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सरकार ने मिशन कोविड सुरक्षा के तहत कोवैक्सीन के उत्पादन के लिए दी यह सहायता

सरकार ने मिशन कोविड सुरक्षा के तहत कोवैक्सीन के उत्पादन के लिए दी यह सहायता

भारत सरकार द्वारा आत्मनिर्भर भारत 3.0 के तहत कोविड के स्वदेशी टीकों के विकास और उत्पादन में तेजी लाने के लिए मिशन कोविड सुरक्षा की घोषणा की गई थी। इस मिशन को भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (बीआईआरएसी), नई दिल्ली में कार्यान्वित किया जा रहा है।

इस मिशन के तहत कोवैक्सिन के स्वदेशी उत्पादन की क्षमता को बढ़ाने के उद्देश्य सेभारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने अप्रैल, 2021 में उन्नत उत्पादन क्षमता,जिसके सितंबर, 2021 तक प्रति माह 10 करोड़ से अधिक खुराक तक पहुंच जाने की उम्मीद है, के लिए टीके के निर्माताओं को अनुदान के रूप में वित्तीय सहायता प्रदान की।

उन्नयन की इस योजना के एक हिस्से के रूप में, हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक लिमिटेड के साथ-साथ सार्वजनिक क्षेत्र के अन्य निर्माताओं की क्षमताओं को आवश्यक बुनियादी ढांचे और प्रौद्योगिकी के साथ उन्नत किया जा रहा है। भारत सरकार की ओर से भारत बायोटेक की न्यू बैंगलोर स्थित इकाई, जिसे टीके की उत्पादन की क्षमता बढ़ाने के लिए दोबारा से तैयार किया जा रहा है, को अनुदान के रूप में लगभग 65 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है।

सार्वजनिक क्षेत्र की निम्नलिखित तीन कंपनियों को भी टीके की उत्पादन की क्षमता बढ़ाने के लिए सहयोग दिया जा रहा है:

हाफकाइन बायोफार्मास्यूटिकल कारपोरेशन लिमिटेड, मुंबई - महाराष्ट्र सरकार के तहत एक राज्य सार्वजनिक उद्यम (पीएसई)।
इस इकाई को उत्पादन के लिए तैयार करने के लिए भारत सरकार की ओर से 65 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता अनुदान के रूप में प्रदान की जा रही है। एक बार चालू हो जाने के बाद, इस उत्पादन इकाई के पास प्रति माह 20 मिलियन खुराकों के उत्पादन की क्षमता होगी।

इंडियन इम्यूनोलॉजिकल्स लिमिटेड (आईआईएल), हैदराबाद - राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के तहत इस उत्पादन इकाई को 60 करोड़ रुपये का अनुदान प्रदान किया जा रहा है। और
भारत इम्यूनोलॉजिकल एंड बायोलॉजिकल लिमिटेड (बीआईबीसीओएल), बुलंदशहर जोकि भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग केतहत एक केन्द्रीय सार्वजनिक उद्यम(सीपीएसई) है, को प्रति माह 10-15 मिलियन खुराकें उपलब्ध कराने के उद्देश्य से अपनी उत्पादन इकाई को तैयार करने के लिए 30 करोड़ रुपये के अनुदान दिया जा रहा है।
इसके अलावा, गुजरात सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के तहत आने वाले गुजरात जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान केन्द्र ने हेस्टर बायोसाइंसेज और ओमनीबीआरएक्स के साथ मिलकर भारत बायोटेक के साथ कोवैक्सिन तकनीक को बढ़ाने और प्रति माह न्यूनतम 20 मिलियन खुराकों का उत्पादन करने के लिए अपनी चर्चा को ठोस रूप दिया है। सभी निर्माताओं के साथ प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौते को अंतिम रूप दे दिया गया है।

जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) के बारे में:विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी)कृषि, स्वास्थ्य संबंधी देखभाल, पशु विज्ञान, पर्यावरण और उद्योग के क्षेत्रों में जैव प्रौद्योगिकी के उपयोग और अनुप्रयोग को बढ़ावा देता है। यह विभाग जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान के क्षेत्र में नई ऊंचाइयों को प्राप्त करने, जैव प्रौद्योगिकी को भविष्य के एक प्रमुख सटीक उपकरण के रूप में आकार देने और सामाजिक न्याय - विशेष रूप से गरीबों का कल्याण - सुनिश्चित करने पर केन्द्रित है। www.dbtindia.gov.in

जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (बीआईआरएसी) के बारे में: जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (बीआईआरएसी) धारा 8, अनुसूची बी, के तहत सार्वजनिक क्षेत्र का एक गैर-लाभकारीउद्यम है, जिसे भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी), द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर प्रासंगिक उत्पादों के विकास संबंधी जरूरतों को पूरा करते हुए रणनीतिक अनुसंधान और नवाचार का काम करने वाले उभरते बायोटेक उद्यमों को मजबूत और सशक्त करने वाली एक इंटरफेस एजेंसी के रूप में स्थापित किया गया है। www.birac.nic.in

अधिक जानकारी के लिए: डीबीटी/बीआईआरएसी के संचार प्रकोष्ठ से संपर्क करें*@DBTIndia @BIRAC_2012

www.dbtindia.gov.inwww.birac.nic.in

 

कोविड से उबरने के बाद भी सावधानी बनाए रखें,म्यूकोर्मिकोसिस, एक फंगल संक्रमण, पढ़े पूरी खबर

कोविड से उबरने के बाद भी सावधानी बनाए रखें,म्यूकोर्मिकोसिस, एक फंगल संक्रमण, पढ़े पूरी खबर

अब जब हम खुद को कोविड-19 से बचाने और उससे लड़ने की पूरी कोशिश कर रहे हैं,फंगस से पैदा होने वाला एक और खतरा सामने आया है जिसके बारे में हमें जानना चाहिए एवं उस पर कार्रवाई करनी चाहिए। म्यूकोर्मिकोसिस, एक फंगल संक्रमण है जोकुछ कोविड-19 मरीजों में बीमारी से ठीक होने के दौरान या बाद में पाया जा रहा है। दो दिन पहले महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री द्वारा दिए गए एक बयान के अनुसार, राज्य में इस फंगल संक्रमण से पहले ही 2000 से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं; 10 लोगों ने तो इसकी चपेट में आकर दम भी तोड़ दिया। कुछ मरीजों की आंखों की रोशनी भी चली गई।
म्यूकोर्मिकोसिस कैसे होता है?

म्यूकोर्मिकोसिस या ब्लैक फंगस, फंगल संक्रमण से पैदा होने वाली जटिलता है। लोग वातावरण में मौजूदफंगस के बीजाणुओं के संपर्क में आने से म्यूकोर्मिकोसिस की चपेट में आते हैं। शरीर पर किसी तरह की चोट, जलने, कटने आदि के जरिए यह त्वचा में प्रवेश करता है और त्वचा में विकसित हो सकता है।

कोविड-19 से उबर चुके हैं या ठीक हो रहे मरीजों में इस बीमारी के होने का पता चल रहा है। इसके अलावा, जिसे भी मधुमेह है और जिसकी प्रतिरक्षा प्रणाली ठीक से काम नहीं कर रही है, उसे इसे लेकर सावधान रहने की जरूरत है।

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा जारी किए गए एक परामर्श के अनुसार, कोविड-19 रोगियों में निम्नलिखित दशाओं से म्यूकोर्मिकोसिस संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है:

अनियंत्रित मधुमेह
स्टेरॉयड के उपयोग के कारण प्रतिरक्षा प्रणाली का कमजोर होना
लंबे समय तक आईसीयू/अस्पताल में रहना
सह-रुग्णता/अंग प्रत्यारोपण के बाद/कैंसर
वोरिकोनाजोल थेरेपी (गंभीर फंगल संक्रमण का इलाज करने के लिए इस्तेमाल की जाती है)
इसका कोविड-19 से क्या संबंध है?

यह बीमारी म्यूकोर्मिसेट्स नामक सूक्ष्म जीवों के एक समूह के कारण होती है, जो पर्यावरण में प्राकृतिक रूप से मौजूद होते हैं, और ज्यादातर मिट्टी में तथा पत्तियों, खाद एवं ढेरों जैसे कार्बनिक पदार्थों के क्षय में पाए जाते हैं।

सामान्य तौर पर, हमारे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली ऐसे फंगल संक्रमण से सफलतापूर्वक लड़ती है लेकिनहम जानते हैं कि कोविड-19 हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित करता है। इसके अलावा, कोविड-19 मरीजों के उपचार में डेक्सामेथासोन जैसी दवाओं का सेवन शामिल है, जो हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली की प्रतिक्रिया पर असर डालता है। इन कारकों के कारण कोविड-19 मरीजों को म्यूकोर्मिसेट्स जैसे सूक्ष्म जीवों के हमले के खिलाफ लड़ाई में विफल होने के नए खतरे का सामना करना पड़ता है।

इसके अलावा, आईसीयू में ह्यूमिडिफायर का उपयोग किया जाता है, वहां ऑक्सीजन थेरेपी ले रहे कोविड मरीजों को नमी के संपर्क में आने के कारण फंगल संक्रमण का खतरा होता है।

लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हर कोविड मरीज म्यूकोर्मिकोसिस से संक्रमित हो जाएगा। जिन मरीजों को मधुमेह नहीं है, उन्हें यह बीमारी होना असामान्य है लेकिन अगर तुरंत इलाज न किया जाए तो यह घातक हो सकता है। ठीक होने की संभावना बीमारी के जल्दी पता चलने और उपचार पर निर्भर करती है।

सामान्य लक्षण क्या हैं?

हमारे माथे, नाक, गाल की हड्डियों के पीछे और आंखों एवं दांतों के बीच स्थित एयर पॉकेट में त्वचा के संक्रमण के रूप में म्यूकोर्मिकोसिस दिखने लगता है। यह फिर आंखों, फेफड़ों में फैल जाता है और मस्तिष्क तक भी फैल सकता है। इससे नाक पर कालापन या रंग मलिन पड़ना, धुंधली या दोहरी दृष्टि, सीने में दर्द, सांस लेने में कठिनाई और खून की खांसी होती है।

आईसीएमआर ने सलाह दी है कि बंद नाक के सभी मामलों को बैक्टीरियल साइनसिसिस के मामलों के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए, खासकर कोविड-19 रोगियों के उपचार के दौरान या बाद मेंबंद नाक के मामलों को लेकर ऐसा नहीं करना चाहिए। फंगल संक्रमण का पता लगाने के लिए चिकित्सकीय सहायता लेनी चाहिए।

इसका इलाज कैसे किया जाता है?

जहां संक्रमण सिर्फ एक त्वचा संक्रमण से शुरू हो सकता है, यह शरीर के अन्य भागों में फैल सकता है। उपचार में सभी मृत और संक्रमित ऊतक को हटाने के लिए की जाने वाली सर्जरी शामिल है। कुछ रोगियों में, इससे ऊपरी जबड़े या कभी-कभी आंख की भी हानि हो सकती है। इलाज में अंतःशिरा एंटी-फंगल थेरेपी का चार से छह सप्ताह का कोर्स भी शामिल हो सकता है। चूंकि यह शरीर के विभिन्न हिस्सों को प्रभावित करता है, इसलिए इलाज करने के लिए सूक्ष्म जीवविज्ञानी, आंतरिक चिकित्सा विशेषज्ञों, न्यूरोलॉजिस्ट, ईएनटी विशेषज्ञ, नेत्र रोग विशेषज्ञ, दंत चिकित्सक, सर्जन और अन्य की एक टीम की आवश्यकता होती है। म्यूकोर्मिकोसिसको कैसे रोकें?

मधुमेह को नियंत्रित करना आईसीएमआरद्वारा सुझाए गए सबसे महत्वपूर्ण तरीकों में से एक है। इसलिए, मधुमेह से पीड़ित कोविड-19 रोगियों को अत्यधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता है।

अपने आप दवा लेना एवं स्टेरॉयड की अधिक खुराक लेना घातक हो सकता है और इसलिए डॉक्टर की सलाह का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए। नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) डॉ. वी के पॉल ने स्टेरॉयड के अनुचित उपयोग के प्रतिकूल प्रभावों के बारे में कहा: “स्टेरॉयड कभी भी कोविड-19 के शुरुआती चरण में नहीं दिया जाना चाहिए। संक्रमण के छठे दिन के बाद ही इसका सेवन करना चाहिए। मरीजों को दवाओं की उचित खुराक पर टिके रहना चाहिए और डॉक्टरों द्वारा सलाह के अनुसार दवा को तय समय तक लेना चाहिए। दवा के प्रतिकूल दुष्प्रभावों से बचने के लिए दवाओं का विवेकपूरण उपयोग सुनिश्चित किया जाना चाहिए।”

उन्होंने कहा, “स्टेरॉयड के अलावा, टोसिलिजूमोब, इटोलिजूमाब जैसी कोविड-19 दवाओंका उपयोग भी प्रतिरक्षा प्रणाली पर असर डालता है। और जब इन दवाओं का उचित उपयोग नहीं किया जाता है तो यह जोखिम को बढ़ा देता है, क्योंकि हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली फंगल संक्रमण से लड़ने में विफल रहती है।”

आईसीएमआर ने अपने दिशानिर्देशों में कोविड-19 मरीजों को इम्यूनोमॉड्यूलेटिंग दवाओं का सेवन छोड़ने की सलाह दी है, जो एक ऐसा पदार्थ है जो प्रतिरक्षा प्रणाली को उत्तेजित कर देता है या दबा देता है। राष्ट्रीय कोविड-19 कार्यबल ने ऐसे किसी भी प्रतिकूल प्रभाव को रोकने के लिए टोसिलिजुमाब की खुराक में बदलाव किया है। उचित स्वच्छता बनाए रखने से भी फंगल संक्रमण को दूर रखने में मदद मिल सकती है।

ऑक्सीजन थेरेपी ले रहे मरीजों के लिए, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि ह्यूमिडिफायर में पानी साफ हो और उसे नियमित रूप से बार-बार डाला जाए। पानी का रिसाव न हो (गीली सतहों से बचने के लिए जहां फंगस प्रजनन कर सकते हैं) यह सुनिश्चित करने पर ध्यान दिया जाना चाहिए। मरीजों को अपने हाथों के साथ-साथ शरीर को भी साफ रखते हुए उचित स्वच्छता बनाए रखनी चाहिए।

कोविड से उबरने के बाद भी सावधानी बनाए रखें

कोविड-19 से उबरने के बाद, लोगों को गहराई से निगरानी करनी चाहिए और ऊपर उल्लिखित किसी भी चेतावनी संकेत एवं लक्षण को याद रखना चाहिए, क्योंकि फंगल संक्रमण कोविड-19 से उबरने के कई हफ्तों या महीनों के बाद भी उभर सकता है। संक्रमण के खतरे से बचने के लिए डॉक्टर की सलाह के अनुसार स्टेरॉयड का विवेकपूर्ण उपयोग करना चाहिए। बीमारी का जल्द पता लगने से फंगल संक्रमण के उपचार में आसानी हो सकती है।

Corona Effects: घर से बाहर नहीं निकलने की वजह से बच्चों में बढ़ रहा है चिड़चिड़ापन? आपके काम आएंगी ये टिप्स

Corona Effects: घर से बाहर नहीं निकलने की वजह से बच्चों में बढ़ रहा है चिड़चिड़ापन? आपके काम आएंगी ये टिप्स

कोरोना महामारी ने लोगों को जिंदगी को पूरी तरह से बदल दिया है. लोग घरों में कैद होकर रहने के लिए मजबूर हैं. ऐसे में बच्चों के लिए सिर्फ घर में बंद होकर रहना काफी मुश्किल हो रहा है. बच्चों के स्कूल-कॉलेज बंद हैं. कोरोना की वजह से वो न अपने किसी दोस्त से मिल सकते न ही किसी के घर जा सकते हैं. पार्क, मॉल, स्विमिंग पूल, जिम और लगभग सभी टूरिस्ट प्लेस बंद हैं. ऐसे में लंबे समय से घर पर रहने से बच्चों के स्वभाव में कई तरह के बदलाव आ रहे हैं. बचपन का मतलब होता है घूमना-फिरना, मस्ती करना, बिंदास रहना और किसी बात की चिंता नहीं करना होता है. लेकिन अब बच्चों को इस बात की चिंता और डर सताने लगा है कि ऐसा कब तक रहेगा. लंबे समय से घर में रहने से बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ रहा है. कुछ बच्चे ज्यादा चिड़चिड़े हो रहे हैं. ऐसे में माता-पिता की परेशानी भी बढ़ रही है. आज हम आपको मनोचिकित्सक की सलाह से ऐसे टिप्स दे रहे हैं जिससे आप अपने बच्चे को स्वस्थ और खुश रख सकते हैं.


बच्चों को खुश रखने के लिए टिप्स


1- बच्चों के साथ खेलें-

हम सब ने अपने बचपन में कई तरह के इनडोर गेम जैसे कैरम, लूडो, गिट्टे आर कार्ड खेले हैं. इस समय बच्चों की छुट्टियां है तो आपको थोड़ा वक्त निकालकर उनके साथ खेलना चाहिए. कोरोना की वजह से बच्चे बाहर नहीं जा सकते तो आपको इन इनडोर गेम्स से बच्चों के साथ समय बिताना चाहिए. इससे बच्चे खुश रहेंगे और टीवी और फोन से भी दूर रहेंगे.


2- बच्चों का पसंदीदा खाना बनाएं-

बच्चे खाने-पीने के बहुत शौकीन होते हैं. बाहर जाने या घूमने जाने के पीछे उनकी एक वजह ये भी होती है कि उन्हें उनका पसंदीदा खाना मिलेगा. लेकिन अब बच्चे घर पर ही रहते हैं तो आप उनके लिए घर में ही उनका पसंदीदा खाना बनाएं. वो खाना भी बनाएं जो बच्चे बाहर जाकर खाते थे. इससे बच्चे खुश हो जाएंगे.


3- हर दिन का लक्ष्य तय करें-

बच्चों की बोरियत दूर करने का एक तरीका है कि उन्हें हर रोज कई लक्ष्य दें. उन्हें छोटे-छोटे टास्क दें और उन्हें पूरा होने पर उनकी पसंद की चीज दिलाएं. इस तरह बच्चा व्यस्त रहेगा और उसे अकेलापन और बोरियत भी महसूस नहीं होगी.


4- दादी-नानी की कहानियां सुनाएं-

बच्चे सब कुछ जान लेना चाहते हैं. कई बार वो मोबाइल और टीवी की दुनिया से ऊब जाते हैं. अपनी किताबें पढ़कर भी बोर हो जाते हैं. ऐसे में आपको अपनी दादी-नानी की कहानियां सुनानी चाहिए. पहले दादी-नानी जो कहानियां सुनाती थीं बच्चें उन्हें बड़े ध्यान से सुनते थे. इससे 4 बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास भी होता है. इस तरह की कहानियों से नैतिक शिक्षा का पाठ भी मिलता है.


5- सकारात्मक बातें करें-

कोरोना के इस समय में बच्चों के सामने नकारात्मक बातें न करें. इस तरह की खबरें भी न दिखाएं इससे बच्चों के मन पर गहरा असर पड़ता है. उन्हें समझाएं कि ये वक्त जल्द बीत जाएगा, फिर सब अच्छा हो जाएगा. कोरोना की पॉजिटिव खबरें ही बच्चों के सामने करें. घर में प्यार का और खुशी का माहौल रखें.  

 डीसीजीआई ने दो से 18 वर्ष आयु वर्ग के लोगों के लिये कोवैक्सीन के दूसरे/तीसरे चरण के परीक्षण को मंजूरी दी, पढ़े पूरी खबर

डीसीजीआई ने दो से 18 वर्ष आयु वर्ग के लोगों के लिये कोवैक्सीन के दूसरे/तीसरे चरण के परीक्षण को मंजूरी दी, पढ़े पूरी खबर

औषधियों पर देश की नियामक संस्था ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) ने सजग पड़ताल के बाद विशेषज्ञ समिति (एसईसी) की सिफारिशें मान ली हैं और दो से 18 वर्ष आयु वर्ग के लोगों के लिये कोवैक्सीन के दूसरे/तीसरे चरण के परीक्षण को मंजूरी दे दी है। यह मंजूरी कोवैक्सीन निर्माता भारत बायोटेक लिमिटेड को 12 मई, 2021 को प्रदान की गई। मेसर्स भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड, हैदराबाद (बीबीआईएल) ने दो से 18 वर्ष आयु वर्ग के लोगों पर कोवैक्सीन के दूसरे/तीसरे चरण के परीक्षण का प्रस्ताव दिया था। यह परीक्षण 525 स्वस्थ स्वयंसेवियों पर किया जायेगा। परीक्षण के दौरान वैक्सीन मांसपेशियों के जरिये (इंट्रामस्कुलर) दी जायेगी। स्वयंसेवियों को दो खुराक दी जायेंगी। दूसरी खुराक, पहली खुराक के 28वें दिन पर दी जायेगी। इस प्रस्ताव पर तेज अमल करते हुये प्रस्ताव को 11 मई, 2021 को विशेषज्ञ समिति को भेज दिया गया था। समिति ने विस्तृत विमर्श करने के बाद कतिपय शर्तों के साथ प्रस्तावित दूसरे/तीसरे चरण के परीक्षण को अनुमति देने की सिफारिश कर दी थी। 

WHO ने कोविड-19 के उपचार के लिए इवरमेक्टिन (Ivermectin) के उपयोग के खिलाफ दी चेतावनी

WHO ने कोविड-19 के उपचार के लिए इवरमेक्टिन (Ivermectin) के उपयोग के खिलाफ दी चेतावनी

गोवा के स्वास्थ्य मंत्री ने हाल ही में 18 वर्ष से अधिक आयु के सभी लोगों को “Ivermectin” के उपयोग की सिफारिश की है। हालांकि, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अब इसके इस्तेमाल के खिलाफ चेतावनी दी है।

गोवा सरकार ने क्या कहा?
गोवा सरकार ने हाल ही में एक नए COVID-19 उपचार प्रोटोकॉल को मंजूरी दी। इस प्रोटोकॉल के तहत, सरकार ने “Ivermectin” दवा के उपयोग की सिफारिश की थी। यह वायरल बुखार को रोकने के लिए निर्धारित की गयी थी जो COVID-19 संक्रमण के साथ होता है।

सरकार ने यह भी घोषणा की कि Ivermectin दवा राज्य के सभी स्वास्थ्य केंद्रों में उपलब्ध होगी। इसके अलावा, यह सिफारिश की गई थी कि चाहे वह COVID-19 लक्षण हों या न हों, सभी निवासियों द्वारा इसे लिया जाएगा।

WHO क्या कह रहा है?
एक शोध का दावा है कि Ivermectin के निरंतर उपयोग से COVID-19 समाप्त हो जाता है। साथ ही, यह नियमित रूप से उपयोग किए जाने पर प्राणघातक सांस की बीमारी के अनुबंध के जोखिम को कम करती है। समीक्षा अमेरिकी सरकार के लिए काम कर रहे तीन वरिष्ठ वैज्ञानिकों द्वारा की गई थी। इसके पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की मुख्य वैज्ञानिक सौम्या स्वामीनाथन ने कहा है कि डब्ल्यूएचओ Ivermectin के उपयोग के खिलाफ सिफारिश करता है।

मामला क्या है?
WHO के अलावा, जर्मन स्वास्थ्य देखभाल ने COVID-19 उपचार के लिए Ivermectin के उपयोग के खिलाफ भी चेतावनी दी है। ये संगठन दवा के खिलाफ चेतावनी दे रहे हैं क्योंकि रोगियों में इसकी नैदानिक ​​प्रभावकारिता के लिए कोई पर्याप्त डेटा या सार्थक सबूत नहीं हैं।

निष्कर्ष
भारत सरकार ने सिफारिश की थी कि USFDA और यूरोपीय चिकित्सा एजेंसी (European Medical Agency) द्वारा अनुमोदित या अनुशंसित दवाओं का उपयोग भारत में किया जाएगा। अप्रैल 2021 में, USFDA ने COVID रोगियों के इलाज में Ivermectin के उपयोग के खिलाफ सिफारिश की।

 

सरकार ने म्यूकोरमिकोसिस से लड़ने की खातिर कर रही ये प्रयास, जानिए क्या है मामला

सरकार ने म्यूकोरमिकोसिस से लड़ने की खातिर कर रही ये प्रयास, जानिए क्या है मामला

कुछ राज्यों में अचानक से एम्फोटेरिसिन बीकी मांग में वृद्धि देखी गई है। चिकित्सक कोविड-19 बीमारी के बाद होने वाली तकलीफ म्यूकोरमिकोसिससे पीड़ित रोगियों के इलाज के लिए यह दवा लेने की सलाह देते हैं। इसलिए भारत सरकार दवा के उत्पादन को बढ़ाने के लिए निर्माताओं से बातचीत कर रही है। इस दवा के अतिरिक्त आयात और घरेलू स्तर पर इसके उत्पादन में वृद्धि के साथ आपूर्ति की स्थिति में सुधार होने की उम्मीद है।

औषध विभाग ने निर्माताओं/आयातकों के साथ स्टॉक की स्थिति की समीक्षा करने के बाद, और एम्फोटेरिसिन बी की बढ़ती मांग को देखते हुए11 मई, 2021 को अपेक्षित आपूर्ति के आधार पर राज्यों/केंद्रशासित क्षेत्रों को यह दवा आवंटित की जो 10 मई से 31 मई, 2021 के बीच उपलब्ध करायी जाएगी। राज्यों से सरकारी और निजी अस्पतालों एवं स्वास्थ्य सेवा एजेंसियों के बीच आपूर्ति के समान वितरण के लिए एक व्यवस्था लागू करने का भी अनुरोध किया गया है। राज्यों से यह भी अनुरोध किया गया है कि वे इस आवंटन से दवा प्राप्त करने के लिए राज्य में निजी और सरकारी अस्पतालों के लिए 'संपर्क बिंदु' का प्रचार करें। इसके अलावा, राज्यों से अनुरोध किया गया है कि पहले से आपूर्ति किए जा चुके स्टॉक और साथ ही आवंटित किए गए स्टॉक का विवेकपूर्ण तरीके से इस्तेमाल किया जाए। राष्ट्रीय औषध मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) आपूर्ति व्यवस्था की निगरानी करेगा।

देश महामारी की गंभीर लहर का सामना कर रहा है और इसने देश के विभिन्न हिस्सों को प्रभावित किया है। भारत सरकार आवश्यक कोविड दवाओं की आपूर्ति बढ़ाने और उन्हें एक समान एवं पारदर्शी तरीके से राज्य सरकारों तथा केंद्रशासित प्रदेशों के लिए उपलब्ध कराने की खातिर लगातार काम कर रही है। 

क्या यह भी सम्भव है कि नीचे वाले फ्लोर पर संक्रमित शख्स के टॉयलेट से भी आपके घर आ सकता है कोरोना वायरस? पढ़े पूरी खबर

क्या यह भी सम्भव है कि नीचे वाले फ्लोर पर संक्रमित शख्स के टॉयलेट से भी आपके घर आ सकता है कोरोना वायरस? पढ़े पूरी खबर

नई दिल्ली. पिछले साल तक वैज्ञानिक कह रहे थे कि कोविड वायरस का व्यवहार स्प्रे बोतल से निकले पानी की फुहार की तरह होता है. अब उनका कहना है कि वायरस डियो की तरह व्यवहार करता है. इसका मतलब ये हुआ कि पहले अगर ड्रॉपलेट के ज़रिये वायरस रोगी से बाहर निकलता है तो वो पानी की फुहार की तरह थोड़ी ही दूरी तक सीमित रहता था, अब वैज्ञानिकों का मानना है कि दरअसल वायरस जब ड्रॉपलेट के ज़रिये बाहर आता है तो वो किसी डियो की तरह व्यवहार करता है यानि उसकी बूंदें तो पानी के बराबर ही होती हैं लेकिन जिस तरह डियो की खुशबू पूरे कमरे में फैल जाती है ठीक उसी तरह वायरस भी एक जगह सीमित रहने के बजाए पूरे कमरे में फैल जाता है. इसका मतलब ये हुआ कि अपार्टमेंट में रहने वाले लोगों के लिए खतरा बढ़ जाता है. हालांकि अभी तक इसके कोई प्रमाण नहीं मिले हैं. लेकिन अब वायरस अपने फैलने के लिए एक नया रास्ता तैयार कर रहा है. वो है शौचालय.

ऐसा क्यों लग रहा है?

इस बार कोविड के लक्षणों में डायरिया एक आम लक्षण के तौर पर उभरा. यही नहीं मरीज के मल में वायरस का RNA और जेनेटिक कोड भी पाया गया. अगर मल में वायरस जिंदा रहता है और संक्रामक हो जाता है तो मरीज जब उस मल को बहाता तो उसका क्या अंजाम हो सकता है. हार्वर्ड विश्वविद्यालय के हेल्दी बिल्डिंग प्रोग्राम के निदेशक जोसफ जी एलेन का मानना है, ‘एक बार सामान्य तौर पर मल को बहाने पर, हवा में करीब 10 लाख अतिरिक्त कण ( इनमें सभी वायरस नहीं होते) प्रति क्यूबिक मीटर की दर से हवा में आ जाते हैं.’ अगर किसी रेस्टोरेंट या दफ्तर के शौचालय की बात करें तो खतरे का अंदाजा लगाया जा सकता है लेकिन मल के ज़रिये फैले इन कणों से क्या अपार्टमेंट में भी खतरा हो सकता है?


क्या कहता है पिछला अनुभव


2003 में जब सार्स ने महामारी के रूप में फन फैलाना शुरू किया. उस वक्त एक ऐसा ही मामला सामने आया था. दरअसल हांगकांग में एक 50 मंजिला रिहाइशी इमारत है. जब सार्स फैला तो यहां के एक परिवार को उसने अपने घेरे में ले लिया. आगे चलकर इसी इमारत के 321 लोग सार्स से पीड़ित हो गए जिसमें से 42 लोगों को जान गंवानी पड़ी. वैज्ञानिकों का मानना है कि लोगों के बीच वायरस शायद इमारत में मौजूद प्ल्मबिंग सिस्टम यानि पानी की पाइप लाइन के ज़रिए फैला होगा. दरअसल 2003 में जब सार्स फैला हुआ था तब एक मरीज एमोय गार्डन इमारत में आया. वो इमारत की बीच के मंजिल में जिनसे मिलने पहुंचा था, उसने उनके यहां का शौचालय इस्तेमाल किया, चूंकि उसे डायरिया हुआ था इसलिए उसने दोबारा शौचालय का इस्तेमाल किया. इसके बाद देखा गया कि उस कॉम्पलेक्स में मामले बढ़ते गए.

क्या कहती है रिसर्च


न्यू इंग्लैंड जरनल ऑफ मेडिसिन में छपे एक लेख के मुताबिक 187 में से 99 मरीज उसी इमारत में से थे जिसके शौचालय का इस्तेमाल पहले से सार्स पीड़ित मरीज ने किया था. दिलचस्प बात ये है कि जितने लोग बीमार पड़े वो सभी इस्तेमाल किए गए शौचालय के ऊपर की मंजिल पर रहते थे, इससे भी हैरान करने वाली बात ये थी कि प्रबंधन और सुरक्षा करने वाला स्टाफ जो 24 घंटे ग्राउंड फ्लोर पर मौजूद रहता है, उनमें से किसी को कुछ भी नहीं हुआ था. इसी तरह का मामला गुआंगज़ोउ में मौजूद ऊंची इमारत में भी देखने को मिला जब वहां की 15वीं मंजिल में रहने वाला एक परिवार वुहान से लौटने के बाद कोविड की गिरफ्त में आ गया और कुछ दिनों बाद ही 25वीं और 27वीं मंजिल पर मौजूद कुछ लोग कोरोना से पीड़ित हो गए. खास बात ये है कि ये लोग चाइन में लगे सख्त लॉकडाउन की वजह से घऱ से बाहर तक नहीं निकले थे लेकिन उनके घर तक 15वीं मंजिल की पाइपलाइन सीधी जाती थी. इस बात की जांच करने के लिए वैज्ञानिकों ने 15वीं मंजिल के ड्रेनपाइप से एक ट्रेसर गैस को छोड़ा और उन्होंने देखा की वो गैस 25वीं और 27वीं मंजिल के अपार्टमेंट में मौजूद थी.

क्या कहती है थ्योरी?
शौचालय में मौजूद ड्रेन पाइप यू के आकार में मुड़ा होता है. जो पानी को रोक कर उससे निकली गैस को घर के अंदर जाने से रोकता है. जब ये मुड़ी हुई जगह जहां पानी रुकता है वो सूख जाती है तो घर के अंदर सड़े हुए अंडों की तरह की बदबू फैल जाती है. 2003 में एमोय गार्डन में जिस इमारत में सार्स के मामले सामने आए थे वहां का ड्रेन पाइप सूखा हुआ था. इसी वजह से बदबू और जर्म्स निचली मंजिल से अंदर घुस गए थे.

तो अब क्या किया जा सकता है?
कुछ छोटी -छोटी बातों को अगर अमल में लाया जाए तो वैज्ञानिक जो कह रहे हैं, अगर वो सही है तो उससे बचा जा सकता है. जैसे कभी भी बाथरूम में आ रही बदबू को नज़रअंदाज़ ना करें. हो सकता है पाइप में लीक की वजह से ऐसा हो रहा है. कमोड की लिड को फ्लश करने के दौरान नीचे कर देना चाहिए, इस तरह से अगर किसी घर में कोविड मरीज होगा तो वहां से वायरस हवा के ज़रिये पड़ोसियों तक नहीं पहुंचेगा. अपने टॉयलेट की खिड़की को खुला रखें या एक्जॉस्ट फैन चालू रखें. बाथरूम की सतह को रोज़ाना अच्छे से साफ करना चाहिए. ऐसे कई तरीके हैं जिससे लोग मल के ज़रिये फैल रहे एयरोसोल से बचाव कर सकते हैं. कुल मिलाकर ये बात भी इस ओर इशारा करती है कि हमें सफाई रखने की बहुत ज्यादा ज़रूरत है.

वायरस फैल सकता है...
इसका ये मतलब भी नहीं है कि बाथरूम के पाइप वायरस के फैलने के मुख्य स्रोत हैं, अभी तक ऐसा माना जा रहा है कि कोविड मरीज के मल के ज़रिए शायद वायरस फैल सकता है. इसमें भी ये बात अहम है कि जिस कोविड मरीज के मल के ज़रिये वायरस फैल सकता है उसका वायरस लोड भी ज्यादा होना चाहिए. तो कुल मिलाकर कोविड को लेकर अभी तक वैज्ञानिक लगातार शोध कर रहे हैं और लगातार नए तथ्य सामने आ रहे हैं. ऐसे में ज़रूरी है कि हम लगातार नई जानकारियों पर नज़र रखें, ( लेकिन अत्यधिक और गैरज़रूरी जानकारी से बचें) लेकिन उन्हें लेकर परेशान नहीं हों बस सावधान रहें. घबराने से बेहतर बचाव है. 

सरकारी बाल देखभाल संस्थाओं में बच्चों को विशेषज्ञों द्वारा देखभाल प्रदान करने के लिए केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने इसे अपने साथ जोड़ा

सरकारी बाल देखभाल संस्थाओं में बच्चों को विशेषज्ञों द्वारा देखभाल प्रदान करने के लिए केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने इसे अपने साथ जोड़ा

 केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती स्मृति जुबिन ईरानी ने कहा है कि सरकारी बाल देखभाल संस्थाओं (सीसीआई) में रहने वाले बच्चों को विशेषज्ञों द्वारा देखभाल प्रदान करने की दृष्टि से देश भर में मंत्रालय ने इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स को साथ जोड़ा है। ट्वीट्स की एक श्रृंखला में उन्होंने बताया, "यह बाल संरक्षण सेवाओं के लिए योजना के तहत बच्चों को प्रदान की जाने वाली चिकित्सा देखभाल के अतिरिक्त होगा"। मंत्री ने ट्वीट में यह भी कहा कि "केयर-टेकर्स/ चाइल्ड प्रोटेक्शन ऑफिसर देश के दूरस्थ कोनों से भी बाल रोग विशेषज्ञों द्वारा इस टेलीमेडिसिन सेवा का लाभ सप्ताह में 6 दिन ले सकेंगे। 2000 से अधिक सीसीआई के हजारों बच्चे इस सेवा के माध्यम से लाभान्वित होंगे"। एक अन्य ट्वीट में, श्रीमती ईरानी ने लिखा, "वर्तमान में विशेषज्ञों की टीमें, जिनके पास 30,000 इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (आईएपी) के सदस्यों का मजबूत नेटवर्क है, कमजोर बच्चों को सेवाएं देने के लिए सेंट्रल, जोनल, राज्य और शहरी स्तर पर गठित किए जा रहे हैं। हर सरकारी या सहायता प्राप्त सीसीआई में एक विशेषज्ञ होगा जो आईएपी द्वारा उपलब्ध करवाया जाएगा।" इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स और उसके सदस्यों का कमजोर बच्चों को अपनी सेवाएं देने के लिए धन्यवाद करते हुए मंत्री ने ट्वीट किया, "उनकी प्रतिबद्धता और भारत सरकार के दृढ़ प्रयास से सरकारी बाल देखभाल केंद्रों में रहने वाले बच्चों के लिए विशेषज्ञ चिकित्सा परामर्श सिर्फ एक फोन कॉल की दूरी पर होगा।" 

ध्यान दें कमजोर इम्युनिटी वालों को हो रहा यह संक्रमण

ध्यान दें कमजोर इम्युनिटी वालों को हो रहा यह संक्रमण

रायपुर । कोविड-19 की दूसरी लहर के बीच कई लोग म्यूकोरमाइकोसिस नाम के फंगल इन्फेक्शन की चपेट में आ रहे हैं। यह दुर्लभ फंगल इन्फेक्शन है जो किसी व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता कम होने पर होती है| कोविड-19 और डायबिटीज के मरीजों के लिए यह इन्फेक्शन और ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है। इस संक्रमण को `ब्लैक फंगस’ के नाम से भी जाना जाता है|

क्या है म्यूकोरमाइकोसिस?
इंडियन काउन्सल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) द्वारा जारी अड्वाइज़री के अनुसार म्यूकोरमाइकोसिस फंगल इंफेक्शन है जो शरीर में बहुत तेजी से फैलता है। म्यूकोरमाइकोसिस इंफेक्शन नायक, आँख, दिमाग, फेफड़े या फिर स्किन पर भी हो सकता है। इस बीमारी में कई लोगों की आंखों की रौशनी चली जाती है वहीं कुछ मरीजों के जबड़े और नाक की हड्डी गल जाती है।

कोरोना के मरीजों को ज्यादा खतरा
म्यूकोरमाइकोसिस आम तौर पर उन लोगों को तेजी से अपना शिकार बनाती है जिन लोगों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम होती है। कोरोना के दौरान या फिर ठीक हो चुके मरीजों का इम्यून सिस्टम बहुत कमजोर होता है इसलिए वो आसानी से इसकी चपेट में आ रहे हैं। खासतौर से कोरोना के जिन मरीजों को डायबिटीज है। शुगर लेवल बढ़ जाने पर उनमें म्यूकोरमाइकोसिस खतरनाक रूप ले सकता है।
यह संक्रमण सांस द्वारा नायक से व्यक्ति के अंदर चला जाता है| जिन लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता काम होती है उनको यह जकड़ लेता है|

लक्षण
-नाक में दर्द हो, खून आए या नाक बंद हो जाए
-नाक में सूजन आ जाए
-दांत या जबड़े में दर्द हो या गिरने लगें
-आंखों के सामने धुंधलापन आए या दर्द हो, बुखार हो
-सीने में दर्द
-बुखार
-सिर दर्द
-खांसी
-सांस लेने में दिक्कत
-खून की उल्टियाँ होना
-कभी दिमाग पर भी असर होता है

किन रोगियों में ज्यादा पाया गया है:
-जिनका शुगर लेवल हमेशा ज्यादा रहता है
-जिन रोगियों ने कोविड के दौरान ज्यादा स्टेरॉइड लिया हो
-काफी देर आय सी यू में रहे रोगी
-ट्रांसप्लांट या कैंसर के रोगी

कैसे बचें
-किसी निर्माणधीन इलाके में जाने पर मास्क पहनें
-बगीचे में जाएं तो फुल आस्तीन शर्ट, पैंट व गलब्स पहनें
-ब्लड ग्लूकोज स्तर को जांचते रहें और इसे नियंत्रित रखें
स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है हल्के लक्षण दिखने पर जल्दी से डॉक्टर से संपर्क करें| कोविड के रोगियों में अगर बार बार नाक बंद होती हो या नाक से पानी निकलता रहे, गालों पर काले या लाल चकते दिखने लगें, चेहरे के एक तरफ सूजन हो या सुन्न पद जाए, दांतों और जबड़े में दर्द, काम दिखाई दे या सांस लेने में तकलीफ हो तो यह ब्लैक फंगस हो सकता है।
 

क्या चाय पीने से रोका जा सकता है कोरोना संक्रमण? जानें इस दावे की सच्चाई

क्या चाय पीने से रोका जा सकता है कोरोना संक्रमण? जानें इस दावे की सच्चाई

नई दिल्ली, भारत में कोरोना की दूसरी तहर कहर ढहा रही है. इस बीमारी से लड़ने के लिए जरूरी है सही जानकारी का होना लेकिन कोरोना को लेकर बहुत सी फर्जी खबरें भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है. ऐसी ही एक फेक न्यूज़ में यह दावा किया जा रहा है कि चाय पीने से कोरोना संक्रमण को रोका जा सकता है.
सोशल मीडिया पर इस खबर की जो क्लिप शेयर की जा रही है. उसका शीर्षक है 'खूब चाय पीयो और पिलाओ, चाय पीने वालों के लिए खुशखबरी'. इस फेक न्यूज़ में कहा गया है कि यदि कोई दिन में तीन बार चाय पीता है तो वह कोरोना से संक्रमित नहीं होगा.
भारत सरकार के ट्वीटर हैंडल PIBFactCheck ने इस दावे को पूरी तरह फर्जी बताया है. PIBFactCheck ने ट्वीट किया, 'एक खबर में दावा किया जा रहा है कि चाय पीने से कोरोना वायरस के संक्रमण को रोका जा सकता है और इससे संक्रमित व्यक्ति जल्दी स्वस्थ भी हो सकता है. यह दावा फर्जी है. इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि चाय के सेवन से कोविड-19 के संक्रमण का खतरा कम किया जा सकता है.'
 

COVID Vaccine Registration: CoWIN पोर्टल में जुड़ा नया फीचर, अब वैक्सीन लगवाने से पहले दिखाना होगा कोड

COVID Vaccine Registration: CoWIN पोर्टल में जुड़ा नया फीचर, अब वैक्सीन लगवाने से पहले दिखाना होगा कोड

Covid-19 Vaccine Registration Online on cowin.gov.in: कोरोना टीका पंजीकरण के लिए बनाए कोविन पोर्टल (CoWin Portal) पर लोगों की परेशानी दूर करने के लिए इसमें एक नया फीचर जोड़ा गया है. दरअसल कुछ लोगों ने शिकायत की थी कि वैक्सीन की डोज लिए बिना ही पोर्टल पर वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट (Vaccination Certificate) जनरेट हो गया. इसमें अब सुधार किया गया है. अब किसी ने भी कोविन पोर्टल पर पंजीकरण किया है और टीकाकरण के लिए स्लॉट चुन लिया है, उसे चार अंकों एक सुरक्षा कोड मिलेगा. खुद को सत्यापित करने के लिए ये कोड वैक्सीनेशन सेंटर पर दिखाना होगा.
केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण (Ministry of Health and Family Welfare) ने इस संबंध में एक बयान भी जारी किया है. इसने बताया कि ऐसे कुछ उदाहरण संज्ञान में आए हैं जिसमें लोगों ने कोविन पोर्टल के जरिए टीकाकरण के लिए अपॉइंटमेंट लिया था. वो तय समय पर टीका लगवाने नहीं गए, मगर फिर भी उन्हें एसएमएस के जरिए बताया गया कि उन्होंने कोरोना टीके की एक खुराक ले ली है.
अब समस्या से निजात पाने के लिए कोविन पोर्टल में शनिवार से नया फीचर जुड़ जाएगा. जिसमें लाभार्थी को चार अंकों का सुरक्षा कोड मिलेगा. सरकार ने बयान में कहा कि वेरिफिकेशन के बाद अगर लाभार्थी टीका लगवाने के योग्य पाया जाता है तो वैक्सीन की खुराक लेने से पहले टीका सेंटर पर चार अंकों के कोड के लिए पूछा जाएगा. इसके बाद टीकारण की सही स्थिति को रिकॉर्ड करने के लिए कोविन पोर्टल पर इसे दर्ज करेगा.
कोविड वैक्सीन के लिए कैसे करें पंजीकरण-
सबसे पहले ब्राउजर में जाकर cowin.gov.in वेबसाइट खोलें.
अब स्क्रीन पर ऊपर दाईं तरफ Register/Sign In yourself लिखा होगा, वहां क्लिक करें.
इसके बाद Register or SignIn for Vaccination के ठीक नीचे अपना दस अंकों का मोबाइल नंबर टाइप करें,
अब इसके बाद आपको एक ओटीपी प्राप्त होगा, जिसे एंटर कर दें.
इसके बाद रजिस्ट्रेशन का पोर्टल खुल जाएगा और मांगी गई सभी जानकारी को भर दें.
पहचान पत्र में उसी कार्ड की जानकारी भरें, जिसे आप टीकाकरण के दौरान साथ लेकर जा सकें.
 

कोरोना पॉजिटिव का क्यों हो रहा हार्ट फेल, रिकवरी के बाद हल्के में ना लें ये समस्याएं

कोरोना पॉजिटिव का क्यों हो रहा हार्ट फेल, रिकवरी के बाद हल्के में ना लें ये समस्याएं

नई दिल्ली। कोरोना वायरस से पूरी दुनिया त्रस्त है। भारत में कोरना के नए स्ट्रेन ने कहर बरपा दिया है। हर दिन संक्रमण और मौत का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। वहीं कोरोना पीड़ित मरीज ठीक होने के बाद भी चैन की सांस नहीं ले पा रहे हैं।
ऑक्सफोर्ड जर्नल के अध्ययन में पता चला है कि कोरोना संक्रमण से पीड़ित गंभीर मरीजों में से आधे से ज्यादा हॉस्पिटलाइज्ड मरीजों की रिकवरी के कई दिनों बाद हार्ट फेल हुआ है। विशेषज्ञों का कहना है कि कोविड-19 का संक्रमण शरीर में इंफ्लेमेशन को अटैक करता है, इससे हार्ट की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं। इससे हार्ट बीट प्रभावित होती है और ब्लड क्लॉटिंग की दिक्कत शुरु हो जाती है।
वही, कोरोना वायरस शरीर के अंदर हमारे ग्राहा सेल्स पर अटैक कर सकता है, जिसे ACE2 रिसेप्टर्स के रूप में जाना जाता है। यह मायोकार्डियम टिशू के भीतर जाकर भी उसे क्षति पहुंचा सकता है। मायोकार्डाइटिस जैसी समस्याएं जो कि हार्ट की मांसपेशियों की इन्फ्लेमेशन है, समय पर इसकी देखभाल न की जाए तो एक समय के बाद हार्ट फेल हो सकता है। दिल की बीमारी वाले मरीजों के लिए ये समस्या जानलेवा हो सकती है।
हार्ट फेल उस समय होता है, जब उसके दिल की मांसपेशियां खून को उतनी कुशलता के साथ पंप नहीं कर पाती जितने की उसे आवश्यकता है। इस स्थिति में संकुचित धमनियां और हाई ब्लड प्रेशर दिल को समुचित पम्पिंग के लिए कमजोर बना देते हैं। ये एक क्रॉनिक समस्या है जिसका समय पर इलाज न होने से स्थिति बिगड़ सकती है। इस समय सही इलाज की जरुरत होती है।
मेदांता अस्पताल के सर्वेसर्वा डॉ. नरेश त्रेहन का कहना है कि कोरोना की दूसरी लहर में कम आयु के लोग ज्यादा संक्रमित हुए हैं। डॉ. त्रेहन ने बताया कि पिछली बार भी हमने 10-15 प्रतिशत पोस्ट कोविड-19 मरीजों में हार्ट इन्फ्लेमेशन से जुड़ी समस्या देखी थी। लेकिन इस बार ये इन्फ्लेमेटरी रिएक्शन ज्यादा घातक साबित हो रहा है। इसमें कई मरीजों का हार्ट बीट 20-25 प्रतिशत तक चली जाती है।
दिल से संबंधित कोई भी समस्या समझ आए तो बिना देर किए सबसे पहले अच्छे डॉक्टर से कंसल्ट करिए। कोरना से ठीक हुए लोग इस बात का विशेष ध्यान रखें कि उन्हें दिल से संबंधित किसी भी समस्या को टालना नहीं है, यथासंभव जल्द उपचार करवाएं।
 

5G नेटवर्क टेस्टिंग से हो रही लोगों की मौतें, कोरोना तो है बहाना? जानें क्या है वायरल ऑडियो की सच्चाई

5G नेटवर्क टेस्टिंग से हो रही लोगों की मौतें, कोरोना तो है बहाना? जानें क्या है वायरल ऑडियो की सच्चाई

भारत में कोरोना वायरस जिस तेजी से बढ़ रहा है, उससे भी तेज गति से उससे जुड़ीं अफवाहें फैल रही हैं। कोरोना के खिलाफ जंग में सबसे बड़ी बाधाएं वे अफवाह हैं, जिन्हें लोग सच मान ले रहे हैं और कोरोना के खिलाफ जंग कमजोर पड़ जा रही है। इसी क्रम में सोशल मीडिया पर एक ऑडिया काफी तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें दावा किया जा रहा है कि भारत में अभी जितनी भी मौतें हो रही हैं उसकी वजह 5जी नेटवर्क की टेस्टिंग है और उसे कोरोना का नाम दिया जा रहा है। इस ऑडियो में दावा किया जा रहा है कि 5जी टेस्टिंग की जानकारी सबको नहीं दी गई है और इसकी वजह से ही लोगों की मौतें अचानक हो जा रही हैं।
हालांकि, जब इस वायरल ऑडियो की पड़ताल की गई तो इस दावे को पूरी तरह से फर्जी पाया गया। PIB की फैक्ट चैक टीम ने सोशल मीडिया पर वायरल इस दावे को फर्जी बताया है। पीआईबी ने लिखा है, 'एक ऑडियो मैसेज में दावा किया जा रहा है कि राज्यों में 5g नेटवर्क की टेस्टिंग की जा रही है जिस कारण लोगों की मृत्यु हो रही है व इसे कोविड 19 का नाम दिया जा रहा है।'
हालांकि, PIB की Fact Check टीम ने पाया कि यह दावा फर्जी है। साथ ही टीम ने लोगों से आग्रह किया है कि कोरोना काल में कृपया ऐसे फर्जी संदेश साझा कर के भ्रम न फैलाएं। दरअसल, इस वायरल ऑडियो में दो लोग बातें करते सुने जा सकते हैं, जिसमें एक शख्स कोरोना से हो रही मौतों को 5जी टेस्टिंग का नाम देता दिख रहा है। वह इस ऑडियो में कहता है कि इसी वजह से लोगों का गला सूख रहा है और उसने दावा किया है कि मई तक इसकी टेस्टिंग हो जाएगी तो मौतें भी रुक जाएंगी।


मगर हकीकत यह है कि कोरोना से हो रहीं मौतें और 5जी नेटवर्क की टेस्टिंग का दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है। कहीं से भी ऐसा कोई वैज्ञानिक दावा नहीं है कि 5जी टेस्टिंग की वजह से लोगों की मौतें हो रही हैं। इसलिए आप सभी पाठकों से आग्रह है कि ऐसे वायरल संदेशों कहीं भी फॉरवर्ड न करें और अफवाहों से बचें और कोरोना के खिलाफ जंग में डटे रहें।
 

भारत में कब धीमी पड़ेगी कोरोना की रफ्तार, विशेषज्ञ ने बताया

भारत में कब धीमी पड़ेगी कोरोना की रफ्तार, विशेषज्ञ ने बताया

नई दिल्ली। मशहूर टीका विशेषज्ञ गगनदीप कांग ने कहा है कि कोरोनावायरस (Coronavirus) मामलों में मौजूदा वृद्धि मई के मध्य से आखिर तक नीचे आ सकती है। कांग ने कहा कि कोरोनावायरस मामलों में एक या दो और उछाल आ सकती है लेकिन शायद यह वर्तमान दौर जैसा बुरा नहीं होगा।
उन्होंने कहा कि फिलहाल यह उन क्षेत्रों में जा रहा है जहां वह पिछले साल नहीं पहुंचा यानी मध्य वर्ग को अपना शिकार बना रहा है, ग्रामीण क्षेत्र में अपना पैर पसार है लेकिन वायरस के जारी रहने के आसार कम हैं। टीके के बारे में डर दूर करते हुए उन्होंने कहा कि वे प्रभावी हैं और टीकाकरण अभियान में तेजी लाने की जरूरत है।

कांग ने कोरोनावायरस की जांच में गिरावट पर चिंता प्रकट की और कहा कि (कोविड-19) के मामलों का अनुपात जांच से प्राप्त आंकड़ों से कहीं ज्यादा हैं। उन्होंने भारतीय महिला प्रेस कोर द्वारा आयोजित वेबीनार में एक सवाल के जवाब में कहा, विभिन्न मॉडलों के अनुसार (मामलों के नीचे आने का) सबसे सही अनुमान माह के मध्य और आखिर के बीच कहीं हैं।
हालांकि कुछ मॉडलों के अनुसार यह जून के प्रारंभ में होगा, लेकिन हम जो देख रहे हैं, उसके अनुसार यह मई के मध्य से आखिर तक (का अनुमान) है। वायरस की लहरों के बारे में अनुमान के संबंध में कांग ने कहा कि कोई भी व्यक्ति यह अनुमान लगाने के लिए (वायरस की) किस्म की विशेषता और महामारी की विभिन्न बातों का इस्तेमाल कर सकता कि किसी खास स्थान पर क्या होने जा रहा है बशर्ते कि आंकड़ा गणितीय प्रतिमान फलक के स्तर पर उपलब्ध हो।
जब उनसे इस वायरस के भविष्य के बारे में पूछा गया तो उन्हेांने कहा, यह वाकई बुरे फ्लू वायरस की भांति मौसम सापेक्ष हो जाएगा। यह अधिक मौसम सापेक्ष जैसा कुछ हो जाएगा, यह शांत हो जाएगा और यह कि लोग बार-बार की प्रतिरोधकता एवं टीकाकरण के कारण एक निश्चित स्तर तक प्रतिरोधक क्षमता हासिल कर लेंगे।(भाषा) 

कोरोना टेस्ट किट की पैकिंग में हो रहा खिलवाड़, यकीन नहीं है तो ये वीडियो देख लीजिए...

कोरोना टेस्ट किट की पैकिंग में हो रहा खिलवाड़, यकीन नहीं है तो ये वीडियो देख लीजिए...

Covid-19 Test Kits Video: कोरोना की दूसरी लहर के बीच एक ऐसा वीडियो सामने आया है, जिसमें टेस्ट किट की पैकेजिंग करते लोग दिख रहे हैं. इस वीडियो को देखने के बाद सोशल मीडिया पर लोग कोविड टेस्ट किट की विश्वसनीयता पर सवाल उठा रहे हैं.कोरोना अपडेट: प्रदेश में आज 10894 ने जीती कोरोना से जंग, कुल 13846 नए मरीज मिले 212 मृत्यु भी, देखे जिलेवार आकड़े
वीडियो में दिख रहा है कि कोरोना सैंपल लेने के लिए जिस कॉटन स्टिक का इस्तेमाल किया जाता है, उसे छोटे-छोटे बच्चे पैक कर रहे हैं.
लोगों के मन में शंका ये है कि जिस टेस्ट किट से कोविड के होने या ना होने का पता चलता है उसे इतनी लापरवाही से बनाया जा रहा है.
जिस जगह और जिस तरीके से टेस्ट किट तैयार हो रहे हैं, वहां की साफ-सफाई को लेकर भी लोग आशंकित हैं.
बड़ी खबर: ज्वेलर्स से करोड़ों जब्ती मामले में दो आरोपियों की जमानत याचिका ख़ारिज... 
दावा किया जा रहा है कि ये वीडियो उल्हासनगर का है. वीडियो में एक महिला और 4-5 बच्चे कोरोना टेस्ट किट पैक करते दिख रहे हैं.
देखें वीडियो-


लोग इस वीडियो पर कमेंट करते हुए कह रहे हैं कि पैकिंग करते समय न तो इन्होंने ग्लव्स पहने हैं और न ही मास्क लगाया है. ऐसे में अगर ये खुद ही इंफेक्टिड हों और किट भी पैक कर रहे हों तो भगवान ही मालिक है…
 

क्या कोरोना वायरस से बचाती है शराब? जानें क्या कहते हैं विशेषज्ञ...

क्या कोरोना वायरस से बचाती है शराब? जानें क्या कहते हैं विशेषज्ञ...

देश में कोरोना की दूसरी लहर का कहर जारी है. भारत में रोजाना 3 लाख से ज्यादा नए केस सामने आए रहे हैं. हर दिन कोरोना को लेकर कुछ न कुछ नया सुनने को आता रहता है. हाल में ऐसी अफवाहें थी कि शराब पीने से कोरोना वायरस नहीं होता. हालांकि यह अफवाह है. कोविड पर पंजाब की विशेषज्ञ समिति के प्रमुख डॉ. केके तलवार ने बुधवार को लोगों से सोशल मीडिया पर चल रही उन अफवाहों पर ध्यान न देने को कहा जिनके मुताबिक शराब कोरोना वायरस से सुरक्षा प्रदान कर सकती है. राज्य में कोविड-19 से करीब चार लाख लोग संक्रमित हो चुके हैं.
उन्होंने कहा कि ज्यादा शराब पीने से लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो सकती है और इससे उनके संक्रमित होने का खतरा बढ़ सकता है. तलवार ने कहा कि उन्होंने सोशल मीडिया पर पढ़ा कि शराब का सेवन वायरस के खिलाफ सुरक्षा प्रदान कर सकता है. उन्होंने कहा, ‘इस तरह की गलत धारणा से गंभीर समस्या पैदा हो सकती है.’ उन्होंने कहा, ‘अगर लोग ज्यादा मात्रा में शराब का सेवन करेंगे तो उनके संक्रमित होने का खतरा ज्यादा रहता है.’
तलवार ने बताया कि यह सुझाव गलत है कि शराब के सेवन से कोरोना वायरस मर सकता है. उन्होंने हालांकि कहा कि बहुत कम मात्रा में शराब के सेवन से कोई नुकसान नहीं है. तलवार ने कहा कि वैज्ञानिक पर्यवेक्षण के आधार पर यह अनुशंसा की जाती है कि लोगों को कोविड रोधी टीका लगवाने से दो दिन पहले और दो दिन बाद तक शराब के सेवन से बचना चाहिए.
 

उर्वरक राज्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने आज कहा कि देश में रेमडेसिविर का उत्पादन... पढ़े पूरी खबर

उर्वरक राज्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने आज कहा कि देश में रेमडेसिविर का उत्पादन... पढ़े पूरी खबर

केंद्रीय रसायन और उर्वरक राज्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने आज कहा कि देश में रेमडेसिविर का उत्पादन तेज गति से बढ़ाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सिर्फ कुछ ही दिनों में भारत ने रेमडेसिविर की तीन गुना उत्पादन क्षमता हासिल कर ली है और हम जल्द ही बढ़ती हुई मांग को पूरा कर पाएंगे। 12 अप्रैल, 2021 को उत्पादन क्षमता 37 लाख थी जो चार मई, 2021 को बढ़कर 1.05 करोड़ हो गयी।
श्री मंडाविया ने बताया कि बढ़ती मांग को देखते हुए रेमडेसिविर का उत्पादन करने वाले संयंत्रों की संख्या भी 20 (12 अप्रैल, 2021) से बढ़कर 57 (04 मई, 2021) हो गयी। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार कोरोना से लड़ने के लिएअथक प्रयास कर रही है।

 

कोरोना वायरस के खतरे के बीच शरीर में कैसे बनाए रखें ऑक्सीजन लेवल, जानें किन चीजों का करें सेवन

कोरोना वायरस के खतरे के बीच शरीर में कैसे बनाए रखें ऑक्सीजन लेवल, जानें किन चीजों का करें सेवन

कोरोना वायरस की दूसरी लहर के बीच दुनिया इस महामारी का विकराल रूप देख रही है। वहीं, इस बार कोरोना के इन लक्षणों में सांस लेने में तकलीफ ऐसी वजह है, जिसकी वजह से इस बीमारी का डरावना रूप देखने को मिला। कोरोना के मरीजों में ऑक्सीजन लेवल की कमी होने के कारण उनकी हालत तेजी से बिगड़ती है। ऐसे में सभी लोग शरीर में ऑक्सीजन लेवल को बनाए रखने के लिए डाइट का खास ख्याल रख रहे हैं। आइए, जानते हैं ऑक्सीजन को बनाए रखने के लिए आपको किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।

इन चीजों के सेवन से बना रहा है ऑक्सीजन लेवल
शरीर में ऑक्सीजन लेवल बनाए रखने के लिए आयरन, कॉपर, विटामिन ए, विटामिन बी2, विटामिन बी3, विटामिन बी5, विटामिन बी6, विटामिन बी9 और विटामिन 12 की जरूरत होती है।


विटामिन बी12 के स्रोत-
मांसाहारी स्रोत - ऑर्गन मीट (लीवर), चिकन, टूना फिश और अंडे।
शाकाहारी स्रोत- मशरूम, आलू, एवोकाडो, मूंगफली, ब्रोकली, ब्राउन राइस और पनीर आदि।

 

विटामिन बी2-
मांसाहारी स्रोत - अंडे, ऑर्गन मीट (किडनीलीवर)।
शाकाहारी स्रोत- दूध, दही, ओट्स, बादाम, बींस और टमाटर।

 

विटामिन ए-
मांसाहारी स्रोत - आर्गन मीट, टूना फिश और अंडे में मिलता है।
शाकाहारी स्रोत- गाजर, शकरकंद, लौकी, आम, वनीला आइसक्रीम और पालक।

 

आयरन-
मांसाहारी स्रोत - ओएस्टर, चिकन, बत्तख और बकरे के मीट में।
शाकाहारी स्रोत- बींस, गहरे हरे रंग की पत्तेदार सब्जियां, दालें और मटर।

 

कॉपर-
मांसाहारी स्रोत - ओएस्टर (सीप), क्रैब और टर्की।
शाकाहारी स्रोत- चॉकलेट, तिल, काजू, आलू, शिताके मशरूम।

Disclaimer- इस आलेख में दी गई जानकारी की सटीकता, समयबद्धता और वास्तविकता सुनिश्चित करने का हर सम्भव प्रयास किया गया है। हालांकि, हमारा आपसे विनम्र निवेदन है कि किसी भी उपाय को आजमाने से पहले अपने चिकित्सक से अवश्य संपर्क करें। यह लेख केवल आपकी जानकारी बढ़ाने के उद्देश्य से लिखा गया है। 

बढ़ा खतरा: फेफड़े ही नहीं शरीर के बाकी अंगों पर भी हमला करता है कोरोना वायरस

बढ़ा खतरा: फेफड़े ही नहीं शरीर के बाकी अंगों पर भी हमला करता है कोरोना वायरस

नई दिल्ली, देश में कोरोना (Coronavirus) की दूसरी लहर का हमला तेज हो गया है. बेलगाम कोरोना के चलते देश में पिछले एक सप्तानह से हर दिन कोरोना के तीन लाख से ज्यानदा नए केस सामने आ रहे हैं. कोरोना की दूसरी लहर में इस बात के संकेत मिले हैं कि वायरस न केवल फेफड़ों (Lungs) पर हमला करता है, बल्कि कोरोना के हमले से शरीर के कई अंग भी प्रभावित होते हैं.

हेल्थ एक्सपर्ट का कहना है कि जैसे-जैसे शरीर पर कोरोना वायरस का हमला बढ़ता है वैसे वैसे ये शरीर के इम्यूभन सिस्टेम को कमजोर करने लगता है और शरीर के अन्य़ अंगों पर हमला करने लगता है. वायरस दूसरे बॉडी पार्ट्स में सूजन पैदा कर रहा है. अगर किसी व्यक्ति को डायबिटीज, हाइपरटेंशन या मोटापे की समस्या है तो फिर कोरोना का शरीर पर असर और ज्यादा होता है.

ऐसे में जरूरी है कि अगर आपको अपनी शरीर में इस तरह की कोई दिक्कीत दिख रही है तो उसे नजरअंदाज करने की भूल न करें...

वायरस दिल पर करता है बड़ा हमला :
जिन लोगों को पहले से हार्ट की बीमारी है या फिर जिनका मेटाबोलकि सिस्टकम खराब है उन लोगों के कोरोना के चपेट में आने का खतरा ज्याजदा होता है. SARs-COV-2 वायरस कोरोना मरीजों के दिल की मांसपेशियों में सूजन बढ़ा देता है. कोरोना पर नजर रखने वाले डॉक्टारों का कहना है कि कोरोना के लगभग एक चौथाई मरीज, जिन्हेंज गंभीर लक्षण के बाद अस्पटताल में भर्ती कराया गया था.

न्यूरोलॉजिकल की बढ़ रही समस्या :
इस बार के कोरोना में कोविड मरीजों में सिर दर्द, चक्क,र आना, धुंधला दिखाई देना जैसे लक्षण सामने आए हैं. JAMA न्यूरोलॉजी में छपी एक स्टडी के मुताबिक, वुहान में अस्पताल में भर्ती 214 में से एक तिहाई कोरोना के मरीजों में न्यूरोलॉजिक लक्षण पाए गए थे. बताया जाता है कि कोरोना का ये असर काफी लंबे समय तक बना रहता है.

किडनी पर हमला कर सकता है वायरस :
कोरोना का असर अगर लंबे समय तक किसी के शरीर में रह जाए तो किडनी की समस्याह बढ़ जाती है. SARS-CoV-2 कोशिकाओं पर बड़ा हमला करता है, जिसकी वजह से किडनी समेत कई अंगो की कोशिकाएं संक्रमित हो जाती हैं. वायरस किडनी में पहुंचने के बाद सूजन कर देता है जिसका असर किडनी के टिश्यू पर भी पड़ता है. इसकी वजह से यूरीन की मात्रा कम हो जाती है.

ब्लड क्लॉट का भी बना रहता है खतरा :
कोरोना की वजह से शरीर में सूजन हो जाती है, जिसकी वजह से कई लोगों में खून के थक्केा बनने लगते हैं. एक्सपर्ट्स का कहना है कि ACE2 रिसेप्टर्स से जुड़ने के बाद SARS-COV-2 वायरस रक्त वाहिकाओं पर दबाव डालता है. इसकी वजह से बनने वाला प्रोटीन ब्लड क्लॉटिंग बढ़ाता है. खून के थक्कें बन जाने के कारण फेफड़ों पर सही मात्रा में खून नहीं पहुंच पाता और हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है.

 

सावधान: एक रिपोर्ट के मुताबिक वन्यजीवों से कोरोनावायरस फैलने की अधिक संभावना

सावधान: एक रिपोर्ट के मुताबिक वन्यजीवों से कोरोनावायरस फैलने की अधिक संभावना

कोविड महामारी के स्रोत का पता लगाने के प्रयास लगातार जारी हैं। हाल ही में सीएनएन द्वारा प्रसारित साक्षात्कार में एक प्रमुख वैज्ञानिक सेंटर फॉर डिसीज़ कंट्रोल के पूर्व निदेशक और वायरोलॉजिस्ट रॉबर्ट रेडफील्ड ने बिना किसी प्रमाण के दावा किया कि सार्स-कोव-2 वुहान की प्रयोगशाला से निकला है। साथ ही उन्होंने कहा कि यह मात्र एक निजी राय है। इसके दो दिन बाद कुछ अन्य लोगों (डबल्यूएचओ और चीन सरकार की टीम) ने वायरस के वन्यजीवों से फैलने की बात कही जिसकी शुरुआत चमगादड़ों से हुई है। इसमें भी कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं दिया गया।
गौरतलब है कि वुहान की प्रयोगशाला में किसी को भी ऐसा कोरोनावायरस नहीं मिला है जिसे बदलकर ज़्यादा फैलने वाला बनाया गया हो और फिर उसने बदलते-बदलते सार्स-कोव-2 जैसा रूप लेकर वहां किसी कर्मचारी को संक्रमित कर दिया हो। इसी तरह किसी को जंगली जीवों में कोरोनावायरस के प्रमाण भी नहीं मिले हैं जो एक से दूसरे जंतु में आगे बढ़ते-बढ़ते उत्परिवर्तित होकर सार्स-कोव-2 के समान हो गया हो और फिर मनुष्यों में प्रवेश कर गया हो।
अभी तक ये दोनों ही विचार प्रमाण-विहीन हैं और दोनों ही संभव हैं।
फिर भी इन दोनों विचारों के सही होने की संभावना बराबर नहीं है। देखा जाए तो प्रयोगशाला से वायरस के निकलने की कोई एक या शायद कुछ मुट्ठी भर घटनाएं हो सकती हैं जबकि वन्यजीवों से वायरस के फैलने के अनेकों अवसर होंगे।
रेडफील्ड की अटकल है कि किसी भी वायरस के लिए इतने कम समय में जीवों से मनुष्यों में प्रवेश करने की कुशलता हासिल करना बिना प्रयोगशाला के संभव नहीं है। लेकिन एक बार में इतनी बड़ी छलांग बहुत बड़ी बात होगी। स्वयं रेडफील्ड ने कहा है कि यह वायरस हमारी जानकारी में आने के कई महीनों पहले से प्रसारित हो रहा था। यानी मनुष्यों तक पहुंचने से पहले एक लंबी अवधि रही होगी जो इस वायरस के वन्यजीवों से फैलने का संकेत देती है।
वन्यजीवों से वायरस के फैलने का विचार इस बात पर टिका है कि चीन में करोड़ों चमगादड़ हैं और उनका मनुष्यों समेत अन्य जीवों से खूब संपर्क होता है। अत:, वायरस के मनुष्यों में प्रवेश करने के कई मौके हो सकते हैं। मूल रूप में तो यह वायरस मनुष्यों में खुद की प्रतिलिपि तैयार करने में अक्षम होता है। लेकिन मनुष्यों को संक्रमित करने के पहले इसे विकसित होने के लाखों मौके मिले होंगे। गौरतलब है कि चमगादड़ अक्सर कई जीवों जैसे पैंगोलिन, बैजर, सूअर, एवं अन्य के संपर्क में आते हैं जिससे ये मौकापरस्त वायरस इन प्रजातियों को आसानी से संक्रमित कर देते हैं। चमगादड़ कॉलोनियों में रहते हैं इसलिए विभिन्न प्रकार के कोरोनावायरस के मिश्रण की संभावना होती है और उन्हें अपने जींस को पुनर्मिश्रित करने का पूरा मौका मिलता है। यहां तक कि एक अकेले चमगादड़ में भी विभिन्न कोरोनावायरस देखे गए हैं।
इन वायरसों को मेज़बानों के बीच छलांग लगाने के लिए कई महीनों का समय मिलता है। इसी दौरान वे उत्परिवर्तित भी होते रहते हैं। एक बार मनुष्यों में प्रवेश करने पर उन वायरस संस्करणों को वरीयता मिलती है जो मानव कोशिकाओं को संक्रमित करके अपनी प्रतिलिपियां बनाने की क्षमता रखते हैं। जल्द ही वे कोशिकाओं को इस स्तर तक संक्रमित कर देते हैं कि लोग बीमार होने लगते हैं। तब जाकर एक नई बीमारी प्रकट होती है। यह वही अवधि होती है जिसे रेडफील्ड ने माना है कि वायरस प्रसारित होता रहा है।
वास्तव में हम कोरोनावायरस के विकास में यह घटनाक्रम देख भी रहे हैं। इसमें काफी तेज़ी से उत्परिवर्तन हो रहे हैं (E484K और 501Y जैसे) जो वायरस को और अधिक संक्रामक बनाते हैं। युनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन के वायरोलॉजिस्ट एडम लौरिंग के अनुसार ये परिवर्तन प्राकृतिक रूप से हो रहे हैं। जिसका कारण यह है कि वायरस को लाखों संक्रमित व्यक्तियों में उत्परिवर्तन के लाखों अवसर मिल रहे हैं।
तो किसे सही माना जाए? रेडफील्ड की प्रयोगशाला से रिसाव की परिकल्पना को जो मात्र एक संयोग पर निर्भर है? या फिर वन्यजीवों से प्रसारित होने की परिकल्पना को जिसे लाखों अवसर मिल रहे हैं? हालांकि दोनों ही संभव हैं लेकिन एक की संभावना अधिक मालूम होती है। इसीलिए, अधिकांश वैज्ञानिकों को वन्यजीवों के माध्यम से इस वायरस के फैलने के आशंका अधिक विश्वसनीय लगती है।
वायरस की उत्पत्ति का सवाल महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे किसी महामारी के शुरू होने की जानकारी मिल सकती है ताकि भविष्य में इस तरह की स्थितियों को रोका जा सके। आज भी कई रोग पैदा करने वाले वायरस हमारे बीच मौजूद हैं जो महामारी का रूप ले सकते हैं।
-स्रोत फीचर्स