आम आदमी की चर्चा का विषय नहीं रहा इसलिए पूर्व काल में सब अच्छा था और मोदी सरकार के समय से ही पड़ोसी देशों से संबंध बिगड़े हैं जैसी चर्चा सोशल मीडिया पर चलाई जा रही हैं। भारत की स्वतंत्रता के पहले ब्रिटिश शासन में वर्ष 1816 में सागौली की संधि हुई थी जिसके जरिए भारत और नेपाल की सीमा रेखा तय की गई थी। स्वतंत्रता के बाद 1950 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पं नेहरू ने नेपाल से शांति व मित्रता समझौता किया था, लेकिन इसके बाद ही नेपाल में भारत का विरोध शुरू हो गया था।

नेपाल में 1950 में राजशाही व्यवस्था थी और राणा वंश का शासन था, तब भारत नेपाल में राजनैतिक सुधार करने और लोकतंत्र स्थापना के लिए दबाव बना रहा था। इसका परिणाम हुआ कि 1950 के अंत में नेपाल में जनविद्रोह हो गया, राणा वंश को खत्म कर त्रिभुवन राजा बने। वहां वंशानुगत प्रधानमंत्री पद को समाप्त कर लोकतांत्रिक प्रणाली लागू की गई। 1951 में जब पं नेहरू नेपाल की यात्रा पर गए थे तभी राजा त्रिभुवन ने नेपाल को भारत में विलय करने का प्रस्ताव रखा था लेकिन नेहरू जी ने इसे अस्वीकार कर दिया। आज अगर वह प्रस्ताव स्वीकार कर ली गई होती तो दक्षिण एशिया का परिदृश्य ही अलग होता। ऐसा भी नहीं हुआ कि पं नेहरू के महान त्याग को नेपाली राजनीति में सम्मान मिला। इसके बाद चीन नेपाल में अपनी राजनीति शुरू कर दी। भारत नेपाल के बीच गंडक परियोजना का जमकर विरोध हुआ, 1959 आते आते जब भारत चीन के संबंध बिगडऩे लगे तो नेपाल कांग्रेस चीन से दोस्ती बढ़ाने का प्रस्ताव करने लगी। सह सही बात भी है, हर देश ताकतवर दोस्त चाहता है। नेपाल में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का प्रभाव बढऩे लगा। आखिरकार 2007 में माओवादियों की चीन की सत्ता हथिया ली और भारत में मूक शासन करने वाले दर्शक बन कर तमाशा देखते रहे।

नेपाल ने जिन क्षेत्रों को अपने नक़्शे में शामिल करने का विधेयक पारित किया है, वह विवाद तो 1950 में नहीं था। 1998 में आधिकारिक तौर पर नेपाल सरकार ने कालापानी क्षेत्र पर अपना दावा पेश किया। तब से अब तक 22 वर्ष गुजर चुके, अचानक नेपाल इतना बड़ा फैसला एकतरफा कैसे कर रहा है? इसे समझने के लिए आइंस्टाइन बुद्धि की आवश्यकता नहीं है। स्व.अटलबिहारी वाजपेयी की सरकार ने वर्ष 2000 में प्रधानमंत्री स्तर पर चर्चा कर सीमा विवाद को 2002 तक सुलझाने का संकल्प लिया। इसके बाद वर्ष 2001 में नेपाल के राजा सहित पूरे परिवार की हत्या हो गई, नेपाल की राजनीति में भूचाल आ गया। नेपाल में राजशाही का अंत कर लोकतंत्र की स्थापना करने की मांग होने लगी। इधर नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी और माओवादियों ने राजनीतिक हत्याएं शुरू कर दी।

इस बीच भारत में डॉ मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए की सरकार बनी, यह बताना जरूरी है कि इस सरकार को भारत के कम्यूनिस्ट पार्टियां अपना समर्थन दे रही थी। स्वतंत्रता के बाद भारत का प्रत्येक प्रधानमंत्री नेपाल की यात्रा कर दोनों देशों के परस्पर संबंध को बेहतर करने की दिशा में अपनी भूमिका निभाई, यहां तक कि अल्प समय के लिए प्रधानमंत्री बने मोरारजी देसाई व चन्द्रशेखर ने भी नेपाल की आधिकारिक यात्रा की। क्या यह आश्चर्य का विषय नहीं है कि 2004 से 2014 तक दस साल प्रधानमंत्री रहे डॉ मनमोहन सिंह ने एक बार भी नेपाल की यात्रा नहीं की! यही वह समय था जब नेपाल की सत्ता पर चीन समर्थित माओवादियों का कब्जा हो गया। वहीं नरेन्द्र मोदी 2004 में प्रधानमंत्री बने तब से पिछले 6 वर्षों में उन्होंने छह बार नेपाल की यात्रा की है, इसका मतलब क्या है? हमने अपनी आंखों के सामने नेपाल जैसे मित्र देश को चीन के चंगुल में फंसने के लिए छोड़ दिया। अब वे लोग जिनकी मंशा नेपाल को चीन का उपनिवेश बनाने की थी नेपाल के वर्तमान निर्णय को लेकर नरेन्द्र मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं।

अब यह समझना आसान है कि नेपाल इस संकट के समय भारत के विरूद्ध कार्यवाही क्यों कर रहा है? नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत एक वैश्विक शक्ति बनने की राह में है, वहीं दूसरी ओर कोरोना फैलाने का आरोप झेल रहा चीन दुनिया की आंख की किरकिरी बना हुआ है। चीन की अर्थव्यवस्था भी डावाँडोल है और चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी की राजनीति में भी संकट हैं, उपर से हांगकांग में चीन का विरोध बढ़ता ही जा रहा है। वहीं भारत ने पाकिस्तान पर सैन्य कार्रवाई करने के बाद जम्मू- कश्मीर में लागू धारा 370 को खत्म कर जो राज्य से केन्द्र शासित प्रदेश बनाने की कार्यवाही की है, उससे चीन परेशान है। उसकी परेशानी पाक अधिकृत कश्मीर के कारण है जहां से होकर चीन का निर्माणाधीन मार्ग गुजरता है और ग्वादर बंदरगाह को जोड़ता है। भारत अब पाक अधिकृत कश्मीर को वापस भारत के नक़्शे पर लाने की दिशा में जुटा हुआ है। पिछले दिनों पीओके क्षेत्र के लिए मौसम की जानकारी देना भारत में शुरू हो गया है। इन तमाम कारणों से बौखलाया चीन लद्दाख से लगे अक्सई चीन क्षेत्र पर कब्जा करने की चाल चल रहा है। इसके पीछे चीन की दबाव बनाने की कूटनीति है।

चीन को इस बात से भी परेशानी है कि भारत ने लिपुलेख तक सड़क बना ली है, इससे भारत से मानसरोवर की यात्रा पर जाने वाले भारतीय के लिए न केवल दूरी कम हो गई, बल्कि चीन से होकर जाने की निर्भरता नहीं रहेगी। संभव है चीन के लोगों का रोजगार इस निर्माण से छीन जाय। भारत की सेना जिस तरह से सीमा पर सड़क व अन्य अधोसंरचना को मजबूत कर रही है, उससे भी चीन को चिढ़ होना स्ववभविक है। ऊपर से कोराना संकट के चलते चीनी अर्थव्यवस्था चौपट हो रही है, ऊपर से दुनिया भर की कंपनियां चीन छोड़कर भारत आने पर विचार कर रहीं हैं। तमाम कारणों से चीन का भारत से नाराज़ होना तो बनता ही है।

अब नेपाल भारत से अपने संबंध क्यों खराब कर रहा है, इस सवाल का जवाब भी चीन की साजिश में है। दरअसल पिछले कुछ महिनों से नेपाल में राजनैतिक घमासान चल रहा है। नेपाली कम्यूनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रधानमंत्री के पी शर्मा ' ओलीÓ से इस्तीफ़ा मांग रहे थे, इस पर चीन ने नेपाली कम्यूनिस्ट नेताओं को ओली का विरोध नहीं करने की हिदायत दी। चीन के अतिक्रमण के विरूद्ध भारतीय प्रतिवाद और कोरोना के लिए चीन विरोधी गुट में भारत को शामिल कर लेने और भारत में चीन के आयात को रोकने व आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था की नीति से चीन को होने वाले संभावित नुकसान के विरूद्ध नेपाल का भारत विरोधी रवैया भारत के प्रति चीन का प्रतिकार है।

अभी नेपाल संसद की कार्रवाई हुई उसमें केवल नाम नेपाल का है, उसे मुखौटा समझिए, भारत की ओर जो नेपाल की ओर से आंखें तरेरी जा रही है, वह मुखौचे के पीछे चीन की आंखें हैं। उनके समर्थन में भारत के भी कम्यूनिस्ट अपनी सेवा चीन के षडयंत्र को हमेशा की तरह दे रहे हैं। लेकिन याद रहे आज 1962 वाला भारत नहीं है, वह दुश्मन से डरता नहीं, लड़ता है जरूरत होने पर घर में घुसकर मारता भी है।

 

लेख: आपराधिक कृत्यों से संकट में गजराज- अरविन्द मिश्रा

लेख: आपराधिक कृत्यों से संकट में गजराज- अरविन्द मिश्रा

केरल के मल्लापुरम में एक हथिनी के साथ क्रूरता का जो दृश्य सामने आया, वह इनसानियत को शर्मशार करने वाला है। ऐसी घटनाएं मानवीय आचरण की मर्यादाओं को तिलांजलि देती हैं। आखिर हम किस समाज में जी रहे हैं। क्या मनुष्य अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए इतना नैतिक शून्य हो गया है कि न्यूनतम मानवीय मूल्य का भी जीवन में अकाल होता जा रहा है। कम से कम मल्लापुरम में गर्भवती हथिनी के साथ किए गए पाश्विक कृत्य से तो यही सिद्ध होता है। सोचिए किस तरह कुछ लोगों ने भूख शांत करने के लिए इनसानी दायरे में प्रवेश कर आई हथिनी को अनानास में बारूद भरकर खिला दिया। पटाखों की शक्ल में बारूद ने हथिनी की सूंड व शरीर में इतने गहरे जख्म पहुंचा दिए कि गर्भवती हथिनी तड़प-तड़प कर मर गई। ऐसे ही एक विचलित करने वाली घटना हिमाचल के बिलासपुर से सामने आई है, जिसमें एक गर्भवती गाय को आटे में पटाखा देने से उसका जबड़ा उड़ गया। मामले में आरोपी की गिरफ्तारी हुई है।

 

सोशल मीडिया में केरल की घटना को लेकर देश ने काफी आक्रोश व्यक्त किया। महज कुछ घंटों के भीतर ही वृहद ऑनलाइन याचिका अभियान चलाए गए। निश्चित रूप से यह सिर्फ तात्कालिक रूप से भावनात्मक पीड़ा व्यक्त करने मात्र का नहीं बल्कि गंभीर सामूहिक चिंतन का विषय है। देश में विगत कुछ वर्षों में हाथियों के साथ हो रही क्रूरता का आकलन पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी द्वारा प्रस्तुत उस तथ्य से किया जा सकता है, जिसमें उन्होंने बताया है कि पिछले 20 साल से एक भी हाथी की मौत प्राकृतिक कारणों से नहीं हुई है। बल्कि जितने भी हाथियों की मृत्यु हो रही है, उसकी वजह मानवीय हिंसा और इनसानी लापरवाही ही प्रमुख है।

 

मेनका गांधी द्वारा प्रस्तुत हाथियों की मौत के आंकड़े इसलिए भी चिंता पैदा करते हैं क्योंकि पिछले कई दशकों से मेनका गांधी हाथियों समेत पशुओं के अधिकारों की लड़ाई में नागरिक संगठनों को नेतृत्व प्रदान करती रही हैं। मल्लापुरम में हाथियों के साथ निर्दयता का यह पहला मामला नहीं है, यहां हाथियों को मौत के घाट उतारने और उससे आर्थिक लाभ अर्जित करने का पूरा संगठित गिरोह संचालित किया जाता रहा है। पशुओं के साथ क्रूरता के लिए यह क्षेत्र दुनियाभर में कुख्यात हो चुका है। देश में सर्वाधिक शिक्षित जिलों में शुमार होने के बाद भी यहां ऐसा शायद ही कोई दिन और सप्ताह रहा हो जब पशु-पक्षियों के सामूहिक संहार के समाचार न आते हों। पक्षियों और जानवरों को मौत के घाट उतारने के लिए यहां ऐसे बर्बर तरीके अपनाए जाते हैं, जो सभ्य समाज में मानवता का निर्वात पैदा होने का प्रमाण देते हैं। इनमें कभी सड़कों, नदी और तालाब में जहरीला रसायन फैलाकर पशु-पक्षियों और जलीय जंतुओं को मौत के घाट उतारने और हाथियों का बीमा कराकर उनके शरीर में जंग लगी कील ठोककर उन्हें मौत देकर मुआवजा व उनके दांत, मांस आदि बेचकर आर्थिक लाभ प्राप्त करने के कृत्य शामिल हैं। यह सब कुछ संगठित गिरोह के रूप में अंजाम दिया जाता है। लंबे समय से पर्यावरण प्रेमी इनके खिलाफ़ आवाज उठा रहे हैं। पशुओं के अधिकारों के प्रति असंवेदनशील केरल सरकार ने शायद ही कभी पशुओं के साथ क्रूरता करने वाले और उन्हें शह देने वाले अधिकारियों पर शिकंजा कसने का प्रयास किया हो। दुर्भाग्य से पशुओं की क्रूरता और विशेष रूप से हाथियों के संरक्षण को लेकर लड़ी जा रही कानूनी लड़ाई भी पिछले कई साल से सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। यहां कई नागरिक संगठनों ने हाथियों पर निजी स्वामित्व समाप्त करने की गुहार लगाते हुए उसे अनुसूची-एक में शामिल किए जाने की मांग की है।
हमारे पर्यावरण व पारिस्थितिकी तंत्र की अनुकूलता के लिए हाथियों का होना कितना अहम है, इस पर समय-समय पर अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरणीय संस्थाएं प्रकाश डालती रही हैं। हाथियों के विलुप्त होने के पीछे उनसे क्रूरता के साथ पर्यावरण के साथ हो रही छेड़छाड़ भी कम जिम्मेदार नहीं है। उनके परिवेश को हमने तहस-नहस करने का कार्य किया है। वर्ष 2019 में नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित एक रिपोर्ट इस संकट की ओर संकेत करती है, जिसमें कहा गया है कि जंगल से हाथी विलुप्त हो गये तो ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा 7 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी। इससे ओजोन की परत पिघलने जैसे घातक परिणाम सामने आएंगे।

 

दरअसल, हाथियों को बड़े पौधों के बीज को एक स्थान से दूसरे स्थान तक प्रसारित करने में सहायक माना जाता है, यानी इनकी उपस्थिति से पर्यावरण में बड़े वृक्षों की संख्या बढ़ती है। पादप वैज्ञानिकों के मुताबिक भारत में 300 से अधिक पादप प्रजातियां भी हाथियों के साथ विलुप्त हो जाएंगी। ऐसे में आवश्यकता है वन्य जीवों के साथ क्रूरता के ऐसे किसी भी कृत्य पर कड़ाई से रोक लगाने की अन्यथा हाथी सिर्फ किस्से और कहानी का हिस्सा बनकर रह जाएंगे।

 

लेख: कोरोना छीन ले गया होंठों की लाली- शमीम शर्मा

लेख: कोरोना छीन ले गया होंठों की लाली- शमीम शर्मा

कोरोना के कारण और जो कुछ हुआ सो हुआ पर महिलाओं के सोलह-शृंगार पर भी आंच आ गई है। हमारे पुरातन साहित्यिक ग्रंथों में महिलाओं के सोलह-शृंगारों का बार-बार उल्लेख मिलता है, जिसमें बिंदी, सुर्खी, सिंदूर, काजल आदि प्रमुख हैं। पर मास्क ने सुर्खी यानी लिपस्टिक पर कहर ढा दिया है। मुझे नहीं पता कि भविष्य में लिपस्टिक निर्माता क्या बनायेंगे पर यह सवाल ज्यादा विकराल है कि अब महिलाएं अपने अधरों पर लिपस्टिक क्यों और कैसे लगायेंगी? यह उल्लेख भी जरूरी है कि पुराने जमाने की सुर्खी ही आज की लिपस्टिक है। सुर्खी को लाली भी कहते हैं।
कुदरत ने भी होंठों की कमाल रचना की है जैसे कि लाल कमल की दो पंखुडिय़ां हों। हिन्दी साहित्य में भी नखशिख वर्णन करते हुए सबसे अधिक उपमायें आंख व होंठ के लिए सृजित हुई हैं। जिन अधरों पर जायसी, बिहारी-घनानंद जैसे कवियों ने अनेक रचनाएं रचीं, अब कोरोना काल में उन अधरों पर पटाक्षेप हो गया है। रंगबिरंगे मास्क होंठों पर जा विराजे हैं। मास्क ने होंठों को यूं ढक लिया है जैसे गाय-भैंस का दूध निकालने के बाद कोई स्त्री भरी बाल्टी दूध को अचानक पल्लू से ढक लिया करती कि कहीं नजऱ न लग जाये।


अखरोट के पेड़ की छाल 'दनदसा’ का उपयोग सदियों से दांतों को चमकाने के लिए किया जाता है पर इसका असर होंठों पर यह होता है कि वे सुर्ख हो जाते हैं। गज़़ल गायक जगजीत सिंह की ताउम्र एक ही रिक्वेस्ट थी—'होंठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो’ अब तो गीत के अमर होने की सारी संभावनाएं शून्य हो चली हैं।


लड़कियां लाल या संतरी रंग की लिपस्टिक में भी बीस शेड ढूंढ़ लेती हैं पर लड़के शैम्पू की जगह कंडीशनर से नहाकर कहेंगे कि इस शैम्पू में झाग ही नहीं हैं।


होंठ सिर्फ होंठ नहीं हैं बल्कि मुस्कुराहट का माध्यम भी है। हंसी की तो आवाज़ होती है पर होंठों पर फैली मुस्कान का तो देखे बगैर पता नहीं चलता। इसी मुस्कान के बारे में कहा गया है कि लड़की हंसी और फंसी। इस पर एक मनचले की फब्ती है कि एक लड़की स्माइल दे-देकर थक गई, पर मैंने उसे सीट नहीं दी।


 

अनूठा सयोग एक महिने के भीतर लगने वाले हैं 3 बड़े ग्रहण

अनूठा सयोग एक महिने के भीतर लगने वाले हैं 3 बड़े ग्रहण

नईदिल्ली, वैसे तो ग्रहण एक खगोलीय घटना है, लेकिन हिंदू धर्म में इसे बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। इस साल 2020 में कुल 6 ग्रहण लगने वाले हैं, जिनमें से कुल तीन ग्रहण अगले 30 दिन यानी एक महीने के भीतर लगने वाले हैं। जून से जुलाई महीने के बीच एक के बाद एक लगातार 3 बड़े ग्रहण लग रहे हैं।

एक महीने में होने वाले इन तीनों ग्रहण पर वैज्ञानिकों और ज्योतिष शास्त्र के विद्वानों ने नजरें गढ़ा रखी हैं। ज्योतिर्विद करिश्मा कौशिक ने आने वाले तीन ग्रहण की समय और तिथि को लेकर विस्तार से जानकारी दी है। ज्योतिषविद ने बताया कि साल का पहला चंद्र ग्रहण 10 जनवरी 2020 को लग चुका है, अब 5 जून 2020 को साल का दूसरा चंद्र ग्रहण लगने जा रहा है। यह एक उपछाया ग्रहण होगा जो भारत समेत एशिया, अफ्रीका और यूरोप में नजर आएगा। 5 जून 2020 को लगने वाला चंद्र ग्रहण रात 11 बजकर 15 मिनट से आरंभ होगा और इसका समापन अगले दिन यानी 6 जून को रात 2 बजकर 34 मिनट पर होगा।

इसके 15 दिन बाद यानी 21 जून 2020 को दूसरा चंद्र ग्रहण लगेगा। यह साल का तीसरा चंद्र ग्रहण होगा। यह ग्रहण भारत समेत सउदी, साउथ-ईस्ट और एशिया में भी पूर्ण रूप से नजर आने की संभावना है। 21 जून को लगने वाला चंद्र ग्रहण सुबह 9 बजकर 15 मिनट आरंभ होगा और दोपहर 2 बजकर 2 मिनट तक रहेगा। ज्योतिर्विद का कहना है कि दोपहर करीब 12 बजे इस ग्रहण का प्रभाव काफी ज्यादा बढ़ जाएगा, इसलिए इस ग्रहण से काफी ज्यादा संभलकर रहने की जरूरत होगी।

इसके बाद एक महीने के भीतर लगने वाले तीसरने ग्रहण की तारीख 5 जुलाई 2020 है। ये भी एक चंद्र ग्रहण ही होगा, लेकिन शायद यह भारत में नजर नहीं आएगा। यह साउथ ईस्ट समेत अफ्रीका और अमेरिका में नजर आ सकता है। यह ग्रहण सुबह 8 बजकर 37 मिनट से लेकर सुबह 11 बजकर 22 मिनट तक रहेगा। सुबह के वक्त चंद्र ग्रहण लगने की वजह से भारत में यह नजर नहीं आएगा। जिन देशों में उस वक्त रात्रि होगी, यह ग्रहण वहीं नजर आने वाला है।
 

क्यों करती हैं महिलाएं वट सावित्री का व्रत, क्या है महत्व एवं पूजन विधि

क्यों करती हैं महिलाएं वट सावित्री का व्रत, क्या है महत्व एवं पूजन विधि

इस व्रत में महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करती हैं, सती सावित्री की कथा सुनने व वाचन करने से सौभाग्यवती महिलाओं की अखंड सौभाग्य की कामना पूरी होती है। इस व्रत को सभी प्रकार की स्त्रियां (कुमारी, विवाहिता, विधवा, कुपुत्रा, सुपुत्रा आदि) इसे करती हैं। इस व्रत को स्त्रियां अखंड सौभाग्यवती रहने की मंगलकामना से करती हैं।

पुराणों में यह स्पष्ट किया गया है कि वट में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास है। मान्यता अनुसार इस व्रत को करने से पति की अकाल मृत्यु टल जाती है। वट अर्थात बरगद का वृक्ष आपकी हर तरह की मन्नत को पूर्ण करने की क्षमता रखता है।
बरगद या वटवृक्ष : अक्सर आपने देखा होगा की पीपल और वट वृक्ष की परिक्रमा का विधान है। इनकी पूजा के भी कई कारण है। आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो वट वृक्ष दीर्घायु व अमरत्व के बोध के नाते भी स्वीकार किया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि वट वृक्ष की पूजा लंबी आयु, सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य देने के साथ ही हर तरह के कलह और संताप मिटाने वाली होती है।

पीपल के बाद बरगद का सबसे ज्यादा महत्व है। पीपल में जहां भगवान विष्णु का वास है वहीं बरगद में ब्रह्मा, विष्णु और शिव का वास माना गया है। हालांकि बरगद को साक्षात शिव कहा गया है। बरगद को देखना शिव के दर्शन करना है।
हिंदू धर्मानुसार पांच वटवृक्षों का महत्व अधिक है। अक्षयवट, पंचवट, वंशीवट, गयावट और सिद्धवट के बारे में कहा जाता है कि इनकी प्राचीनता के बारे में कोई नहीं जानता। संसार में उक्त पांच वटों को पवित्र वट की श्रेणी में रखा गया है। प्रयाग में अक्षयवट, नासिक में पंचवट, वृंदावन में वंशीवट, गया में गयावट और उज्जैन में पवित्र सिद्धवट है।


आइए जानते हैं सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य देने वाले वट वृक्ष की विशेषताएं -

* पुराणों में यह स्पष्ट किया गया है कि वट में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास है।

* वट पूजा से जुड़े धार्मिक, वैज्ञानिक और व्यावहारिक पहलू हैं।

* वट वृक्ष ज्ञान व निर्माण का प्रतीक है।

* भगवान बुद्ध को इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था।

* वट एक विशाल वृक्ष होता है, जो पर्यावरण की दृष्टि से एक प्रमुख वृक्ष है, क्योंकि इस वृक्ष पर अनेक जीवों और पक्षियों का जीवन निर्भर रहता है।

* इसकी हवा को शुद्ध करने और मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति में भी भूमिका होती है।

* दार्शनिक दृष्टि से देखें तो वट वृक्ष दीर्घायु व अमरत्व के बोध के नाते भी स्वीकार किया जाता है।

* वट सावित्री में स्त्रियों द्वारा वट यानी बरगद की पूजा की जाती है।

* इसके नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा आदि सुनने से मनोकामना पूरी होती है।

* वट वृक्ष का पूजन और सावित्री-सत्यवान की कथा का स्मरण करने के विधान के कारण ही यह व्रत वट सावित्री के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
* धार्मिक मान्यता है कि वट वृक्ष की पूजा लंबी आयु, सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य देने के साथ ही हर तरह के कलह और संताप मिटाने वाली होती है।

* प्राचीनकाल में मानव ईंधन और आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए लकड़ियों पर निर्भर रहता था, किंतु बारिश का मौसम पेड़-पौधों के फलने-फूलने के लिए सबसे अच्छा समय होता है। साथ ही अनेक प्रकार के जहरीले जीव-जंतु भी जंगल में घूमते हैं। इसलिए मानव जीवन की रक्षा और वर्षाकाल में वृक्षों को कटाई से बचाने के लिए ऐसे व्रत विधान धर्म के साथ जोड़े गए, ताकि वृक्ष भी फलें-फूलें और उनसे जुड़ी जरूरतों की अधिक समय तक पूर्ति होती रहे।
इस व्रत के व्यावहारिक और वैज्ञानिक पहलू पर गौर करें तो इस व्रत की सार्थकता दिखाई देती है।

वट सावित्री व्रत-पूजा विधि

* प्रात:काल घर की सफाई कर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करें।

* तत्पश्चात पवित्र जल का पूरे घर में छिड़काव करें।

* इसके बाद बांस की टोकरी में सप्त धान्य भरकर ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना करें।

* ब्रह्मा के वाम पार्श्व में सावित्री की मूर्ति स्थापित करें।
* इसी प्रकार दूसरी टोकरी में सत्यवान तथा सावित्री की मूर्तियों की स्थापना करें। इन टोकरियों को वटवृक्ष के नीचे ले जाकर रखें।

* इसके बाद ब्रह्मा तथा सावित्री का पूजन करें।

अब निम्न श्लोक से सावित्री को अर्घ्य दें-

अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते।
पुत्रान्‌ पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तुते।।

* तत्पश्चात सावित्री तथा सत्यवान की पूजा करके बड़ की जड़ में पानी दें।

इसके बाद निम्न श्लोक से वटवृक्ष की प्रार्थना करें-

यथा शाखाप्रशाखाभिर्वृद्धोऽसि त्वं महीतले।
तथा पुत्रैश्च पौत्रैश्च सम्पन्नं कुरु मा सदा।।

* पूजा में जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल तथा धूप का प्रयोग करें।
* जल से वटवृक्ष को सींचकर उसके तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर 3 बार परिक्रमा करें।

* बड़ के पत्तों के गहने पहनकर वट सावित्री की कथा सुनें।

* भीगे हुए चनों का बायना निकालकर, नकद रुपए रखकर सासुजी के चरण स्पर्श करें।

* यदि सास वहां न हो तो बायना बनाकर उन तक पहुंचाएं।
* वट तथा सावित्री की पूजा के पश्चात प्रतिदिन पान, सिन्दूर तथा कुमकुम से सौभाग्यवती स्त्री के पूजन का भी विधान है। यही सौभाग्य पिटारी के नाम से जानी जाती है। सौभाग्यवती स्त्रियों का भी पूजन होता है। कुछ महिलाएं केवल अमावस्या को एक दिन का ही व्रत रखती हैं।

* पूजा समाप्ति पर ब्राह्मणों को वस्त्र तथा फल आदि वस्तुएं बांस के पात्र में रखकर दान करें।
अंत में निम्न संकल्प लेकर उपवास रखें -

मम वैधव्यादिसकलदोषपरिहारार्थं ब्रह्मसावित्रीप्रीत्यर्थं
सत्यवत्सावित्रीप्रीत्यर्थं च वटसावित्रीव्रतमहं करिष्ये।
 

कोरोना वाइरस और लाक डाउन: रियायतों की खुशी के साथ जिम्मेदारी का अहसास भी जरूरी-कृष्णमोहन झा

कोरोना वाइरस और लाक डाउन: रियायतों की खुशी के साथ जिम्मेदारी का अहसास भी जरूरी-कृष्णमोहन झा

देश में कोरोना संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए गत 55 दिनों से जारी लाक डाउन को चौथी बार बढा दिया गया है और अब यह 31मई तक जारी रहेगा। गौरतलब है कि लाक डाउन 3.0की समय सीमा 17 मई तय की गई थी जिसके समाप्त होने के पूर्व ही लाक डाउन 4.0 की घोषणा कर दी गई।देश में में विगत कुछ दिनों में कोरोना संक्रमण की रफ्तार तेजी से बढा है उसे देखते लाक डाउन की समय सीमा एक बार फिर बढाए जाने के बारे में किसी को भी संशय नहीं था। केंद्र द्वारा लाक डाउन 4.0 की घोषणा किए के पूर्व ही देश के पांच राज्यों कर्नाटक, महाराष्ट्र, पंजाब, मिजोरमऔर तमिलनाडु की राज्य सरकारों ने अपने यहाँ लाक डाउन की अवधि 31 मई तक बढ़ाने की घोषणा कर दी थी। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने लाक डाउन के चौथे चरण के लिए गाइड लाइन भी जारी कर दी है। लाक डाउन 4.0ढेर सारी रियायतें भी अपने साथ लेकर आया है और इन रियायतों के मिल जाने से कई इलाकों में जनजीवन सामान्य होने एवं आर्थिक गतिविधियों में गति आने की संभावनाएं बलवती हो उठी हैं।प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च को राष्ट्र के नाम अपने संदेश में जब संपूर्ण देश में 21 दिन के लाक डाउन की घोषणा की थी तब सरकार के साथ ही देश की जनता भी यह उम्मीद कर रही थी कि यह समय सीमा देश के अंदर कोरोना वायरस के संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए काफी होगी परंतु आज की तारीख़ में देश में कोरोना संक्रमण की जो स्थिति है वह हमें इस कडवी हकीकत को स्वीकार कर लेने के लिए विवश कर रही है कि लाक डाउन के तीन चरण पूरे हो जाने के बाद भी इसकी अवधि पुन: 14 दिनों के लिये बढाने के अलावा और कोई दूसरा रास्ता नहीं था । यह सही है कि केंद्र सरकार ने लाक डाउन के दूसरे, तीसरे और चौथे चरण में रियायतों में क्रमश: बढोत्तरी भी की है परंतु अभी भी यह कहना मुश्किल है कि लाक डाउन 4.0 की अवधि पूर्ण होने के बाद हमें उसे और आगे बढ़ाने की अनिवार्यता महसूस नहीं होगी।


केंद्र सरकार लाकडाउन की समय सीमा तीन बार बढ़ाने के साथ जिस तरह हर बार रियायतों में भी वृद्धि करती रही है उससे यह संदेश अवश्य मिलता है कि सरकार जनजीवन को पहले की तरह सामान्य बनाने की दिशा में धीरे धीरे आगे बढऩा चाहती है इसीलिए लाक डाउन के चौथे चरण में भी सामान्य रेल और विमान सेवाओं को अभी भी स्थगित रखने का फैसला किया गया है।इसके अलावा उन आयोजनों एवं संस्थानों पर भी पहले से लागू पाबंदियों में कोई नई रियायत नहीं दी गई है जहां भीड एकत्र होने की संभावना सबसे अधिक होती है। गौरतलब है कि लाक डाउन 4.0 का रूपरंग तय करने के लिए प्रधानमंत्री ने विगत दिनों सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ वीडियो कांफ्ऱेंसिंग के माध्यम से विस्तृत चर्चा की थी जिसमें कुछ मुख्य मंत्रियों ने लाकडाउन के चौथे चरण का स्वरूप तय करने के लिए अपनी ओर से सुझाव भी दिए थे परंतु कुछ अन्य मुख्यमंत्रियों ने इस संबंध में केवल केन्द्र के निर्देशों के पालन के पक्ष में अपनी राय दी थीं। लाकडाउन 4.0 की विशेषता यह है कि इसमें काफी कुछ राज्य सरकारों की मर्जी पर छोड़ दिया गया है लेकिन उसमें केन्द्र सरकार की अनुमति जरूरी होगी।देश में अभी तक कोरोना संक्रमण की गंभीरता के अनुसार रेड, आरेंज और ग्रीन जोन का निर्धारण केंद्र सरकार द्वारा किया जा रहा परंतु लाक डाउन के चौथे चरण में यह अधिकार अब राज्य सरकारों को दे दिया गयाहै7गौर तलब है कि हाल में ही प्रधान मंत्री द्वारा वीडियो कांफ्ऱेंसिंग के माध्यम से बुलाई गई बैठक में कुछ राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने यह मांग की थी जिसे केंद्र ने स्वीकार कर लिया है। लाकडाउन के चौथे चरण में तीन जोन की जगह पांच जोन होंगे।रेड, आरेंज और ग्रीन जोन के साथ अब केन्टोनमेंट और बफर जोन भी होंगे। इनमें केन्टोनमेंट जोन में सबसे अधिक सख्ती रखी जाएगी। इसमें विशेष बात यह है कि लाक डाउन के चौथे चरण में यद्यपि राज्य सरकारों को काफी अधिकार दे दिए गए हैं परंतु उन्हें सारे फैसले केन्द्र को विश्वास में लेकर ही करने होंगे । किसी भी मामले में अंतिम फैसला केंद्र का ही होगा।लाक डाउन के चौथे चरण में राज्यों को आपसी सहमतिसेअंतर्राज्यीय बस सेवा प्रारंभ करने की अनुमति देने से उन प्रवासी मजदूरों को काफी राहत मिल सकेगी जो अपने गृह राज्य लौटने के लिए कड़ी धूप में मामलों पैदल चलने के लिए विवश थे।लाक डाउन के कारण बेरोजगार हुए प्रवासी मजदूरों केपलायन की समस्या ने सरकार को चिंता में डाल रखा था। सरकार ने उनकी सुविधाजनक घर वापसी के लिए श्रमिक एक्सप्रेस अवश्य चलाई हैं परंतु प्रवासी मजदूरों की बहुत बड़ी संख्या तक अभी भी इस सुविधा का लाभ नहीं पहुंच पा रहा है क्यों कि ये मजदूर प्रशासनिक सख्ती के कारण अब ऐसे रास्तों से गुजर रहे हैं जो रेलवे स्टेशनों से बहुत दूर हैं। शायद इसीलिए लाक डाउन के चौथे चरण में अंतर्राज्यीय बस सेवा पर से पाबंदी हटा ली गई है। अभी यह स्थिति है कि कड़ी धूप में पैदल चलते चलते भूखे प्यासे गरीब मजदूर एक राज्य की सीमा तक पहुंचकर दूसरे राज्य की सीमा के अंदर प्रवेश करना चाहते हैं तो वहां पर तैनात दूसरे राज्य की पुलिस उन्हें रोक देती है।इसी तरह बहुत से मजदूर ट्रकों में सवार होकर गंतव्य तक पहुंचना चाहते हैं जो कि अनजान में मौत को आमंत्रण देने जैसा ही होता है। विगत दिनों अनेक प्रवासी मजदूरों की दुखद मृत्यु भी हो चुकी है। अंतर्राज्यीय बस सेवा प्रारंभ होने से अब प्रवासी मजदूर एक राज्य से दूसरे राज्य में प्रवेश कर सकेंगे। इसके लिए दोनों राज्यों की सरकारों के बीच सहमति होना जरूरी है।अब देखना यह है कि राज्य सरकारें प्रवासी मजदूरों की तकलीफों को देखते हुए इस काम में कितनी रुचि लेती हैं । दरअसल जब प्रवासी मजदूरों को किसी राज्य की पुलिस उस राज्य के अंदर प्रवेश करने से रोकती है तो उसके पीछे यह आशंका होती है कि ये मजदूर कहीं कोरोना संक्रमित तो नहीं हैं। इसलिए इन मजदूरों को क्वेरेन्टीन में रखा जाता है।.अंतर्राज्यीय बस सेवा शुरू होने के बाद पैदल या ट्रक आदि से यात्रा करने वाले मजदूरों को राहत मिल सकेगी। एक बात तो तय है कि कोरोना संकट काल में विभिन्न राज्य सरकारों के बीच आपसी तालमेल अनिवार्य हो गया है। राज्य सरकारों को इस नाजुक समय में टकराव का रास्ता छोडऩा होगा। बहरहाल ,लाक डाउन के चौथे चरण की शुरुआत हो चुकी है और जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन संकेत दिए थे, इसका स्वरूप वास्तव में पिछले तीन चरणों के लाकडाउन से कई मायनों में अलग है और इसमें जो रियायतें बढाई गई हैं उनसे समाज के सभी वर्गों को राहत महसूस होगी लेकिन इन रियायतों के साथ कई चुनौतियां भी जुड़ी हुई हैं।उन चुनौतियों से पार पाकर ही हम कोरोना संक्रमण पर इस तरह काबू पा सकते हैं कि लाक डाउन के पांचवें चरण में हमसे नाममात्र की बंदिशों के पालन की अपेक्षा की जाए। आज देश में कोरोनासंक्र मण की जो स्थिति है वह हमें चिंतामुक्त हो जाने की अनुमति नहीं देती। लाक डाउन के इस चौथे चरण में हमें अपनी दिनचर्या को पहले की तरह सामान्य बनाने के लिए ढेर सारी रियायतें दी गई हैं परंतु उनका उपयोग हमें इस तरह करना है किलाक डाउन के चौथे चरण में कोरोना वायरस की चेन टूटने सिलसिला प्रारंभ हो सके।निश्चित रूप से लाक डाउन 4.0 में दी गई ढेर सारी रियायतों से जनता काफी राहत महसूस कर रही है परंत इनकी सार्थकता तभी सिद्ध हो सकेगी जब हम इन राहतों का सदुपयोग करते हुए कोरोना संक्रमण को न्यूनतम स्तर करवाने में सफल हो सकें।
 

क्यों मजबूर हैं सरकारें कोरोना से भी अधिक विषैला जहर पिलवाने - विमल शंकर झा

क्यों मजबूर हैं सरकारें कोरोना से भी अधिक विषैला जहर पिलवाने - विमल शंकर झा

छत्तीसगढ़ सहित पूरे देश में कोरोना के चालीस दिनों के लाकडाउन में ढील के बाद शराब दुकानों के सामने उमड़ रही पीने वालों की भीड़ ने आम लोगों को शर्मसार ही नहीं किया है बल्कि उनकी आंखों में पानी लाने के लिए मजबूर कर दिया है । परिजनों के साथ नशे को नाश की जड़ मानने वालों की आंखों का यह पानी कोई खुशी का नहीं वरन पीने-पिलाने वालों की आंखों का पानी मर जाने पर गम और गुस्से तथा अफसोस को लेकर है । सरकार के लाकडाउन - टू में ढील के बाद शराब दुकानों के लाक खोल देने से देश की राजधानी से लेकर प्रदेश की राजधानी तक शराब दुकानों में एक किलोमीटर से तीन किलोमीटर तक कतारों और उन्मादी होती सिरफुटौव्वल वाली भीड़ के चौंकाने वाले दर्दनाक दृश्य दिखाई दे रहे हैं । लोगों को यह यकीन करना मुश्किल हो रहा है कि पीने पिलाने के यह नजारे इसी सुसभ्य, सुशिक्षित औैर सभ्य समाज के हैं ? क्या दारु दुकानों के सामने उमड़ता, घुमड़ता, ललचाया और बौराया भारत सरकारों के रामराज, गांधीराज, विश्व गुरु और महाशक्ति वाला विकसित आधुनिक भारत है ? महात्मा गांधी ने कहा था कि छुआछूत की तरह मद्यपान भी हमारे समाज का अभिशाप है । नशे में व्यक्ति अपना संतुलन खोकर पशुवत आचरण करता है । स्वतंत्रता के साथ इस अभिशाप से मुक्ति के लिए भी नए भारत के निर्माताओं को प्रयास तेज करना होगा । दूरदर्शन पर धार्मिक सीरियल दिखाने और देखने वालों को इस ओर भी ध्यान देने की जरुरत है कि रामायण में कैसे मर्यादा पुरुषोत्त्म भगवान राम एक मनुष्य व राजा के रुप में एक राजा को धर्म, कर्तव्य, त्याग, सुशासन के राजधर्म का पाठ पढ़ाते हैं । और कृष्णा सीरियल में धर्मराज राजा परिक्षित के राज्य में घुसने वाले कलयुग के इजाजत मांगने पर वह कहते हैं कि तुम केवल मदिरालय, वैश्यालय, जुआघर और ईष्यालुओं के स्थान पर ही रह सकते हो । इसी तरह उच्च न्यायालय ने भी कहा है कि एक शराबी ड्रायवर एक आत्मघाती बम की तरह है, जो अपने साथ कई लोगों की जान ले सकता है..। क्या राम और गांधी के नाम पर वोट बैंक से सत्ता हथियाने और लोकप्रियता हासिल करने वाली सरकारें इनके यह तमाम आदर्श भूल गई हैं । क्या उन्हें हाई कोर्ट की इतनी संगीन नसीहत के साथ शराब नियंत्रण और राष्ट्रीय-राजमार्ग के निकट शराब दुकानें नहीं खोलने का सुप्रीम कोर्ट का फरमान भी याद नहीं है । अपने सियासी लाभ के लिए तो वे अदालत की खूब दुहाई देते हैं । शराब दुकानें खोलने को लेकर किसी नारी की तरह अपना पल्लू झाड़ते औैर बच्चों की तरह एक दूसरे को जिम्मेदार बताने वाली केंद्र व राज्य सरकारें क्या यह भी भूल बैठी हैं कि इन दिनों विश्वव्यापी जानलेवा कोरोना का कहर देश में भी चरम पर है । अचानक लगे लाकडाउन से अपने घर लौटने सड़कों पर निकले बेबस लाखों करोड़ों मजदूरों की तरह अब शराब दुकानों के जन-सैलाब से क्या कोरोना संक्रमण का खतरा नहीं बढ़ रहा है । शराब दुकानें खुलने के दूसरे दिन ही चार हजार कोरोना के मरीज बढ़े और सौ से अधिक मौतें हो चुकी हैं । इसके दूसरे दिन तीन हजार से अधिक मरीज बढ़ चुके हैं । शराब दुकानों में सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ रही हैं । पहले की तरह शराब से मारपीट, झगड़े और दुर्घटनाएं जैसीं अराजकता की खबरें आनी शुरु हो गई हैं । सरकारों की मासूमयित और बुद्धिमत्ता देखिए कि वह चालीस दिनों से अपने घरों में कैद, जिनमें अधिसंख्य एडिक्ट हो चुके हैं और अशिक्षित व अल्प शिक्षित भी हैं, से एक से छह फीट की दूरी बनाने की अपील कर रही है । दुकानें खुलने के पहले ऐसा करवाने का दावा भी किया गया था, लेकिन शराबबंदी के गंगाजली वादों की तरह यह दावा भी हवाहवाई हो रहा है । हमारे रहनुमाओं की यह भी क्या कम असंवेदनशीलता नहीं है कि लंबे लाकडाउन में रोजी मजदूरी करने वालों से लेकर कुछ सक्षम लोगों के भी रोजगार छिन गए हैं और खाने पीने के लिए भी पैसे नहीं है लेकिन आनन फानन में खुलवा दी गई सरकारी शराब दुकानें अब फिर उनके लहू की आखिरी बूंदें भी निचोडऩे पर आमादा हैं । कैसी विडंबना है कि एक ओर कोरोना से बचने दवाई के साथ धीमी मौत के लिए दवाई की होम डिलिवरी भी शुरु कर दी गई है । सरकार के लोगों के संरक्षण में लाकडाउन में भी करोड़ों की अवैध शराब पिलवाने वाले हुक्मरान अब शराब के दाम बढ़ाकर अपने किए पर परदा डालने की कोशिश कर रहे हैं । लाखों करोड़ों पियक्कड़, जिन्हें लत लग चुकी है, क्या वे अपने खेत,मकान और जेवरात बेचकर पहले नहीं पी रहे थे, जो अब आगे अपनी बची-खुची जमापूंजी इन रक्त-पसीना चूसक भट्ठियों में नहीं गलाएंगे -लुटाएंगे । राज्य सरकारें शराब से एक बड़ी आय प्राप्ति और नशेडिय़ों के अन्य नशे को अपनाने का हवाला दे रही हैें लेकिन उन्हें यह याद करना चाहिए कि 1930 में अंग्रेजी शासन में शराबबंदी के समय भारतीय नेताओं के ध्यानाकर्षण पर किस तरह करोड़ों के सेल्स टैक्स का नया स्रोत शुरु किया गया । क्या इसी तरह आजाद औैर आधुनिक भारत में नए वैकल्पिक आय के साधन नहीं तलाशे जा सकते हैं ? छह साल से भारतीय संस्कृति और नीति शास्त्र का सबक याद दिलाने वाले पीएम सहित राज्य सरकारों को गांधी के राज्य गुजरात व अराजक राज्य के रुप में प्रचारित मखौल बनाए जा रहे बिहार की शराबबंदी से भी प्रेरित होने की जरुरत है, जहां विकास व सुशासन पहले से सुधरा है । केंद्र व राज्य सरकारों के लिए यह एक दुर्लभ और बड़ा अवसर था, जब वह शराबंदी कर करोड़ों परिवारों को नारकीय जीवन से उबार सकती थी । कोरोना से डरे, सहमे और टूटे चालीस दिनों से घरों में शांति व प्रेम से रह रहे नशा करने वालों का आत्मविश्वास व जिजिविषा बढ़ाकर उन्हें शराब नहीं मिलने से निराशा व खुदकुशी जैसे नकारात्मक विचारों से उबार सकती थी । लाकडाउन के दौरान कई लोग तो नशा करना भी छोड़ चुके थे । हमारे भागय विधाताओं को यह सोचना शुरु कर देना चाहिए कि कोरोना शराब के नुकसान के सामने कुछ भी नहीं है । कोरोना में तो अब महीनेभर में महज हजार डेढ़ हजार मौतें ही हुई लेकिन शराब से तो अनगिनत मर गए और इस नशे से लाखों लोग व उनके परिवार तिल तिल कर मरते हैं । सरकार का मेडिकल बजट बढऩें में शराब एक बड़ा कारण है । यदि सरकारें इसके महाविनाश को दृष्टिगत रख शराबबंदी का ऐतिहासिक कदम उठातीं तो उनका नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाता औैर वाकई में देश में एक आदर्श राज की स्थापना में यह एक बड़ा कदम होता । इस नशे से सदियों से होने वाली आर्थिक, शारीरिक,सामाजिक और नैतिक मानसिक क्षति रुक जाती । लेकिन यह दुर्भाज्य है कि सरकारें एक दूसरे पर पल्ला झाडऩे के साथ रेवन्यू बंद हो जाने व नशा नहीं मिलने पर सुसायड करने जैसे राग अलापते हुए मदिरा दुकानें खुलवाने को लेकर शुरु से ही उतावली व लालायित दिखाई दीं । सच्चाई तो यह है कि वे शराब से मिलने वाली काली कमाई, ड्रिंकिंग टेबल पर अवैध डीलिंग, पियक्कड़ों के बड़े वोट बैंक और चुनावों में चेपटी व चपटी के ब्रह्महास्त्र के लोभ-संवरण को नहीं छोड़ पाईं । कांग्रेस नेता और मध्यप्रदेश के सीएम अर्जुन सिंह का वह चर्चित जुमला लोगों को याद होगा जिसमें उन्होंने छत्तीसगढ़ के एक बड़े शराब उत्पादक व कारोबारी से अपनी व्यासायिक यारी पर कहा था कि आपने कभी मेरी राजनीति चमकाने के लिए अपनी आसवनी बहा दी थी, आज में आपकी आसवनी के लिए अपनी राजनीति बहा दूंगा ..। इसी तरह जब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बंगारु लक्ष्मण संसद के अंदर रिश्वत के बंडल देते पकड़ाए थे, उसके पहले राजधानी के एक बड़े होटल में हुई वाईन पार्टी में नोटों व्यवस्था से लेकर सारी रणनीति बनी थी । शराब को लेकर कुछ साल पहले छत्तीसगढ़ में भी शराब को लेकर विधानसभा पटल पर सत्तापक्ष व विपक्ष के बीच हुई एक डीलिंग की बड़ी चर्चा थी । दरअसल यह है शराब और इसे स्वार्थवश पोषित करने वालों का असल चरित्र । शराबंदी के कर्तव्यपथ पर उनकी यह मजबूरी आड़े आ रही है । अभी भी बहुत समय नहीं हुआ है, केंद्र औैर राज्य सरकार चाहे तो देशव्यापी विरोध व शराब से फैलती अराजकता व चौतरफा नुकसान का हवाला देकर शराबबंदी का निर्णय लेकर अपने कर्तव्य का पालन कर एक बड़े वर्ग को अंधेरी गलियों में जाने से रोक सकती है । शराब के फायदे गिनाने वाले मुल्क के रहनुमाओं को यह भी याद रखने की जरुरत है कि देश की इस जहर को पीने वाली पचास फीसदी आबादी में सात से आठ हजार लोग रोजाना गाल के गाल में समा जाते हैं । इससे अधिक लोग लिवर सिरोसिस जैसी बीमारी के शिकार हो जाते हैं । शराबबंदी कर सरकार इससे होने वाले रेवेन्यू के नुकसान को टैक्सेस और जीएसटी बढ़ाकर भरपाई कर सकती है । आखिर क्या वजह है कि छह अरब लीटर लीटर शराब का उत्पादन करवाने कर्णधार कई मोह्ल्ले टोलों को कुछ लीटर पानी नहीं पिलवा पा रहे हैं ।